पर्यावरण प्रदूषण क्या है प्रदूषण के समस्त प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए? - paryaavaran pradooshan kya hai pradooshan ke samast prakaaron ka vistrt varnan keejie?

पर्यावरण प्रदूषण क्या है प्रदूषण के समस्त प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए? - paryaavaran pradooshan kya hai pradooshan ke samast prakaaron ka vistrt varnan keejie?

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पर्यावरण प्रदूषण एक ऐसी सामयिक समस्या है जिससे मानव सहित समस्त जैव जगत के लिए जीवन की कठिनाइयाँ बढ़ती जा रही है। पर्यावरण के तत्व यथा वायु, जल, मृदा, वनस्पति आदि के नैसर्गिक गुण हृासमान होते जा रहे है जिससे प्रकृति और जीवों का आपसी सम्बन्ध बिगड़ता जा रहा है। वैसे प्रदूषण की घटना प्राचीनकाल में भी होती रही है लेकिन उस समय प्रकृति इसका निवारण करने में सक्षम थी, जिससे इसका प्रकोप उतना भयंकर नही था, जितना आज है। 

वैज्ञानिकों का मानना है कि अगले 50 वर्षों तक यदि प्रदूषण की यही गति बनी रही तो पृथ्वी का विनाश हो सकता है। उस समय तक वायुमण्डल में बढ़ते कार्बनडाई-आक्साइड गैस से पृथ्वी के वायुमण्डल का तापमान तीन से चार डिग्री सेन्टीग्रेड बढ़ जायेगा जो एक ओर पौध घर प्रभाव को नष्ट करेगा तो दूसरी ओर हिम पिघलाव से समुद्र का जल तल बढ़ा देगा।

पर्यावरण प्रदूषण औधोगिक धन्धों के कारण ज्यादा प्रभावित है जब कोई वस्तु किसी अन्य अनचाहे पदार्थो से मिलकर अपने भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन ले आती है और वह या तो उपयोग के काम की नही रहती अथवा स्वास्थ्य को हानि पहुंचाती है तो वह प्रक्रिया परिणाम दोनों ही प्रदूषण कहलाते है । वह पदार्थ अथवा वस्तुएँ जिससे प्रदूषण होता है । 

पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ

प्रदूषण या pollution शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के polluere शब्द से हुई । इसका शाब्दिक अर्थ होता है मिट्टी में मिला देना व्यापक अर्थों में इसे विनाश अथवा विध्वंस अथवा नाश होने से जोडा गया है । वे पदार्थ जिसकी उपस्थिति से कोई पदार्थ प्रदूषित हो जाता है, प्रदूषक कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण को संभवत: आज के समय का सबसे बडा अभिशाप कहा जा सकता है। बढ़ते हुए औधोगिकरण , जनसंख्या वृद्धि व वनों के धटने के कारण पर्यावरण में अवांछनीय परिवर्तन हो रहा है । जिसका दुष्प्रभाव सभी जीव जंतुओं पर पड रहा है इसे ही प्रदूषण कहते है इसका अध्ययन आज के सन्दर्भ में अति आवश्यक है ।प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है “गन्दा या अस्वच्द करना” साधारण शब्दों में प्रदूषण पर्यावरण के जैविक तथा अजैविक तत्वों के रासायनिक,भौतिक तथा जैविक गुणों में होने वाला वह अवांछनीय परिवर्तन है। जो कि मानवीय क्रिया-कलापो के कारण होता है । वस्तुत: प्रदूषण का मूल तात्पर्य शुद्वता के हृास से है लेकिन वैज्ञानिक शब्दावली में पर्यावरण के संगठन में उत्पन्न कोई बाधा जो समपूर्ण मानव जाति के लिये द्यातक हो ,उसे प्रदूषण कहा जाता है ।

पर्यावरण प्रदूषण की परिभाषा

लार्ड केनेट के अनुसार :- “पर्यावरण में उन तत्वों या ऊर्जा की उपस्थिति को प्रदूषण कहते है ,जो मनुष्य द्वारा अनचाहे उत्पादित किये गये हो ।”

