सौर कुकर आप अनवीकरणीय या समाप्त हो जाने वाले ऊर्जा स्रोतों के बारे में पहले से ही जानते हैं। हम सभी अधिकतर अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला, तेल एवं प्राकृतिक गैस आदि पर काफी ज्यादा निर्भर रहते हैं। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि ये संसाधन प्रकृति में सीमित हैं और एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब ये हमेशा के लिये लुप्त हो जाएँगे। इससे पहले कि इनकी कीमतें काफी बढ़ जाएँ और यह हमारे पर्यावरण को भी नुकसान पहुचाएँ, देर सबेर हमें वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के बारे में सोचना ही होगा जो नवीकरणीय हैं और कभी खत्म न होने वाले हैं। Show
बढ़ती आबादी और हमारी जीवनशैली में आए बदलाव के कारण ऊर्जा स्रोतों की मांग काफी बढ़ गई है। इस बढ़ती माँग के कारण अनवीकरणीय परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर बहुत दबाव बढ़ा है और इससे हमारे लिये यह आवश्यक हो गया है कि हम वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को खोजने की कोशिश करें। सूर्य और पवन जैसे स्रोत तो कभी खत्म ना होने वाले स्रोत हैं अतः इन्हें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहा जाता है; ये किसी भी प्रकार की विषैली गैसों का उत्सर्जन नहीं करते हैं तथा ये स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार के ऊर्जा स्रोत प्रचुर मात्र में उपलब्ध हैं और ये साफ सुथरी ऊर्जा का व्यापक स्रोत होते हैं। इस पाठ में आप इसी प्रकार के नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के बारे में पढ़ेंगे। संबंधित लेख:- ऊर्जा संरक्षण एवं नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग के क्षेत्र में स्वरोजगार की संभावनाउद्देश्य इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आपः i. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को परिभाषित कर सकेंगे; 29.1 प्राकृतिक संसाधनों की परिभाषा मनुष्य ऊर्जा के कुछ स्रोतों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये जैसे- खाना पकाना, गर्म करने, खेत जोतने, यातायात, प्रकाश करने के लिये हमेशा से करता आया है। आरम्भ में वे लकड़ी जलाते थे तथा बाद में केरोसीन, कोयला या उसके बाद के दिनों में बिजली का प्रयोग करने लगे हैं। मनुष्य ने पशुशक्ति (घोड़ा, बैल, ऊंट, याक आदि) को यातायात एवं छोटी-छोटी यांत्रिक उपकरणों जैसे पर्शियन व्हील को सिंचाई के लिये या फिर तेलीय बीजों से तेल निकालने वाले ‘‘कोल्हू’’ चलाने के लिये करते हैं। बीती शताब्दी के दौरान, तापीय संयंत्रों (कोयले का प्रयोग करने वाले) या हाइड्रोइलैक्ट्रिक संयंत्र जल धारा का प्रयोग करके बिजली उत्पादन की है। संबंधित लेख:- ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोतहम ऊर्जा स्रोतों को उनकी उपलब्धता के आधार पर इस तरह विभाजित कर सकते हैं: (क) परम्परागत ऊर्जा स्रोत ये आसानी से उपलब्ध होते हैं एवं एक लंबे समय से प्रयोग में लाए जाते रहे हैं। ऊर्जा के स्रोत
अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य या सौर ऊर्जा से जुड़े होते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत या गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में सूर्य का प्रकाश, पवन, जल एवं बायोमास (जलावन की लकड़ी, पशु अपशिष्ट, फसलों के अवशेष, कृषि अपशिष्ट, शहरों एवं नगरों का जैविक कचरा शामिल है)। सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा सौर ऊर्जा (Solar energy) कहलाती है, पानी से पैदा की गई ऊर्जा को जल ऊर्जा (Hydel energy) कहते हैं एवं भूमिगत गर्म, सूखे पत्थरों, मैग्ना, गर्मपानी के झरनों या प्राकृतिक गीजर से उत्पन्न ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा (Geotharmal energy) कहा जाता है। ज्वारीय ऊर्जा (Tidal energy) समुद्र एवं महासागरों की लहरों एवं ज्वार भाटा से प्राप्त की जाती है। पाठगत प्रश्न 29.1 1. आप सूर्य को एकमात्र सबसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत मानते हैं? क्यों? 