नमक मिर्च में कौन सा समास है? - namak mirch mein kaun sa samaas hai?

समास किसे कहते हैं और इसके उदाहरण

समास की परिभाषा : परस्पर संबंध रखने वाले दो अथवा दो से अधिक शब्दों के मेल का नाम समास है । जैसे-राजा का पुत्र = राजपुत्र। समास के छः भेद अव्ययीभाव, तत्पुरुष, कर्मधारय, विगु, वंद्व और बहुब्रीहि होते हैं।

कर्मधारय समास विशेषण और विशेष्य, उपमान और उपमेय में होता है। बहुव्रीहि समास में समस्त पदों को छोड़कर अन्य तीसरा ही अर्थ प्रधान होता है। जैसे-नीलांबर-यहां नीला विशेषण तथा अंबर विशेष्य है। अतः यह कर्मधारय समास का उदाहरण है।

दशानन-दश हैं आनन जिसके अर्थात् रावण। यहां दश और आनन दोनों शब्द मिलकर अन्य अर्थ का बोध करा रहे हैं। अतः यह बहुब्रीहि समास का उदाहरण है।
(ii) द्विग समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और समस्त पद से समुदाय का बोध होता है; जैसे-दशाब्दी = दस वर्षों का समूह, पंचसेरी-पाँच सेरों का समूह। बहुब्रीहि में भी पहला खंड संख्यावाचक हो सकता है। उसके योग से जो समस्त शब्द बनता है, वह किसी अन्य अथवा तीसरे अर्थ का बोधक होता है। जैसे-चतुर्भुज-यदि इसका अर्थ चार भुजाओं का समूह लें तो यह द्विगु समास है, पर चार हैं भुजाएं जिसकी अर्थ लेने से बहुब्रीहि समास बन जाएगा।

अव्ययीभाव समास

जिस समास में पहला पद प्रधान हो और समस्त पद अव्यय (क्रिया, विशेषण) का काम करे, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं; जैसे-यथाशक्ति, भरपेट, प्रति-दिन, बीचों-बीच।

अव्ययीभाव के कुछ उदाहरण

यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
आमरण = मरण-पर्यंत
यथासंभव = जैसा संभव हो
आजानु = जानुओं (घुटनों) तक
यथामति = मति के अनुसार
भर-पेट = पेट भर कर
यथाविधि = विधि के अनुसार
भरसक = पूरी शक्ति से
प्रतिदिन = दिन-दिन
निडर = बिना डर
प्रत्येक = एक-एक
घर-घर = हर घर
मनमन = मन ही मन
अनजाने = जाने बिना
द्वार-द्वार = द्वार ही द्वार
बीचों-बीच = ठीक बीच में
निधड्क = बिना धड़क
रातों-रात = रात ही रात में
आजीवन = जीवन-पर्यंत
हाथों हाथ = हाथ ही हाथ
बेशक = बिना संदेह
आसमुद्र = समुद्र पर्यंत
बेफायदा = फायदे (लाभ) के बिना
बेखटके = खटके के बिना
बखूबी = खूबी के साथ
दिनों-दिन = दिन के बाद दिन
बाकायदा = कायदे के अनुसार
हर-रोज़ = रोज-रोज़

2. तत्पुरुष समास

तत्पुरुष का शाब्दिक अर्थ है (तत् = वह, पुरुष = आदमी) वह (दूसरा) आदमी । इस प्रकार ‘तत्पुरुष’ शब्द अपना एक अच्छा उदाहरण है। इसी आधार पर इसका नाम यह पड़ा है, क्योंकि ‘तत्पुरुष समास का दूसरा पद प्रधान होता है। इस प्रकार जिस समास का दूसरा पद प्रधान होता है और दोनों पदों के बीच प्रथम (कर्ता) तथा अंतिम (संबोधन) कारक के अतिरिक्त शेष किसी भी कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे

राज-पुरुष = राजा का पुरुष
राह-खर्च = राह के लिए खर्च
ऋण-मुक्त = ऋण से मुक्त
वनवास = वन में वास
ग्रंथ-कर्ता = ग्रंथ को करने वाला
आशातीत = आशा को लांघ कर गया हुआ
स्वर्ग प्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
जल-पिपासु = . जल को पीने की इच्छा वाला
हस्तलिखित = हस्त से लिखित
कष्ट साध्य = कष्ट से साध्य
तुलसीकृत = तुलसी से कृत
गुरुकृत = गुरु से किया हुआ
देश-भक्ति = देश के लिए भक्ति
ठकुरसुहाती = ठाकुर को सुहाती
रण-निमंत्रण = रण के लिए निमंत्रण
आरामकुर्सी = आराम के लिए कुर्सी
पथ-भ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
आकाश पतित = आकाश से पतित
भयभीत = भय के भीत
धर्म भ्रष्ट = धर्म से भ्रष्ट
मृगशावक = मृग का शावक
चायबागान = चाय के बगीचे
वज्रपात = वज्र का पात
वाचस्पति = वाचः (वाणी) का पति
देशाटन = देशों में अटन
दानवीर = दान (देने) में वीर
वनवास = वन में वास
कविशिरोमणि = कवियों में शिरोमणि
अहित = न हित
अपूर्ण = न पूर्ण
अधर्म = न धर्म
असंभव = न संभव
अनन्य = अन् + अन्य
अनुत्तीर्ण = अन् + उत्तीर्ण
अवांछित = अ + वांछित
अस्थिर = अ + स्थिर
अनचाहा = अन् + चाहा
अकाज = अ + काज
अनहोनी = अन् + होनी
अनबन = अन + बन
मनसिज = मन में उत्पन्न
युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर
वाचस्पति = वाणी का पति
धनंजय = धन को जय करने वाला
तटस्थ = तट + स्थ
गृहस्थ = गृह + स्थ
पंकज = पंक + ज
जलद = जल + द

