Short Note Show "नयी दिल्ली में सब था... सिर्फ़ नाक नहीं थी।" इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? Advertisement Remove all ads Solutionइस कथन के माध्यम से लेखक ब्रिटिश सरकार का भारत में सम्मान को प्रदर्शित करता है। उसने इस कथन में ब्रिटिश सरकार पर व्यंग्य कसा है। बेशक भारतीय समाज उनकी चमक से नहाया हुआ हो पर उनके लिए भारतीयों के मन में सम्मान ज़रा भी नहीं है। वे सिर्फ़ दिखावे के लिए चाटूकारिता करते हों पर मन में अब भी वही फाँस फसी है। Concept: गद्य (Prose) (Class 10 A) Is there an error in this question or solution? Advertisement Remove all ads Chapter 2: जॉर्ज पंचम की नाक - प्रश्न-अभ्यास [Page 16] Q 10Q 9Q 11 APPEARS INNCERT Class 10 Hindi - Kritika Part 2 Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक Advertisement Remove all ads Try our Mini CourseMaster Important Topics in 7 DaysLearn from IITians, NITians, Doctors & Academic Experts Dedicated counsellor for each student 24X7 Doubt Resolution Daily Report Card Detailed Performance Evaluation view all courses RELATED QUESTIONS : ज NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 ज NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 ज NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 प NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 अ NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 न NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 ‘ NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 स NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 र NCERT Hindi - कृतिका भाग 2 'नयी दिल्ली में सब था... सिर्फ़ नाक नहीं थी।' इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? इस कथन के माध्यम से लेखक ब्रिटिश सरकार का भारत में सम्मान को प्रदर्शित करता है। उसने इस कथन में ब्रिटिश सरकार पर व्यंग्य कसा है। एलिजाबेथ एवम् प्रिंस फ़िलिप के आने पर चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी की ज़िन्दा नाक काटकर ज़ार्ज पंचम की लाट में लगा देने की अपमान जनक बात सोचना और करना। यदि सच में दिल्ली के पास नाक होती तो इतना बखेड़ा खड़ा न करके सीधे ज़ार्ज पंचम के लाट को ही हटवा दिया होता। इसका एक अर्थ यह होता है कि भारत में अपना शासन खो चुके अंग्रेजों के प्रति लोगों के मन में अब कोई मान-सम्मान नहीं बचा था, और साथ ही इस से हमारे प्रशासन की कमज़ोर एवं त्रुटिपूर्ण व्यवस्था का भी पता चलता है। 290 Views आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है- इस प्रकार की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर अत्यंत नकारात्मक और हानिकारक प्रभाव डालती है। इस तरह की पत्रकारिता नौजवान पीढ़ी को नकल करने की ही शिक्षा दे रही है। यह युवा पीढ़ी के चारों ओर चर्चित हस्तियों की जीवन-शैली का ऐसा भ्रम-जाल बुन देती है, जिसमें उलझकर युवा पीढ़ी और आम जनता अपने लक्ष्यों और कर्तव्यों से भटककर अपराध के दल-दल में फँस जाती है। राष्ट्र को सही दिशा में चलाने के लिए यह आवश्यक है कि पत्रकारिता का प्रत्येक विषय समस्त नागरिकों के हित में हो न की लोगों को पथ भ्रष्ट करने के लिए हो। 673 Views रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे? रानी एलिज़ाबेथ के दरजी की परेशानी का कारण रानी की वेशभूषा थी। वह उसकी नई पोशाकों को बनाने के लिए परेशान था। दरजी यह सोच कर परेशान हो रहा था की भारत-पाकिस्तान और नेपाल यात्रा के समय रानी किस अवसर पर क्या पहनेंगी। दरजी की परेशानी तर्कसंगत थी। यह इसलिए क्योंकि रानी इस यात्रा पर अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहीं थी। अर्थात् उनके कपड़ों का उनकी मर्यादा के अनुकूल होना जरूरी था। रानी की वेशभूषा तैयार करने में यदि उससे कोई चूक हो जाती, तो उसे रानी के क्रोध का सामना करना पड़ता। 442 Views 'और देखते ही देखते नयी दिल्ली का काया पलट होने लगा' - नयी दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे ? इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ की आने की संकेत पाते ही नई दिल्ली की काया पलट होने लगा। और इसके लिए हर स्तर पर अनेक प्रयत्न किये
गए होंगे, जैसे - 393 Views आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है - आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान सम्बंधि आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है वह न केवल अनावश्यक है, बल्की समाज की उन्नति के लिए बाधक भी है। यह एक निम्न स्तर की भटकी हुई पत्रकारिता है। पत्रकारिता लोकतंत्र का वह मुख्य स्तम्भ है, जो समाज के अधिकारों के प्रहरी के रूप में समाज तथा राष्ट्र दोनों के विकास मैं महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। किन्तु इस प्रकार की पत्रकारिता जिससे सामान्य ज्ञान नहीं बढ़ता, न ही इससे आम आदमी के जीवन में कोइ लेना-देना है, समाज को सिर्फ हानि पहुँचाती है। यह व्यक्ति-विशेष की निजी जीवन में अनुचित ताक-झाँक है जो हमारी सभ्यता व संस्कृति के विपरीत है। 634 Views सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है। सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी गुलाम और औपनिवेशिक मानसिकता को प्रकट करती है। सरकारी लोग उस जॉर्ज पंचम के नाम से चिंतित है जिसने न जाने कितने ही कहर ढहाए। उसके अत्याचारों को याद न कर उसके सम्मान में जुट जाते हैं। सरकारी तंत्र अपनी अयोग्यता, अदूरदर्शिता, मूर्खता और चाटुकारिता को दर्शाता है। 833 Views नई दिल्ली में सब था इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?Answer : नई दिल्ली में सब था, सिफ नाक नहीं थी- यह कहकर लेखक भारत के आजाद हो जाने पर भी उसके मान-सम्मान का अबतक वापस न आ पाने क बारे में दुख व्यक्त करता है। वह कहना चाहता है कि गुलामी के जंजीरों में जकङे रहने से भारतीय अपने मान-सम्मान के बारे में भूल से गये हैं।
जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के लिए क्या क्या इंतजाम किए गए थे?जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के लिए क्या-क्या इंतजाम किए गए थे? जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के लिए हथियार बंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे। किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई उनकी नाक तक पहुँच जाए। भारत में जगह-जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं।
जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर किसी भारतीय बच्चे तक की नाक फिट नहीं हुई इन पंक्तियों के द्वारा लेखक क्या कहना चाहता है?हमें अपने शहीदों का सदैव सम्मान करना चाहिए जिनके कारण हमें यह आजादी प्राप्त हुई है। जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चों की नाक फिट न होने की बात से लेखक इस ओर संकेत करना चाहता है कि भारतीय नेता और शहीद हुए भारतीय बच्चों का सम्मान जॉर्ज पंचम के सम्मान से कई गुना बढ़ा है।
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