पिता के पत्र पुत्री के नाम किसके पत्रों का संग्रह हैं - pita ke patr putree ke naam kisake patron ka sangrah hain

पिता के पत्र पुत्री के नाम

जवाहरलाल नेहरू

(जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक Letters from a Father to His Daughter का प्रेमचंद द्वारा अनुवाद। ये पत्र नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा प्रियदर्शिनी (बाद में, गांधी) को तब लिखे थे जब वे दस साल की थीं)

                         संसार पुस्तक है

जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अकसर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो और मैं उनका जवाब देने की कोशिश करता हूँ। लेकिन, अब, जब तुम मसूरी में हो और मैं इलाहाबाद में, हम दोनों उस तरह बातचीत नहीं कर सकते। इसलिए मैंने इरादा किया है कि कभी-कभी तुम्हें इस दुनिया की और उन छोटे-बड़े देशों की जो इन दुनिया में हैं, छोटी-छोटी कथाएँ लिखा करूँ। तुमने हिंदुस्तान और इंग्लैंड का कुछ हाल इतिहास में पढ़ा है। लेकिन इंग्लैंड केवल एक छोटा-सा टापू है और हिंदुस्तान, जो एक बहुत बड़ा देश है, फिर भी दुनिया का एक छोटा-सा हिस्सा है। अगर तुम्हें इस दुनिया का कुछ हाल जानने का शौक है, तो तुम्हें सब देशों का, और उन सब जातियों का जो इसमें बसी हुई हैं, ध्यान रखना पड़ेगा, केवल उस एक छोटे-से देश का नहीं जिसमें तुम पैदा हुई हो।

मुझे मालूम है कि इन छोटे-छोटे खतों में बहुत थोड़ी-सी बातें ही बतला सकता हूँ। लेकिन मुझे आशा है कि इन थोड़ी-सी बातों को भी तुम शौक से पढ़ोगी और समझोगी कि दुनिया एक है और दूसरे लोग जो इसमें आबाद हैं हमारे भाई-बहन हैं। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम दुनिया और उसके आदमियों का हाल मोटी-मोटी किताबों में पढ़ोगी। उसमें तुम्हें जितना आनंद मिलेगा उतना किसी कहानी या उपन्यास में भी न मिला होगा।

यह तो तुम जानती ही हो कि यह धरती लाखों करोड़ों, वर्ष पुरानी है, और बहुत दिनों तक इसमें कोई आदमी न था। आदमियों के पहले सिर्फ जानवर थे, और जानवरों से पहले एक ऐसा समय था जब इस धरती पर कोई जानदार चीज न थी। आज जब यह दुनिया हर तरह के जानवरों और आदमियों से भरी हुई है, उस जमाने का खयाल करना भी मुश्किल है जब यहाँ कुछ न था। लेकिन विज्ञान जाननेवालों और विद्वानों ने, जिन्होंने इस विषय को खूब सोचा और पढ़ा है, लिखा है कि एक समय ऐसा था जब यह धरती बेहद गर्म थी और इस पर कोई जानदार चीज नहीं रह सकती थी। और अगर हम उनकी किताबें पढ़ें, पहाड़ों और जानवरों की पुरानी हड्डियों को गौर से देखें तो हमें खुद मालूम होगा कि ऐसा समय जरूर रहा होगा।

तुम इतिहास किताबों में ही पढ़ सकती हो। लेकिन पुराने जमाने में तो आदमी पैदा ही न हुआ था; किताबें कौन लिखता? तब हमें उस जमाने की बातें कैसे मालूम हों? यह तो नहीं हो सकता कि हम बैठे-बैठे हर एक बात सोच निकालें। यह बड़े मजे की बात होती, क्योंकि हम जो चीज चाहते सोच लेते, और सुंदर परियों की कहानियाँ गढ़ लेते। लेकिन जो कहानी किसी बात को देखे बिना ही गढ़ ली जाए वह ठीक कैसे हो सकती है? लेकिन खुशी की बात है कि उस पुराने जमाने की लिखी हुई किताबें न होने पर भी कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे हमें उतनी ही बातें मालूम होती हैं जितनी किसी किताब से होतीं। ये पहाड़, समुद्र, सितारे, नदियाँ, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियाँ और इसी तरह की और भी कितनी ही चीजें हैं जिनसे हमें दुनिया का पुराना हाल मालूम हो सकता है। मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार-रूपी पुस्तक को पढ़ें। मुझे आशा है कि पत्थरों और पहाड़ों को पढ़ कर तुम थोड़े ही दिनों में उनका हाल जानना सीख जाओगी। सोचो, कितनी मजे की बात है। एक छोटा-सा रोड़ा जिसे तुम सड़क पर या पहाड़ के नीचे पड़ा हुआ देखती हो, शायद संसार की पुस्तक का छोटा-सा पृष्ठ हो, शायद उससे तुम्हें कोई नई बात मालूम हो जाय। शर्त यही है कि तुम्हें उसे पढ़ना आता हो। कोई जबान, उर्दू, हिंदी या अंग्रेजी, सीखने के लिए तुम्हें उसके अक्षर सीखने होते हैं। इसी तरह पहले तुम्हें प्रकृति के अक्षर पढ़ने पड़ेंगे, तभी तुम उसकी कहानी उसकी पत्थरों और चट्टानों की किताब से पढ़ सकोगी। शायद अब भी तुम उसे थोड़ा-थोड़ा पढ़ना जानती हो। जब तुम कोई छोटा-सा गोल चमकीला रोड़ा देखती हो, तो क्या वह तुम्हें कुछ नहीं बतलाता? यह कैसे गोल, चिकना और चमकीला हो गया और उसके खुरदरे किनारे या कोने क्या हुए? अगर तुम किसी बड़ी चट्टान को तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर डालो तो हर एक टुकड़ा खुरदरा और नोकीला होगा। यह गोल चिकने रोड़े की तरह बिल्कुल नहीं होता। फिर यह रोड़ा कैसे इतना चमकीला, चिकना और गोल हो गया? अगर तुम्हारी ऑंखें देखें और कान सुनें तो तुम उसी के मुँह से उसकी कहानी सुन सकती हो। वह तुमसे कहेगा कि एक समय, जिसे शायद बहुत दिन गुजरे हों, वह भी एक चट्टान का टुकड़ा था। ठीक उसी टुकड़े की तरह, उसमें किनारे और कोने थे, जिसे तुम बड़ी चट्टान से तोड़ती हो। शायद वह किसी पहाड़ के दामन में पड़ा रहा। तब पानी आया और उसे बहा कर छोटी घाटी तक ले गया। वहाँ से एक पहाड़ी नाले ने ढकेल कर उसे एक छोटे-से दरिया में पहुँचा दिया। इस छोटे से दरिया से वह बड़े दरिया में पहुँचा। इस बीच वह दरिया के पेंदे में लुढ़कता रहा, उसके किनारे घिस गए और वह चिकना और चमकदार हो गया। इस तरह वह कंकड़ बना जो तुम्हारे सामने है। किसी वजह से दरिया उसे छोड़ गया और तुम उसे पा गईं। अगर दरिया उसे और आगे ले जाता तो वह छोटा होते-होते अंत में बालू का एक जर्रा हो जाता और समुद्र के किनारे अपने भाइयों से जा मिलता, जहाँ एक सुंदर बालू का किनारा बन जाता, जिस पर छोटे-छोटे बच्चे खेलते और बालू के घरौंदे बनाते।

अगर एक छोटा-सा रोड़ा तुम्हें इतनी बातें बता सकता है, तो पहाड़ों और दूसरी चीजों से, जो हमारे चारों तरफ हैं, हमें और कितनी बातें मालूम हो सकती हैं।

नई दिल्ली: ''पिता के पत्र' महज एक किताब का नाम नहीं है बल्कि यह एक पिता की भूमिका में बेटी को लिखा गया जवाहर लाल नेहरू के वह पत्र हैं जो सभ्यता की सबसे सुंदर और सरल व्याख्या करती है. किताब में एक तरफ नेहरू के विचार हैं तो वहीं उन विचारों को कहानी के सम्राट प्रेमचंद ने इतनी सरल भाषा में पेश किया है कि पत्र सिर्फ पत्र न रहे बल्कि पिता और बेटी के बीच की भावनात्मक कहानी बन गई.