29.2 नवीकरणीय अथवा समाप्त न होने वाले ऊर्जा स्रोत तेजी से घटते हुए जीवाश्मीय ईंधनों तथा ऊर्जा की बढ़ती मांग ने यह आवश्यकता पैदा की कि हम वैकल्पिक स्रोतों की तरफ ध्यान दें जिन्हें नवीकरणीय (Renewable) या समाप्त न होने वाले स्रोत (Non Conventional) कहा जाता है। इन्हें हम अक्षय ऊर्जा स्रोत भी कह सकते हैं। हम अक्षय ऊर्जा स्रोतों को इस प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं कि ‘‘ऐसे ऊर्जा स्रोत जो बिना समाप्त हुए इस्तेमाल किए जा सकते हों’’। इनमें से अधिकांश स्रोत प्रदूषण मुक्त होते हैं एवं कुछ का प्रयोग सभी जगहों पर किया जा सकता है। ये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत गैर परंपरागत या अक्षय या वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं। इस प्रकार की ऊर्जा के स्रोत हैं: सौर, बहता पानी, पवन, हाइड्रोजन तथा भूतापीय। हम नवीकरणीय सौर ऊर्जा सीधे सूर्य से प्राप्त करते हैं और परोक्ष रूप से बहते हुए पानी, पवन एवं बायोमास से भी प्राप्त कर सकते हैं। जीवाश्म ईंधन तथा परमाणु ऊर्जा की तरह, वैकल्पिक नवीकरणीय ऊर्जा के प्रत्येक स्रोत के अपने-अपने लाभ एवं हानियाँ होती हैं। हम इनमें से कुछ के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। 29.3 सौर ऊर्जा (SOLAR ENERGY) सूर्य से प्राप्त सौर ऊर्जा शक्ति अपार है एवं यह अक्षय है। व्यापक रूप से कहा जाए तो सौर ऊर्जा पृथ्वी की सम्पूर्ण जीवन प्रक्रियाओं को संभालती है और यही हर उस ऊर्जा रूप का आधार होती है जिसका हम प्रयोग करते हैं। सूर्य से ही पेड़-पौधों का विकास होता है, जो ईंधन के रूप में जलाए जाते हैं या दलदल में सड़कर एवं धरती के नीचे कई लाखों वर्षों तक दबे रह कर कोयला एवं तेल में परिवर्तित होते हैं। सूर्य से आने वाला ताप अलग-अलग क्षेत्रों के बीच तापमान का अंतर उत्पन्न करता है जिससे हवा बहने लगती है। पानी भी सूर्य के कारण ही वाष्प बनकर उड़ जाता है, ये जलवाष्प काफी ऊँचाई तक पहुँचकर जब ठंडे होते हैं तो बारिश के रूप में पुनः धरती पर गिरने लगता है। पानी नदियों से होता हुआ समुद्र में जाता है। इस बहते पानी का प्रयोग यदि टर्बाइन घुमाने के लिये किया जाए तो यह बिजली भी पैदा करता है। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि पन बिजली सौर ऊर्जा का ही अप्रत्यक्ष रूप है किंतु प्रत्यक्ष सौर ऊर्जा का प्रयोग सोलर सेल के द्वारा ताप, प्रकाश एवं विद्युत के रूप में हो सकता है। सूर्य को अक्सर, हमारी ऊर्जा समस्याओं का अंतिम उत्तर माना जाता है। सूर्य हमें अनवरत ऊर्जा प्रदान करता है जो हमारी वर्तमान ऊर्जा मांगों से कहीं अधिक होती हैं। यह हमें बिना किसी कीमत के मिलती है, प्रचुर मात्र में उपलब्ध है, हर जगह पाई जाती है एवं इसमें कोई राजनैतिक अवरोध नहीं आते हैं। वास्तव में जीवाश्म ईंधन भी एक तरह से कई लाखों वर्ष पहले जमा की गई सौर ऊर्जा का ही रूप है। किंतु हम इस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध ऊर्जा स्रोत का एक छोटा हिस्सा ही जमा कर पाते हैं और उसका उपयोग कर पाते हैं। सौर ऊर्जा के उपयोग को इस तरह से वर्गीकृत किया गया हैः i) प्रत्यक्ष सौर ऊर्जा का उपयोग; इसमें सौर ऊर्जा को प्रत्यक्ष संग्रह करके इसे गर्म करने, विद्युत उत्पन्न करने तथा ठंडा करने आदि के लिये उपयोग किया जाता है। ii) सौर ऊर्जा का