राजा दशरथ ने तीन शादी क्यों की? - raaja dasharath ne teen shaadee kyon kee?

राजा दशरथ ने तीन शादी क्यों की? - raaja dasharath ne teen shaadee kyon kee?

रंगीन दुनिया

राजा दशरथ ने तीन शादी क्यों की? - raaja dasharath ne teen shaadee kyon kee?

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21-वीं सदी में जहाँ एक शादी करके भी गुजारा करना मुश्किल हो जाता हैं वहीं पुराने ज़माने में राजा महाराजा एक नहीं बल्कि दो-चार शादियाँ किया करते थे। अगर हम किसी राजा की कई शादियों के बारे में बात करें तो इनमें सबसे चर्चित नाम आता है राजा दशरथ का। राजा दशरथ ने तीन शादियाँ की थी। उनकी तीनों रानियों का नाम क्रमशः कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी था। भगवान राम कौशल्या के पुत्र थे।
अगर आज के ज़माने में तीन शादियाँ करने की बात की जाए तो सुनने में बहुत अच्छा लगेगा लेकिन उन शादियों को निभाना शायद गंगा में जौ बोने के सामान होगा। अगर यही बात किसी शादीशुदा आदमी को कही जाए तो वह बोलेगा भई यहाँ एक नहीं संभल रही है और तुम तीन शादी करने को कह रहें हो।


विषयसूची

  • 1 राजा दशरथ ने तीन शादियां क्योंकि?
  • 2 राजा दशरथ ने कितनी शादियां की थी?
  • 3 राम के मामा का नाम क्या है?
  • 4 धरती पर अमर कौन कौन है?
  • 5 कौन कौन से भगवान जीवित है?

राजा दशरथ ने तीन शादियां क्योंकि?

इसे सुनेंरोकेंसुमित्रा ने पहला भाग भी यह जानकर नहीं खाया था कि जब तक राजा दशरथ कैकेयी को उसका हिस्सा नहीं दे देते तब तक वह अपना हिस्सा नहीं खायेगी। अब कैकेयी ने अपना हिस्सा पहले खा लिया और तत्पश्चात् सुमित्रा ने अपना हिस्सा खाया। इसी कारण राम (कौशल्या से), भरत (कैकेयी से) तथा लक्ष्मण व शत्रुघ्न (सुमित्रा से) का जन्म हुआ।

भगवान राम की बहन कौन थी?

इसे सुनेंरोकेंरामायण के सारे चरित्रों के बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं. सबको पता है कि भगवान राम के 3 भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि भगवान राम की एक बहन भी थी जिनका नाम शांता था. रामायण में भी शांता का बहुत कम जिक्र है. शांता इन चारों भाइयों की बड़ी बहन थीं.

राजा दशरथ ने कितनी शादियां की थी?

इसे सुनेंरोकेंजब रानी कौशल्या तथा रानी कैकई से राजा दशरथ को संतान की प्राप्ति नहीं हुई । तब उन्होंने काशी की राजकुमारी सुमित्रा से विवाह किया था।

राम जी के मामा का नाम क्या है?

राम

श्रीरामजी ( श्रीरामचन्द्रजी )
माता-पिता महाराज दशरथ (father) देवी कौशल्या (mother)
भाई-बहन भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और शांता
संतान कुश, लव
शास्त्र रामचरितमानस , विष्णु पुराण , भागवत पुराण , वाल्मीकि रामायण आदि

राम के मामा का नाम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमहाकोशल में था मायका इसी आधार पर उनका नाम कौशल्या पड़ा। उस समय महाकोशल क्षेत्र कोशल कहलाता था।

कौशल्या सुमित्रा और कैकई का असली नाम क्या था?

इसे सुनेंरोकेंसुमित्रा का असली नाम क्या है Sumitra ka asli naam kya hai महारानी सुमित्रा सुमित्र देश की राजकुमारी थी इसलिए उनका नाम सुमित्रा पड़ गया। किन्तु सुमित्रा का असली नाम पूर्णावती था।

धरती पर अमर कौन कौन है?

