पूर्ण प्रतियोगी फर्म को अल्प और दीर्घकाल में संतुलन कैसे प्राप्त होता है? - poorn pratiyogee pharm ko alp aur deerghakaal mein santulan kaise praapt hota hai?

प्रश्न 49 : पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग के साम्य या मूल्य निर्धारण का वर्णन कीजिये।

उत्तर - पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग को साम्य

किसी एक वस्तु का उत्पादन करने वाले सभी फर्मों के समूह को उद्योग कहते हैं। पूर्ण प्रतियोगिता में बहुत-सी प्रतियोगी फर्मों का समूह उद्योग कहलाता है। उद्योग का अर्थ जान लेने के बाद हमें उद्योग के साम्य का अर्थ समझना होगा। प्रो. बोल्डिग के अनुसार, “एक उद्योग साम्य की स्थिति में उस समय कहलाता है जबकि उसके विस्तार एवं संकुचन की कोई प्रवृत्ति नहीं होती है ।” इसे हम दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि जब किसी उद्योग का उत्पादन न तो बढ़ रहा हो और न ही घट रहा हो बल्कि स्थिर हो तब वह उद्योग साम्य की स्थिति में होता है। उद्योग का कुल उत्पादन उस समय स्थिर रहता है जब उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तु की कुल पूर्ति उसकी कुल मॉग के बराबर हो।

1. अल्पकाल में उद्योग का साम्य

एक उद्योग अल्पकाल में साम्य की स्थिति में उस समय होता है जब अल्पकाल में उसका उत्पादन स्थिर हो जाता है तथा उसमें परिवर्तन की कोई शक्ति क्रियाशील नहीं रह जाती है। चूंकि उद्योग का उत्पादन सभी फर्मों के उत्पादन का योग होता है, अत: यह स्थिर तब होता है जब अल्पकाल में फर्मों का उत्पादन स्थिर हो जाये । अल्पकाल में भी फर्मों का उत्पादन तब स्थिर होता है जब वे सभी फर्मे अल्पकालीन साम्य की स्थिति में हों और ऐसा तब होता है जब फर्मों की सीमाँत लागत उनकी अपनी सीमॉत आगम के बराबर हो । सारांश के रूप में हम यह कह सकते हैं कि अल्पकाल में उद्योग में लगी सभी फर्मे साम्य की स्थिति में होती हैं तब उद्योग भी अल्पकालीन साम्य की स्थिति में होता है। प्रो. वाटसन के शब्दों में, “एक उद्योग अल्पकाल में उस समय साम्य की स्थिति में होता है जबकि उद्योग का उत्पादन स्थिर हो जाता है, उत्पादन के विस्तार अथवा संकुचन के लिए कोई शक्ति क्रियाशील नहीं रहती है। यदि सभी फर्मं साम्य में हों तो उद्योग भी साम्य में होता है ।”

अल्पकाल में एक फर्म साम्य की स्थिति में अधिसामान्य लाभ, सामान्य लाभ अथवा हानि उठाती हुई हो सकती है, अतः अल्पकालीन उद्योग के साम्य की स्थिति में अधिसामान्य लाभ अथवा हानि का सह-अस्तित्व हो सकता है। उद्योग की सभी फर्मों को अल्पकाल में केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता हो तो यह उद्योग के पूर्ण संतुलन की स्थिति होती है जो केवल संयोग ही होता है । उद्योग के अल्पकालीन साम्य की स्थिति में उद्योग की अल्पकालीन कुल माँग एवं कुल पूर्ति बराबर होती है। अत: यहाँ उद्योग की कुल माँग एवं पूर्ति का अध्ययन किया जा सकता है।

अल्पकाल में उद्योग का माँग वक्र- उद्योग का अल्पकालीन माँग वक्र बाजार में उस वस्तु के उपभोक्ताओं के व्यक्तिगत माँग वक्रों का क्षैतिज योग होता है । यह वक्र यह बताता है। कि विभिन्न मूल्यों पर उपभोक्ता कितनी-कितनी मात्राएं खरीदने को तैयार हैं। यह वक्र बायें से दायें को नीचे की ओर गिरता हुआ होता है, जो यह बताता है कि वस्तु का जैसे-जैसे मूल्य गिरता है, वैसे-वैसे वस्तु की माँग बढ़ती है ।

