प्रदोष के दिन क्या चढ़ाना चाहिए? - pradosh ke din kya chadhaana chaahie?

प्रदोष काल में शिव करते हैं नृत्य
कहा जाता है कि प्रदोष काल में कैलाशपति भगवान शिवजी कैलाश पर्वत डमरु बजाते हुए अत्यन्त प्रसन्नचिेत होकर ब्रह्मांड को खुश करने के लिए नृत्य करते हैं । देवी देवता इस प्रदोष काल में शिव शंकर स्तुति करने के लिए कैलाश पर्वत पर आते हैं । मां सरस्वती वीणा बजाकर, इन्द्र वंशी धारणकर, ब्रह्मा ताल देकर, माता महालक्ष्मी गाना गाकर, भगवान विष्णु मृदंग बजाकर भगवान शिव की सेवा करते हैं । यक्ष, नाग, गंधर्व, सिद्ध, विद्याधर व अप्सराएं भी प्रदोष काल में भगवान शिव की स्तुति में लीन हो जाते हैं ।

शिव-पार्वती की प्रसन्नता के लिए प्रदोष व्रत
प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि में सूर्यास्त के समय को ‘प्रदोष’ कहा जाता है, कहा जाता हैं कि इस प्रदोष काल में गई शिव पूजा और उपवास रखने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं । शास्त्रानुसार प्रदोष व्रत रखने से दो गायों को दान करने के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है ।

जन्म-जन्मान्तर तक नहीं होती है दरिद्रता
दरिद्रता और ऋण के भार से दु:खी व संसार की पीड़ा से व्यथित मनुष्यों के लिए प्रदोष पूजा व व्रत पार लगाने वाली नौका के समान है । ‘प्रदोष स्तोत्र’ में कहा गया है- यदि दरिद्र व्यक्ति प्रदोष काल में भगवान गौरीशंकर की आराधना करता है तो वह धनी हो जाता है और यदि राजा प्रदोष काल में शिवजी की प्रार्थना करता है तो उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती है, वह सदैव निरोग रहता है, और राजकोष की वृद्धि व सेना की बढ़ोत्तरी होती है ।

प्रदोष के दिन क्या चढ़ाना चाहिए? - pradosh ke din kya chadhaana chaahie?

यदि कृष्णपक्ष में सोमवार व शुक्लपक्ष में शनिवार के दिन प्रदोष काल हो तो वह विशेष फलदायी हो जाता है । जिस भी कामना से प्रदोष व्रत किया जाता है उसी वार के प्रदोष से व्रत आरम्भ करना चाहिए ।

1- सोमवार का 'सोमप्रदोष' शान्ति और रक्षा प्रदान करता है ।
2- मंगलवार का ‘भौमप्रदोष’ व्रत ऋण से मुक्ति देता है ।
3- बुध के दिन प्रदोष व्रत से कामनापूर्ति होती है ।
4- बृहस्पतिवार के प्रदोष व्रत से शत्रु शांत होते हैं ।
5- शुक्रवार की प्रदोष सौभाग्य, स्त्री सुख और समृद्धि के लिए शुभ होती है ।
6- शनिवार का प्रदोष व्रत संतान सुख को देने वाला है ।
7- रविवार का प्रदोष व्रत आरोग्य देने वाला है ।

कैसे करें प्रदोष काल में शिव पूजा

1- सूर्यास्त के 15 मिनट पहले स्नान कर धुले हुये सफेद वस्त्र पहनकर- शिवजी को शुद्ध जल से फिर पंचामृत से स्नान कराये, पुन: शुद्ध जल से स्नान कराकर, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, अक्षत, इत्र, अबीर-गुलाल अर्पित करें । मंदार, कमल, कनेर, धतूरा, गुलाब के फूल व बेलपत्र चढ़ाएं, इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल व दक्षिणा चढ़ाकर आरती के बाद पुष्पांजलि समर्पित करें ।

2- उत्तर दिशा की ओर मुख करके भगवान उमामहेश्वर का ध्यान कर प्रार्थना करें- हे उमानाथ- कर्ज, दुर्भाग्य, दरिद्रता, भय, रोग व समस्त पापों का नाश करने के लिए आप पार्वतीजी सहित पधारकर मेरी पूजा स्वीकार करें ।

