नित्य पूजा विधि मंत्र सहित- Nitya Puja Vidhi & MantraMantra For Puja – सभी कष्टों के निवारण एवं ईश्वर प्राप्ति के लिए नित्य पूजा विधि (Nitya Puja Vidhi) का मार्ग श्रेष्ट माना गया है। नित्य पूजन (Daily Puja) और नित्य पूजा मंत्र (Nitya Puja Mantra) जपने से श्रद्धा और विश्वास का ही जन्म नही होता है अपितु मन में एकाग्रता और दृढ इच्छाशक्ति का संचार होता है और दृढ संकल्प से हम किसी भी तरह के कार्य को कर पाने में सक्षम हो पाते है। Show
नियमित उपासना (Daily Pujan) के लिए पूजा-स्थली की स्थापना आवश्यक है। घर में एक ऐसा स्थान तलाश करना चाहिये जहाँ अपेक्षाकृत एकान्त रहता हो, आवागमन और कोलाहल कम-से-कम हो। ऐसे स्थान पर एक छोटी चौकी को पीत वस्त्र से सुसज्जित कर उस पर काँच से मढ़ा भगवान का सुन्दर चित्र स्थापित करना चाहिये। गायत्री की उपासना सर्वोत्कृष्ट मानी गई है। इसलिये उसकी स्थापना की प्रमुखता देनी चाहिये। यदि किसी का दूसरे देवता के लिये आग्रह हों तो उन देवता का चित्र भी रखा जा सकता है। शास्त्रों में गायत्री के बिना अन्य सब साधनाओं का निष्फल होना लिखा है। इसलिये यदि अन्य देवता को इष्ट माना जाय और उसकी प्रतिमा स्थापित की जाय तो भी गायत्री का चित्र प्रत्येक दशा में साथ रहना ही चाहिये। नित्य पूजा विधि के नियम – Rules For Nitya Puja Vidhi
प्रात: कर-दर्शनमकराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। स्नान मन्त्रगंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। देव पूजन में सबसे प्रथम धरती-माता का- मातृ-भूमिका, विश्व-वसुन्धरा का पूजन है। जिस धरती पर जिस देश समाज में जन्म लिया है वह प्रथम देव है, इसलिये इष्टदेव की पूजा से भी पहले पृथ्वी पूजन किया जाता है। पृथ्वी पर जल, अक्षत, चंदन, पुष्प रख कर पूजन करना चाहिये। पृथ्वी पूजन के मंत्र याद न हों तो गायत्री मंत्र का उच्चारण कर लेना चाहिये। पृथ्वी क्षमा प्रार्थनासमुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते। इसके बाद इष्टदेव का पूजन किया जाय- नित्य पूजा विधि – Nitya Pujan Vidhi
यह सात पूजा उपकरण सर्वसाधारण के लिए सरल हैं। पुष्प हर जगह- हर समय नहीं मिलते। उनके अभाव में केशर मिश्रित चन्दन से रंगे हुए चावल प्रयोग में लाये जा सकते हैं। प्रथम भगवान की पूजा स्थली पर विशेष रूप से आह्वान आमंत्रित करने के लिये हाथ जोड़कर अभिवन्दन करना चाहिये और उपस्थित का हर्ष व्यक्त करने के लिए माँगलिक अक्षतों (चावलों) की वर्षा करनी चाहिये। इसके बाद जल, चंदन, अगरबत्ती, पुष्प, नैवेद्य, आरती की व्यवस्था करते हुए उनका स्वागत, सम्मान करना चाहिये। यह विश्वास करना चाहिये कि भगवान सामने उपस्थित हैं और हमारी पूजा प्रक्रिया को- भावनाओं को ग्रहण स्वीकार करेंगे। उपरोक्त सात पूजा उपकरणों के अलग-अलग मंत्र भी हैं। वे याद न हो सकें तो हर मंत्र की आवश्यकता गायत्री से पूरी हो सकती है। इस विधान के अनुसार इस एक ही महामंत्र से कभी पूजा प्रयोजन पूरे कर लेने चाहिये। यहाँ प्रमुख ईश्वर और उनसे सम्बंधित मंत्रो को बताया गया है श्रद्धानुसार अपने इष्टदेव के मंत्र को भाव विभोर होकर बोलना चाहिए गणपति स्तोत्रगणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:। विघ्नेश्वराय
वरदाय शुभप्रियाय। शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं। आदिशक्ति वंदनासर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शिव स्तुतिकर्पूर गौरम
करुणावतारं, विष्णु स्तुतिशान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं श्री कृष्ण स्तुतिकस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले
कौस्तुभम। मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्। श्रीराम वंदनालोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। श्रीरामाष्टकहे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा। एक श्लोकी रामायणआदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्। सरस्वती वंदनाया कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। हनुमान वंदनाअतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्। मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। इसके बाद जप का नम्बर आता है। मंत्र ऐसे उच्चारण करना चाहिये, जिससे कंठ, होठ और जीभ हिलते रहें। उच्चारण तो होता रहे पर इतना हल्का हो कि पास बैठा व्यक्ति भी उसे ठीक तरह से सुन समझ न सके। माला को प्रथम मस्तक पर लगाना चाहिये फिर उससे जप आरंभ करना चाहिये। तर्जनी उंगली का प्रयोग नहीं किया जाता, माला घुमाने में अंगूठा, मध्यमा और अनामिका इन तीनों का ही प्रयोग होता है। जब एक माला पूरी हो जाय तब सुमेरु (बीच का बड़ा दाना) उल्लंघन नहीं करते उसे लौट देते हैं। अधिक रात गये जप करना हो तो मुँह बन्द करके- उच्चारण रहित मानसिक जप करते हैं। साधारणतया एक माला जप में 6 मिनट लगते हैं। पर अच्छा हो इस गति को और मंद करके 10 मिनट कर लिया जाय। दैनिक उपासना में- जब कि दो ही माला नित्य करनी हैं, गति में तेजी लाना ठीक नहीं। माला न हो तो उंगलियों पर 108 गिन कर एक माला पूरी होने की गणना की जा सकती है। घड़ी सामने रख कर भी समय का अनुमान लगाया जा सकता है। और अंत में शांति पाठ अवश्य करना चाहिए : शांति पाठऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:, ॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ यह भी पढ़े – रोज की पूजा में कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव!
आरती से पहले कौन सा मंत्र बोले?आरती करने से पहले कर्पूरगौरं मंत्र बोलना सही रहता है। मंत्र का पूरा अर्थ- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
प्रतिदिन की पूजा कैसे करनी चाहिए?ईश्वर की दैनिक पूजा हमेशा स्नान-ध्यान के बाद पवित्र एवं प्रसन्न मन से करना चाहिए.. हमेशा हमें शुद्ध एवं पवित्र भूमि पर आसन बिछाकर ईश्वर की साधना करनी चाहिए. ... . ईश्वर की दैनिक पूजा को हमेशा एक निश्चित समय और एक निश्चित स्थान पर करना चाहिए.. अपने आराध्य की पूजा हमेशा पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की ओर मुख करके करनी चाहिए.. नित्य पूजा पाठ कैसे करें?नित्य कर्म पूजा विधि – पूजा का सही तरीका. सुबह स्नान के बाद मंदिर में घी और तेल का दीपक जलाएं. अब अगरबत्ती या धूपबत्ती से मंदिर को सुगंधित करें.. सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें और उन्हें स्नान करवा कर वस्त्र अर्पित करें. ... . इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करें और उन्हें धूप, दीप, चंदन, जौ और पुष्प अर्पित करें.. |