यह पत्र जवाहरलाल नेहरू ने बेटी इंदिरा को लिखे थे. इन पत्रों के संग्रह 'लेटर फ्रॉम फादर टू हिज डॉटर' नाम की पुस्तक में छपी जिसे बाद में प्रेमचंद ने हिन्दी में अनुवाद किया. ''पिता के पत्र'' किताब में नेहरू का कुदरत के प्रति लगाव और बेटी का देश-दुनिया के सरोकारों के प्रति एक दृष्टि विकसित कर सकने की चिंता देखी जा सकती है. इस किताब में जो पत्र हैं वह जवाहर लाल नेहरू ने 1928 में लिखी थी. उस वक्त इंदिरा गांधी सिर्फ 10 साल की थीं.

दरअसल 2 साल यूरोप में रहने के बाद जब 1927 में जवाहरलाल नेहरू, कमला नेहरू और इंदिरा मद्रास के रास्ते भारत लौटे तो जहाज के उपर खड़ी इंदिरा ने पिता नेहरू से कई सवाल किए. यह संसार कैसे बना ? तरह-तरह के जीव कैसे बने? मनुष्यों की सभ्यता कैसे विकसित हुई? अलग-अलग राष्ट्र, धर्म और जातियां कैसे बनीं? अनेकों सवाल इंदिरा के जहन में उठ रहे थे और वह पिता नेहरू से पूछ रही थी.

जब 1928 की गर्मी आईं तो इंदिरा मसूरी में थीं और पंडित नेहरू इलाहाबाद में. इस दौरान उन्होंने इंदिरा को 31 पत्र लिखे और इनमें इंदिरा के उन सवालों का जवाब देने की कोशिश की जो वह अक्सर पूछा करती थी.

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नेहरू ने अपने पत्र में इंदिरा को सभ्यता, धर्म, जाति समेत कई पहलूओं की जानकारियां दी. उन्होंने अपने पहले ही पत्र में लिख ''जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अक्सर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो और मैं उनका जवाब देने की कोशिश करता हूं. लेकिन, अब, जब तुम मसूरी में हो और मैं इलाहाबाद में, हम दोनों उस तरह बातचीत नहीं कर सकते. इसलिए मैंने इरादा किया है कि कभी-कभी तुम्हें इस दुनिया की और उन छोटे-बड़े देशों की जो इन दुनिया में हैं, छोटी-छोटी कथाएं लिखा करूं.''

इसके बाद एक-एक कर के नेहरू ने कई खत लिखे और इन खतों को पढ़ने से साफ पता चलता है कि कितनी सहजता से एक पिता अपनी बेटी को लाखों साल का इतिहास बड़ी आसानी से समझा देता है.

