Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 6 सड़क सुरक्षा Textbook Exercise Questions and Answers. Show
Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 6 सड़क सुरक्षाHBSE 9th Class Hindi सड़क सुरक्षा Textbook Questions and Answersसड़क
सुरक्षा HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 1. HBSE 9th Class सड़क सुरक्षा Hindi प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. गतिविधियाँ
नोट-इन गतिविधियों को छात्र/छात्राएँ अपने अध्यापक व अध्यापिका की सहायता से करेंगे। अभ्यास (अ) निम्नलिखित का उपयोग क्यों किया जाता है? हैल्मेट, सीट-बेल्ट, ब्रेक, डिक्की, साइलेंसर, साइड इंडीकेटर। (ब) ‘कर’ प्रत्यय लगाकर तीन शब्द लिखें। (स) कहानी में से क्रिया विशेषण शब्द छाँटिए। (द) निम्नलिखित शब्दों से असंगत शब्दों पर x का निशान लगाइए। ज्ञानवर्धक जानकारी मोटरयान कानून 1988-धारा-4 मोटरयान चलाने के संबंध में आयु सीमा 1. कोई भी व्यक्ति, जो अठारह वर्ष से कम आयु का है, किसी सार्वजनिक स्थान में मोटरयान नहीं चलाएगा। परन्तु कोई व्यक्ति सोलह वर्ष की आयु का होने के पश्चात् किसी सार्वजनिक स्थान में (50 सी.सी. से अनधिक क्षमता वाली) मोटर साइकिल चला सकेगा। 2. धारा 18 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई भी व्यक्ति, जो बीस वर्ष से कम आयु का है, किसी सार्वजनिक स्थान 3. कोई शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति उस वर्ग के लिए, जिसके लिए उसने आवेदन किया है, उस यान को चलाने के लिए HBSE 9th Class Hindi सड़क सुरक्षा Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. सड़क सुरक्षा Summary in Hindiसड़क सुरक्षा पाठ-सार/गद्य-परिचय प्रश्न- सड़क दुर्घटना की स्थिति को हम एक छोटी-सी कहानी के सार के माध्यम से भी समझ सकते हैं जोकि इस प्रकार है-राजू और अरविंद दो मित्र हैं। दोनों साइबर कैफे में जाते हैं। वहाँ वे कार चलाने का वीडियो खेल खेलते हैं। राजू खेल में तेज गति से गाड़ी चलाता है और विजयी भी होता है। राजू को असली की कार चलाने का बहुत शौक है। किन्तु राजू के पापा उसे कार नहीं चलाने देते। कहते हैं कि अभी तू छोटा है। अरविंद भी राजू के पापा की बात को सही बताता है कि उसे कार नहीं चलानी चाहिए। राजू तर्क देता है कि मेरे अंकल का बेटा अभी 13 वर्ष का ही है और वह कार चलाता है किन्तु वह ड्राइवर की बगल में बैठकर चलाता है। अरविंद ने कहा ड्राइवर के साथ बैठकर तुम भी कार ड्राइव कर सकते हो। तुम चाहो तों हमारे ड्राइवर से कार सीख सकते हो। राजू के पापा 15 दिन के लिए बाहर गए हुए थे। इसलिए उसे अरविंद का यह विचार अच्छा लगा। अरविंद और राजू दोनों ही अरविंद के ड्राइवर के साथ कार चलाना सीखते हैं। ड्राइवर ने पहले उन्हें कार के विभिन्न पुर्जी की जानकारी दी। फिर उन्हें पास बैठाकर पुों के प्रयोग के बारे में बताया किन्तु उन्हें कभी अकेले कार नहीं चलाने दी। उन्हें केवल एक बार कार-स्टीयरिंग पकड़कर कार चलाने तक ही सीमित रखा। पूरी तरह कार चलाने के लिए कार उनके हाथों में नहीं दी। राजू ने अपने घर कार सीखने की बात नहीं बताई। अगले दिन रविवार था और छुट्टी थी। उनकी गर्मी की छुट्टियाँ भी समाप्त हो गई थीं। अरविंद का कार ड्राइवर उस दिन नहीं आया था। राजू बहुत निराश हो गया। वह अरविंद से कहता है कि चलो आज हम अकेले ही कार चलाते हैं। अरविंद ने अनेक तर्क देते हुए कहा कि हमें कार नहीं चलानी चाहिए। किन्तु राजू की उदासी देखकर अन्त में अरविंद कार चलाने को मान गया। कार घर से बाहर निकाली और घर के पास के सर्विस लॉन में कार चलाने लगे। अरविंद कार चला रहा था और बहुत खुश था, वह कार तेजी से चलाने लगा। वहाँ कुछ लोग सैर कर रहे थे। दो व्यक्ति सड़क के बीचोंबीच चल रहे थे। अरविंद ने हॉर्न दिया तो उनमें से एक व्यक्ति हट गया दूसरा नहीं हटा। अरविंद हॉर्न देना भूल गया और ब्रेक पर पैर रखने की अपेक्षा एक्सलरेटर पर पैर रख दिया। कार की स्पीड कम होने की अपेक्षा बढ़ गई और घबराहट के कारण उस व्यक्ति को टक्कर मार दी, वह गिर पड़ा और उसकी कमर की हड्डी टूट गई। उधर कार का सन्तुलन बिगड़ गया और वह डिवाइडर से टकराकर रुक गई। लोगों ने दुर्घटना की सूचना पुलिस को दी और पुलिस उन दोनों को थाने में ले गई। उन दोनों के घर वाले थाने में आकर उनको छुड़ाकर ले गए। दोनों ही बहुत घबरा गए थे और दोनों ने बालिग होने तक कभी भी कार न चलाने का वायदा किया। इस कहानी से बहुत अच्छी शिक्षा मिलती है किन्तु हमें उन बातों को भी जानना चाहिए जिनसे सड़क दुर्घटना को रोका जा सकता है। जैसे-हमें सड़क के नियमों का प्रचार करना चाहिए। माता-पिता छोटे बच्चों को गाड़ी चलाने की अनुमति न दें। सड़क सुरक्षा के नियम का उल्लंघन करने वालों को प्यार से समझाना चाहिए। गाड़ी की देखभाल करनी चाहिए और सदा ही कम गति पर कार चलाएँ जिससे गाड़ी और सवारियाँ दोनों ही सुरक्षित रहें। Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वालीHBSE 9th Class Hindi माटी वाली Textbook Questions and Answersमाटी वाली के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1. माटी वाली पाठ 4 के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न
2. Class 9 Hindi Kritika Chapter 4 HBSE प्रश्न
3. माटी वाली पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 4. Class 9 Hindi Chapter 4 Mati Wali Question Answer HBSE प्रश्न 5. Kritika Class 9 Chapter 4 HBSE प्रश्न 6. Class 9 Kritika