ओडम के अनुसार :- “प्रदूषण हवा ,जल , एंव मिट्टी के भौतिक ,रासायनिक एंव जैवकीय गुणों में एक ऐसा अवांछनीय परिवर्तन है कि जिसमें मानव जीवन ,औद्योगिक प्रक्रियाएं ,जीवन दशाएं तथा सांस्कृतिक तत्वों की हानि होती है । उन सभी तत्वों तथा पदार्थों को जिनकी उपस्थिति से प्रदूषण उत्पन्न होता है प्रदूषक कहते है ।” 

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति की विज्ञान सलाहकार समिति ने प्रदूषण को इस रूप में परिभाषित किया है - “ मनुष्य के कार्यो द्धारा ऊर्जा-प्रारूप ,विकिरण-प्रारूप, भौतिक एंव रासायनिक संगठन तथा जीवों की बहुलता में किये गये परिवतनों से उत्पन्न प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभावों के कारण आस-पास के पर्यावरण में अंवाछित एंव प्रतिकूल परिवर्तनों को प्रदूषण कहते है । 

राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान परिषद् के अनुसार- ‘‘मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं।’’ प्रदूषण हमारे चारों ओर स्थित वायु, भूमि और जल के भौतिक, रसायनिक और जैविक विशेषताओं में अनावश्यक परिवर्तन है, जो मानव जीवन की दशाओं और सांस्कृतिक संपदा पर हानिकारक प्रभाव डालता है।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार

प्रदूषण कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि।

1. वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण सबसे अधिक व्यापक और हानिकारक है। वायु मण्डल में सभी तरह के गैसों की मात्रा निश्चित रहती है और अधिकांशतः आक्सीजन और नाइट्रोजन होती है। श्वसन, अपघटन और सक्रिय ज्वालामुखियों से उत्पन्न गैसों के अतिरिक्त हानिकारक गैसों की सर्वाधिक मात्रा मनुष्य के कार्य-कलाप से उत्पन्न होती है। इनमें लकड़ी, कोयले, खनिज तेल तथा कार्बनिक पदार्थों के ज्वलन का सर्वाधिक योगदान है।

औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाली सल्फाइड आक्साइड गैस तथा हाइड्रोजन सल्फाइड गैस आकाश में जाकर वर्षा से मिल जाती हैं और ‘ऐसिड रेन’ का निर्माण करती हैं जो धरती पर पहुँकर बहुत हानि पहुँचाते हैं। मनुष्यों को इससे चर्म रोग होने की आशंका होती है और पौधों में खाना बनाने वाले ‘क्लोरो प्लाष्ट’ को हानि पहुँचती है। इन रासायनिक पदार्थों से धरती की मिट्टी को भी हानि पहुँचती है। मिट्टी में रासायनिक खाद दी जाती है। मनुष्य को वायु प्रदूषण के कारण कई तरह की एलर्जी उत्पन्न होती है। अन्य प्रभावों से फेफड़ों के रोग होते हैं।

2. जल प्रदूषण

जल सभी प्राणियों के लिए अनिवार्य वस्तु है। पेड़-पौधे भी आवश्यक तत्त्व जल से ही घुली अवस्था में ग्रहण करते हैं। जल में अनेक कार्बनिक, अकार्बनिक पदार्थ, खनिज तत्त्व गैसें घुली होती हैं। यदि इन तत्त्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो जल हानिकारक हो जाता है और इस जल को हम प्रदूषित जल कहते हैं। पीने योग्य जल का प्रदूषण रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु-विषाणु, कल-कारखानों से निकले हुए वर्जित पदार्थ, कीट-नाशक पदार्थ व रासायनिक खाद से हो सकता है। ऐसे जल के उपयोग से पीलिया, आँतों के रोग व अन्य संक्रामक रोग हो जाते हैं। महानगरों में भारी मात्रा में गन्दे पदार्थ नदियों के पानी में प्रवाहित किये जाते हैं, जिससे इन नदियों का जल प्रदूषित होकर हानिकारक बनता जा रहा है।