नेहरू ने बेटी इंदिरा को लिखे खत में क्या-क्या बताया

संसार एक पुस्तक है

नेहरू ने इंदिरा को कहा कि वह इतिहास की किताबें तो पढ़ती हैं मगर उनको अगर उस वक्त के बारे में जानना है जब किताबें नहीं छपती थी तो उन्हें संसार-रूपी पुस्तक को पढ़ने की जरूरत है. उन्होंने अपने खत में लिखा, ''तुम इतिहास किताबों में ही पढ़ सकती हो लेकिन पुराने जमाने में तो आदमी पैदा ही न हुआ था. किताबें कौन लिखता? तब हमें उस जमाने की बातें कैसे मालूम हों? यह तो नहीं हो सकता कि हम बैठे-बैठे हर एक बात सोच निकालें. यह बड़े मजे की बात होती, क्योंकि हम जो चीज चाहते हैं सोच लेते हैं, और सुंदर परियों की कहानियां गढ़ लेते हैं. लेकिन जो कहानी किसी बात को देखे बिना ही गढ़ ली जाए वह ठीक कैसे हो सकती है? लेकिन खुशी की बात है कि उस पुराने जमाने की लिखी हुई किताबें न होने पर भी कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे हमें उतनी ही बातें मालूम होती हैं जितनी किसी किताब से होतीं. ये पहाड़, समुद्र, सितारे, नदियां, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियां और इसी तरह की और भी कितनी ही चीजें हैं जिनसे हमें दुनिया का पुराना हाल मालूम हो सकता है. मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार-रूपी पुस्तक को पढ़ें."

सभ्यता क्या है

नेहरू ने इंदिरा को लिखे खत में सभ्यता की परिभाषा भी बताई है और साथ ही उन्होंने किशोरी इंदिरा को इस बात की जानकारी दी कि आखिर समाज में सभ्य कौन है ? उन्होंने लिखा, '' मैं आज तुम्हें पुराने जमाने की सभ्यता का कुछ हाल बताता हूं लेकिन इसके पहले हमें यह समझ लेना चाहिए कि सभ्यता का अर्थ क्या है? कोश में तो इसका अर्थ लिखा है अच्छा करना, सुधारना, जंगली आदतों की जगह अच्छी आदतें पैदा करना और इसका व्यवहार किसी समाज या जाति के लिए ही किया जाता है. आदमी की जंगली दशा को, जब वह बिल्कुल जानवरों-सा होता है, बर्बरता कहते हैं। सभ्यता बिल्कुल उसकी उलटी चीज है. हम बर्बरता से जितनी ही दूर जाते हैं उतने ही सभ्य होते जाते हैं.''

मजहब की शुरुआत कब हुई

नेहरू ने अपने खतों में बताया कि पहले के जमाने में लोग भगवान से बहुत डरते थे और इसलिए वह उन्हें भेंट देकर, खासकर खाना पहुंचा कर, हर तरह की रिश्वत देने की कोशिश करते रहते थे. देवताओं को खुश करने के लिए वे मर्दों-औरतों का बलिदान करते, यहां तक कि अपने ही बच्चों को मार कर देवताओं को चढ़ा देते. यही बड़ी भयानक बात मालूम होती है लेकिन डरा हुआ आदमी जो कुछ कर बैठे, थोड़ा है. नेहरू ने खत में लिखा है, "मजहब पहले डर के रूप में आया और जो बात डर से की जाए बुरी है. तुम्हें मालूम है कि मजहब हमें बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें सिखाता है. जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम दुनिया के मज़हबों का हाल पढ़ोगी और तुम्हें मालूम होगा कि मजहब के नाम पर क्या-क्या अच्छी और बुरी बातें की गई हैं. यहां हमें सिर्फ यह देखना है कि मजहब का खयाल कैसे पैदा हुआ और क्यों बढ़ा लेकिन चाहे वह जिस तरह बढ़ा हो, हम आज भी लोगों को मजहब के नाम पर एक दूसरे से लड़ते और सिर फोड़ते देखते हैं. बहुत-से आदमियों के लिए मजहब आज भी वैसी ही डरावनी चीज है. वह अपना वक्त फर्जी देवताओं को खुश करने के लिए मंदिरों में पूजा, चढ़ावा और जानवरों की कुर्बानी करने में खर्च करते हैं.''

रामायण और महाभारत

सबसे बड़े धार्मिक ग्रंथों में शामिल रामायण और महाभारत को लेकर भी जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा को पत्रों के जरिए बताया था. उन्होंने लिखा था,"रामायण पढ़ने से मालूम होता है कि दक्खिनी हिंदुस्तान के बंदरों ने रामचन्द्र की मदद की थी और हनुमान उनका बहादुर सरदार था. मुमकिन है कि रामायण की कथा आर्यों और दक्खिन के आदमियों की लड़ाई की कथा हो, जिनके राजा का नाम रावण रहा हो. रामायण में बहुत-सी सुंदर कथाएं हैं; लेकिन यहां मैं उनका जिक्र न करूंगा, तुमको खुद उन कथाओं को पढ़ना चाहिए.