Chapter 4 Mati Wali Question Answer HBSE प्रश्न 7. Class 9 Hindi Chapter 4 Mati Wali HBSE प्रश्न 8. HBSE 9th Class Hindi माटी वाली Important Questions and AnswersClass 9 Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 1. प्रश्न 2. ‘माटी वाली’ वृद्धा पति परायण नारी है। इस बुढ़ापे में उसे सहारे की आवश्यकता है, किंतु वह स्वयं अपने वृद्ध एवं बीमार पति का सहारा बनकर जीती है। कहीं से दो रोटी पाने पर वह पहले एक रोटी पति के लिए रख लेती है। कभी-कभी तो दोनों रोटी ही पति के लिए बचाकर रख लेती है। वह अपने पति के लिए तीन रोटियों का प्रबंध करती है। उसे खुश देखने के लिए प्याज मोल लेती है और उनको भूनकर पकौड़ियाँ बनाने का प्रबंध भी करती है। उसके इस कार्य से उसके पति परायण होने का पता चलता है। प्रश्न 3. लेखक ने कहानी के अंतिम भाग में टिहरी पर बाँध बनने के कारण माटी वाली या उस जैसे अनेक गरीब लोगों के विस्थापित अर्थात घर उठाए जाने की समस्या की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट किया है। लेखक ने बताया है कि जिन लोगों की ज़मीन-जायदाद नहीं है, वे क्या क्लेम करेंगे ? उनको उनके घरों से निकालने का सीधा अर्थ उन्हें उजाड़ना है। अनपढ़ और गरीब आदमी के पास जमीन-जायदाद ही नहीं होती तो उसके कागज़ कहाँ से आएँगे ? सरकारी अधिकारी तो ज़मीन के कागज़ देखकर ही उन्हें ज़मीन दिलाने की बात कहते हैं, किंतु संबंध तो उस स्थान से सदियों से बना आया है। उसके लिए उन्हें किसी कागज़ या प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं थी। अब ऐसे गरीब एवं मजदूर लोगों का क्या होगा ? इसी प्रश्न को उठाना कहानी का मूल लक्ष्य है। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न
5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. माटी वाली Summary in Hindiमाटी वाली पाठ-सार/गद्य-परिचय प्रश्न- माटी वाली एक हरिजन बुढ़िया है। घर की मालकिन ने उसे आँगन में मिट्टी उड़ेलने के लिए कहा। उसने सारी मिट्टी आँगन के एक कोने में रख दी। मालकिन ने उसे खाने के लिए दो रोटियाँ दीं। उसने एक रोटी मालकिन द्वारा दी गई चाय के साथ खा ली। दूसरी रोटी उसने अपने बूढ़े पति के लिए छुपाकर रख ली
थी। माटी वाली ने मालकिन से कहा यह चाय भी अपने-आप में एक साग है। किंतु मालकिन ने कहा नहीं भूख ही अपने-आप में एक साग है। भूख में रूखी-सूखी रोटी भी स्वाद लगती है। “भूख मीठी कि भोजन मीठा ?” माटी वाली ने बड़े दुःख और निराशा के साथ कहा, “ज़मीन-जायदादों के मालिक हैं, वे तो किसी-न-किसी ठिकाने पर ही जाएँगे। पर मैं सोचती हूँ मेरा क्या होगा! मेरी तरफ देखने वाला तो कोई भी नहीं” माटी वाली वहाँ से किसी दूसरे घर में गई, जहाँ उसे मिट्टी लाने का आदेश मिला और साथ ही दो रोटियाँ भी। उसने उन्हें भी कपड़े के किनारे से बाँध लिया। माटी वाली की प्रतिदिन की यही दिनचर्या थी-मिट्टी खोदना, शहर पहुँचाना और फिर रात तक गाँव में लौटना। उसके पास न कोई अपना खेत था न ज़मीन। यहाँ तक कि उसकी झोंपड़ी भी ठाकुर की जमीन पर बनी हुई थीं। उसके बदले में उसे ठाकुर की बेगार करनी पड़ती थी। यह सोचते-सोचते वह घर पहुँची और देखा कि उसका बूढ़ा पति उसे छोड़कर जा चुका था। – टिहरी बाँध के पुनर्वास से संबंधित अधिकारी ने उससे उसके घर का
पता पूछा। उसने बताया कि उसने जिंदगी भर टिहरी के लोगों को मिट्टी पहुँचाई है। अधिकारी ने फिर प्रश्न किया कि क्या माटाखान उसके नाम है ? बुढ़िया ने बताया-माटाखान मेरी रोज़ी है, वह मेरे नाम नहीं है। अधिकारी कुछ तीखे स्वर में बोला-‘बुढ़िया हमें ज़मीन का कागज़ चाहिए, रोज़ी का नहीं।’ माटी वाली अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठी हुई हर आने-जाने वाले से कहती है-“गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।” कठिन शब्दों के अर्थ – (पृष्ठ-42) : खोली = छोटी-सी कोठरी। कंटर = कनस्तर, पीपा। माटी = मिट्टी। कुल = सभी। निवासी = रहने वाले। प्रतिद्वंद्वी = मुकाबला करने वाला। बगैर = बिना। समस्या = कठिनाई। अवस्था = हालत। मौजूद = उपस्थित। अलावा = अतिरिक्त। (पृष्ठ-43) : गोबरी लिपाई = गोबर और मिट्टी से की जाने वाली पुताई। माटाखान = मिट्टी की खान । तट = छोर, किनारा। ग्राहक = खरीददार । नाटा कद = छोटा शरीर । डिल्ला = सिर पर बोझ के नीचे रखने के लिए कपड़े की गद्दी। छुलबुल = पूरा भरा हुआ। इस्तेमाल = प्रयोग। उड़ेलना = उलटना। भाग्यवान = अच्छी किस्मत वाला। (पृष्ठ-44) : फौरन = जल्दी, शीघ्रता से। हड़बड़ी = घबराहट। इकहरा = जिसका एक ही पल्लू हो। सद्दा = ताज़ा। बासी = कुछ समय पहले का बना हुआ। सुड़कना = सूं-तूं की आवाज़ करते हुए पीना। पुरखे = पूर्वज । गाढ़ी कमाई = मेहनत की कमाई। हराम के भाव = बिना मूल्य के, बहुत सस्ते। दिल गवाही देना = दिल मानना। तंगी = अभाव, कष्ट। चटपटी = मसालेदार। मन मसोसना = मन को मारना। (पृष्ठ-45) : दिमाग चकराना = परेशान हो जाना । काँसा = एक मिश्रित धातु । जायदाद = संपत्ति । छोर = किनारा । अशक्त = शक्तिहीन । कातर = डरी हुई, घबराई हुई। हवाले करना = सुपुर्द करना, दे देना। चेहरा खिल उठना = प्रसन्न हो उठना। (पृष्ठ-46) : रात घिरना = रात का छाना। एवज़ = के बदले। बेगार करना = बिना कुछ आमदनी लिए काम करना। आमदनी = आय, कमाई। परोसना = खाने के लिए रखना। हद से हद = ज्यादा-से-ज्यादा। आहट = आवाज़ । माटी छोड़ना = दुनिया को छोड़ना। पुनर्वास = फिर से बसाना। जिनगी = जिंदगी। रोज़ी = रोटी कमाने का साधन। (पृष्ठ-47) : तय = निश्चित करना। सुरंग = गहरा गोल भीतरी रास्ता। आपाधापी मचना = हलचल होना। श्मशान = जहाँ मुर्दे जलाए जाते हैं। Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आयाHBSE 9th Class Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Questions and AnswersKritika Chapter 5 Question Answer HBSE 9th Class प्रश्न 1. उन्होंने दूसरों के भरोसे बहुत जीवन व्यतीत कर दिया। अब अवश्य ही कुछ बनकर दिखाना होगा। किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2. किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Summary HBSE 9th Class प्रश्न 3. प्रिय अनुज, तुमसे मिलने की प्रबल इच्छा मेरे हृदय को बहुत समय से बेचैन कर रही थी। इसलिए मैं यहाँ देहरादून में तुम्हें मिलने चला आया था। किंतु आज तुम मुझे नहीं मिल सके। अतः मुझे यहाँ आना व्यर्थ लगा। मुझे पता चला कि तुम स्टूडियो में बहुत अच्छा काम कर रहे हो। नाम कमा रहे हो। एक दिन महान कलाकार बनोगे। भूले-भटके कभी इस बदनसीब को भी याद कर लिया करो। तुम्हारा अपना Class 9 Hindi Kritika Chapter