अप्रत्यक्ष उपयोग, इसमें सूर्य द्वारा चलने वाली कुछ प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा अर्जित सौर ऊर्जा का उपयोग होता है। जैसे पवन, बायोमास, तरंगों, पनबिजली शक्ति आदि। पाँच हजार वर्ष पूर्व लोग सूर्य की पूजा करते थे। रा (Ra)- सूर्य भगवान जो कि मिश्र का पहला राजा माना जाता था। मेसोपोटामिया में सूर्य भगवान शमेश एक मुख्य देवता माना गया था और इसको न्याय के देवता के तुल्य माना गया था। ग्रीस में दो सूर्य थे- अपोलो (Apollo) एवं हीलियोस (Helios)। सूर्य का प्रभाव अन्य दूसरे धर्मों पर भी देखा गया है जैसे जरतुश्त धर्म (Zoroastrianism), मिथ्रीइज़्म (Mithraism), रोमन धर्म, हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, इंग्लैण्ड के डुंइड्स एवं मैक्सिको के अजेटेक्टस, पेरु एवं बहुत सी मूल रूप से बसी हुई अमेरिकी जनजातियों में भी सूर्य का महत्त्व देखा गया है। संबंधित लेख:- एनर्जी सेक्टर में रोजगार के हैं कई मौके29.3.1 प्रत्यक्ष सौर ऊर्जा (Direct Solar Energy) सौर ऊर्जा प्रचुर मात्र में उपलब्ध है, अक्षय है एवं बिना किसी दाम के मिलती है। सौर ऊर्जा का प्रत्यक्ष उपयोग विभिन्न प्रकार के उपकरणों द्वारा किया जा सकता है। इन उपकरणों को तीन प्रकार के संयंत्रों में बाँटा गया है (क) निष्क्रिय (ख) सक्रिय (ग) फोटोवोल्टॉइक (क) निष्क्रिय सौर ऊर्जा (Passive solar energy) जैसा कि आप सभी जानते हैं, सौर ऊर्जा के कुछ उपयोग जो बहुत पहले से होते आ रहे हैं, निष्क्रिय तरह के हैं जैसे नमक बनाने के लिये समुद्री जल का वाष्पीकरण तथा कपड़ों एवं खाद्य पदार्थों को धूप में सुखाना। वास्तव में सौर ऊर्जा का प्रयोग इन कार्यों के लिये अभी भी होता है। सौर ऊर्जा का सबसे आधुनिक निष्क्रिय उपयोग खाना बनाने के लिये, गर्म करने के लिये, ठंडा करने के लिये एवं घरों तथा इमारतों को प्रकाशित करने के लिये है। निष्क्रिय सौर ऊर्जा की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इमारत की डिजाइन कितनी अच्छी है। सौर ऊर्जा के निष्क्रिय उपयोग में कोई भी यांत्रिक साधन प्रयोग नहीं किए जाते हैं। खाना बनाने के लिये निष्क्रिय सौर ऊर्जा का उपयोग खाना बनाने के लिये सूर्य की ऊर्जा का इस्तेमाल बिना किसी बड़े, जटिल तंत्र जिसमें लेंस तथा दर्पण लगे हों, से किया जा सकता है। हम सभी जानते हैं कि जब सूर्य की किरणें एक काली सतह पर पड़ती हैं तो यह इन्हें सोखकर इसे ताप ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है। काँच, ताप का कुचालक है किंतु यदि एक काँच से बना गहरा चैंबर, भीतर से काले रंग से रंग दिया जाए और चारों तरफ से इसे ऊष्मारोधी बना दिया जाए एवं इसे कुछ समय के लिये सूर्य की रोशनी में रखा जाए तो इसके अंदर का तापमान जल्दी ही 100°C तक पहुँच जाएगा जो खाना पकाने के लिये उपयुक्त है। ग्रीष्म ऋतु के एक गर्म दिन में सौर कुकर बॉक्स का तापमान आसानी से 140°C तक पहुँच सकता है। सौर कुकर में खाना पकाने में 5-6 घंटे का समय लगता है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के प्रत्यक्ष इस्तेमाल का उदाहरण सौर कुकर बॉक्स है जो गरीबों के लिये अधिक उपयोगी हो सकता है। भारतीय परिस्थितियों में जहाँ हमें प्रचुर मात्रा में सूर्य की रोशनी मिलती है, हम सौर कुकर का प्रयोग खाना बनाने के लिये कर सकते हैं। सौर कुकर द्वारा खाना पकाने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह सुविधाजनक है क्योंकि इसमें खाना कभी भी जलता नहीं है और ना ही अधिक गलता है। सौर कुकर की एक विशेषता यह भी है कि खाना रखो और भूल जाओ वाले गुण के साथ इसमें पका खाना अधिक स्वादिष्ट एवं पोषक तत्वों से भरपूर होता है। लेकिन सौर कुकर महँगा होने के साथ-साथ इसमें खाना बनाने की