प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में राज्य के कितने तत्व बताए हैं? - praacheen bhaarateey raajaneetik chintan mein raajy ke kitane tatv batae hain?

विषयसूची

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  • 1 प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन के प्रमुख स्रोत क्या है?
  • 2 राजनीतिक सिद्धांत का हमारे जीवन में क्या महत्व है?
  • 3 आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन के बारे में एंथनी परेल और थॉमस पैंथम ने क्या टिप्पणी की?
  • 4 प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  • 5 प्रतिवादी राजनीतिक चिंतन से आप क्या समझते हैं चार प्रतिवादी विचारकों के नाम लिखिए?

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन के प्रमुख स्रोत क्या है?

इसे सुनेंरोकेंप्राचीन यूनानी राजनीतिक चिंतन के महत्वपूर्ण स्रोत प्लेटो की रचनाएँ-“रिपब्लिक” , “स्टेट्समैन” तथा “लॉज” मानी जातीं है तथा अरस्तू की रचना “पॉलिटिक्स” मानी जाती हैं तो भारतीय राजनीतिक चिंतन के स्रोत वैदिक साहित्य, जैन एवं बौद्ध साहित्य, कौटिल्य का ‘अर्थशात्र’, कामन्दक का ‘नीतिसार’, शुक्राचार्य का ‘शुक्रनीति’, रामायण और …

राजनीतिक सिद्धांत का हमारे जीवन में क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंराजनीतिक सिद्धांत हमें दूसरे लोगों के दृष्टिकोण या विश्वास के प्रति सहनशील होना सिखाता है। स्वतंत्रता और समानता केवल अमूर्त अवधारणाएं नहीं हैं; ये अवधारणाएँ उन आदर्शों को दर्शाती हैं जिनका हमें अनुसरण करने का प्रयास करना चाहिए। एक बुद्धिमान नागरिक उदार आदर्शों और नागरिक स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है।

भारतीय राजनीतिक चिंतन के प्रमुख धराये क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमानव गरिमा, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, शोषण का विरोध, विश्व बन्धुत्व, धार्मिक सहिष्णुता आदि विचारकों से इन चिन्तकों ने भारत को नवीन दिशा दी।

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन के अनुसार राज्य के सत्संग कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंप्राचीन भारतीय चिंतन में राज्य को सप्तांग राज्य के रूप में परिभाषित किया गया है, शुक्र भी इसका अपवाद नहीं हैं। राज्य सात अंगो से बना सावयवी है, यह स्वामी, अमात्य, मित्र, कोष, जनपद्, दुर्ग, & दण्ड (सेना से बना) है।

आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन के बारे में एंथनी परेल और थॉमस पैंथम ने क्या टिप्पणी की?

इसे सुनेंरोकेंप्लेटो के समकालीन कौटिल्य का दर्शन व्यावहारिक है। भारतीय चिन्तन व्यावहारिक ही नहीं अत्याधिक उपयोगी है। भारतीय चिन्तन का मूल मानव है व मानव के चारों ओर घूमता है। पाश्चात्य चिन्तन में मानव 18वीं शताब्दी में केन्द्रबिन्दु बना।

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

इसे सुनेंरोकेंप्राचीन भारतीय राजशास्त्र की एक अन्य विशेषता राजा के पद को अत्यधिक ऊँचा स्थान प्रदान किया जाना है। प्रायः सभी लेखकों ने राजपद को दैवी माना है और राजा में दैवी गुणों का समावेश किया है। एक प्रकार से राज्य का सार ही राजा होता था। कौटिल्य ने राजा और राज्य के बीच कोई अन्तर नहीं किया ।

प्राचीन काल राजनीतिक चिंतन में प्रमुख आधार क्या था?

इसे सुनेंरोकेंप्राचीन भारत में राजनीतिक सिद्धांतों का विकास धर्म के अंग के रूप में हुआ। राजा और शासक का प्रमुख कर्तव्य धर्म का पालन करना समझा गया और शत्रु से भी धर्मयुद्ध करने का निर्देश दिया गया। इसी कारण प्राचीन भारत की राजनीति मे नैतिकता का समावेश रहा और राजशास्त्र को नीतिशास्त्र कहकर पुकारा गया।

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में राज्य के कितने तत्व बताए गए?

इसे सुनेंरोकेंडॉ. गार्नर के अनुसार, राज्य के चार आवश्यक तत्व हैं – ( 1 ) मनुष्यों का समुदाय, ( 2 ) एक प्रदेश, जिसमें वे स्थायी रूप से निवास करते हैं, (3) आन्तरिक सम्प्रभुता तथा बाहरी नियन्त्रण से स्वतन्त्रता, (4) जनता की इच्छा को कार्यरूप में परिणित करने हेतु एक राजनीतिक संगठन । वर्तमान में डॉ.