5 Summary HBSE प्रश्न 4. सहयोगी-श्री बच्चन के व्यक्तित्व की दूसरी प्रमुख विशेषता थी दूसरों को सहयोग देना। उन्होंने न केवल लेखक को इलाहाबाद बुलाया, अपितु उनको पढ़ाने व पूर्णतः बसाने तक का सहयोग भी दिया, जिसे लेखक आजीवन नहीं भूल सका। वे लेखक के संरक्षक बन गए थे। निपुण, पारखी एवं प्रेरक-श्री बच्चन निपुण, पारखी एवं प्रेरक थे। वे सामने वाले की प्रतिभा को तुरंत भाँप जाते थे और यथासंभव उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देते थे। उन्होंने लेखक को देखकर तुरंत समझ लिया था कि उनमें काव्य-रचना की प्रतिभा है। इसलिए उन्हें इलाहाबाद बुलवाया और उनकी कविताओं को पढ़कर काँट-छाँट कर सुंदर रचना बना दी। श्री बच्चन अत्यंत सरल स्वभाव वाले व्यक्ति थे। छल-कपट तो उन्हें कभी छू भी नहीं सका था। Class 9th Kritika Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 5. 1. तेज बहादुर सिंह-ये लेखक के बड़े भाई थे, जिन्होंने घर में रहते हुए और घर से बाहर भी उनकी सहायता की थी। प्रश्न 6. प्रश्न 7. HBSE 9th Class Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Summary in Hindiकिस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ-सार/गद्य-परिचय प्रश्न- इस संस्मरण में बताया गया है कि लेखक को किसी ने ऐसा कुछ कहा कि वह पहली बस पकड़कर दिल्ली आ
गया। उसने सोच लिया था कि अब उसे दिल्ली में रहना है और पेंटिंग का काम सीखना है। लेखक को उकील आर्ट स्कूल में मुफ्त में दाखिला मिल गया था। वह करोल बाग में एक कमरा किराए पर लेकर वहाँ रहने लगा था। वह रास्ते में चलता-चलता अंग्रेज़ी, हिंदी व उर्दू की कविताएँ करता था। उसकी आदत-सी बन गई थी कि वह हर आने-जाने वाले के चेहरे को ध्यानपूर्वक देखता और उनमें अपनी पेंटिंग के विषय ढूँढता। कुछ साइनबोर्ड पेंट करके तथा कुछ बड़े भाई से प्राप्त धन से गुजारा करता। उसके साथ महाराष्ट्र का एक पत्रकार भी आकर रहने लगा। वह भी
बेकार था। वह इलाहाबाद की चर्चा किया करता था। कुछ समय बाद दिल्ली में कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं कि लेखक पुनः देहरादून आ गया। वहाँ आकर लेखक अपनी ससुराल की केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कंपाउंडरी का काम सीखने लगा। इस काम में वह सफल भी हो गया। तभी उनके गुरु श्री शारदाचरण ने पेंटिंग की क्लास बंद कर दी। इससे लेखक को कला-बोध की कमी खलने लगी। कलात्मकता के अभाव में लेखक अपने-आपको बहुत अकेला अनुभव करने लगा था। उनकी आंतरिक रुचियों की किसी को परवाह नहीं थी। इसी उधेड़बुन में उन्होंने एक दिन श्री हरिवंशराय बच्चन को लिखी हुई अपनी कविता पोस्ट कर दी। संयोग ही था कि एक बार बच्चन जी देहरादून आए और लेखक के यहाँ मेहमान बनकर रहे। उन दिनों बच्चन जी साहित्य के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध हो चुके थे। लेखक को उस भयानक आँधी की याद आ गई जिसमें असंख्य पेड़ जड़ से उखड़कर गिर पड़े थे। बच्चन जी एक पेड़ के नीचे आने से बाल-बाल बच गए थे। उन्हीं दिनों बच्चन जी को भी अपनी पत्नी श्यामा का वियोग हुआ था। वे इतने दुःखी थे कि मानो मस्त नृत्य करते शिव से उनकी उमा को छीन लिया गया हो। वे अपनी बात के धनी थे। एक दिन बहुत बारिश थी और रात के समय उन्हें गाड़ी पकड़नी थी। मेजबान के रोकने पर भी वे न रुके। बिस्तर बाँधा और काँधे पर रखकर स्टेशन जा पहुंचे। लेखक इस बात को सोचकर हैरान होता है कि वे बच्चन जी के आग्रह पर इलाहाबाद जा पहुंचेंगे। उनकी बच्चन जी से अधिक गहरी जान-पहचान नहीं थी। वे हमेशा एकांत को पसंद करते थे। उन्हें ऐसा भ्रम रहता था कि उनके एकांत में उनके साथ चलने वाला कोई नहीं था। एक ओर बच्चन जी ने कहा कि देहरादून में रहेगा तो मर जाएगा। उधर केमिस्ट्स की दुकान पर बैठने वाले डॉक्टर ने भी कहा इलाहाबाद गया तो वहाँ उसका जीवित रहना असंभव होगा। इस प्रकार वह भ्रमित-सा हो गया। किंतु उसने इलाहाबाद जाने का निश्चय कर लिया। बच्चन जी ने एम०ए० हिंदी की पढ़ाई का जिम्मा अपने ऊपर लिया तथा कहा कि जब कमाएगा तो लौटा देना। बच्चन जी चाहते थे कि वह काम का आदमी बन जाए, किंतु वह न एम०ए० की परीक्षा दे सका और न नौकरी कर सका। वहाँ रहते हुए लेखक का पंत जी से भी परिचय हुआ। उनकी कृपा से ही उन्हें अनुवाद करने का काम मिल गया था। अब लेखक के मन में हिंदी कविता लिखने की रुचि जाग गई थी, किंतु उन्हें तो अंग्रेजी कविता और उर्दू गज़लें लिखने का अभ्यास था। बच्चन जी ने उनकी कविताओं की सराहना की और हिंदी में लिखने का अभ्यास भी निरंतर बढ़ने लगा था। जाट परिवार से संबंधित होने के कारण भी भाषा की दीवार उन्हें रोक न सकी। लेखक हिंदी की ओर बढ़ने के अपने आकर्षण का कारण निराला, पंत, श्री बच्चन आदि महान हिंदी कवियों व इलाहाबाद के अन्य साहित्यकारों से मिलने वाले उत्साह को मानता है। यद्यपि वे हिंदी में बढ़ रही गुटबाजी से दुःखी थे। बच्चन जी उस समय इस गुटबाजी के विरुद्ध लड़ रहे थे। सन् 1937 में लेखक को लगा कि वह श्री बच्चन जी की भाँति फिर से जीवन की ओर लौट रहा है। उसे भी बच्चन जी की भाँति ही आर्थिक दृष्टि से सबल होना है। बच्चन जी ने उसे 14 पंक्तियों का नया सॉनेट लिखना सिखाया था। इसमें बीच में अतुकांत पंक्तियाँ भी थीं और तुकांत भी। लेखक ने भी कुछ ऐसी ही एक रचना लिखी लेकिन वह कभी प्रकाशित नहीं हो सकी। लेखक अब श्री बच्चन जी के ‘निशा-निमंत्रण’ से प्रभावित हुआ और कुछ उसी पैटर्न पर कविताएँ भी लिखने लगा था। नौ पंक्तियाँ, तीन स्टैंजा। यद्यपि पंत जी ने लेखक की ऐसी कविताओं का संशोधन भी किया, किंतु उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली। लेखक द्वारा अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान न दिए जाने पर बच्चन जी बड़े दुःखी थे। लेखक एम०ए० की परीक्षा नहीं दे सका, किंतु उनकी हिंदी कविता में रुचि बढ़ती जा रही थी। वे एक दिन बच्चन जी के साथ एक कवि सम्मेलन में गए। उनका कविता लिखने का प्रभाव बेकार नहीं गया। उन्हीं दिनों उनकी एक कविता ने निराला जी का ध्यान आकृष्ट किया और उन्होंने लेखक को ‘हंस’ प्रकाशन में काम दिला दिया। इसलिए उन्हें हिंदी में लाने का श्रेय श्री बच्चन जी को जाता है। लेखक का मानना है कि उनके जीवन को नया मोड़ देने के पीछे बच्चन जी की मौन-सजग प्रतिभा रही है। उनमें दूसरों की प्रतिभा को व्यक्तित्व प्रदान करने की स्वाभाविक क्षमता है। लेखक बच्चन जी से प्रायः दूर ही रहा है। परंतु उनके लिए दूर और समीप की परिभाषा दूसरों से हटकर है। वह नजदीक के लोगों के साथ भी दूरी अनुभव करता रहे और दूर के लोगों के साथ भी बहुत करीब रहे। जिस प्रकार कवि अपनी कविता के माध्यम से अपने ही बहुत करीब रहता है। न वह कविता से कभी मिलता है, न कभी बात करता है फिर भी उसके अत्यधिक निकट रहता है। ठीक वैसे ही लेखक श्री बच्चन जी के निकट रहा। उनकी यह महानता उनके अच्छे-से-अच्छे कवि से भी महान है। श्री बच्चन जी ऐसे ही बहुत-से लोगों के करीब रहे हैं। उनका सहज एवं स्वाभाविक होना लेखक को बहुत अच्छा लगता है। इसी स्वाभाविकता के कारण लेखक अपने-आपको मुक्त समझता है। ऐसा अनुभव और लोगों को भी होता होगा। लेखक को विश्वास है कि बच्चन जैसे लोग दुनिया में हुआ करते हैं। वे असाधारण नहीं होते। होते तो साधारण हैं, किंतु होते बिरले हैं, दुष्प्राप्य हैं। कठिन शब्दों के अर्थ – (पृष्ठ-49) : जुमला = वाक्य । पेंटिंग = चित्रकारी। फौरन = जल्दी ही। किस्सा = कथा, घटना। मुख्तसर = संक्षिप्त, सार रूप में। शौक = रुचि। बिला-फीस = बिना फीस के। भर्ती = दाखिला। लबे-सड़क = सड़क के किनारे। (पृष्ठ-51) : वहमो-गुमान = भ्रम, अनुमान। तरंग = लहर। टीस = वेदना। चुनाँचे = अतः, इसलिए। शेर = गज़ल के दो चरण। बगौर = ध्यानपूर्वक। तत्त्व = सार, तथ्य। दृश्य = दिखाई देने वाला। गति = चाल। विशिष्ट = विशेष। आकर्षण = खिंचाव। साइनबोर्ड = विज्ञापन के पट या पर्दे । बेकार = बेरोज़गार। जिक्र = चर्चा । हृदय = दिल। उद्विग्न = परेशान। टी०बी० = क्षय रोग। घसीटता = लापरवाही से लिखना। स्केच = रेखाचित्र। बोर होना = ऊब जाना। मुलाकात = भेंट। संलग्न = लगे हुए। वसीला = सहारा। नोट = कागज़ पर लिखा संदेश। कृतज्ञ = उपकार को अनुभव करना। (पृष्ठ-52) : मौन = खामोश। उपलब्धि = प्राप्ति। अफसोस = दुःख। सॉनेट = यूरोपीय कविता का एक लोकप्रिय छंद। अतुकांत = तुक के बिना। मुक्तछंद = छंदों से मुक्त कविता। उफ = ओह । गोया = मानो, जैसे। केमिस्ट्रस = दवाइयाँ तथा रसायन बेचने वाला। ड्रगिस्ट्स = दवाइयाँ बेचने वाला। कंपाउंडरी = चिकित्सा में सहायता करने वाला कर्मचारी। महारत = कुशलता। अजूबा = अद्भुत, हैरान करने वाली। नुस्खा = तरीका। गरज़ = चाह, मतलब। आंतरिक = भीतरी, अंदरूनी। दिलचस्पी = रुचि। अदब-लिहाज़ = शर्म, संकोच। घुट्टी में पड़ना = जन्म से ही स्वभाव में होना। अभ्यासी = आदती। खिन्न = परेशान, दुःखी। सामंजस्य = तालमेल। कर्त्तव्य = करने योग्य काम। इत्तिफाक = संयोग। (पृष्ठ-53) : प्रबल = मज़बूत, शक्तिशाली। झंझावात = आँधी। स्पष्ट = साफ़। मस्तिष्क = दिमाग। वियोग = बिछुड़ना। उमा = शिव की पत्नी पार्वती। अर्धांगिनी = पत्नी। मध्य वर्ग = धन की दृष्टि से बीच के लोग। भावुक = भावना से भरे, कोमल। आदर्श = सिद्धांत। उत्साह = जोश। संगिनी = साथिन। निश्छल = सरल, छल-रहित। आर-पार देखना = साफ़ एवं स्पष्ट होना। बात का धनी = अपनी बात पर टिके रहने वाला। वाणी का धनी = जिसकी वाणी बहुत मधुर एवं पटु हो। संकल्प = इरादा, निश्चय। फौलाद = बहुत मज़बूत। बरखा = वर्षा । झमाझम = बहुत तेजी से, अधिकता से। मेज़बान = आतिथ्य करने वाला। इसरार = आग्रह। बराय नाम = केवल नाम के लिए, दिखावे-भर को। (पृष्ठ-54) : वहम = भ्रम, संदेह । गरीब-गरबा = गरीबों के लिए। नुस्खा = तरीका, ढंग, उपाय। थ्री टाइम्स अ-डे = एक दिन में तीन बार। बेफिक्र = चिंता से रहित। लोकल गार्जियन = स्थानीय अभिभावक। दर्ज होना = नाम लिखा जाना। सूफी नज्म = सूफ़ी कविता। प्रीवियस = पहला, पूर्व । फाइनल = अंतिम। काबिल = योग्य। प्लान = योजना। फारिग होना= मुक्त होना। पैर जमाकर खड़ा होना = नौकरी करने योग्य हो जाना। दिल में बैठना = दृढ़ होना। तर्क-वितर्क = बहसबाजी। घोंचूपन = नालायकी, कायरता, मूर्खता। पलायन = भागना। कॉमन रूम = सबके उठने-बैठने का कमरा। (पृष्ठ-55) : गंभीरता = गहरी रुचि। शिल्प = शैली, तरीका। फर्स्ट फार्म = पहली भाषा। खालिस = शुद्ध। भावुकता = भावों की कोमलता। अभाव = कमी। विषयांतर = दूसरे विषय की तरफ भटक जाना। पुनर्संस्कार = फिर से स्वभाव में डालना। मतभेद = विचारों की भिन्नता। अभिव्यक्ति = भाव प्रकट करना। माध्यम = सहारा। एकांततः = अपने लिए ही। पछाँही = पश्चिम दिशा का। दीवार = बाधा। चेतना = मन, मस्तिष्क, हृदय। संस्कार = आदतें, गुण। प्रोत्साहन = उत्साह, बढ़ावा। विरक्त = अलगाव होना, अरुचि होना। संकीर्ण = तंग। सांप्रदायिक = एक संप्रदाय के प्रभाव वाला। (पृष्ठ-56) : मर्दानावार = वीरों की भाँति। उच्च घोष = ऊँची आवाज । मनःस्थिति = मन की दशा। द्योतक = परिचायक। अंतश्चेतना = अंतर्मन। निश्चित = बेफिक्र । कमर कसना = तैयार होना। स्टैंज़ा = गीत का एक चरण या अंतरा । तुक = कविता के प्रत्येक चरण के अंतिम वर्णों का एक-सा होना। प्रभावकारी = प्रभावशाली। विन्यास = रचना। अतुकांत = तुक से रहित। बंद = पहरा, अनुच्छेद, चरण। फार्म = रूप। आकृष्ट करना = खींचना। संशोधन = सुधार। सुरक्षित = बचाकर रखे हुए। (पृष्ठ-57) : क्षोभ = व्याकुलता। स्थायी संकोच = हमेशा महसूस होने वाली शर्म। निरर्थक = बेकार। प्रशिक्षण = ट्रेनिंग, सीखना। प्रांगण = आँगन, क्षेत्र। घसीट लाना = खींच लाना। आकस्मिक = अचानक। मौन-सजग = चुपचाप जाग्रत। प्रातिभ = प्रतिभा से युक्त। नैसर्गिक = सहज, प्राकृतिक। क्षमता = शक्ति। बेसिकली = मूल रूप से। व्यवधान = बाधा, रुकावट। प्रस्तुत होना = पेश होना, दिखाई देना, प्रकट होना। सामान्य = आम। (पृष्ठ-58) : विशिष्ट = खास, विशेष। असाधारण = जो साधारण न हो, विशेष। मर्यादा = शान। दुष्प्राप्य = कठिनाई से मिलने वाला। Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Varn Prakaran वर्ण प्रकरण Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran वर्ण प्रकरणवर्ण प्रकरण Varn Prakaran HBSE 9th Class प्रश्न 1. हिन्दी वर्णमाला के 46 अक्षर संस्कृत भाषा से आए हैं, जिनमें 13 स्वर हैं और शेष व्यंजन हैं। प्रश्न 2. संयुक्त व्यंजनों से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण उत्तर दीजिए। उत्तर-जो व्यंजन एक से अधिक व्यंजनों के योग से बने हों, उन्हें संयुक्त व्यंजन कहते हैं; जैसे वर्ण के भेद Varn Prakaran Class 9 HBSE प्रश्न 3. वर्ण प्रकरण Class 9
HBSE प्रश्न 4. वर्ण प्रकरण Class 9 Vyakaran HBSE प्रश्न 5. Hindi Varna HBSE 9th Class प्रश्न 6. In 9th Standard HBSE
प्रश्न 7. वर्ण प्रकरण कक्षा 9 HBSE प्रश्न 8. व्यंजन किसे कहते हैं? उसके कितने भेद हैं? उत्तर: जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं, उन्हें व्यंजन कहते हैं। ये स्वरों की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते। इनके उच्चारण में वायु रुकावट के साथ बाहर आती है; जैसे क् + अ = क । यही नियम सभी व्यंजनों पर लागू होता है। बिना स्वर के योग के सभी वर्गों के नीचे हलन्त लगता है; जैसे क्, ख, ग, ट्, त्, ड्, न आदि। उच्चारण के अनुसार व्यंजनों के तीन भेद किए जा सकते हैं प्रश्न 9. किन्तु ‘र’ से पूर्व यदि कोई टवर्ग का व्यंजन स्वर रहित (हलन्त) हो, तो इसका प्रयोग इस तरह किया जाएगा- (2) यदि स्वर रहित ‘र’ अन्य वर्गों से पहले आए तो अपने से अगले व्यंजन के ऊपर
(शिरोरेख के ऊपर) लगाया जाता है; जैसे (3) यदि ‘र’ के साथ ‘इ’ या ‘ई’ की मात्रा लगी हो, तो इसे मात्रा के बाद जोड़कर लिखा जाता है; जैसे कर्मी, फुर्ती, दर्शी, महर्षि, गर्वित। (4) यदि ‘र’ संयुक्त अक्षर के साथ आए तो ‘र’ को संयुक्ताक्षर के अन्तिम वर्ण पर लगाया जाता है; जैसे मर्त्य, दुर्घर्ष। परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. ह्रस्व स्वर – दीर्घ स्वर नोट- प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. व्यंजन: प्रश्न 17. अनुनासिक: प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 Quadrilaterals Ex 8.2 Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 8 Quadrilaterals Exercise 8.2Question 1. Solution: Given : ABCD is a quadrilateral in which P, Q, R and S are mid points of the sides AB, BC, CD and DA respectively. AC is a diagonal. To prove : (i) SR || AC and SR = \(\frac{1}{2}\)AC, (ii) PQ = SR (iii) PQRS is a parallelogram. Proof : (i) In ΔACD, we have ∴ S and R are the mid points of AD and CD respectively. ∴ SR || AC and SR = \(\frac{1}{2}\)AC (ii) In ΔABC, we have ∴ P and Q are the mid points of AB and BC respectively. ∴ PQ || AC and PQ = \(\frac{1}{2}\)AC, [By theorem 8.9] …(ii) From (i) and (i), we get PQ || SR and PQ = SR. (iii) ∵ PQ || SR and PQ = SR, (As proved above) ∴ PQRS is a parallelogram. Hence proved Question 2. Given: A rhombus ABCD in which P, Q, R and S are mid points of the sides AB, BC, CD and DA respectively. To prove: Quadrilateral PQRS is a rectangle. Construction: Join AC and BD. Proof: In ΔADC, we have S and R are the mid points of AD and CD respectively. ∴ SR || AC and SR = \(\frac{1}{2}\)AC ……(1) and in ΔABC, we have P and Q are the mid points of AB and BC respectively. ∴ PQ || AC and PQ = \(\frac{1}{2}\)AC, [By theorem 8.9] …….. (ii) From (i) and (ii), we get PQ || SR and PQ = SR ∴ PQRS is a parallelogram. [By theorem 8.8] Again in ΔDAB, we have S and P are the mid points of AD and AB respectively. SP || BD ⇒ SL || MO and SR || AC [From (i)] ⇒ SM || LO ∴ SLOM is a parallelogram. Since, diagonals of a rhombus bisect each other at 90°. ∴ ∠AOD = 90° ∠MOL = 90° But, ∠LSM = ∠MOL, (Opposite angles of a parallelogram) ⇒ ∠LSM = 90° ⇒ ∠PSR = 90° Since, one angle of a parallelogram PQRS is 90°. Therefore, quadrilateral PQRS is a rectangle. Hence proved Question 3. Construction: Join AC. Proof: In ΔADC, S and R are the mid points of AD and CD respectively. ∴ SR || AC and SR = \(\frac{1}{2}\)AC …(i) [By thoerem 8.9] In ΔABC, P and Q are the mid points of AB and BC respectively. ∴ PQ || AC and PQ = \(\frac{1}{2}\)AC …..