प्रक्रिया धीमी है अर्थात खाना पकने में लंबा समय लगता है। भारत को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि विश्व की सबसे बड़ी सौर स्टीम प्रणाली, माउंट आबू में ब्रह्मकुमारी आश्रम में इस्तेमाल हो रही है। यहाँ सौर ऊर्जा को संकेंद्रको (Concentrators) /दर्पणों से बनी बैटरी की सहायता से संकेंद्रित करके इससे मिलने वाली ताप ऊर्जा द्वारा पानी को गर्म करके वाष्प में बदला जाता है। इस प्रणाली से 10,000 लोगों के लिये खाना पकाया जा सकता है। यह प्रणाली 1 करोड़ रुपयों की लागत से बनी थी जिसमें आश्रम के लोगों की मेहनत शामिल नहीं है। संबंधित लेख:- ऊर्जा संरक्षणप्रकाश के लिये सौर ऊर्जा का निष्क्रिय प्रयोग सौर ऊर्जा का प्रयोग इमारतों के भीतर प्रकाश व्यवस्था करने के लिये किया जाता है। इसे डे-लाइटिंग तकनीकी (Day lighting technology) कहा जाता है। डे लाइटिंग तकनीकी की डिजाइन इस प्रकार की गई है जिससे इमारतों के भीतरी भाग को अधिक से अधिक प्राकृतिक रोशनी मिल सके। यह या तो कोर लाइटिंग के रूप में होती है, जब इमारत में एक केंद्रीय प्रांगण होता है जिससे ज्यादा से ज्यादा रोशनी का प्रवेश हो सके। अत्यंत आधुनिक तकनीक है हाइब्रिड सोलर लाइटिंग (Hybrid solar lighting) जिसमें सूर्य की रोशनी को संग्रहित करके इसे ऑप्टिकल फाइबर द्वारा इमारतों में भेजा जाता है जहाँ इसे हाइब्रिड लाइट फिक्सरों में विद्युत प्रकाश के साथ जोड़ा जाता है। कमरों में सेंसर लगे होते हैं जो उपलब्ध सूर्य की रोशनी के आधार पर विद्युत प्रकाश को समंजित करके लाइटिंग के स्तर को स्थिर रखते हैं। यह नई पीढ़ी की रंगीन लाइटिंग सौर ऊर्जा एवं विद्युत ऊर्जा दोनों को मिला देती है। निष्क्रिय सोलर सिस्टम रखरखाव से मुक्त होते हैं इसमें कोई भी सचल भाग नहीं होते हैं अतः इमारतों को गर्म या ठंडा करने में कोई भी ऊर्जा खर्च नहीं होती है। इसलिये इसमें कोई भी लागत नहीं आती है। इस निष्क्रिय सौर तापन, शीतलन एवं प्रकाश व्यवस्था का इस्तेमाल केवल विशेष रूप से डिजाइन की गई बिल्डिंगों में ही किया जाता है। यही इसकी सबसे बड़ी समस्या है। व्यावसायिक एवं व्यापारिक इमारतों में डे लाइटिंग की व्यवस्था से उच्च गुणवत्ता का प्रकाश मिलता है एवं इससे स्वास्थ्य तथा उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। साथ ही बिजली के बिलों पर भी अच्छी खासी बचत हो सकती है। (ख) सौर ऊर्जा का सक्रिय उपयोग (Active use of solar energy) सक्रिय सौर तापन तथा शीतलन व्यवस्था मुख्य रूप से छतों पर लगे सौर संग्राहकों पर निर्भर करती है। इस तरह के सिस्टम में पंप और मोटर की भी आवश्यकता पड़ती है जिससे द्रव को चलाया जा सके या पंखे द्वारा हवा की जा सके ताकि संग्रह किए गए ताप को छोड़ा जा सके। (क) और (ख)। विभिन्न प्रकार के सक्रिय सौर तापन सिस्टम उपलब्ध हैं। इन सिस्टमों का मुख्य अनुप्रयोग है गर्म पानी प्रदान करना, मुख्य रूप से घरेलू इस्तेमाल के लिये। सक्रिया सौर तापन का इस्तेमाल व्यापक रूप से भारत, जापान, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अमेरिका में हो रहा है जहाँ की जलवायु उष्ण है। विद्युत उत्पादन में सौर ऊर्जा सौर ऊर्जा का उपयोग उच्च तापमान एवं विद्युत उत्पादन के लिये होता है। गर्म रेगिस्तानों में लगे सौर संग्राहक इतना अधिक तापमान उत्पन्न कर सकते हैं जिससे एक टर्बाइन को घुमाया जा सके और विद्युत पैदा की जा सके, लेकिन इस तरह के उपकरणों की लागत भी अधिक होती है। कई सारे सौर तापीय सिस्टम, सूर्य द्वारा प्राप्त विकिरण ऊर्जा को संग्रह करके इसे उच्च तापमान वाली तापीय (ऊष्मा) ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं। जिसे प्रत्यक्ष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है या