प्रकृति के विराट रूप को देखकर लेखिका को क्या प्रेरणा मिलती है *? - prakrti ke viraat roop ko dekhakar lekhika ko kya prerana milatee hai *?

प्रकृति उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?

प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को असीम आत्मीय सुख की अनुभूति होती है। इन सारे दृश्यों में जीवन के सत्य को लेखिका ने अनुभव किया। इस वातावरण में उसको अद्भुत शान्ति प्राप्त हो रही थी। इन अद्भुत व अनूठे नज़ारों ने लेखिका को पल मात्र में ही जीवन की शक्ति का अहसास करा दिया। उसे ऐसा अनुभव होने लगा मानो वह देश और काल की सरहदों से दूर बहती धारा बनकर बह रही हो और उसके अंतरमन की सारी तामसिकताएँ और सारी वासनाएँ इस निर्मल धारा में बह कर नष्ट हो गई हों और वह चीरकाल तक इसी तरह बहते हुए असीम आत्मीय सुख का अनुभव करती रहे।

Concept: गद्य (Prose) (Class 10 A)

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प्रकृति के विराट रूप को देकर लेखिका को क्या प्रेरणा मिलती है *?

प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर उसे अनेक अनुभूतियाँ होती हैं। उसे लगता है जीवन की सार्थकता झरनों और फूलों की भांति स्वयं को दे देने में अर्थात् परोपकार में ही है। झरनों की भांति निरंतर चलायमान रहना और फूलों की भाँति अपनी महक लुटाना ही जीवन का सच्चा स्वरूप है।

प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसे अनुभूति हुई?

प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को असीम आत्मीय सुख की अनुभूति होती है। इन सारे दृश्यों में जीवन के सत्य को लेखिका ने अनुभव किया। इस वातावरण में उसको अद्भुत शान्ति प्राप्त हो रही थी। इन अद्भुत व अनूठे नज़ारों ने लेखिका को पल मात्र में ही जीवन की शक्ति का अहसास करा दिया।