(ii) From (i) and (ii), we get PQ || SR and PQ = SR ∴ PQRS is a parallelogram. [By theorem 8.8] ∵ ABCD is a rectangle. ∠A = ∠B = 90° …(ii) and AD = BC, (Opposite sides of a rectangle) ⇒ \(\frac{1}{2}\)AD = \(\frac{1}{2}\)BC ⇒ AS = BQ, [∵ S is the mid point of AD and Q is the mid point of BC] ∴ AS = \(\frac{1}{2}\)AD and BQ = \(\frac{1}{2}\)BC] Now in ΔSAP and ΔQBP, we have AS = BQ, [As proved above] ∠SAP = ∠QBP, [From (iii), Each = 90°] and AP = BP, [∵ P is the mid point of AB] ∴ ΔSAP ≅ ΔQBP, (By SAS congruence rule) ⇒ SP = PQ, (CPCT) Thus, adjacent sides of a parallelogram PQRS are equal. Therefore, PQRS is a rhombus. Hence proved Question 4. Solution: Given: ABCD is a trapezium in which AB || CD, EF || AB and E is the mid point of AD. To prove: F is the mid point of BC. Proof: Let line EF intersecting BD at G. In ΔDAB, we have EG || AB (∵ EF || AB) and E is the mid point of AD. ∴ G is the mid point of BD. Now, AB || CD and AB || EF, (Given) ⇒ EF || CD ⇒ GF || CD and G is the mid point of BD. (As proved above) ∴ F is the mid point of BC. Hence proved Question 5. Solution: Since, ABCD is a parallelogram. ∴ AB = CD, (Opposite sides of parallelogram) \(\frac{1}{2}\)AB = \(\frac{1}{2}\)CD AE = FC, [∵ E and F are mid points of AB and CD respectively ∴ AE = \(\frac{1}{2}\)AB and FC = \(\frac{1}{2}\)CD] and AB || CD ⇒ AE || FC ∴ AECF is a parallelogram. ⇒ AF || EC …..(i) In ΔABP, we have E is the mid point of AB. and EQ || AP [∵ AF || EC] ∴ Q is the mid point of BP ⇒ BQ = PQ …….(ii) In ΔCQD, we have F is the mid point of CD. and PF || CQ [∵ AF || EC] ∴ P is the mid point of DQ. ⇒ DP = PQ ……..(iii) From (ii) and (iii), we get DP = PQ = BQ Hence, line segments AF and EC trisect the diagonal BD. Hence proved Question 6. Construction: Join EF, FG, GH, HE and AC. Proof: In ΔABC, E and F are mid points of AB and BC. ∴ EF || AC and EF = \(\frac{1}{2}\)AC [By mid point theorem] In ΔADC, H and G are mid points of AD and CD. ∴ HG || AC and HG = \(\frac{1}{2}\)AC ……(ii) From (i), (ii), we get EF || HG and EF = HG ∴ EFGH is a parallelogram. [By theorem 8.8] We know that diagonals of a parallelogram bisect each other. Therefore EG and FH bisect each other. Hence proved Question 7. Proof: (i) In ΔABC, M is the mid point of AB. and MD || BC, (Given) ∴ D is the mid point of AC. (By theorem 8.10) (ii) Since, MD || BC and ∠ACB = 90° ∴ ∠ADM = 90° (Corresponding angles) …(i) (iii) But, ∠DM + ∠CDM = 180°, (Linear pair) ⇒ 90° + ∠CDM = 180°, [Using (i)] ⇒ ∠CDM = 180° – 90° = 90° … (ii) Now, ΔADM and ΔCDM, we have AD = CD, (As proved above, D is the mid point of AC) ∠ADM = ∠CDM, [From (i) and (ii), Each = 90°] and MD = MD, (Common) ∴ ΔADM ≅ ΔCDM, (By SAS congruence rule) ⇒ AM = CM, (CPCT) But, AM = BM, (∵ M is the mid point of AB) ∴ AM = CM = \(\frac{1}{2}\)AB. Hence proved Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 2 मेरे संग की औरतें Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 2 मेरे संग की औरतेंHBSE 9th Class Hindi मेरे संग की औरतें Textbook Questions and Answersमेरे
संग की औरतें के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1. Mere Sang Ki Auraten Class 9 HBSE प्रश्न 2. मेरे संग की औरतें’ पाठ 2 के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न
3. (ख) लेखिका की दादी एक विचित्र व्यक्तित्व वाली स्त्री थी। वह लीक से हटकर काम करने वाली महिला थी। उसके घर में हर व्यक्ति को अपना अधिकार बनाए रखने की स्वतंत्रता थी। लेखिका की दादी, ताई व पिता उसकी माँ के कर्त्तव्यों को पूरा करते थे। लेखिका की माँ बिस्तर पर लेटे-लेटे किताबें पढ़ती और संगीत सुनती। फिर भी उसे भरपूर सम्मान मिलता था। हर व्यक्ति अपने स्वतंत्र विचार रखता था, किंतु फिर भी आपसी सद्व्यवहार का वातावरण बना रहता था। वहाँ किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं था। अतः किसी को भी हीन भावना अनुभव नहीं करनी पड़ती थी। मेरे संग की औरतें प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 4. Mere Sang Ki Auraten HBSE 9th Class प्रश्न 5. Kritika Chapter 2 Class 9 Answers HBSE प्रश्न 6. Class 9 Chapter 2 Kritika HBSE प्रश्न 7. (1) जो सदा सच बोलते हैं। मेरे संग की औरतें पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न
8. लेखिका की बहन रेणु भी जीवन में अकेले ही अनोखे काम कर दिखाने में आनंद अनुभव करने वाली युवती थी। उसे स्कूल से लौटते समय थोड़ी दूर के लिए गाड़ी में आना पसंद नहीं था। वह अकेली ही पैदल चलकर पसीने से तर-बतर होकर घर आती थीं। एक दिन अधिक बरसात के कारण स्कूल की गाड़ी न आने पर वह सबके मना करने पर पैदल ही स्कूल जा पहुंची थी। उसने ऐसा करके यह सिद्ध कर दिया था कि वह अकेले ही अपनी राह पर चल सकती है। वह कहती थी कि अकेलेपन का मजा ही कुछ ओर है। इस प्रकार दोनों के व्यक्तित्व में अकेले ही अपना मार्ग बना लेने की हिम्मत थी। HBSE 9th Class Hindi मेरे संग की औरतें Important Questions and AnswersKritika Lesson 2 Class 9 HBSE प्रश्न 1. Kritika Chapter 2 Mere Sang Ki Auraten HBSE प्रश्न 2. Mere Sang Ki Auraten Prashn Uttar HBSE 9th Class प्रश्न 3. Chapter 2 Kritika Class 9 HBSE प्रश्न 4. Class 9th Kritika Ch 2 Question Answer HBSE प्रश्न 5. Class 9 Kritika Chapter 2 HBSE प्रश्न 6. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर Kritika Chapter 2 Class 9 HBSE प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न
4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न
10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न