विद्युत में परिवर्तित कर दिया जाता है। कंप्यूटर द्वारा संचालित दर्पणों की लंबी श्रृंखला, जिसे हीलियोस्टै्टस ट्रेक (Heliostats track) कहा जाता है, सूर्य की रोशनी को रोककर उसे एक केंद्रीय ताप संग्रहकारी टॉवर की ओर फोकस करते हैं। पानी गर्म करने के दो सक्रिय सौर ऊर्जा प्रणाली शीतलन के लिये सौर ऊर्जा एक सौर संग्राहक का प्रयोग शीतलन के लिये भी किया जा सकता है। इस प्रणाली में, सौर ऊर्जा एक छोटे ताप इंजन को शक्ति प्रदान करती है जो रेफ्रिजरेटर की इलेक्ट्रिक मोटर की तरह होता है। यह ताप इंजन एक पिस्टन को चलाता है जो एक प्रकार के द्रव में विशेष वाष्प को संकुचित करके भेजा जाता है। यह द्रव पुनः वाष्पीकृत हो जाता है और बाहरी हवा से सारी गर्मी को खींच लेता है। (ग) सौर सेल या फोटो वोल्टाइक तकनीकी (Solar cell or photovolatic technology) सौर ऊर्जा को प्रत्यक्ष तौर पर विद्युत ऊर्जा (परोक्ष करेंट, DC) में फोटोवाल्टाइक सेल (Photovoltaic Cell) जिन्हें आम तौर पर सोलर सेल कहा जाता है, द्वारा परिवर्तित किया जाता है। फोटोबोल्टोइक सेल सिलिकॉन एवं अन्य पदार्थों का बना होता है। जब सूर्य की किरणें सिलिकॉन परमाणु पर पड़ती है तो उनमें से इलेक्ट्रॉन बाहर निकलते हैं। एक प्रारूपिक सौर सेल पारदर्शी पत्रे की तरह होता है जिसमें एक बहुत ही पतली सेमीकंडक्टर (Semiconductor) होता है। सौर सेलों को फोटोवोल्टाइक सेल (PV सेल) भी कहा जाता है। सूर्य की रोशनी सेमीकंडक्टर के इलेक्ट्रॉन को ऊर्जा प्रदान करके उन्हें प्रवाहित करती है, जिससे एक विद्युत धारा बनती है। सौर सेल दूरवर्ती गाँवों को विद्युत प्रदान करते हैं। भारत वर्ष सौर सेलों का सबसे बड़ा बाजार है। फोटोवोल्टाइक सेल PV सेलों का प्रयोग निम्न के लिये होता हैः (i) घरेलू प्रकाश व्यवस्था पाठगत प्रश्न 29.2 संबंधित लेख:- परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 196229.4 अप्रत्यक्ष सौर ऊर्जा बहुत से ऊर्जा स्रोत जैसे पवन, ज्वार-भाटा एवं पन-बिजली, अंततः सौर ऊर्जा पर ही आश्रित हैं। इस पाठ में बहुत से अप्रत्यक्ष सौर ऊर्जा स्रोतों में से हम केवल (क) पवन ऊर्जा (ख) ज्वार-भाटा ऊर्जा (ग) पनबिजली ऊर्जा तथा (घ) बायोमास ऊर्जा के बारे में ही चर्चा करेंगे। 29.4.1 पवन ऊर्जा पृथ्वी से टकराने वाली सूर्य की रोशनी का लगभग 2% भाग, बहती हवा जिसे पवन कहा जाता है, की गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। पृथ्वी की सतह द्वारा सौर विकिरण को असमान तरीके से सोखना, तापमान में अंतर, घनत्व एवं दबाव का कारण बनता है जिससे हवा का बहना प्रारंभ होता है। यह बहाव स्थानीय, प्रांतीय तथा वैश्विक स्तर पर अलग-अलग होता है जो पवन ऊर्जा द्वारा संचालित होता है। पवन की गतिज ऊर्जा को संग्रहित करके इसे विशेष उपकरणों द्वारा यांत्रिक अथवा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। लगभग 4000-3500 ई. पू. पवन ऊर्जा का संग्रहण करके प्रथम पाल जहाज एवं पवन चक्कियाँ (Wind mill) विकसित की गईं। पवन ऊर्जा का उपयोग जहाजों को चलाने में, अनाज पीसने में, सिंचाई के लिये पानी खींचने में एवं अन्य प्रकार के कार्य करने में किया जाता है। वर्तमान युग में पवन ऊर्जा के इस्तेमाल का सबसे बड़ा क्षेत्र है विद्युत उत्पादन। पवन चक्कियों की तरह बनी पवन टर्बाइनों को एक ऊँचे टॉवर पर लगाया जाता है जिससे ज्यादा से ज्यादा पवन ऊर्जा इकट्ठी की जा सके। पवन चक्कियों का उपयोग जनरेटरों को चलाने के लिये होता है जो विद्युत उत्पादन करते हैं। विद्युत उत्पादन के लिये पवन का प्रयोग टर्बाइन के शाफ्ट को घुमाने के लिये होता है, जो एक जनरेटर से जुड़ी होती है, जो विद्युत उत्पन्न करता है। अतः पवन टर्बाइन पवन ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती है जिनका प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिये होता है। ऊर्ध्वाकर अक्ष पवन टर्बाइन पवन टर्बाइनों का उपयोग अकेले या समूह में होता है। जब पवन टर्बाइन समूह में होती हैं तो उन्हें ‘‘विंडफार्म’’ (wind farm) कहा जाता है। छोटी पवन टर्बाइनों को ऐरो जनरेटर (Aero generator) कहा जाता है एवं इन्हें बड़ी बैटरियों को चार्ज के लिये इस्तेमाल किया जाता है। विश्व की कुल पवन ऊर्जा क्षमता का 80 % इन पाँच देशों यू.