खारे पानी में भी हो सकेगी बंपर पैदावार
| Updated: Nov 24, 2010, 4:00 AM Show
बल्लभगढ़जिले में पानी के खारेपन की वजह से फसलों के खराब होने से निजात जल्द ही मिल जाएगी। इससे निपटने के लिए माइक्रो इरिगेन तकनीक का सहारा लिया जाएगा।...
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ए. डी. कर्वे एवं एन. जे. झेंडे आसपास की घटनाओं का सूक्ष्म अवलोकन करना और इन अवलोकनों का सैद्धान्तिक जानकारी के साथ तालमेल बिठाना, व्यावहारिक विज्ञान के ये दो मुख्य घटक हैं। इस प्रक्रिया से ही नए आविष्कार जन्म लेते हैं और नए तंत्र विकसित होते हैं। समुद्र यानी पानी का अथाह भण्डार, परन्तु सभी जानते हैं। कि पेड़-पौधों व फसलों की सिंचाई के लिए यह पानी सर्वथा अनुपयुक्त होता है। जिस पौधे को समुद्र के पानी से सींचा जाए, वह पौधा कुछ ही समय में मुरझा जाता है। आखिर, ऐसा क्यों होता है?आपने शक्कर को पानी में घुलते हुए देखा है। मिश्रण को हिलाने से घुलने की क्रिया तेज़ होती है। लेकिन मिश्रण को स्थिर रखने पर भी कुछ समय पश्चात शक्कर और पानी का समांगी घोल (Homogeneous solution) प्राप्त होता है। यहां शक्कर एक विलेय पदार्थ (Solute) है और पानी विलायक (Solvent) है। घुलने की प्रक्रिया विसरण के सिद्धांत (Diffsion) पर निर्भर है। इस सिद्धांत के अनुसार विलयन में, विलेय के अणु अधिक सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थान की ओर गति करते हैं। इसी प्रकार विलायक के अणु भी अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर बढ़ते हैं। कालान्तर में विलेय और विलायक के अणु एक समांगी मिश्रण बना लेते हैं, जिसे विलयन कहते हैं। वनस्पति और प्राणियों की जीवित कोशिकाओं में जल के अतिरिक्त कई प्रकार के विलेय पदार्थ जैसे शर्करा, प्रोटीन, कार्बनिक अम्ल आदि उपस्थित रहते हैं। जीवित कोशिका को पानी में डालने पर वह फूलती जाती है और एक निश्चित आकार ग्रहण करती है। खीर में डाले गए किशमिश के दानों को आपने देखा होगा। किशमिश स्वाद में मीठी होती है क्योंकि इसमें शर्करा के अणु उपस्थित रहते हैं। दो-चार किशमिश के दानों को कुछ समय के लिए पानी में डाल दीजिए, दाने फूल जाते हैं। इससे मालूम पड़ता है कि बाहरी माध्यम से पानी के अणु किशमिश के अन्दर प्रवेश कर गए हैं। परन्तु क्या इसी तरह किशमिश के अंदर की मिठास भी बाहर के पानी में आ गई है। इसे जांचने के लिए यदि आप पानी को चखेंगे तो मीठा नहीं लगेगा। इससे पता चलता है कि किशमिश के अन्दर से शर्करा के अणु बाहर नहीं आ पा रहे हैं। इसका क्या कारण है? क्यों होता है ऐसा समुद्र के खारे जल में जबकि अन्य वनस्पति मुरझा जाती है, मेन्ग्रोब वनस्पति स्वयं को इस नमकीन दलदल में हरा-भरा कैसे रख पाती है? इस रहस्य को जानने के लिए हमने कुछ प्रयोग किए। समुद्र किनारे से कुछ दूरी पर हमने एक फुट ऊंचाई की मिट्टी की क्यारियां बनाई और उनमें मेन्ग्रोव खारे पानी से प्रयोगः ऐसे पौधे चुने जिनमें समुद्री जल की लबणीयता को सहन करने की क्षमता हो। ईंटों की दीवार के बीच रेत भरकर क्यारियां बनाई गई। उनमें ये पौधे लगाए। फिर उन्हें रोज़ इतना समुद्री पानी देते थे कि पानी रेतीली परत में से बह कर बाहर निकल जाए। दिन भर में वाष्पन की वजह से जो थोड़े से लवण रेत में इकट्ठे हो जाते थे, वे अगले दिन समुद्री पानी से सींचने पर बाहर निकल जाते थे। इससे रेत में लवणों की सांद्रता बढ़ नहीं पाती थी और पौधे भी जीवित बने रहते थे। में पाई जाने वाली प्रजातियों के कुछ पौधे लगाए। पौधों को सींचने के लिए उसी समुद्री जल का प्रयोग किया जिसमें मेन्ग्रोव पनपते हैं। हमने देखा कि कुछ समय पश्चात पौधे मुरझा गए। प्रयोग के परिणाम से यह प्रश्न उठता है कि मिट्टी की क्यारी में जो वनस्पति समुद्र के खारे पानी को सह नहीं सकती, वह समुद्र किनारे के नमकीन दलदल में स्वयं को तरोताज़ा और हरा-भरा कैसे रख पाती है? कुछ सोच-विचार के बाद इस प्रश्न का हल हमने ढूंढ निकाला। ज्वार-भाटे का असर बीज और फूल: मेन्ग्रोव की एक टहनी जिसमें बीज लगा दिखाई दे रहा है। टहनी के पास मेन्ग्रोब का फूल भी। दिखाया गया है। मेन्यौव के बीजों की एक खास बात यह होती है कि शाखा पर लगे-लगे ही ये अंकुरित हो जाते हैं। बीज से पौधे का बननाः समुद्री तट के दलदली क्षेत्र में मेन्ग्रोव के वृक्षः हिन्दुस्तान में सुन्दरवन मेन्ग्रोव का सबसे बड़ा जंगल है। यहां 65 प्रजाति के पेड़ पाए जाते हैं जो सालभर हरे-भरे रहते हैं। मेन्ग्रोव में विशेष तरह की जड़ प्रणाली पाई जाती है और कुछ प्रजातियों में समुद्री पानी की लवणीयता से निपटने के लिए विशेष मेकेनिज्म होते हैं। जैसे सफेद मेन्ग्रोव की पत्तियों में मौजूद अंचियां व राइजोफोरा की जड़ें, इन पेड़ों में लवणीयता को घातक सीमा के अंदर बनाए रखती हैं। के कारण पौधे मर जाते हैं, यानी कि रसह्रास के कारण वे खत्म हो जाते हैं। अंततः मैन्ग्रोव से सबक लेकर हमने एक ऐसा तंत्र विकसित किया जिसके ज़रिए समुद्र के खारे पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सके। अपने अनुभव और अनुसंधानों से हमने पाया कि कुछ सीमित क्षेत्रों में ही इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है। सिंचाई के लिए इस
विधि का उपयोग करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है: इस तरीके को अपनाते हुए समुद्री जल से सिंचाई के प्रत्यक्ष प्रयोग हमने दो जगह करके दिखाए। एक स्थान गोआ राज्य के दोनापौला स्थित नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ ओशिएनोग्राफी और दुसरा महाराष्ट्र के देवगढ़ जिले का ग्राम सौंदा था। प्रयोग के लिए हमने समुद्र किनारे के नजदीक 30 से. मी. ऊंचाई की रेत की क्यारियां बनाईं। रेत-कणों का व्यास 1 से 4 मि.मी. था। इन क्यारियों में लवण सहन करने वाली कुछ वनस्पतियां लगाई गई। क्यारियों से जल का निकास सुनिश्चित करते हुए प्रतिदिन पर्याप्त समुद्री जल से सिंचाई की गई। दिन में जल के वाष्पीकरण से क्यारियों में नमक की मात्रा बढ़ जाती थी, लेकिन दूसरे दिन दिए जाने वाले ताज़ा समुद्री जल से इसका आधिक्य धुल जाता था। इस प्रकार लवणों की मात्रा को नियंत्रित किया गया। प्रयोग के दौरान क्यारियों में लगाई गई सभी वनस्पतियां जीवित रहीं और इनकी वृद्धि दर भी सामान्य रही। तीन वर्ष के अनुसंधान से हमने पाया कि उपरोक्त विधि से सिंचाई के द्वारा व्यापारिक महत्व की निम्न वनस्पतियों की
पैदावार की जा सकती है। मेंग्रोव की जड़ प्रणाली मेन्ग्रोव में पाए जाने वाले पौधों का जड़तंत्र अन्य पौधों से काफी भिन्न होता है। चूंकि मेन्ग्रोव के दलदली इलाकों में जमीनी परिस्थितियां अत्यंत भिन्न होती हैं और उन परिस्थितियों में जड़ें अपने सामान्य काम कर पाएं, इसलिए उनमें अलग तरह के जड़तंत्र का विकास (Evolution) हुआ है। मेन्ट्रोब