नेहरू रामायण की तरह ही महाभारत के बारे में लिखते हैं, ''महाभारत रामायण के बहुत दिनों बाद लिखा गया. यह रामायण से बहुत बड़ा ग्रंथ है. यह आर्यों और दक्खिन के द्रविड़ों की लड़ाई की कथा नहीं; बल्कि आर्यों के आपस की लड़ाई की कथा है. लेकिन इस लड़ाई को छोड़ दो, तो भी यह बड़े ऊंचे दरजे की किताब है जिसके गहरे विचारों और सुंदर कथाओं को पढ़ कर आदमी दंग रह जाता है. सबसे बढ़ कर हम सबको इसलिए इससे प्रेम है कि इसमें वह अमूल्य ग्रन्थ रत्न है जिसे भगवद्गीता कहते हैं. ये किताबें कई हजार बरस पहले लिखी गई थीं. जिन लोगों ने ऐसी-ऐसी किताबें लिखीं वे जरूर बहुत बड़े आदमी थे. इतने दिन गुजर जाने पर भी ये पुस्तकें अब तक जिंदा हैं, लड़के उन्हें पढ़ते हैं और सयाने उनसे उपदेश लेते हैं.

इसी तरह इस संसार में जाति, ज़बान, कौमें, खानदान और खानदान या जाति का सरगना कैसे बना इसके बारे में भी उन्होंने अपने खत में लिखा है. साथ ही चीन और भारत के रिश्तों पर भी इन खतों में प्रकाश डाला गया है. नेहरू ने हमेशा इंदिरा को बताया कि यह दुनिया रहस्यों से भरा संसार है. इसलिये हममे से किसी को भी ये सोचना नहीं चाहिये कि हम सबकुछ सीखकर बहुत बुद्धिमान हो गये हैं. सीखने को हमेशा बहुत कुछ बचा रहता है. नेहरू ने जो खत इंदिरा को लिखे वह वाकई सभ्यता और संस्कृति को समझाने का सबसे सरल तरीका था.

पिता के पत्र पुत्री के नाम में पत्र कौन किसको लिखता था?

यह पत्र जवाहरलाल नेहरू ने बेटी इंदिरा को लिखे थे. इन पत्रों के संग्रह 'लेटर फ्रॉम फादर टू हिज डॉटर' नाम की पुस्तक में छपी जिसे बाद में प्रेमचंद ने हिन्दी में अनुवाद किया. ''पिता के पत्र'' किताब में नेहरू का कुदरत के प्रति लगाव और बेटी का देश-दुनिया के सरोकारों के प्रति एक दृष्टि विकसित कर सकने की चिंता देखी जा सकती है.

नेहरू जी ने अपनी बेटी इंदिरा को पत्र क्यों लिखा?

वे पत्र इसलिए लिखते थे क्योंकि एक प्रधानमंत्री होते हुए, अपनी नन्ही बेटी के मासूम सवालों और जिज्ञासाओं का जवाब देने का उनके पास समय नहीं रहता था ।

जवाहरलाल नेहरू के इंदिरा गाँधी को साहसी बनने की प्रेरणा कैसे दी है?

इन्दिरा गांधी
पद बहाल 9 मार्च 1984 – 31 अक्टूबर 1984
पूर्वा धिकारी
नरसिंह राव
उत्तरा धिकारी
राजीव गाँधी
पद बहाल 22 अगस्त 1967 – 14 मार्च 1969
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पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संस्कृति को क्या मन है?

Answer: पंडित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार है। Explanation: मन और आत्मा का विस्तार ही संस्कृति है।