प्रार्थना मन्त्र
‘भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते ।
रुद्राय नीलकण्ठाय शर्वाय शशिमौलिने ।।
उग्रायोग्राघ नाशाय भीमाय भयहारिणे ।
ईशानाय नमस्तुभ्यं पशूनां पतये नम: ।।

प्रदोष व्रत में न करें ये काम
1- प्रदोष व्रत करने वाले साधक दिन भर आहार ग्रहण नहीं करें, दूध, फल, निंबू पानी आदि लिये जा सकते है ।
2- प्रदोष काल में शिव पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें ।
3- क्रोध करना, आलस्य करना, बार-बार पानी या चाय पीना, तम्बाकू-पानमसाला खाना, बीड़ी-सिगरेट पीना, शराब पीना, जुआ खेलना, झूठ बोलना ये सब काम प्रदोष व्रती के लिए वर्जित हैं।

व्रत का उद्यापन
कहा जाता हैं कि प्रदोष व्रत को 21 वर्ष तक करने का विधान है, किन्तु समय और सामर्थ्य न हो तो 11 या 26 प्रदोष व्रत रखकर भी इसका उद्यापन किया जा सकता हैं । दोष व्रत के उद्यापन के लिए गणेशजी के साथ उमा-महेश्वर का पूजन करने के बाद इस मन्त्र- ॐ उमामहेश्वराभ्यां नम: से अग्नि में गाय के दुछ से बनी खीर की 108 आहुति देकर हवन करें । हवन के बाद पुण्यफल की प्राप्ति के लिये किसी योग्य सतपथी ब्राह्मण को भोजन व दान-दक्षिणा देकर आशीर्वाद लेना चाहिए ।

प्रदोष के दिन क्या चढ़ाना चाहिए? - pradosh ke din kya chadhaana chaahie?

प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है. यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है. प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है. प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है. चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था. भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया. इसलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा. प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकादशी होती हैं, उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं.

प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल-

अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है.

- रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है.

- सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.

- मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है.

- बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है.

- गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है.

- शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शांति के लिए किया जाता है.

- संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए.

प्रदोष व्रत की विधि-

- प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए.

- नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें.

- इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है.

- पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं.

- पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध कर लें.

- पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है.

- प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है.

- इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए.

- पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए.

- इस व्रत में दो समय भगवान शिव की पूजा की जाती है, एक बार सुबह और एक बार शाम को सूर्यास्त के बाद, यानी कि रात्रि के प्रथम पहर में. शाम की इस पूजा का बहुत महत्व है, क्योंकि सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है.

प्रदोष व्रत का उद्यापन-

- इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए.

- व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए.

- उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.

- 'ऊँ उमा सहित शिवाय नम:' मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है.

- हवन में आहुति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है.

- हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शांति का पाठ किया जाता है.

- अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.

प्रदोष काल में शिव जी को क्या चढ़ाना चाहिए?

त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. सभी तिथियों में त्रयोदशी की तिथि भगवान शिव (Lord Shiv) को अत्याधिक प्रिय है..
तुलसी की मंजरियां चढ़ाने से शिव प्रसन्न होते हैं..
आक और धतूरे का फूल चढ़ाएं..
भगवान शिव की पूजा माता पार्वती के बिना न करें..
गंगाजल, कच्च दूध, दही, शहद, जल से स्नान कराएं..
ऊॅं नम: शिवाय का जाप करें..

प्रदोष में क्या क्या चढ़ता है?

प्रदोष व्रत के दौरान सबसे पहले सुबह उठकर आप स्नान करें और भगवान शिव की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित कर गंगाजल से उनका अभिषेक करें। इसके बाद भगवान को भांग, धतूरा, फल, फूल, चावल, गाय का दूध यह सारी चीजें चढ़ाएं। भगवान को भोग लगाने के लिए घी और शक्कर मिले सत्तू का भोग लगाना चाहिए। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

प्रदोष के दिन क्या उपाय करना चाहिए?

प्रदोष व्रत के दिन शमी पत्र को शिवलिंग पर अर्पित करें। इसके साथ ही 'ऊँ नमः शिवाय' मंत्र का 11 बार जाप करें। ऐसा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक और दूध अभिषेक करना चाहिए

प्रदोष व्रत में क्या भोग लगाना चाहिए?

प्रदोष व्रत में क्या खाएं और क्या नहीं प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है। प्रदोष व्रत में लाल मिर्च, अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए। हालांकि आप पूर्ण उपवास या फलाहार भी कर सकते हैं।