अल्पकाल में उद्योग का पूर्ति वक्र- उद्योग में लगी सभी फर्मों के व्यक्तिगत पूर्ति वक्रों का क्षैतिज योग उद्योग का पूर्ति वक्र होता है । यह वक्र प्रदर्शित करता है कि विभिन्न मूल्यों पर सभी फर्मे वस्तु की कितनी-कितनी मात्राएं बेचने को तैयार हैं। अल्पकाल में सभी फर्मों का पूर्ति वक्र उनकी सीमाँत लागत की प्रकृति के अनुसार बायें से दायें को ऊपर उठता हुआ होता है जो यह बताता है कि जैसे-जैसे मूल्य बढ़ता है, वैसे-वैसे उद्योग द्वारा वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होती है, परंतु अल्पकाल में समयाभाव के कारण यह वृद्धि केवल परिवर्तनशील साधनों की मात्रा में परिवर्तन करके ही की जा सकती है ।

उद्योग को अल्पकालीन साम्य- उद्योग की माँग एवं पूर्ति वक्रों का अध्ययन करने के बाद अब हम उद्योग के साम्य की रेखाचित्र की सहायता से व्याख्या कर सकते हैं। रेखाचित्र में DD उद्योग का माँग वक्र है तथा SS उद्योग का पूर्ति वक्र है । DD वक्र ने SS वक्र को E बिन्दु पर काटा है, अत: E साम्य बिन्दु है । उद्योग के साम्य में होने के लिए यह आवश्यक है। कि उद्योग में लगी सभी फर्मं भी साम्य की स्थिति में हों। फर्मे अल्पकालीन साम्य की स्थिति में अधिसामान्य लाभ, सामान्य लाभ अथवा हानि उठाती हुई हो सकती हैं। चित्र में एक प्रतिनिधि फर्म की साम्य की स्थिति दिखाई गई है।

पूर्ण प्रतियोगी फर्म को अल्प और दीर्घकाल में संतुलन कैसे प्राप्त होता है? - poorn pratiyogee pharm ko alp aur deerghakaal mein santulan kaise praapt hota hai?

चित्र में फर्म E1 बिन्दु पर साम्य की स्थिति में है क्योंकि इसी बिन्दु पर फर्म का सीमाँत आगम एवं सीमाँत लागत दोनों बराबर हैं। इस साम्य स्थिति में फर्म वस्तु की OM1 मात्रा का उत्पादन करेगी। इस साम्य बिन्दु पर यदि फर्म की औसत लागत वक्र SAC1 है तो फर्म को E1C के बराबर प्रति इकाई हानि होगी । यदि फर्म के साम्य की स्थिति में उसका औसत लागत वक्र SAC2 है तो फर्म को न लाभ होगा और न हानि । फर्म के औसत लागत वक्र की स्थिति SAC3 है तो फर्म को BE1 के बराबर प्रति इकाई अधिसामान्य लाभ होगा।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि अल्पकाल में उद्योग उस समय साम्य की स्थिति में होता है जब उद्योग की अल्पकालीन कुल माँग तथा कुल पूर्ति दोनों बराबर हों । इस साम्य की स्थिति में उद्योग में लगी प्रत्येक फर्म का भी साम्य की स्थिति में होना आवश्यक है। एक उद्योग के अल्पकालीन साम्य के साथ अधिसामान्य लाभ अथवा हानि का सह-अस्तित्व हो सकता है।

II. दीर्घकाल में उद्योग का साम्य

एक उद्योग दीर्घकाल में उस समय साम्य की स्थिति में होता है जब उद्योग की दीर्घकालीन माँग एवं दीर्घकालीन पूर्ति दोनों समान हों । इस साम्य की स्थिति में उद्योग में उत्पादन स्थिर हो जाता है तथा उसमें परिवर्तन की प्रवृत्ति नहीं होती है। ऐसा तब हो सकता है। जब निम्न शर्ते पूरी हों-

(1) उद्योग में लगी हुई प्रत्येक फर्म साम्य की स्थिति में हो । ऐसा तब होता है जब फर्म की सीमांत आगम एवं सीमांत लागत दोनों एक-दूसरे के बराबर हों और इस साम्य की स्थिति में सीमाँत लागत वक्र सीमाँत आगम वक्र को नीचे से क़ाटनी चाहिए।

(2) फर्मों की संख्या में परिवर्तन की प्रवृत्ति न हो। ऐसा तब होता है जब उद्योग में प्रत्येक फर्म केवल सामान्य लाभ ही कमा रही हो, क्योंकि यदि किसी फर्म को अधिसामान्य लाभ होगा तो नई फमें प्रवेश करेंगी और इसके विपरीत किसी फर्म को हानि होगी तो कुछ फर्मों में उद्योग को छोड़ने की प्रवृत्ति होगी। अतः साम्य बिन्दु पर प्रत्येक फर्म की दीर्घकालीन सीमांत लागत फर्म की दीर्घकालीन सीमॉत आगम के बराबर हो तथा यह औसत लागत के भी बराबर हो अर्थात् LMC = LMR = LAR = LAC की स्थिति होनी चाहिए।

पूर्ण प्रतियोगी फर्म को अल्प और दीर्घकाल में संतुलन कैसे प्राप्त होता है? - poorn pratiyogee pharm ko alp aur deerghakaal mein santulan kaise praapt hota hai?

