प्याज और लहसुन को हिन्दू धर्म में क्यों प्रतिबंधित किया गया है? - pyaaj aur lahasun ko hindoo dharm mein kyon pratibandhit kiya gaya hai?

नौ दिवसीय नवरात्रि उपवास के फल, सब्जियां, कुट्टू आटा, साबूदाना, समक चावल, डेयरी उत्पाद और सेंधा नमक खाया जाता हैं। और ऐसे मेंप्याज और लहसुन नहीं खाया जाता है। जो लोग उपवास रखते हैं वे नवरात्रि के दौरान अपने भोजन से प्याज और लहसुन को हटा देते हैं। सख्त संस्कृति और पारंपरिक मान्यताओं के अलावा, व्रतधारी निश्चित भोजन शैली का भी पालन करते हैं। वे किसी भी तरह के मसालेदार भोजनका सेवन नहीं करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्राह्मण प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करते हैं। पुराने जमाने में लोग प्याज और लहसुन कभी नहीं खाते थे।

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इन दोनों सब्जियों को कभी किसी ब्राह्मण के घर नहीं लाया गया। हालांकि, देर से हीसही, इस अवधारणा को बदल दिया गया है। भगवान के लिए परोसे जाने वाले नैवेद्य के एक भाग के रूप में, प्याज और लहसुन का उपयोगकरके कभी भी खाद्य पदार्थ तैयार नहीं किए जाते हैं। आयुर्वेद का आधार आयुर्वेद के आधार पर हम जो भोजन करते हैं उसे तीन समूहों में बांटा जा सकता है। सत्व, रजस और तमस। सात्विक भोजन मानसिक शांतिप्रदान करता है, यह हमारे दिमाग को शांत रखता है, हमें सच बोलने में मदद करता है और हमारे दिमाग को हमेशा नियंत्रण में रखता है।

यही मुख्यकारण है कि व्रत में केवल सात्विक भोजन करना पसंद करते थे। रजस की श्रेणी में आने वाले खाद्य पदार्थ आपको चाह सकते हैं और सांसारिकसुखों की इच्छा कर सकते हैं। प्याज आपकी यौन भावनाओं को बढ़ाने के लिए जाना जाता है। यह मुख्य कारणों में से एक है कि क्यों पहले केसमय में प्याज को प्रतिबंधित किया गया था। जब हम तमस श्रेणी के खाद्य पदार्थ जैसे प्याज और लहसुन खाते हैं, तो हमें जो गुण मिलते हैं, वहयह है कि हमारा मन दुष्ट हो जाता है,

हम अधिक क्रोधित हो जाते हैं और हमारे मन को कभी भी नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इसलिए लोग हमेशा प्याज और लहसुन खाने से परहेज करते हैं। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि लहसुन कुछ स्वास्थ्य विकारों को ठीककरने में मदद करता है; हालाँकि, ब्राह्मणों ने उन्हीं बीमारियों को ठीक करने के लिए वैकल्पिक आयुर्वेदिक दवाएं खोजीं।

चूंकि मानव को बंदरों से विकसित होने के लिए जाना जाता है, इसलिए इन नियमों और मान्यताओं को हमारे हमेशा से भटकने वाले दिमागों कोवश में करने के लिए लागू किया गया था। बल्कि हम इंसानों का अपने दिमाग पर नियंत्रण नहीं होता है। इसलिए, प्याज, लहसुन, मांस आदिजैसे खाद्य पदार्थों से परहेज करके, ब्राह्मण मानते हैं कि यह शांति प्राप्त करने और अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में एक कदमहै। इसलिए, वे ऐसी कोई भी गतिविधि करने से परहेज करते हैं जिससे उनका ध्यान भगवान से हट जाए।

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प्याज और लहसुन को हिन्दू धर्म में क्यों प्रतिबंधित किया गया है? - pyaaj aur lahasun ko hindoo dharm mein kyon pratibandhit kiya gaya hai?

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जानिए कुछ लोग क्यों नहीं खाते प्याज-लहसुन?

