मुंह पका खुर पका रोग किसकी कमी से होता है? - munh paka khur paka rog kisakee kamee se hota hai?

मुंह पका खुर पका रोग किसकी कमी से होता है? - munh paka khur paka rog kisakee kamee se hota hai?

मुंहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD या hoof-and-mouth disease) विभक्त-खुर वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणुजनित रोग है। यह गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओं एवं हिरन आदि जंगली पशुओं को होता है।

रोगकरक[संपादित करें]

A,O,C ,सेट-1, सेट-2, सेट-3,

लक्षण[संपादित करें]

इस रोग के आने पर पशु को तेज बुखार हो जाता है। बीमार पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे ओंठ के अन्दर का भाग खुरों के बीच की जगह पर छोटे-छोटे दाने से उभर आते हैं, फिर धीरे-धीरे ये दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं। समय पाकर यह छाले फल जाते हैं और उनमें जख्म हो जाता है।

ऐसी स्थिति में पशु जुगाली करना बंद कर देता है। मुंह से तमाम लार गिरती है। पशु सुस्त पड़ जाते है। कुछ भी नहीं खाता-पीता है। खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है। पैरों के जख्मों में जब कीचड़ मिट्टी आदि लगती है तो उनमें कीड़े पड़ जाते हैं और उनमें बहुत दर्द होता है। पशु लंगड़ाने लगता है। दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन एकदम गिर जाता है। वे कमजोर होने लगते हैं। समय पाकर व इलाज होने पर यह छाले व जख्म भर जाते हैं परन्तु संकर पशुओं में यह रोग कभी-कभी मौत का कारण भी बन सकता है।

यह एक विषाणु जनित बीमारी है जो फटे खुर (Cloven Footed) वाले पशुओं को ग्रसित करती है। इसकी चपेट में सामान्यतः गो जाति, भैंस जाति, भेड़, बकरी एवं सूकर जाति के पशु आते है। यह छूत की बीमारी है।

मुख्य लक्षण

  • प्रभावित होने वाले पैर को झाड़ना (पटकना)
  • पैरो में सूजन (खुर के आस-पास)
  • लंगड़ाना
  • अल्प अवधि (एक से दो दिन) का बुखार
  • खुर में घाव होना एवं घावों में कीड़ा (Maggots) हो जाना
  • कभी-कभी खुर का पैर से अलग हो जाना
  • मुँह से लार गिरना
  • जीभ, मसूड़े, ओष्ट आदि पर छाले पड़ जाते हैं, जो बाद में फूटकर मिल जाते है
  • उत्पादन क्षमता में अत्यधिक ह्रास
  • बैलों की कार्य क्षमता में कमी
  • प्रभावित पशु स्वस्थ्य होने के उपरान्त भी महीनों हांफते रहता है
  • बीमारी से ठीक होने के बाद भी पशुओं की प्रजनन क्षमता वर्षों तक प्रभावित रहती है।
  • शरीर के रोयें तथा खुर बहुत बढ़ जाते हैं
  • गर्भवती पशुओं में गर्भपात की संभावना बनी रहती है।

उपचार[संपादित करें]

  • रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम एवं पीपल के छाले का काढ़ा बना कर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए।
  • प्रभावित पैरों को फिनाइल-युक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खी को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए।
  • मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी अर्थात 1 ग्राम फिटकरी 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए। इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए।
  • पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।

सावधानी[संपादित करें]

  • प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर अन्य स्वस्थ्य पशुओं से दूर रखना चाहिए।
  • पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी हाथ-पांव अच्छी तरह साफ कर ही दूसरे पशुओं के संपर्क में जाना चाहिए।
  • प्रभावित पशु के मुँह से गिरने वाले लार एवं पैर के घाव के संसर्ग में आने वाले वस्तुओं पुआल, भूसा, घास आदि को जला देना चाहिए या जमीन में गड्ढा खोदकर चूना के साथ गाड़ दिया जाना चाहिए।

टीकाकरण[संपादित करें]

इलाज से बेहतर है बचाव के सिद्धान्त पर छः माह से ऊपर के स्वस्थ पशुओं को खुरहा-मुँहपका रोग के विरूद्ध टीकाकरण करवाना चाहिए।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • भैंस में मुंहपका खुरपका रोग[मृत कड़ियाँ]
  • 2007 Outbreak Foot and Mouth Disease Timeline
  • Animal viruses
  • Current status of Foot and Mouth worldwide at International des Epizooties [1]
  • Foot-and-mouth disease in man
  • Foot and Mouth Livestock Symptoms Guide and Images
  • United States Animal Health Association FOOT-AND-MOUTH DISEASE [2]
  • The Lab-On-Site Project has more information in Foot and Mouth Disease Virus.