एस.ए., जर्मनी, डेनमार्क, स्पेन एवं भारत द्वारा ही प्रदान किया जाता है। भारत का दर्जा विश्व में पाँचवे स्थान पर है। जिसकी कुल पवन ऊर्जा क्षमता 1080 मेगावाट है, जिसमें से 1025 मेगावाट का उपयोग व्यावसायिक संयंत्रों के लिये किया जाता है। विंड फार्म भारत में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में तमिलनाडु एवं गुजरात अग्रणी राज्य है। मार्च 2000 के अंत तक भारत के पास 1080 मेगावाट के विंड फार्म थे जिसमें से तमिलनाडु का हिस्सा 770 मेगावाट, गुजरात 167 मेगावाट एवं आंध्र प्रदेश का सहयोग 88 मेगावाट क्षमता का था। आज विभिन्न डिजाइनों के करीब एक दर्जन पवन पंप मौजूद हैं जो वृक्षारोपण के लिये सिंचाई का पानी, घरेलू उपयोग के लिये पानी एवं देश के अन्य कार्यों के लिये पानी प्रदान करते हैं। हाल ही में, पवन को ऊर्जा के स्रोत के रूप में काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है और लोगों की फिर से इस तरफ रुचि बढ़ी है। भारत, विश्व में पवन ऊर्जा का पाँचवाँ सबसे बड़ा उत्पादक देश है। अन्य देश जो पवन ऊर्जा के विकास में लगे हैं वे हैं ग्रेट ब्रिटेन, नीदरलैंड, ग्रीस, स्पेन, डेनमार्क, यूएसए (कैलीफोर्निया) एवं भारत। आंध्र प्रदेश में भी पवन से अधिकांश ऊर्जा उत्पादित की जाती है। पवन से ऊर्जा उत्पादित करने वाले अन्य राज्य हैं- तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र। इन राज्यों में कुल 26 संयंत्रों की साइट विकसित की गई है जो 57 मेगावाट क्षमता की पवन ऊर्जा प्रदान करेंगे। संबंधित लेख:- प्रदूषण विहीन ऊर्जा29.4.2 ज्वारीय ऊर्जा (Tidal energy) ज्वारीय ऊर्जा परियोजनाएँ, ज्वार-भाटा के उठने और गिरने से निकलने वाली ऊर्जा को संग्रह करती है। ज्वार भाटा ऊर्जा उत्पादन साइट का मुख्य विशेषता यह होनी चाहिए कि मुख्य ज्वार भाटा की लहर की ऊँचाई 5 मीटर से अधिक होनी चाहिए। ज्वारीय ऊर्जा को संग्रह करने के लिये खाड़ी या मुहाने के प्रवेश द्वार पर एक बाँध बनाया जाता है, जिससे एक जलाशय तैयार होता है। जैसे-जैसे ज्वार भाटा की लहरें उठती हैं, शुरू में पानी को खाड़ी में घुसने से रोका जाता है लेकिन जैसे ही लहरें ऊँची होती जाती है और इनका वेग टर्बाइन चलाने के लिये काफी होता है तो बाँध को खोल दिया जाता है और पानी इससे होकर जलाशय में गिरता है, जिससे टर्बाइन के पंख घूमते हैं और विद्युत पैदा होती है। पुनः जैसे ही जलाशय (the bay) भरता है, बाँध बंद कर दिया जाता है, पानी का प्रवाह रुक जाता है, पानी जलाशय में ही बंध जाता है, जब ज्वार-भाटा गिरता है (ebb tide), तब जलाशय के पानी का स्तर महासागर से अधिक होता है। इस समय बाँध को खोला जाता है जिससे टर्बाइन (जो उत्क्रमित होती है) को विपरीत दिशा में घुमाया जाता है, विद्युत पैदा होती है और पानी जलाशय से बाहर आता है। ज्वार-भाटा ऊर्जा को संग्रह करने के लिये बना बाँध खेती एवं वन्य जीवन को हानि पहुँचाता है। खाड़ी या मुहाने पर बना बाँध अपनी ओर जाने वाले पानी को छोटे-छोटे छेदों द्वारा जिनके साथ प्रोपेलर जुड़ा होता है, बहने देता है जो विद्युत टर्बाइन को चलाते हैं। आज की तारीख में ज्वार-भाटा विद्युत संयंत्र 40 की संख्या तक ही सीमित हैं। ला-रैंस जो फ्रांस में