में पाई जाने वाली कुछ प्रजातियों में मोटी-मोटी जड़ें जमीन क्षैतिज के समांतर फैली रहती हैं ताकि पौधों को चौड़ा आधार मिले। चूंकि दलदली जमीन में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है इसलिए अक्सर ऐसी जड़ों में से जमीन से बाहर की ओर, दूसरे प्रकार की जड़ें (न्यूमेटोफोर) निकलती हैं जिनका काम हवा से गैसों का आदान-प्रदान करना है। पौधा आसानी से उखड़ नहीं जाए इसके लिए तीसरी तरह की 'लंगर जों" (Anchor Roots) होती हैं, जो ज़मीन में गहराई तक जाती हैं और पौधे को स्थाइत्व प्रदान करती हैं। इनके अलावा दलदल की ऊपरी सतह से
पोषण ग्रहण करने के लिए बारीक 'पोषण जड़ों' का जाल भी बिछा रहता है। मेन्ग्रोव की एक अन्य प्रजाति में तनों के निचले हिस्से में ही मोटी-मोटी जुड़वां फूल वाले मेन्ग्रोव राइजोफोरा की जड़ प्रणाली, जिसमें जमीन में गहरे जाक पकड़ बनाने वाली जड़ें, पेड़ के लिए भोजन जुटाने वाली जड़ें, और हवाई जों साफ तौर पर देखी जा सकती हैं। सफेद मेन्ग्रोवः सफेद मेन्ग्रोव में जड़ विन्यास थोड़ा फर्क होता है। इसमें पेड़ की जड़ें अपना कैतिज विस्तार करती हैं। इनके अलावा जमीन में गहराई में जाकर पेड़ को मजबूती देने वाली जड़े भी होती है। पेड़ के लिए खाना जुटाने वाली बारीक जड़े बखूबी फैली होती हैं। क्षैतिज आधार जड़ों में से वे जड़े जमीन के ऊपर निकली होती हैं जो पेड़ के लिए श्वसन का काम करती हैं। जड़े फैल कर जमीन में चौड़ा आधार बनाती हैं। इनके अलावा इसमें नीचे की शाखाओं से 'एरियल जड़े' भी निकलती हैं जो हवा में लटकी हुई दिखती हैं, और जो मौका मिलने पर भी जमीन पर अपनी पकड़
नहीं बनातीं। वजह इस शोधकार्य से वहां कितना लाभ मिल पाएगा कहा नहीं जा सकता लेकिन कच्छ और सौराष्ट्र इलाकों में इससे काफी फायदा हो सकता है। जिन इलाकों में खारे जल के कुंए अधिक संख्या में होते हैं, उन इलाकों में भी सिंचाई की इस विधि को आजमाया जा सकता है। ए. डी. कर्वे एवं एन. जे. झेंड़े : वनस्पति शास्त्री हैं और
'आरती' (Appropriate Rural Technology Institute) के सदस्य हैं। खारे पानी में कौन कौन से पौधे होते हैं?खारे पानी की जगह आप पौधों का प्लांटेशन कर सकते है। इनमें आंवला, बेलपत्र, बेर आदि शामिल हैं। साथ ही कपास, जौ व सरसों की खेती भी कर सकते हैं।
खारे पानी से कौन कौन सी सब्जी हो सकती है?केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में खारे पानी में सब्जी उत्पादन के लिए किए जा रहे शोध के लिए तीन प्रकार की सब्जी शिमला मिर्च, हरी मिर्च व टमाटर को चुना गया है।
खारे पानी से क्या होता है?खारे पानी में नमक की मात्रा अधिक होती है और रोज के कामों और पीने के लिए यह पानी सही नहीं होता है। आसान शब्दों में कहें तो जिस पानी में मिनरल की मात्रा जैसे कि कैल्शियम, मैग्नीशियम, नमक आदि की मात्रा ज्यादा होती है, उसे खारा पानी कहते हैं।
कौन से 1 खारे पानी में भी जीवित रह सकते हैं?स्पष्टीकरण: हेलोफाइट्स वे पौधे हैं जो अत्यधिक नमक प्रभावित मिट्टी में जीवित रहने की क्षमता रखते हैं । उच्च नमक के खिलाफ यह क्षमता मुख्य रूप से दो तंत्रों के कारण है- नमक सहिष्णुता और नमक से बचाव ।
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