17. प्रश्न 18. उत्तर- प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. मेरे संग की औरतें Summary in Hindiमेरे संग की औरतें पाठ-सार/गद्य-परिचय प्रश्न- लेखिका की नानी उसके जन्म से पहले ही इस संसार से चल बसी थी। इसलिए लेखिका को उससे कहानी सुनने का अवसर न मिल सका। शायद इसीलिए लेखिका अपने जैसे लोगों के लिए कहानी लिखती है। लेखिका की नानी की कहानी भी बड़ी मजेदार है। उसकी नानी अनपढ़ और पर्दा-प्रथा में विश्वास करने वाली थी। उसकी शादी के तुरंत पश्चात् उसका पति उसे भारत में छोड़कर विलायत में बैरिस्ट्री की परीक्षा पास करने के लिए चला गया। जब वह पढ़ाई पूरी करके लौटा तो विलायती ढंग से भारत में रहने लगा। किंतु नानी अपने ढंग से जीवन जीती रही। उसने अपने पति की जीवन-शैली में कभी रोड़ा नही अटकाया। जब वह मरने वाली थी तो उसने अपने पति के द्वारा प्रसिद्ध क्रांतिकारी व देशभक्त प्यारेलाल शर्मा को बुलवाया और कहा कि उनकी बेटी का विवाह किसी देशभक्त व क्रांतिकारी से करना। वह अंग्रेज़ साहबों के हुक्म का गुलाम न हो। उसकी इच्छा और स्वतंत्र विचारों को सुनकर सब दाँतों तले अंगुली देते रह गए। उसके लिए स्वतंत्रता से जीना ही बेहतर जीना था। लेखिका की नानी की मृत्यु के पश्चात् उसकी माँ का विवाह एक ऐसे शिक्षित युवक से हुआ जिसे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण आई.सी.एस. की परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया था। उसके पास कोई खानदानी धन भी नहीं था। इसलिए उसकी माँ को विवश होकर अपनी माता और गांधी जी के विचारों को अपनाना पड़ा। वह शरीर से इतनी पतली-दुबली थी कि उसके लिए खादी की साड़ी सँभालना भी कठिन था। उसकी सास उसकी दुर्बलता का सदा मजाक किया करती थी। लेखिका की माँ का अपने ससुराल के परिवार पर बहुत दबदबा था। उसके भी दो कारण थे (1) ससुराल वाले भी अन्य भारतीयों की भाँति अंग्रेजों से प्रभावित थे। भले ही उनका लड़का क्रांतिकारी रहा हो। किंतु घर में दबदबा अंग्रेज़ भक्त ससुर का चलता था। ऐसी स्थिति में घर में एक सिरफिरे क्रांतिकारी की पत्नी होना परिकथा-सा रोमांच पैदा करता था। (2) दूसरा कारण था उसका प्रभावशाली व्यक्तित्व । वह सुंदर, नाजुक, ईमानदार, निष्पक्ष और गैर-दुनियादार थी। इसीलिए उसे घर के सामान्य कार्य करने के लिए भी नहीं कहा जाता था। उनकी तो केवल सलाह भर ली जाती थी, जिसका पूर्ण पालन किया जाता था। उसकी ससुराल के अन्य सदस्य ही उसकी गृहस्थी का काम सँभाले रहते थे। लेखिका ने कभी भी अपनी माँ को भारतीय माँ जैसा नहीं पाया था। उसने न कभी अपने बच्चों को लाड़-प्यार किया और न कभी उनके लिए खाना ही बनाया तथा न ही उन्हें कभी अच्छी बहू या पत्नी होने की शिक्षा ही दी। वह घर के कामों में भी रुचि नहीं रखती थी। वह अपना अधिक समय पुस्तकें पढ़ने में बिताती थी। वह संगीत सुनने की भी शौकीन थी। किंतु घर के सदस्य उन्हें कभी कोई ताना नहीं देते थे। उसमें दो गुण थे-प्रथम वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं। दूसरा वह एक की गोपनीय बात को सुनकर कभी दूसरों के आगे नहीं कहती थी। इसलिए बाहर के लोग भी उनके मित्र बने हुए थे। वे उस पर पूरा भरोसा रखते थे। माँ की भूमिका हमारे पिता जी ने ही निभाई थी। लेखिका की एक परदादी भी थी। उनकी कहानी भी अजीबोगरीब है। उन्हें सदा परंपरा को तोड़ने में ही मज़ा आता था। उन्होंने मंदिर में जाकर यह मन्नत माँगी थी कि उनकी बहू का पहला बच्चा लड़की हो। उनकी यह घोषणा सुनकर लोग हैरान रह गए थे कि यह उसने क्या कह दिया। वे अपनी मन्नत दोहराती रही। पूरे गाँव के लोगों का विश्वास था कि उसके तार तो सीधे भगवान जी से जुड़े हुए हैं। भगवान जी ने भी उनकी ऐसी सुनी कि एक नहीं पाँच लड़कियों का जन्म हुआ। लेखिका की परदादी के विषय में एक और घटना भी उल्लेखनीय है। एक बार घर के सभी मर्द बारात में गए हुए थे। घर की स्त्रियाँ रतजगा मना रही थीं। परदादी शोर से बचने के लिए किसी दूसरे कमरे में जाकर सो गई। तभी एक चोर सेंध लगाकर उनके कमरे में आ गया। कमरे में हलचल होने से परदादी की आँख खुल गई। उसने कहा, तुम कौन हो ? चोर ने कहा जी मैं हूँ। परदादी ने कहा तुम कोई भी हो, मेरे लिए कुएँ से एक लोटा पानी का लेकर आओ। चोर ने हड़बड़ाहट में कह दिया कि मैं तो चोर हूँ। बुढ़िया ने कहा कि मुझे इससे कुछ नहीं लेना-देना। बुढ़िया ने आधा लोटा पानी पीकर चोर से कहा ले आधा तू पी ले। चोर द्वारा पानी पी लेने पर उसने कहा अब हम माँ-बेटे हुए। अब तू चोरी कर या खेती कर। चोर बाहर निकलता हुआ हवेली के पहरेदारों द्वारा पकड़ा गया और माफी माँगकर बचा। उसके पश्चात् उसने चोरी करना छोड़कर खेती करना आरंभ कर दिया। 15 अगस्त, 1947 को देश को आजादी मिली। सब जगह आजादी का जश्न मनाया जा रहा था। लेखिका को बुखार था, इसलिए डॉक्टर ने उसे जश्न में शामिल होने को मना किया था। वह मन मसोसकर रह गई। लेखिका और उसकी अन्य चारों बहनें कभी किसी हीन-भावना की शिकार नहीं हुई थीं। लेखिका के परिवार में सभी बच्चों के दो-दो नाम थे-एक घर का और दूसरा बाहर का। लेखिका का घर का नाम उमा और बाहर का मृदुला गर्ग था उसकी छोटी बहन का घर का नाम गौरी और बाहर का नाम चित्रा था। इसी प्रकार बड़ी बहन का घर का नाम रानी और बाहर का नाम मंजुल भगत था। उसकी दो छोटी बहनों का नाम रेणु और अचला था और भाई का नाम राजीव। अचला अंग्रेजी में लिखती थी और भाई राजीव हिंदी में। रेणु का स्वभाव तो अत्यंत विचित्र था। वह गाड़ी में बैठने से इंकार कर देती और कहती थी थोड़े-से रास्ते के लिए गाड़ी में बैठना सामतंशाही का प्रतीक है। इसलिए वह पैदल ही घर पहुँचती, भले ही वह पसीने से तर-बतर हो जाती। एक बार उसने जनरल थिमैया को पत्र लिखकर उसका चित्र मँगवाया था। इससे पूरे मुहल्ले में उसकी चर्चा हुई थी। वह तो बी०ए० की परीक्षा देना भी उचित नहीं समझती थी। जब कोई उसे इत्र भेंट करता तो तपाक से कहती, “नहीं चाहिए, मैं तो नहाती हूँ”। तीसरे नंबर की चित्रा भी अजीब है। वह स्वयं न पढ़कर दूसरों को पढ़ाने में व्यस्त रहती। उसके अपने अंक कम आते और उसके शिष्यों के अधिक। जब शादी करने का समय आया तो उसने एक ही नज़र में लड़के को