मंथरा ने कैकई को क्या सलाह दी थी?... Show चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। मंत्रा ने कैसे हो क्या सलाह दी कि तुम राजा दशरथ से दो जननांगों की भरत को राजगद्दी मिलते हैं और दूसरा की राम को 14 वर्ष का वनवास Romanized Version 1 जवाब This Question Also Answers:
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Katha Class 6 Question Answers Chapter 3 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अभ्यास प्रश्न अति लघु उत्तरीय प्रश्न 1. राम के राज्याभिषेक के समय भरत और शत्रुघ्न कहाँ थे? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का निर्णय क्यों और किस प्रकार लिया? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 3 Summary राजा दशरथ बूढे हो चले थे। उनके दिल में राम के राज्याभिषेक की इच्छा बची हई थी। दशरथ के लिए राम प्राणों से भी प्यारे थे। राम की विद्वता, विनम्रता और पराक्रम से सभी प्रभावित थे। सारी प्रजा राम को चाहती थी। राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ से विचार-विमर्श किया और राज-काज राम को सौंपने का निश्चय हुआ। उसके बाद दरबार में राम को राजा बनाने की घोषणा की गई। समस्त सभा ने राजा दशरथ के प्रस्ताव का स्वागत किया। चारों ओर राम की जय-जयकार होने लगी। राजा जनक ने कहा- “शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए। मेरी इच्छा है कि राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ कल सुबह कर दी जाएँ।” राजा दशरथ को यह जानकर काफ़ी संतोष हुआ कि प्रजा राम को राजा बनाये जाने से काफी खुश है। यह खबर पूरे नगर में फैल गई और राम के राज याभिषेक की तैयारियाँ होने लगीं। उस समय भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में नहीं थे। वे अपने ननिहाल केकयराज के यहाँ गए हए थे। भरत को अयोध्या की घटनाओं की सूचना नहीं थी। उन्हें राज्याभिषेक की भी सूचना नहीं थी। राजा दशरथ ने इस संबंध में राम से चर्चा की। उन्होंने कहा कि”भरत यहाँ नहीं हैं पर मैं चाहता हूँ कि राज्याभिषेक का कार्यक्रम न रोका जाए। प्रजा ने तुम्हें अपना राजा चुना है। तुम राजधर्म का पालन करना।” राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ कैकेयी की दासी मंथरा भी देख रही थी। मंथरा कैकेयी की मुँहलगी दासी थी। कैकेयी का हित उसके लिए सर्वोपरि था। यह सब देखकर वह जलभुन गई। उसने राजमहल में जाकर कैकेयी को भड़काया कि तेरे ऊपर भयानक विपदा आने वाली है। यह सोने का समय नहीं है। महाराज दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया है। अब राम युवराज होंगे। यह एक षड्यंत्र है। भरत को जान-बूझकर ननिहाल भेज दिया गया है। समारोह के लिए बुलाया तक नहीं है। कैकेयी ने पहले मंथरा को इस प्रकार के विचारों के लिए डाँटा-फटकारा। जब उसने और भड़काया तो कैकेयी पर मंथरा की बातों का असर होने लगा। उसका सिर चकरा गया। आँखों में आँसू आ गए। उसे प्रसन्नता की जगह क्रोध आने लगा। वह घबड़ाकर मंथरा से बोली तम्हीं बताओ कि मैं क्या करूँ। ‘कैकेयी ने इससे बचाव का उपाय पूछा तो मंथरा ने रानी को याद दिलाया-महाराज दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दिए थे। उसने बताया कि ‘एक वरदान के लिए भरत को राज गद्दी तथा दूसरे वरदान के लिए राम को चौदह वर्ष का वनवास माँग लो।’ अब कैकेयी को मंथरा की बात अच्छी लगने लगी। कैकेयी इसके लिए तैयार हो गई। कैकेयी कोप भवन में चली गई। राजा दशरथ वहाँ पहुँचे। वहाँ का दृश्य देखकर वे हैरान रह गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। महाराज दशरथ ने कैकेयी से पूछा कि “तुम्हें क्या दुख है। तुम अस्वस्थ हो राज वैद्य को बुलाया जाए।” पर कोई उत्तर नहीं मिला। कैकेयी रोती रही। दशरथ कैकेयी से बोले कि “तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तम्हें प्रसन्न देखना चाहता हूँ।” किंतु कुछ भी उत्तर न मिला। अब राजा दशरथ भूमि पर बैठ गए। विनती करते रहे। कैकेयी ने कहा कि ‘हाँ, मैं बीमार हूँ। मैं अपनी बीमारी के बारे में आपको बताऊँ गी लेकिन पहले आप मुझे एक वचन दें कि जो माँगू उसे पूरा करेंगे।’ राजा दशरथ ने राम की सौगंध खाकर वरदान देने का संकल्प दोहराया। कैकेयी ने मौका देखकर कह दिया कि कल सुबह राम के स्थान पर भरत का राज्याभिषेक होना चाहिए और राम को चौदह वर्ष का वनवास हो। यह सुनकर राजा दशरथ का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। वे अवाक रह गए उनका सिर चकराने लगा और मूर्छित होकर गिर पड़े। कुछ देर में राजा को होश आया। वे बड़े कातर भाव से कैकेयी से बोले-‘यह तुम क्यों कह रही हो। मुझे विश्वास नहीं होता कि मैंने सही सुना है।’ कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी रही। कैकेयी ने स्मरण दिलाया कि अपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। अगर आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष खाकर आत्महत्या कर लूंगी। यह कलंक आपके माथे होगा।’ राजा दशरथ यह सुन नहीं सके । वे बेहोश होकर गिर पड़े। बीच-बीच में होश आता रहा। वे रात भर कैकेयी के सामने गिड़गिड़ाते रहे, डराते रहे, धमकाते रहे पर कैकेयी टस-से-मस नहीं हुई। सारी रात इसी प्रकार बीत गई। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 14 पृष्ठ संख्या 15 पृष्ठ संख्या 16 पृष्ठ संख्या 17 पृष्ठ संख्या 19 मंथरा ने कैकई को क्या सुझाव दिया?राम विवाह के बाद रानी कैकेयी की दासी मंथरा उनके मन में राम के प्रति कुंठा उत्पन्न करने के लिए राजकाज भरत को दिलवाने के लिए राम को वनवास भेजने को कहती है। मंथरा की बातों में आकर कैकेयी राजा दशरथ से भरत को राज सिंहासन और राम को वनवास भेजने का वरदान मांगती है।
मंत्रा ने रानी के कई को क्या सलाह दी?Answer: मंथरा ने रानी कैकयी को कहा कि वो महाराज को कहे कि राम को 14 साल के लिए वनवास दे तथा अपने पुत्र को राज दे दे।
मंथरा ने कैकेयी को मैले कपड़े पहनकर कहाँ जाने की सलाह दी?उत्तर: मंथरा ने रानी कैकेयी से कहा कि वह मैले कपड़े पहनकर कोप भवन में चली जाए। महाराज आएँ तो उनकी ओर मत देखना, बात मत करना। वे तुम्हारा दुख नहीं देख सकेंगे।
रानी कैकेयी के दो वरदान क्या थे?कैकई ने राजा दशरथ से पूर्व में दिये वरदान मांगे। इनमें भरत को राजगद्दी और राम को 14 वर्ष का वनवास मांगा। उन्होंने रानी कैकई को कोई अन्य वर मांगने को कहा लेकिन वह दो वरों में अड़ी रही। रघुकुल की मर्यादा पर राजा दशरथ को दोनों वर देने पड़े।
मंथरा कौन थी तथा उसने क्या किया?किवदंतियों के अनुसार पूर्वजन्म में मंथरा दुन्दुभ नाम की एक गन्धर्व कन्या थी। एक अन्य कथा के अनुसार लोमश ऋषि के अनुसार मंथरा पूर्वजन्म में प्रह्लाद के पुत्र विरोचन की कन्या थी। वाल्मीकि रामायण में इंद्र द्वारा भेजी गई अप्सरा माना है, जो भगवान राम को वनवास दिलाने आई थी।
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