इसे सुनेंरोकेंजी हाँ कहते हैं कुल आठ आत्माएं हैं जो आज भी अमर हैं और इस संसार में हमारे साथ वास करती हैं। इन आठ आत्माओं को अष्ट चिरंजीवी कहा जाता है। इन आठ आत्माओं के नाम इस प्रकार है बजरंगबली, भगवान परशुराम, ऋषि वेदव्यास, ऋषि कृपाचार्य, अश्वथामा और विभीषण।

इसे सुनेंरोकेंराजा दशरथ की शादी तीन औरतों से क्यों हुई थी?

राजा दशरथ ने कितने साल राज किया?

इसे सुनेंरोकेंवाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि श्रीराम ने 11000 वर्ष तक अयोध्या में राज किया था।

कौन कौन से भगवान जीवित है?

इसे सुनेंरोकेंअर्थात् : अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं। यह दुनिया का एक आश्चर्य है।

दशरथ
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Kaikeyi demands that Dasharatha banish Rama from Ayodhya
जीवनसाथी

कौशल्या
कैकेयी
सुमित्रा

[1]
माता-पिता

  • अजः (पिता)
  • इंदुमति (माता)

संतान शान्ता
राम
भरत
लक्ष्मण
शत्रुघ्न

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दशरथ ऋष्यश्रृंग को लेने के लिए जाते हुए

दशरथ, वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या के रघुवंशी राजा थे। वे राजा अज व इन्वदुमतीके के पुत्र थेे तथा इक्ष्वाकु कुल मे जन्मे थे। वे श्रीराम के पिता थे। उनके चरित्र को आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है। उनकी तीन पत्नियाँ थीं – कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी। अंगदेश के राजा रोमपाद या चित्ररथ की दत्तक पुत्री शान्ता महर्षि ऋष्यशृंग की पत्नी थीं। एक प्रसंग के अनुसार शान्ता दशरथ की पुत्री थीं तथा रोमपाद को गोद दी गयीं थीं। [2][3]

पुत्रों का जन्म[संपादित करें]

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उन्होंने पुत्र कामना के लिए अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने का विचार किया। उनके एक मंत्री सुमन्त्र ने उन्हें सलाह दी कि वह यह यज्ञ अपने दामाद ऋष्यशृंग या साधारण की बोलचाल में शृंगि ऋषि से करवायें। दशरथ के कुल गुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ थे। वह उनके धर्म गुरु भी थे तथा धार्मिक मंत्री भी। उनके सारे धार्मिक अनुष्ठानों की अध्यक्षता करने का अधिकार केवल धर्म गुरु को ही था। अतः वशिष्ठ की आज्ञा लेकर दशरथ ने शृंगि ऋषि को यज्ञ की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया।


शृंगि ऋषि ने दोनों यज्ञ भलि भांति पूर्ण करवाये तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ के दौरान यज्ञ वेदि से एक आलौकिक यज्ञ पुरुष या प्रजापत्य पुरुष उत्पन्न हुआ तथा दशरथ को स्वर्णपात्र में नैवेद्य का प्रसाद प्रदान करके यह कहा कि अपनी पत्नियों को यह प्रसाद खिला कर वह पुत्र प्राप्ति कर सकते हैं। दशरथ इस बात से अति प्रसन्न हुये और उन्होंने अपनी पट्टरानी कौशल्या को उस प्रसाद का आधा भाग खिला दिया। बचे हुये भाग का आधा भाग (एक चौथाई) दशरथ ने अपनी दूसरी रानी सुमित्रा को दिया। उसके बचे हुये भाग का आधा हिस्सा (एक बटा आठवाँ) उन्होंने कैकेयी को दिया। कुछ सोचकर उन्होंने बचा हुआ आठवाँ भाग भी सुमित्रा को दे दिया। सुमित्रा ने पहला भाग भी यह जानकर नहीं खाया था कि जब तक राजा दशरथ कैकेयी को उसका हिस्सा नहीं दे देते तब तक वह अपना हिस्सा नहीं खायेगी। अब कैकेयी ने अपना हिस्सा पहले खा लिया और तत्पश्चात् सुमित्रा ने अपना हिस्सा खाया।[4] इसी कारण राम (कौशल्या से), भरत (कैकेयी से) तथा लक्ष्मण व शत्रुघ्न (सुमित्रा से) का जन्म हुआ।