खुरपका और मुंहपका रोग की रोकथाम को कवायद तेज

सहारनपुर। बरसात और बदलते मौसम के दौरान पशुओं में फैलने वाले खुरपका और मुंहपका रोग की रोकथाम को पशुपालन विभाग ने कवायद तेज कर दी है। इसके तहत 20 जून तक जनपद में आठ लाख वैक्सीन पशुओं को लगाकर टीकाकरण अभियान पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं।
खुरपका और मुंहपका रोग पशुओं में तेजी से फैलने वाला विषाणु जनित रोग है, जिससे पशुओं के उत्पादन एवं कार्यक्षमता पर कुप्रभाव पड़ता है। इस रोग की रोकथाम को चल रहे टीकाकरण के 22वें चरण के अभियान को तेज कर दिया है। विभाग मुताबिक जनपद में 20 जून के बाद कभी मानसून की बारिश हो सकती है। इसी को देखते हुए अभियान को 20 जून तक पूरा किए जाने का लक्ष्य रखा है। इस कार्य में विभाग की 34 टीमें लगी हैं और चार टीमों को आरक्षित रखा गया है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी वाईपी सिंह का कहना बदलते मौसम के साथ मानसून की बारिश होने पर रोग फैलने का खतरा बना है। टीकाकरण अभियान को 20 जून तक पूरा किया जाएगा। इसको विभाग की टीमों के निर्देश जारी किए हैं।

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पिछले वर्ष हुई थी कई पशुओं की मौत
सहारनपुर। खुरपका और मुंहपका रोग की चपेट में आकर पिछले वर्ष गांव नवादा तिवाया में बरसात के दौरान करीब 15 पशुओं की मौत हुई थी। इसी तरह बेहट के घाड़ क्षेत्र में भी कई पशुओं की जान गई थी। विभाग का दावा है कि इस बार अभी तक कोई केस सामने नहीं आया है, लेकिन बारिश होने के साथ रोग फैलने का खतरा बना है। इसी को देखते हुए टीकाकरण अभियान को तेज कर दिया है।
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रोग के लक्षण
-- पशु के मुंह से से अत्यधिक लार का टपकना
-- जीभ और तलवे पर छालों का उभरना एवं जीभ का बाहर आ जाना
-- पशु के जुगाली करना बंद कर देना
-- दूध उत्पादन में करीब 80 प्रतिशत की कमी।
-- पशुओं का गर्भपात होना
-- बछड़ों में अत्यधिक बुखार आने पर मृत्यु हो जाना।
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ऐसे करें बचाव
-- रोग का पता लगने पर पशु को अन्य पशुओं से तुरंत दूर किया जाए
-- दूध निकालने वाले व्यक्ति को हाथ और मुंह साबुन से धोना चाहिए
-- प्रभावित क्षेत्र को सोडियम कार्बोनेट घोल पानी मिलाकर धोना चाहिए
-- चिकित्सकों की सलाह लेकर पशु के तुरंत टीका लगवाने के साथ नियमित उपचार कराएं।
-- स्वस्थ एवं बीमार पशु को अलग-अलग रखें
-- बीमार पशुओं को स्पर्श करने के बाद व्यक्ति को सोडियम कार्बोनेट घोल से अपने हाथ पैर धोने चाहिए। क्योंकि, यह रोग मनुष्य भी फैल सकता है।
-- जिस जगह पर पशु को रखते हों, वहां ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव करें।
-- टीकाकरण के दौरान प्रत्येक पशु के लिए अलग-अलग सुई का प्रयोग कराया जाए।
-- पशु के ठीक हो जाने पर 20 दिन बाद ही उसे दूसरे पशुओं के पास लाना चाहिए।

खुर पका मुंह पका रोग क्यों होता है?

खुरपका-मुंहपका रोग कीड़े से होता है, जिसे आंखें नहीं देख पाती हैं। इसे विषाणु कहते हैं। यह रोग किसी भी उम्र की गाय व भैंस में हो सकता है। हालांकि, यह रोग किसी भी मौसम में हो सकता है।

खुरपका रोग कैसे होता है?

ऐसे फैलता है यह रोग यह रोग बीमार पशु के सीधे सम्पर्क में आने, पानी, घास, दाना, बर्तन, दूध निकलने वाले व्यक्ति के हाथों से, हवा से तथा लोगों के आवागमन से फैलता है। रोग के विषाणु बीमार पशु की लार, मुंह, खुर व थनों में पड़े फफोलों में बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं।

खुरपका क्या है?

मुंहपका–खुरपका रोग (FMD) विभक्त खुर/दो खुरों वाले पशुओुं जैसे गाय, भैंस, भेंड, बकरी, हिरन, भेड़, सूअर तथा अन्य जंगली पशुओ में होने वाला एक अत्यंत संक्रामक एवं घातक विषाणु जनित वायुकोशीय रोग है। गायों और भैंसों को खुरपका रोग काफ़ी प्रभावित करता है। यह काफी तेज़ी से फैलने वाली एक संक्रामक बीमारी है

मुंहपका रोग क्या है?

(Foot-and-mouth disease-FMD) FMD गाय, भैंस और हाथी आदि में होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह खासकर दूध देने वाले जानवरों के लिये अधिक हानिकारक होता है। पशुओं के जीभ और तलवे पर छालों का होना जो बाद में फट कर घाव में बदल जाते हैं। इसके पश्चात् जानवरों के दुग्ध उत्पादन में भी लगभग 80 प्रतिशत तक की गिरावट आ जाती है।