है, विश्व का एक मात्र व्यावसायिक पॉवर स्टेशन है जो ज्वारीय ऊर्जा से संचालित होता है। भारत में एक बड़ा पॉवर प्रोजेक्ट जिसकी लागत 5000 करोड़ रुपए है, कच्छ की खाड़ी, गुजरात के ‘‘हंथल क्रीक’’ में लगाने का प्रस्ताव है। ज्वारीय ऊर्जा स्टेशन 29.4.3 पन बिजली ऊर्जा (Hydro power energy) बहते पानी में संचित ऊर्जा, अधिकांशतः इस्तेमाल होने वाली नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों मे से एक अहम स्रोत है। रोमन शासन काल के समय से ही मानव ने जल शक्ति का संग्रह प्रारंभ कर दिया था। पहले जमाने में बहती नदियां और जल धाराओं की गतिज ऊर्जा को जलचक्रों द्वारा रोककर उनका प्रयोग अनाज पीसने, लकड़ी छीलने एवं कपड़ा बनाने के लिये किया जाता था। सन 1800 में आकर ही जल ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित किया जा सका। पन बिजली ऊर्जा, बहते पानी की गतिज ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिये करती है ऊँचाई से गिरते हुए पानी के बल को उपयोग करके विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया ही पन बिजली शक्ति या जल विद्युत कहलाती है। यह तापीय या नाभिकीय ऊर्जा की अपेक्षा सस्ती होती है। पानी संचय करने के लिये ऊँचे स्तर पर बांधों का निर्माण किया जाता है, जो ऊँचाई से गिराया जाता है जिससे टर्बाइन घूमती है और विद्युत पैदा होती है। विश्व भर में जल विद्युत या पन बिजली शक्ति, व्यावसायिक ऊर्जा उत्पादन एवं उपभोग का चौथा बड़ा स्रोत है। संबंधित लेख:‘ अपशिष्ट जल से ऊर्जा बनाने में अधिक सक्षम है पौधा-आधारित माइक्रोबियल फ्यूल सेल’: अध्ययनजल विद्युत ऊर्जा के पीछे मूल सिद्धान्त यह है कि नदियों पर बाँध बनाकर कृत्रिम झरनों का निर्माण किया जाए। कभी-कभी प्राकृतिक झरनों का उपयोग भी किया जाता है। गिरता हुआ पानी टर्बाइन को घुमाता है जो विद्युत जनरेटरों को चलाता है। पन बिजली का सबसे बड़ा लाभ ये है कि एक बार जब बाँध बन जाए एवं टर्बाइन चलने लगे तो इसे तुलनात्मक रूप से सस्ती एवं विशुद्ध ऊर्जा स्रोत माना जा सकता है। पन बिजली से कई हानियाँ भी हैं, जैसे बांध बनाने से प्राकृतिक पर्यावास नष्ट हो जाते हैं एवं छिन्न-भिन्न हो जाते हैं अथवा हमेशा के लिये समाप्त हो जाते हैं। मानव बस्तियां भी अव्यवस्थित होने से लोग बेघर हो जाते हैं। पन बिजली के पर्यावरणीय प्रभाव पाठगत प्रश्न 29.3 1. वायु एवं पवन में क्या अंतर है? आपने क्या सीखा 1. आजकल उन वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर विशेष जोर दिया जा रहा है जो नवीकरणीय या अक्षय प्रकार के हैं। जैसे सौर, पवन, जल एवं ज्वारीय ऊर्जा। ये ऊर्जा के अक्षय स्रोत हैं एवं किसी प्रकार का वायु प्रदूषण, स्वास्थ्य समस्या या जलवायु परिवर्तन नहीं पैदा करते हैं। 2. सौर-ऊर्जा, सबसे महत्त्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है, जिसका प्रयोग इमारतों के तापन और शीतलन प्रणालियों में होता है। इसके अलावा इसका प्रयोग खाना पकाने तथा विद्युत उत्पादन में भी होता है। सौर ऊर्जा की सीमाबद्धतायें हैं कि एक बादलों से भरे दिन में या सर्दियों में यह उपलब्ध नहीं होती है एवं वर्तमान में उपलब्ध तकनीकें भी काफी सीमित हैं। 3. निष्क्रिय सौर ऊर्जा प्रणाली में अक्सर ऐसी संरचनात्मक डिजाइन शामिल होती है जो बिना किसी यांत्रिक शक्ति के सौर ऊर्जा को सोखने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। 4. सक्रिय सौर ऊर्जा सिस्टम सौर संग्राहक का प्रयोग करते हैं जिससे घरों के लिये पानी गर्म किया जा सके और इमारतों को गर्म रखा जा सके। 5. फोटोवोल्टाइक एक ऐसी तकनीक है जो सूर्य की रोशनी को सीधे विद्युत में परिवर्तित करती है। इसका प्रयोग विभिन्न कार्यों के लिये होता है। 