दशरथ का देहावसान[संपादित करें]

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कैकेयी का कोपभवन में दशरथ से दो वर मांगना

राम के सीता के विवाह के बाद दशरथ ने यह घोषणा कर दी कि राम का राज्याभिषेक तुरन्त होगा। कैकेयी की एक कुबड़ी दासी थी मन्थरा जिसने कैकेयी को बचपन से पाल-पोस कर बड़ा किया था और कैकेयी के विवाह के बाद उनके साथ ही आ गई थी। वह एक कुटिल राजनीतिज्ञ थी। उसने कैकेयी को मंत्रणा दी कि राम के राज्याभिषेक से कैकेयी का भला नहीं वरन् अनहित ही होने वाला है। उसने कैकेयी को राजा दशरथ से अपने दो वर मांगने की सलाह दी। यह घटना उस समय की है जब दशरथ देवों के साथ मिलकर असुरों के विरुद्ध युद्ध कर रहे थे। असुरों को खदेड़ते समय उनका रथ युद्ध के कीचड़ (रक्त, पसीना तथा मृतक शरीर) में फँस गया। उस रथ की सारथी स्वयं कैकेयी थीं। उसी समय किसी शत्रु ने युधास्त्र चला कर दशरथ को घायल कर दिया तथा वह मरणासन्न हो गये। यदि कैकेयी उनके रथ को रणभूमि से दूर ले जाकर उनका उपचार नहीं करतीं तो दशरथ की मृत्यु निश्चित थी। दशरथ ने होश में आकर कैकेयी से कोई भी दो वर मांगने का आग्रह किया। उस समय अयोध्या साम्राज्य की परिस्थितियाँ अनुकूल थीं तथा सभी सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में जी रहे थे अतः कैकेयी ने वह वर मांगने से इनकार कर दिया और यह कह कर टाल दिया कि समय आने पर वह यह वर मांग लेंगी। अब जबकि दुष्ट मंथरा के बहकावे में आकर कैकेयी को यह आभास हो गया कि श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद उसका अनहित ही होने वाला है, उसने कोपभवन में जाने का विचार कर लिया।[5]

उस काल में रनिवास में एक कोपभवन होता था जहाँ कोई भी रानी किसी भी कारणवश कुपित होकर अपनी असहमति व्यक्त कर सकती थी और राजा का कर्तव्य होता था कि उसे कोपभवन के प्रांगण में जाकर उस रानी को मनाना पड़ता था। राजा दशरथ ने भी वैसा ही किया। जब कैकेयी ने अपने दो वर मांगने की इच्छा दर्शाई तो कामोन्मुक्त राजा दशरथ राज़ी हो गये। यहाँ पर यह नहीं भूलना चाहिये कि कैकेयी दशरथ की सबसे युवा रानी थी और राजा दशरथ स्वयं चौथे काल में पहुँच गये थे। (इस व्याख्यान के संदर्भ में यह बताना उचित होगा कि हिन्दू धर्म के अनुसार चार प्रकार के काल या आश्रम बताये गये हैं — गर्भाश्रम – जो कि मनुष्य के जन्म से लेकर लगभग आठ वर्ष की उम्र तक अपनी माता के साथ रहने को कहते हैं, ब्रह्मचर्याश्रम – जो कि लगभग आठ से पच्चीस वर्ष की आयु तक होता है और व्यक्ति गुरुकुल में विद्या तथा सांसारिक ज्ञान अर्जित करने में व्यतीत करता है, गृहस्थाश्रम – जो कि लगभग पच्चीस से पचास वर्ष तक की आयु का होता है और व्यक्ति गुरुकुल के गुरु द्वारा आयोजित विवाह के सांसारिक बोध में अपने को समर्पित कर देता है तथा वामप्रस्थाश्रम – जब मनुष्य ईश्वर की उपासना की ओर गतिबद्ध हो जाता है। यहाँ पर भी वह अपने सांसारिक उत्तरदायित्व का निवारण करता है।[5]

