कवयित्री के मन में रह रहकर हूक क्यों उठ रही है? - kavayitree ke man mein rah rahakar hook kyon uth rahee hai?

विषयसूची

  • 1 कवित्री के मन में बार बार हूक क्यों उठ रही है?
  • 2 हुक का नियम क्या कहता है?
  • 3 कवयित्री के मन में क्या उठ रही है?
  • 4 हुक का नियम कहाँ तक अच्छा है?
  • 5 कवि के मन में क्या होती है?
  • 6 कवयित्री के दिल में क्या हूक सी उठती है और क्यों?

कवित्री के मन में बार बार हूक क्यों उठ रही है?

इसे सुनेंरोकें(ख) कवयित्री के मन में रह-रह हूक क्यों उठ रही है? तथा इसी प्रयास में उसने अपना सारा जीवन बिता दिया । क्योंकि उनके मन में घर जाने की चाह है अर्थात् परमात्मा किंतु उसे ईश्वर के दर्शन नहीं हुए। से मिलने की इच्छा है किंतु वह पूरी नहीं हो रही है।

हुक का नियम क्या कहता है?

इसे सुनेंरोकेंब्रिटिश भौतिकशास्त्री रॉबर्ट हुक ने 1676 में यांत्रिक युक्तियों को किसी बल द्वारा विकृत करने के बारे में एक सामान्य बात कही जो लम्बाई में परिवर्तन (विकृति) और लगाये गये बल के सम्बन्ध में है। इसके अनुसार, किसी (प्रत्यास्थ) वस्तु की लम्बाई में परिवर्तन, उस पर आरोपित बल के समानुपाती होता है।

कवयित्री के मन में क्या उठ रही है?

इसे सुनेंरोकेंमित्र कवयित्री द्वारा ईश्वर प्राप्ति के सारे प्रयास विफल हो गए हैं। इसलिए उसके हृदय में एक हूक उठ रही है। वह ईश्वर के समीप जाना चाहती है अर्थात् मोक्ष प्राप्त करना चाहती है।

जी में हूक किसके उठती है और क्यों?

इसे सुनेंरोकेंजी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे। प्रश्न (क) कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास असफल क्यों हो रहे हैं? उत्तरः कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिये किये जा रहे प्रयास कच्चे धागे की तरह कमजोर है जो जीवन रूपी नौंका खींचने में असमर्थ हैं अतः सभी प्रयास निरर्थक हो रहे हैं।

जीवन में हूक क्यों उठती है?

इसे सुनेंरोकेंपानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे। जी में उठती रह रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे॥ इस कविता में रोजमर्रा की साधारण चीजों को उपमा के तौर पर उपयोग करके गूढ़ भक्ति का वर्णन किया गया है। नाव का मतलब है जीवन की नैया।

हुक का नियम कहाँ तक अच्छा है?

इसे सुनेंरोकेंहुक का नियम वहाँ महत्व रखता है, जहां कोई प्रत्यास्थ निकाय, विकृत होता है और इसका उपयोग करके आप जटिल वस्तुओं के विकृति और प्रतिबल के बीच संबंध निकाल सकते हैं।

कवि के मन में क्या होती है?

इसे सुनेंरोकेंयह सही है कि ये दोनों भाव विपरीत प्रतीत होते हैं, पर कवि स्वयं को जग से जोड़कर भी और जग से अलग भी महसूस करता है। उसे यह बात भली प्रकार ज्ञात है कि वह पूरी तरह से जग-जीवन से निरपेक्ष नहीं रह सकता। दुनिया उसे चाहे कितने भी कष्ट क्यों न दे फिर भी वह दुनिया से कटकर नहीं रह सकता। वह भी इसी दुनिया का एक अंग है।

कवयित्री के दिल में क्या हूक सी उठती है और क्यों?

ललद्यद के अनुसार ईश्वर कहाँ बसता है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. Answer: कवयित्री ने ईश्वर को सर्वव्यापी बताते हुए उसे हर जगह पर व्याप्त रहने वाला कहा है। वास्तव में ईश्वर का वास हर प्राणी के अंदर है परंतु मत-मतांतरों के चक्कर में पड़कर अज्ञानता के कारण मनुष्य अपने अंदर बसे प्रभु को नहीं पहचान पाता है।

कवयित्री के जी में हूक सी क्यों उठती है?

कवयित्री के दिल में क्या हूक-सी उठती है और क्यों? उत्तर कवयित्री के दिल में परमात्मा से मिलने की हूक अर्थात् तड़प उठती है, क्योंकि उसके लिए अर्थात् मनुष्य की आत्मा के लिए यह भवसागर या संसार तो पराया घर है और परमात्मा का घर उसका अपना घर है। इसलिए आत्मा दिन-रात परमात्मा से मिलने के लिए तड़पती रहती है।

कवयित्री के हृदय से बार बार हूक क्यों उत्पन्न होती है?

Answer: (ख) कवयित्री हर क्षण एक ही प्रार्थना करती है कि वह परमात्मा की शरण प्राप्त कर इस जीवन को त्याग दे पर ऐसा हो नहीं रहा। इसी कारण उस के हृदय से बार-बार हूक उत्पन्न होती है।

कवयित्री का घर जाने की इच्छा से क्या तात्पर्य है?

कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है? उत्तर: 'घर जाने की चाह'का तात्पर्य है-इस भवसागर से मुक्ति पाकर अपने प्रभु की शरण में जाना। वह परमात्मा की शरण को ही अपना वास्तविक घर मानती है

कवयित्री किसे पुकार रही है और उसकी क्या इच्छा है?

उत्तरः कवयित्री-ललद्यद, कविता-वाख। प्रश्न (ख) कवयित्री किसको और क्यों पुकार रही है? उत्तरः कवयित्री ईश्वर से भवसागर को पार करवाने के लिए पुकार रही है।