3. ध्वनि प्रदूषण

महानगरों में अनेक प्रकार के वाहन, लाउडस्पीकर, बाजे एवं औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के शोर ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। ध्वनि प्रदूषण से न केवल मनुष्य श्रवण शक्ति का ह्यास होता है, वरन् उसके मस्तिष्क पर भी इसका घातक प्रभाव पड़ता है। परमाणु शक्ति उत्पादन व नाभिकीय विखण्डन ने वायु, जल व ध्वनि तीनों प्रदूषणों को काफी विस्तार दे दिया है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि आधुनिक युग में प्रदूषण की समस्या अत्यधिक भयंकर रूप धारण करती जा रही है। यदि इस समस्या का निराकरण समय रहते न किया गया, तो एक दिन ऐसा आयेगा, जबकि प्रदूषण की समस्या सम्पूर्ण मानव जाति को निगल जायेगी।

प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

1. वृक्षारोपण कार्यक्रम: वृक्षारोपण कार्यक्रम युद्धस्तर पर चलाना, परती भूमि, पहाड़ी क्षेत्र, ढलान क्षेत्र में पौधा रोपण करना।

2. प्रयोग की वस्तु दोबारा इस्तेमाल: डिस्पोजेबल, ग्लास, नैपकिन, रेजर आदि का उपयोग दुबारा किया जाना।

3. भूजल सम्बन्धित उपयोगिता: नगर विकास, औद्योगिकरण एवं शहरी विकास के चलते पिछले कुछ समय से नगर में भूजल स्रोतों का तेजी से दोहन हुआ। एक ओर जहाँ उपलब्ध भूजल स्तर में गिरावट आई है, वहीं उसमें गुणवत्ता की दृष्टि से भी अनेक हानिकारक अवयवों की मात्रा बढ़ी है। शहर के अधिकतर क्षेत्रों के भूजल में विभिन्न अवयवों की मात्रा, मानक से अधिक देखी गई है। 35.5 प्रतिशत नमूनों में कुल घुलनशील पदार्थों की मात्रा से अधिक देखी गई। इसकी मात्रा 900 मिग्रा0 प्रतिलीटर अधिक देखी गई। 

इसमें 23.5 प्रतिशत क्लोराइड की मात्रा 250 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक थी। 50 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रेट, 96.6 प्रतिषत नमूनों में अत्यधिक कठोरता विद्यमान थी।

4. पॉलीथिन का बहिष्कार: पर्यावरण संरक्षण के लिए पॉलीथिन का बहिष्कार, लोगों को पॉलीथिन से उत्पन्न खतरों से अवगत कराएं।

5. कूड़ा-कचरा निस्तारण: कूड़ा-कचरा एक जगह पर एकत्र करना, सब्जी, छिलके, अवशेष, सड़ी-गली चीजों को एक जगह एकत्र करके वानस्पतिक खाद तैयार करना।

6. कागज की कम खपत करना:- रद्दी कागज को रफ कार्य करने, लिफाफे बनाने, पुन: कागज तैयार करने के काम में प्रयोग करना।

    पर्यावरण प्रदूषण क्या है पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार लिखिए?

    पर्यावरण प्रदूषण कितने प्रकार का होता है मुख्य रूप से पर्यावरण प्रदूषण के 4 भाग होते हैं. जिसमें जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ये 4 तरह के प्रदूषण के होते हैं.

    पर्यावरण प्रदूषण क्या है इसके विभिन्न स्रोतों के नाम बताइए?

    पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रमुख पदार्थ हैं-.
    जमा हुए पदार्थ जैसे- धुआं, धूल, ग्रिट, घर आदि।.
    रासायनिक पदार्थ जैसे – डिटर्जेंट्स, आर्सीन्स, हाइड्रोजन, फ्लोराइड्स, फॉस्जीन आदि।.
    धातुएं जैसे- लोहा, पारा, जिंक, सीसा।.
    गैसें जैसे- कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया, क्लोरीन, फ्लोरीन आदि।.