3. कर्मधारय समास

जिस समास के दोनों पदों के बीच विशेष्य-विशेषण अथवा उपमेय-उपमान का संबंध हो और दोनों पदों में एक ही कारक (कर्ता कारक) की विभक्ति आए, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। जैसे
नीलकमल = नीला है जो कमल
चंद्रमुख = चंद्र के समान है जो मुख
लाल मिर्च = लाल है जो मिर्च
पुरुषसिंह = सिंह के समान है जो पुरुष
पुरुषोत्तम = पुरुषों में है जो उत्तम
नीलकंठ = नीला है जो कंठ
महाराजा = महान् है जो राजा
महाजन = महान् है जो जन
सज्जन = सत् (अच्छा) है जो जन
बुधिबल = बुद्धि रूपी बल
भलामानस = भला है जो मानस (मनुष्य)
गुरुदेव = गुरु रूपी देव
सद्गुण = सद् (अच्छे) हैं जो गुण
कर-पल्लव = पल्लव रूपी कर
शुभागमन = शुभ है जो आगमन
कमल-नयन = कमल के समान नयन
नीलांबर = नीला है जो अंबर
कनक-लता = कनक की सी लता

4. विगु समास

जिस समास में पहला पद संख्यावाचक (गिनती बनाने वाला) हो, दोनों पदों के बीच विशेषण विशेष्य संबंध हो और समस्त-पद समूह या समाहार का ज्ञान कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे
शताब्दी = शत (सौ) अब्दों (वर्षों)
त्रिवेणी = तीन वेणियों (नदियों) का समाहार का समूह
सतसई = सात सौ दोहों का समूह
सप्ताह = सप्त (सात) अह (दिनों) का समूह
चौराहा = चार राहों (रास्तों) का
सप्तर्षि = सात ऋषियों का समूह समाहार
चौमासा = चार मासों का समाहार
अष्टाध्यायी = अष्ठ (आठ) अध्यायों का समूह
अठन्नी = आठ आनों का समूह
त्रिभुवन = तीन भुवनों (लोकों) का समूह

5. द्वंद्व समास

जिस समस्त पद के दोनों पद प्रधान हों तथा विग्रह (अलग-अलग) करने पर दोनों पदों के बीच ‘और’, ‘तथा’, ‘अथवा’, ‘या’ योजक शब्द लगें उसे द्वंद्व समास कहते हैं। जैसे

अन्न-जल = अन्न और जल
नदी-नाले = नदी और नाले
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
धर्माधर्म = धर्म और अधर्म
दूध-दही = दूध और दही
वेद-पुराण = वेद और पुराण
आबहवा = आब (पानी) और हवा
दाल-रोटी = दाल और रोटी
आमद-रफ्त = आमद (आना) और रफ्त (जाना)
नाम-निशान = नाम और निशान
घी-शक्कर = घी और शक्कर
दीन-ईमान = दीन और ईमान
नर-नारी = नर और नारी
लव-कुश = लव और कुश
गुण-दोष = गुण तथा दोष
नमक-मिर्च = नमक और मिर्च
देश-विदेश = देश और विदेश
अमीर-ग़रीब = अमीर और ग़रीब
राम-लक्ष्मण = राम और लक्ष्मण
राजा-रंक = राजा और रंक
भीमार्जुन = भीम और अर्जुन

6. बहुव्रीहि समास

जिस समाज का कोई भी पद प्रधान नहीं होता और दोनों पद मिलकर किसी अन्य शब्द (संज्ञा) के विशेषण होते | हैं, उसे ‘बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे
चक्रधर = चक्र को धारण करने वाला अर्थात् विष्णु
कुरूप = कुत्सित (बुरा) है रूप जिसका (कोई व्यक्ति)
बड़बोला = बड़े बोल बोलने वाला (कोई व्यक्ति)
लंबोदर = लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेश
महात्मा = महान् है आत्मा जिसकी (व्यक्ति-विशेष)
सुलोचना = सुन्दर हैं लोचन (नेत्र) जिसके (स्त्री विशेष)
आजानुबाहु = अजानु (घुटनों तक) लंबी हैं भुजाएं जिसकी (व्यक्ति-विशेष)
दिगंबर = दिशाएं ही हैं वस्त्र जिसके अर्थात् नग्न।
राजीव-लोचन = राजीव (कमल) के समान लोचन (नेत्र) हैं जिसके (व्यक्ति-विशेष)
चंद्रमुखी = चंद्र के समान मुख है जिसका (कोई स्त्री)
चतुर्भुज = चार हैं भुजाएं जिसकी अर्थात् विष्णु
अलोना = (अ) नहीं है लोन (नमक) जिसमें ऐसी कोई पकी सब्जी
अंशुमाली = अंशु (किरणें) हैं माला जिसकी अर्थात् सूर्य
लमकना = लंबे हों कान जिसके अर्थात् चूहा
तिमंज़िला = तीन हैं मंज़िल जिसमें वह मकान
अनाथ = जिसका कोई नाथ (स्वामी या संरक्षक) न हो (कोई बालक)
असार = सार (तत्व) न हो जिसमें (वह वस्तु)
पंचानन = पांच हैं आनन जिसके अर्थात् सिंह
सहस्रबाहु = सहस्र (हज़ार) हैं भुजाएं जिसकी अर्थात् दैत्यराज
षट्कोण = षट् (छः) कोण हैं जिसमें (वह आकृति)

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सही उत्तर 'कर्मधारय समास​' होगा। 'नीलकमल' कर्मधारय समास का उदाहरण है। 'नीलकमल' का समास विग्रह होगा - नीला है कमल जो।