प्रतिवादी राजनीतिक चिंतन से आप क्या समझते हैं चार प्रतिवादी विचारकों के नाम लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंराजनीतिक दर्शन (Political philosophy) के अन्तर्गत राजनीति, स्वतंत्रता, न्याय, सम्पत्ति, अधिकार, कानून तथा सत्ता द्वारा कानून को लागू करने आदि विषयों से सम्बन्धित प्रश्नों पर चिन्तन किया जाता है : ये क्या हैं, उनकी आवश्यकता क्यों हैं, कौन सी वस्तु सरकार को ‘वैध’ बनाती है, किन अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करना सरकार …

विषयसूची

  • 1 प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन की विशेषताएं क्या है?
  • 2 प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में उल्लेख की गई धारा मत्स्य न्याय से आप क्या समझते हैं?
  • 3 कौटिल्य आज कैसे प्रासंगिक है?
  • 4 प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिन्तन के अनुसार राज्य के सप्तांग कौन कौन से हैं?
  • 5 प्राचीन भारतीय चिंतन में राज्य का स्वरूप क्या है?
  • 6 पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन की मुख्य विशेषताएं क्या है भारतीय राजनीति से किस प्रकार अलग है?
  • 7 प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में राज्य के कितने तत्व बताए गए है *?

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन की विशेषताएं क्या है?

इसे सुनेंरोकेंप्राचीन भारतीय राजशास्त्र की एक अन्य विशेषता राजा के पद को अत्यधिक ऊँचा स्थान प्रदान किया जाना है। प्रायः सभी लेखकों ने राजपद को दैवी माना है और राजा में दैवी गुणों का समावेश किया है। एक प्रकार से राज्य का सार ही राजा होता था। कौटिल्य ने राजा और राज्य के बीच कोई अन्तर नहीं किया ।

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में उल्लेख की गई धारा मत्स्य न्याय से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंपुं० [ष० त०] १. यह मान्यता कि छोटों को बड़े अथवा दुर्बलों को सबल उसी प्रकार खा जाते हैं या नष्ट कर देते हैं जिस प्रकार बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती हैं।

कौटिल्य आज कैसे प्रासंगिक है?

इसे सुनेंरोकेंचाणक्य भारत के प्रथम महान राजनीतिज्ञ व कुशल आर्थिक नीतियों के जनक के रूप में जाने जाते हैं चाणक्य की नीतियाँ वर्तमान युग में भी अति प्रासंगिक है इस लेख में चाणक्य के राजनीतिक तथा आर्थिक सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है जिससे देश की कुशल व्यवस्था संचालन प्रक्रिया संभव हो पाती है कौटिल्य के अर्थशास्त्र के माध्यम से हमें …

प्राचीन भारतीय राजनीतिक सोच के स्रोत क्या है?

इसे सुनेंरोकेंप्राचीन यूनानी राजनीतिक चिंतन के महत्वपूर्ण स्रोत प्लेटो की रचनाएँ-“रिपब्लिक” , “स्टेट्समैन” तथा “लॉज” मानी जातीं है तथा अरस्तू की रचना “पॉलिटिक्स” मानी जाती हैं तो भारतीय राजनीतिक चिंतन के स्रोत वैदिक साहित्य, जैन एवं बौद्ध साहित्य, कौटिल्य का ‘अर्थशात्र’, कामन्दक का ‘नीतिसार’, शुक्राचार्य का ‘शुक्रनीति’, रामायण और …

कौन से भारतीय राजनीतिक विचारक भौतिकवादी थे?

इसे सुनेंरोकेंदर्शन एवं चिन्तन मानवेन्द्र नाथ राय का आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन में विशिष्ट स्थान है। राय का राजनीतिक चिंतन लम्बी वैचारिक यात्रा का परिणाम है। वे किसी विचारधारा से बंधे हुए नहीं रहे। उन्होंने विचारों की भौतिकवादी आधार भूमि और मानव के अस्तित्व के नैतिक प्रयोजनों के मध्य समन्वय करना आवश्यक समझा।

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिन्तन के अनुसार राज्य के सप्तांग कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंप्राचीन भारतीय चिंतन में राज्य को सप्तांग राज्य के रूप में परिभाषित किया गया है, शुक्र भी इसका अपवाद नहीं हैं। राज्य सात अंगो से बना सावयवी है, यह स्वामी, अमात्य, मित्र, कोष, जनपद्, दुर्ग, & दण्ड (सेना से बना) है।

प्राचीन भारतीय चिंतन में राज्य का स्वरूप क्या है?