पाँचवीं अवस्था जो कि वैकल्पिक है, सन्यास की है, जब व्यक्ति सांसारिक मोह माया के परे जाकर केवल भगवत् स्मरण करता है। इस अवस्था के लिए यह अनिवार्य है कि मनुष्य ने अपने सारे उत्तरदायित्व भलि भांति निभा लिए हों। इस अवस्था में मनुष्य अरण्य में जाकर ऋषियों की शरण लेता है।) अतः उनका कैकेयी के प्रति वासना जागना स्वाभाविक था और उस वासना के लिए जो भी बन पड़े वह निभाने के लिए राजा दशरथ तत्पर रहते थे। अब कैकेयी ने राजा दशरथ से वह दो वर मांगे। एक से स्वयं के पुत्र भरत को अयोध्या की राजगद्दी तथा दूसरे से राम को चौदह वर्ष का वनवास। राजा दशरथ यह बर्दाशत न कर सके। उन्होंने कैकेयी को बहुत मनाने की कोशिश की। उसे बुरा-भला भी कहा। लेकिन जब कैकेयी ने उनकी एक न मानी तो वह आहत होकर वहीं कोपभवन में गिर गये।[6]

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राम दशरथ से वन जाने की आज्ञा लेते हुये

राम को जब इस विषय की आभास हुआ तो वह स्वयं ही दशरथ के समीप गये और उनसे आग्रह किया कि रघुकुल की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए वह कैकेयी को दोनों वर प्रदान कर दें। उन्होंने हठ करके राजा को इन बातों के लिए मना लिया और संन्यासियों के वस्त्र पहनकर सीता तथा लक्ष्मण के साथ वन की ओर निकल पड़े। दशरथ यह सदमा बर्दाश्त न कर सके और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये।[7]
रामायण में दशरथ का नाम इसके बाद तभी आया है जब राम अपने आपको दशरथ-पुत्र कहकर या तो संबोधित करते हैं या फिर अपना इस संदर्भ में परिचय देते हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Valmiki Ramayana - Ayodhya Kanda - Sarga 34".
  2. "ऋष्यशृंग". मूल से 20 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-05-07.
  3. Buck, William (2000). Ramayana (अंग्रेज़ी में). Motilal Banarsidass Publ. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120817203. मूल से 25 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जुलाई 2018.
  4. "राम जन्म". मूल से 20 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-05-07.
  5. ↑ अ आ "पुत्र वियोग में दशरथ देहावसान, केवट प्रसंग व भरत मिलाप का मंचन". जागरण.
  6. "पुत्र वियोग में दशरथ देहावसान, केवट प्रसंग व भरत मिलाप का मंचन". जागरण.
  7. "दशरथ का देहावसान". मूल से 20 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-05-07.

राजा दशरथ की तीन पत्नियां क्यों थी?

सुमित्रा ने पहला भाग भी यह जानकर नहीं खाया था कि जब तक राजा दशरथ कैकेयी को उसका हिस्सा नहीं दे देते तब तक वह अपना हिस्सा नहीं खायेगी। अब कैकेयी ने अपना हिस्सा पहले खा लिया और तत्पश्चात् सुमित्रा ने अपना हिस्सा खाया। इसी कारण राम (कौशल्या से), भरत (कैकेयी से) तथा लक्ष्मण व शत्रुघ्न (सुमित्रा से) का जन्म हुआ।

राजा दशरथ नपुंसकता क्या?

राजा दशरथ ना तो नपुंसक थे और ना ही उनकी संतान नियोग से हुई। दशरथ के पास सब कुछ था यद्यपि फिर भी वे असंतुष्ट थे। उनके जीवन में म्रत्येक वस्तु की उपस्थिति को मानो, एक ही वस्तु की अनुपस्थिति ने ढँक दिया था।

राजा दशरथ राम से अधिक प्यार क्यों करते थे?

राजा दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय थे | ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण। और इन मानवीय गुणों के कारण भी।

राजा दशरथ का असली नाम क्या है?

महाराजा दशरथ का असली नाम 'मनु' था। महाराज दशरथ जो कि इच्छवाकु वंश के एक प्रतापी राजा थे, जिन्होने इक्ष्वाकु वंश में राजा अज और इन्दुमती के पुत्र के रूप में जन्म लिया उनका असली नाम मनु था। जब वह मनु थे तो उन्होंने अपनी पत्नी शतरूपा के साथ घोर तपस्या करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया।