खीरा खाने की इच्छा होने पर भी लेखक ने क्यों इंकार कर दिया? - kheera khaane kee ichchha hone par bhee lekhak ne kyon inkaar kar diya?

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खीरा खाने की इच्छा होने पर भी लेखक ने क्यों इंकार कर दिया? - kheera khaane kee ichchha hone par bhee lekhak ne kyon inkaar kar diya?

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खीरा खाने की इच्छा होते हुए भी लेखक ने उसे खाने से इंकार क्यों कर दिया?

  • Posted by Good Student 1 year, 11 months ago

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    नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है।   पूर्व में इनकार कर चुकने के कारण आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया

    नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी और इस्तेमाल से थक कर लेट गए - इस पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।​

    खीरा खाने की इच्छा होने पर भी लेखक ने क्यों इंकार कर दिया? - kheera khaane kee ichchha hone par bhee lekhak ne kyon inkaar kar diya?

    Posted by Jazba Khan 2 weeks, 1 day ago

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    Posted by Eera Sharma 1 week, 6 days ago

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    Posted by Pragati Pragati 1 week, 5 days ago

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    Posted by Rohit Jadhav Patil 1 week, 4 days ago

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    Posted by Avinish Anand 4 days, 23 hours ago

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    Posted by Shubhamnath Keshri 1 week, 4 days ago

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    Posted by Pragati Pragati 1 week, 5 days ago

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    Posted by Muskan Manjhi 1 week ago

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    Posted by Pragati Pragati 1 week, 5 days ago

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    Posted by Pragati Pragati 1 week, 5 days ago

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    खीरा खाने की इच्छा होने पर भी लेखक ने क्यों इंकार कर दिया? - kheera khaane kee ichchha hone par bhee lekhak ne kyon inkaar kar diya?

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    खीरा खाने की इच्छा होने पर भी लेखक ने क्यों इंकार कर दिया? - kheera khaane kee ichchha hone par bhee lekhak ne kyon inkaar kar diya?

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    'लखनवी अंदाज़' पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने खीरा खाने से मना क्यों किया ?

    लेखक कुछ समय पहले नवाब साहब द्वारा रखे गए खीरे खाने के आमंत्रण को ठुकरा चुके थे, अतः अब आत्मसम्मान निभाना आवश्यक समझने के कारण उन्होंने खीरा खाने से इंकार कर दिया। 

    लेखक को खीरे खाने से इंकार करने पर अफसोस क्यों हो रहा था?


    नवाब साहब ने साधारण से खीरों को इस तरह से संवारा कि वे खास हो गए थे। खीरों की सजावट ने लेखक के मुँह में पानी ला दिया था परंतु वे पहले ही खीरा खाने से इंकार कर चुके थे। अब उन्हें अपना भी आत्म-सम्मान बचाना था। इसीलिए नवाब साहब के दुबारा पूछने पर उन्होंने मैदा (अमाशय) कमजोर होने का बहाना बनाया।

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    लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?


    लेखक ने डिब्बे में प्रवेश किया तो वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए सीट पर बैठे थे। उनके सामने खीरे रखे थे। लेखक को देखते ही उनके चेहरे के भाव ऐसे हो गए जैसे लेखक का आना अच्छा नहीं लगा। ऐसा लग रहा था जैसे लेखक ने उनके एकांत चिंतन में विघ्न डाल दिया था। इसीलिए वे परेशान हो जाते हैं। परेशानी की स्थिति में कभी खिड़की के बाहर देखते हैं और कभी खीरों को देखते हैं। उनकी असुविधा और संकोच वाली स्थिति से लेखक को लगा कि नवाब उनसे बातचीत करने में उत्सुक नहीं है।

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    निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    मूफ़स्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फुँकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नई कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए सेकंड क्लास का ही ले लिया।
    कौन-सी ट्रेन चलने के लिए उतावली हो रही थी?