6. जल विद्युत शक्ति का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिये होता है। यह भी सौर-ऊर्जा का एक अप्रत्यक्ष रूप है एवं इसके कई लाभ हैं। लेकिन इसमें निर्माण की लागत काफी अधिक होती है तथा जलाशयों में जमा होने वाली रेत से पॉवर स्टेशन की क्षमता में कमी आती है जिससे इसकी हानियाँ हैं। 7. ज्वारीय ऊर्जा एक अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है लेकिन इस ऊर्जा को संग्रह करने के स्थान बहुत सीमित हैं तथा इसकी तकनीक बहुत कम है। संबंधित लेख: ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 (Energy Conservation Act, 2001)पाठान्त प्रश्न 1. सौर ऊर्जा के विभिन्न उपयोगों को सूचीबद्ध करो एवं सौर ऊर्जा के लाभ और हानियों का वर्णन कीजिए। पाठगत प्रश्नों के उत्तर 1. सूर्य प्राकृतिक
ऊर्जा स्रोतों में सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। अन्य सभी ऊर्जा स्रोत सूर्य से ही प्रत्यक्ष रूप से मिलते हैं संबंधित लेख:- वैकल्पिक ऊर्जा साधन और स्वयंसेवी संस्थाएँ29.2 2. सौर ऊर्जा का प्रयोग निष्क्रिय तौर पर खाद्य पदार्थों तथा कपड़ों को सुखाने में होता है तथा समुद्र के खारे पानी से वाष्पीकरण द्वारा नमक बनाने के लिये भी होता है। सौर कुकर का प्रयोग सौर ऊर्जा के उपयोग से खाना पकाने के लिये होता है। सौर ऊर्जा का उपयोग प्रत्यक्ष रूप से इमारतों की तापन एवं प्रकाशन व्यवस्था के लिये होता है। सौर ऊर्जा का सक्रिय तरीके से उपयोग घरेलू इस्तेमाल के लिये गर्म पानी तैयार करने में होता है। 3. फोटोवोल्टाइक सेल एक सौर सेल है जिससे सौर ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन होता है। यह एक पतला पत्रे जैसा सेमीकंडक्टर होता है। सूर्य की रोशनी सेमीकंडक्टर में इलेक्ट्रॉन का ऊर्जा प्रदान करके इन्हें प्रवाहित करती है जिससे विद्युत करेंट पैदा होता है। 29.3
नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत कौन कौन से है?ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत. 28.1 अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जीवाश्म ईंधन की खोज के बाद ये सबसे महत्त्वपूर्ण खनिज ऊर्जा स्रोतों में से एक हैं। ... . 28.1.1 जीवाश्म ईंधन ... . 28.2 कोयला ... . 28.2.1 कोयले का निर्माण ... . 28.2.2 समस्याएँ ... . 28.3 पेट्रोलियम या खनिज तेल ... . 28.4 प्राकृतिक गैस ... . 28.4.1 पारम्परिक प्राकृतिक गैस. नवीनीकरण स्रोत क्या है?Solution : नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत-ऐसे ऊर्जा स्रोत जो प्रकृति में निरंतर उत्पन्न रहते हैं तथा कभी समाप्त नहीं होते, उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं, जैसे सौर-ऊर्जा, वायु-ऊर्जा, जल-ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, सागरीय तापीय ऊर्जा इत्यादि।
नवीकरणीय और अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत क्या है?हम देखते हैं कि ऊर्जा के कुछ स्रोतों की एक लघु समय अवधि के बाद पुन: पूर्ति की जा सकती है। इस प्रकार के ऊर्जा के स्रोतों को ''नवीकरणीय'' ऊर्जा स्रोत ऊर्जा कहते हैं, जबकि ऊर्जा के वे स्रोत लघु समय अवधि के अंदर जिनकी पुन: पूर्ति नहीं की जा सकती है ''अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं।
कौन नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत नहीं है?जबकि ऊर्जा का गैर-नवीकरणीय स्रोत जीवाश्म ईंधन द्वारा निर्मित होता है और इसका पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है। साथ ही, इसे बनाने में लाखों साल लगते हैं लेकिन ये जल्दी खत्म हो जाते हैं। कोयला, पेट्रोल, डीजल, यूरेनियम इसके उदाहरण हैं।
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