आपने कई लोगों को देखा होगा कि वह प्याज और लहसुन खाने से परहेज करते हैं।लेकिन आप अक्सर सोचते होंगे कि ऐसा क्यों?क्या इसके पीछे कोई धार्मिक कारण है या फिर वैज्ञानिक?चलिए आज हम आपको बताते हैं।

वेद शास्त्रों के अनुसार,लहसुन और प्याज जैसी सब्जियां जुनून,उत्तेजना को बढ़ावा देती हैं और आध्यात्म के मार्ग पर चलने से रोकती हैं इसलिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए।

वहीं आयुर्वेद के मुताबिक,फ़ूड प्रोडक्ट्स को तीन कैटेगरीज में बांटा जाता है।सात्विक,राजसिक और तामसिक जिनमें सात्विक खाना:शांति,पवित्र माना जाता है। वहीं,राजस में जुनून और ख़ुशी के गुण होते हैं। तामस खाना गुस्से,अहंकार आर विनाश का प्रतीक होता है और प्याज-लहसुन इसी श्रेणी में आते हैं इसलिए इन्हें खाना सही नहीं माना जाता।

Authored by

Gitika dubey

| नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: May 5, 2022, 5:30 PM

प्‍याज-लहसुन सब्जियों की ही किस्‍म है, यह जानते हुए भी भगवान के लिए बनाए जाने वाले भोग में प्‍याज-लहसुन का प्रयोग क्‍यों नहीं किया जाता। प्‍याज-लहसुन गुणों की खान है, लेकिन इसके बाद भी व्रत के लिए बनने वाले किसी भी प्रकार के भोजन में प्‍याज-लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसका संबंध समुद्र मंथन से है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्‍तार से...

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    जब समुद्र मंथन से निकला अमृत

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    तब राहु ने चली यह चाल

    राहु नामक एक राक्षस को जब मोहिनी पर संदेह हुआ तो वह चुपके से देवताओं की पंक्ति में वेश बदलकर बैठ गया। अमृत बांटते-बांटते मोहिनी के रूप में भगवान विष्णु भी उस राक्षस को नहीं पहचान पाए और उसे भी अमृतपान करवा दिया।

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    सूर्य और चंद्रदेव ने पहचान लिया

    मगर सूर्य और चंद्रद्रेव ने तत्‍काल ही उस राक्षस को पहचान लिया और मोहिनी के रूप में अमृत बांट रहे भगवान विष्‍णु को राक्षस की इस चाल के बारे में बताया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया। सिर कटते ही अमृत की कुछ बूंदें उस राक्षस के मुंह से रक्त के साथ नीचे जमीन में गिरीं, जिनसे प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई।

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    राक्षसी गुणों से युक्‍त प्‍याज-लहसनु

    अमृत से पैदा होने के कारण प्याज और लहसुन रोगनाशक व जीवनदायिनी है। परंतु राक्षसी रक्त के मिश्रण के कारण इसमें राक्षसी गुणों का समावेश हो गया है। ये उत्तेजना, क्रोध, हिंसा अशांति व पाप में वृद्धि करते है। इसलिए व्रत के खाने में या फिर भगवान के भोग में प्‍याज-लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता।

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    सात्विक भोजन नहीं है प्‍याज-लहसुन

    इसे राक्षसी भोजन माना गया है। रोगनाशक व जीवनदायिनी होने के बाद भी यह पाप को बढ़ाता है और बुद्धि को भ्रष्ट कर अशांति को जन्म देता है। इसलिए प्याज और लहसुन को अपवित्र मान कर इनका धार्मिक कार्यों में प्रयोग वर्जित है।

हिन्दू प्याज लहसुन क्यों नहीं खाते?

तामसिक भोजन जैसे मांस-मछली, प्याज, लहसुन आदि राक्षसी प्रवृत्ति के भोजन कहलाते हैं. जिसके सेवन से घर में अशांति, रोग और चिंताएं घर में प्रवेश करती हैं इसलिए प्याज-लहसुन का सेवन खाना हिंदु धर्म में वर्जित माना जाता है.

प्याज और लहसुन को मांसाहारी क्यों माना जाता है?

लहसुन और प्याज़ मांसाहारी नहीं होता है। इनको तामसिक प्रवृत्ति का माना जाता है । ऐसा माना जाता है कि इनके सेवन से शरीर में उत्तेजना की वृद्धि होती है। इसलिए इसका सेवन छात्रों, पूजा पाठ करने वाले के लिए निषेध माना जाता था।

शास्त्रों के अनुसार प्याज क्यों नहीं खाना चाहिए?

वेद शास्त्रों के अनुसार,लहसुन और प्याज जैसी सब्जियां जुनून,उत्तेजना को बढ़ावा देती हैं और आध्यात्म के मार्ग पर चलने से रोकती हैं इसलिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए। वहीं आयुर्वेद के मुताबिक,फ़ूड प्रोडक्ट्स को तीन कैटेगरीज में बांटा जाता है। सात्विक,राजसिक और तामसिक जिनमें सात्विक खाना:शांति,पवित्र माना जाता है।