इसे सुनेंरोकेंराज्य का ध्येय धर्म, अर्थ, काम की प्राप्ति द्वारा मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होना था। प्राचीन भारतीय राज्य का मुख्य उद्देश्य प्रजा की समृद्धि तथा सभी क्षेत्रों में इसके कल्याण के लिए आवश्यक और उपयोगी कार्य करना था।

पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन की मुख्य विशेषताएं क्या है भारतीय राजनीति से किस प्रकार अलग है?

इसे सुनेंरोकेंपाश्चात्य राजनीतिक चिंतन नगर, राज्यों पर आधारित था। यूनानियों का यह मत था, कि समाज में आदर्श जीवन की समृद्धि के लिये समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को राज्य की गतिविधियों में पूर्ण सक्रिय रूप से भाग लेना जरूरी हैं। यह तभी संभव हैं, जबकि राज्य, छोटे-छोटे नगर-राज्य हों।

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में राज्य के कितने तत्व बताए गए है?

इसे सुनेंरोकेंडॉ. गार्नर के अनुसार, राज्य के चार आवश्यक तत्व हैं – ( 1 ) मनुष्यों का समुदाय, ( 2 ) एक प्रदेश, जिसमें वे स्थायी रूप से निवास करते हैं, (3) आन्तरिक सम्प्रभुता तथा बाहरी नियन्त्रण से स्वतन्त्रता, (4) जनता की इच्छा को कार्यरूप में परिणित करने हेतु एक राजनीतिक संगठन । वर्तमान में डॉ.

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन के अध्ययन के मार्ग में कौन सी कठिनाइयां है?

इसे सुनेंरोकेंपाश्चात्य विद्वानों द्वारा इस धारणा का प्रतिपान किया गया कि प्राचीनकाल में भारतीयों की दृष्टि धर्मशास्त्र व अध्यात्मवाद पर केन्द्रित मात्र थी जिस कारण भारतीय राजनीति में चिंतन का पूर्णतः अभाव था । इस भ्रमपूर्ण विचार के सबसे अधिक जिम्मेदार अंग्रेजी शासक थे।

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में राज्य के कितने तत्व बताए गए है *?

इसे सुनेंरोकेंराज्य के सात अंगों अथवा अवयवों की मनु, बृहस्पति, भीष्म, कौटिल्य, शुक्र आदि सभी आचार्यों ने माना है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में राज्य की परिभाषा करते हुए कहा हैः- ”राज्य सात अंगों अथवों तत्वों से मिलकर बना है। उसके अनुसार सात अंग अथवा प्रकृतियाँ ये हैं- स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दण्ड और मित्र।”

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में राज्य के कितने तत्व हैं?

पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तन की तुलना में भारतीय राजदर्शन व्यापक धर्म की अवधारणा से समृद्ध है तथा उसका स्वरूप मुख्यतः आध्यात्मिक एवं नैतिक है। मनु, कौटिल्य तथा शुक्र के चिन्त में धर्म, आध्यात्म, इहलोक संसार, समाज, मानव जीवन, राज्य संगठन आदि के एकत्व एवम् पारस्परिक सम्बन्धों का तानाबाना पाया गया है।

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन के अनुसार राज्य के सप्ताह कौन कौन से हैं?

प्राचीन भारतीय चिंतन में राज्य को सप्तांग राज्य के रूप में परिभाषित किया गया है, शुक्र भी इसका अपवाद नहीं हैंराज्य सात अंगो से बना सावयवी है, यह स्वामी, अमात्य, मित्र, कोष, जनपद्, दुर्ग, & दण्ड (सेना से बना) है।

राजनीतिक चिंतन क्या है Hindi?

राजनीतिक चिंतन एक सामान्यीकृत मुहावरा है, जिसमें राज्य तथा राज्य से संबंधित प्रश्नों पर किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या समुदाय के सभी चिंतनों, सिद्धान्तों और मूल्यों का समावेश होता है।

भारतीय राजनीतिक क्या है?

संविधान के अनुसार, भारत एक प्रधान, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक राज्य है, जहां पर विधायिका जनता के द्वारा चुनी जाती है। अमेरिका की तरह, भारत में भी संयुक्त सरकार होती है, लेकिन भारत में केन्द्र सरकार राज्य सरकारों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, जो कि ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है।