    • राजधानी
    • पैसेंजर
    • गुडज़ 
    • गुडज़ 

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    निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    मूफ़स्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फुँकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नई कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए सेकंड क्लास का ही ले लिया।
    गाड़ी जाने के लिए क्या कर रही थी?

    • फूत्कार
    • फुँकार
    • चीत्कार
    • चीत्कार

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    ‘लखनवी अंदाज’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?


    ‘लखनवी अंदाज’ पाठ के लेखक यशपाल हैं। लेखक इस पाठ के माध्यम से यह बताना चाहता है कि बिना पात्रों, घटना और विचार के भी स्वतंत्र रूप से रचना लिखी जा सकती है। इस रचना के माध्यम से लेखक ने दिखावा पसंद लोगों की जीवन शैली का वर्णन किया है। लेखक को रेलगाड़ी के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। नवाब बड़े सलीके से खीरे को खाने की तैयारी करता है लेकिन उसे लेखक के सामने खीरा खाने में संकोच होता है इसलिए अपने नवाबी अंदाज में लजीज रूप से तैयार खीरे को केवल सूँघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है। नवाब के इस व्यवहार से लगता है कि वे लोग आम लोगों जैसे कार्य एकांत में करना पसंद करते हैं उन्हें लगता है कि कहीं किसी के देख लेने से उनकी शान में फर्क न आ जाए। आज का समाज भी ऐसी ही दिखावा पसंद संस्कृति का आदी हो गया है।

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    नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंतत: सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?


    नवाब साहब ने बहुत नजाकत और सलीके से खीरा काटा, उन पर नमक-मिर्च लगाया। उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाया नहीं अपितु सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया था। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्‌य वस्तु खाने में शर्म भव करते थे। लेखक को अपने डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसीलिए उन्होंने खीरे को मात्र सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।

    नवाब साहब के ऐसा करने से ऐसा लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं। वे दिखावा पसंद इंसान थे। उनके इसी प्रकार के स्वभाव ने लेखक को देखकर खीरा खाना अपमान समझा।

    गुड -शक्कर, मूँगफली, तिल, चाय, कॉफी आदि का प्रयोग किया जाता है। बरसात में कई लोग कढ़ी खाना अच्छा नहीं समझते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी को चावल नहीं खाने चाहिए।

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    खीरा खाने की इच्छा होते हुए भी लेखक ने इंकार क्यों कर दिया?

    खीरा खाने की इच्छा होते हुए भी लेखक ने उसे खाने से इंकार क्यों कर दिया? नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है। पूर्व में इनकार कर चुकने के कारण आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया

    लेखक ने मुँह में पानी आने पर भी खीरा खाने से क्यों इंकार कर दिया ?( 2?

    खीरे को देखकर लेखक के मुंह में भी पानी आ गया। नवाब साहब ने एक बार फिर लेखक से खीरा खाने का आग्रह किया किन्तु लेखक पहले ही मना कर चुके थे इसलिए अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए लेखक ने मना कर दिया, उन्होंने बहाना बनाया कि उनका अमाशय खराब है हालांकि उनकी खीरा खाने की बहुत इच्छा थी।

    लेखक ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया था?

    ✎... 'लखनवी अंदाज' पाठ में लेखक ने नवाब साहब से खीरा ना खाने का यह कारण बताया कि उसे इच्छा नहीं है। जब नवाब साहब ने लेखक से कहा कि 'वल्लाह शौक कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है। ' तब लेखक ने अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए नवाब साहब को उत्तर दिया, 'शुक्रिया! इस वक्त तलब महसूस नहीं हो रही।

    लखनवी अंदाज़ पाठ के लेखक ने खीरे को अपदार्थ वस्तु क्यों कहा?

    Answer:खीरे को अपदार्थ वस्तु इसलिए कहा गया हैं क्योंकि क्योंकि उन्हें यह लजीज नही लगा होगा क्योंकि नवाबों के लिहाज से खीरा बहुत ही आम चीज है क्योंकि नवाब बहुत ही शौकीन होते हैं और वे महंगी और लजीज चीजों का आनंद ही लेना चाहते है।