दीर्घकाल में उद्योग की साम्य की स्थिति को रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र में उद्योग की दीर्घकालीन कुल माँग DD वक्र तथा कुल पूर्ति SS वक्र द्वारा दिखाई गई है। SS तथा DD का कटाव बिन्दु E पर उद्योग साम्य की स्थिति में है। इस साम्य की स्थिति में OP मूल्य निर्धारित होता है जो फर्म के लिए दिया हुआ होता है। फर्म इस मूल्य के अनुसार उत्पादन को समायोजन करेगी। फर्म का साम्य बिन्दु E1 पर होगा जहां फर्म की LMC तथा MR दोनों एक-दूसरे के बराबर हैं । इस साम्य बिन्दु पर केवल LMC तथा MR ही बराबर नहीं हैं बल्कि फर्म का LAC भी LMC तथा MR के बराबर है। अतः फर्म OM1 मात्रा का उत्पादन करेगी तथा सामान्य लाभ कमायेगी ।

पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म का दीर्घकालीन साम्य

दीर्घकालीन समय की वह अवधि होती है, जिसमें उत्पादक के पास इतना समय होता है कि वह माँग के अनुसार पूर्ति का समायोजन कर सके अर्थात माँग बढ़ने पर वह वस्तु की पूर्ति बढ़ा सकता है तथा माँग कम होने पर वह वस्तु की पूर्ति घटा सकता है। पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत दीर्घकाल में साम्य की स्थिति में प्रत्येक फर्म को केवल सामान्य लाभ की ही प्राप्ति होती हैं, इसका कारण यह है कि यदि किसी फर्म को हानि होती है, तो दीर्घकाल में वह उत्पादन बन्द कर देगी, जिससे वस्तु की पूर्ति घटने पर उसका मूल्य बढ़ेगा तथा हानि उठाने वाली अन्य फर्मों की हानि समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत, दीर्घकाल में यदि किसी फर्म को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, तो अन्य फर्मे उससे आकर्षित होकर वैसी ही वस्तु का उत्पादन करने लगेंगी, जिससे वस्तु की पूर्ति बढ़ेगी और मूल्य घटेगा। परिणामस्वरूप अतिरिक्त लाभ अदृश्य हो जायेगा। दीर्घकाल में सामान्य लाभ प्राप्ति का रेखाचित्र अल्पकाल के सामान्य लाभ के रेखाचित्र के समान ही होगा।

पूर्ण प्रतियोगी फर्म का दीर्घकालीन संतुलन कहाँ पर होगा?

पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म का दीर्घकालीन साम्य दीर्घकालीन समय की वह अवधि होती है, जिसमें उत्पादक के पास इतना समय होता है कि वह माँग के अनुसार पूर्ति का समायोजन कर सके अर्थात माँग बढ़ने पर वह वस्तु की पूर्ति बढ़ा सकता है तथा माँग कम होने पर वह वस्तु की पूर्ति घटा सकता है।

अल्पकाल और दीर्घकाल में संतुलन कैसे प्राप्त होता है?

अल्पकाल में, परिवर्तनशील साधनों की मात्रा को बढ़ाकर कुल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। दीर्घकाल में उत्पादन के सभी साधनों को बढ़ाकर कुल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता हैं। एक परिवर्ती कारक की सभी इकाइयों के सीमांत उत्पाद (MP) को जोड़कर हम कुल उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं।

दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को कौन सा लाभ होता है?

पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में फर्म केवल सामान्य लाभ (Normal Profit) ही प्राप्त करती है जबकि दीर्घकाल में एकाधिकारी फर्म सदैव प्रत्येक स्थिति में लाभ (Profit) अर्जित करती है ।

पूर्ण प्रतियोगिता के तहत फर्म के संतुलन की शर्तें क्या हैं?

पूर्ण प्रतियोगिता में AR (कीमत) और MC बराबर होते हैं– चूंकी समय की स्थिति में MR = MC के और पूर्ण प्रतियोगिता में, AC = MR के, इसलिए AR = MR = MC के अथवा, AR (कीमत‍) =MC के।