देखकर ऐलान कर दिया कि वह विवाह करेगी तो इसी से और अंत में उसी लड़के से उसका विवाह भी हो गया था। अचला सबसे छोटी बहन है। उसने पहले एम०ए० अर्थशास्त्र किया, फिर पत्रकारिता में दाखिला लिया और पिता की पसंद के लड़के से विवाह किया। उसे भी तीस वर्ष की आयु के पश्चात लिखने का रोग लग गया। सभी बहनों ने वैवाहिक जीवन का निर्वाह भली-भाँति किया। विवाह के पश्चात् लेखिका बिहार के एक छोटे से कस्बे डालमिया नगर में रही। वहाँ की औरतों के साथ उसने कई नाटक किए। फिर वह कर्नाटक के छोटे कस्बे बागलकोट में रही। वहाँ उसने कैथोलिक बिशप से प्राइमरी स्कूल खोलने की सिफारिश की, किंतु अस्वीकृत हो गई। फिर लेखिका ने वहाँ अपने प्रयास से प्राइमरी स्कूल खोल दिया। रेणु लेखिका की अपेक्षा कहीं अधिक जिद्दी और बहादुर थी। वह जिस काम को करने के लिए ठान लेती, उसे करके ही दिखाती थी। एक दिन वर्षा के कारण उसके स्कूल की बस नहीं आई। वह दो कि०मी० पैदल ही स्कूल में जा पहुँची। स्कूल बंद था, उसे उसका कोई मलाल नहीं था। उसका मानना था कि अकेलेपन का मजा कुछ और ही होता है। कठिन शब्दों के अर्थ – (पृष्ठ-13) : जाहिर = स्पष्ट। मर्म = भेद। पारंपरिक = परंपरा से चली आ रही। परदानशी = पर्दा-प्रथा में विश्वास रखने वाली। विलायत = इंग्लैंड। बसर करना = व्यतीत करना। आकांक्षा = इच्छा। (पृष्ठ-14) : करीब = नजदीक। इकलौती = अकेली। मुँह जोर = अधिक बोलना। लिहाज = शर्म। मर्द = पुरुष। मुँह खोलकर = बिना पर्दे के। हुजूर = दरबार। हैरतअंगेज़ = हैरान करने वाला। तय = निश्चित। फरमाबदार = आज्ञाकारी। बेखबर = अनजान होना । जुनून = पागलपन, धुन। दरअसल = वास्तव में। आजाद ख्याल = स्वतंत्र विचार। दखल देना = बाधा पहुँचाना। उबाऊ = ऊबा देने वाली, बोर। मजबूर = विवश। (पृष्ठ-15) : अपराध = कसूर, दोष । पुश्तैनी = माँ-बाप से प्राप्त। धेला = छोटा पैसा। चनका खा जाना = मरोड़ आ जाना, नस पर नस चढ़ जाना। शर्मिंदगी = लज्जा। नाजुक = कोमल। पेशकश = कार्य के लिए आगे आना। वजह = कारण। अभिभूत = प्रभावित। शोहरत = प्रसिद्धि। दबदबा = प्रभाव। परिकथा = परियों की कहानी। सनक = जिद्द । ख्वाहिश = इच्छा। रजामंदी = मान जाना, समझौता। तिलिस्म = जादू। शख्सियत = व्यक्तित्व। नजाकत = कोमलता, अदा। परीजात = परियों की जाति। पत्थर की लकीर = अटल काम। (पृष्ठ-16) : जुमला = कुल। ममतालू = ममता भाव से युक्त। परवरिश = देखभाल । मुस्तैद = तैयार। अरुचि = रुचि न होना। नाम धरना = चिढ़ाने के लिए गलत नाम पुकारना। रोब = प्रभाव। गोपनीय = छिपाने योग्य। बखूबी = भली-भाँति। (पृष्ठ-17) : उबरना = मुक्त होना। निजत्व बनाना = अपना व्यक्तिगत मत या आचरण बनाना। हवाले होना = लीन होना। लीक = बँधी-बँधाई रीति। खिसके = हटे। कतार = पंक्ति। व्रत = इरादा, संकल्प। फज़ल = दया, कृपा। अपरिग्रह = एकत्रित न करना। हरकत = गलत काम। मन्नत माँगना = ईश्वर से किसी काम की कामना करना। पतोहू = पुत्रवधू। गैर-रवायती = परंपरा के खिलाफ, अप्रचलित। पोशीदा = पर्दे से ढका हुआ, छिपा हुआ। ऐलान = घोषणा। फितूर = पागलपन, सनक। वाजिब = उचित। पुश्तों = पीढ़ियों। अभाव = कमी। बदस्तूर = लगातार। मर्तबा = बार। आरजू = इच्छा। रंग लाना = प्रभाव दिखाना। गुमान = अनुमान। (पृष्ठ-18) : गैर-वाजिब = अनुचित। जुस्तजू = चाह। अफरा-तफरी = अस्त-व्यस्त होना। नामी = प्रसिद्ध, मशहूर। दीदार = दर्शन। खुशनसीबी = अच्छा भाग्य। हाथ आना = मौका आना। रतजगा मनाना = रात को जागकर उत्सव मनाना। सेंध लगाना = चोरी से घुसना। जुगराफिया = नक्शा। पुरखिन = वृद्धा, बुढ़िया। इतमीनान = तसल्ली। टटोलकर = खोजकर। यकीन = विश्वास। धर्मसंकट = धर्म की बात सामने पाकर परेशानी में पड़ना। (पृष्ठ-19) : अकबकाया = घबराया। एहतियात = सावधानी। धर-दबोचा = पकड़ लिया। लायक = योग्य। रोमांचक धंधा = चोरी का काम। भला मानुस = अच्छा, मनुष्य। विरासत = माँ-बाप से मिली संपत्ति। प्रकोप = गुस्सा, क्रोध। हीन भावना = कमी होने का अपराध या भाव। नाहक = व्यर्थ। रोमानी = भावना से ओत-प्रोत, संवेदनशील। (पृष्ठ-20) : जश्न = त्योहार, समारोह। दुर्योग = बुरा अवसर। शिरकत करना = शामिल होना। इज़ाज़त = आज्ञा। सत्ताधारी = शासन करने वाले अंग्रेज़। कलपती = दुःखी होना। मिराक = मानसिक रोग। पलायन करना = चले जाना। मोहलत देना = अवकाश। गडूड-मड्ड होना = आपस में घुलमिल जाना। पल्ले पड़ना = समझ में आना। अनाचार = पापपूर्ण व्यवहार। कंठस्थ होना = याद होना। (पृष्ठ-21) : बरकरार रखना = कायम रखना। आड़े आना = रास्ते में रुकावट बनना। पैदाइशी = जन्म से ही। नारीवाद = नारी को महत्त्व देने संबंधी आंदोलन। पोंगापंथी = पाखंडी मूर्खतापूर्ण काम करने वाला। घरघुस्सू = घर में ही घुसा रहने वाला। (पृष्ठ-22) : तथ्य = सत्य, कथन। आलोचना-बुद्धि = अच्छे-बुरे की बातें करने वाली बुद्धि। दो-चार होना = सामना होना। नतीजतन = परिणामस्वरूप। सवा सेर होना = अधिक प्रभावी होना। आलम = हालत। सामंतशाही = बड़े-बड़े सामंतों की रईसी आदत। लाचारी = मज़बूरी। उदासीन = विमुख। कुढ़ते-भुनते = मन-ही-मन परेशान होकर बोलना। खरामा-खरामा = धीरे-धीरे। रुतबा = सम्मान, दर्जा। यकीन = विश्वास। (पृष्ठ-23) : विश्वसनीय = विश्वास करने योग्य। कुतर्क = गलत तर्क। वाकिफ = जानकार । पेश आना = सामने आना। मुलाकात = भेंट। हथियार डालना = हार मानना। (पृष्ठ-24) : कायम रखना = बनाए रखना। तलाक = शादी का संबंध तोड़ना। कगार = किनारा। प्रयोजन = उद्देश्य । दड़बा = समूह। अभिनय = एक्टिंग। चलन = व्यवहार। अकाल = सूखे या अधिक वर्षा के कारण अन्न न उपजना। बिशप = पादरी। इसरार = आग्रह। बशर्ते = शर्त के साथ। (पृष्ठ-25) : सिर झुकाना = स्वीकार करना। खिसके लोग = परंपरा से हटे हुए विद्रोही लोग। व्रत = संकल्प। नमूना = उदाहरण। पेश करना = प्रस्तुत करना, देना। मुकाबिल = बराबर का। कयामती = विनाशकारी। तल्ला = मंजिल। मलाल = दुःख। (पृष्ठ-26) : लब-लब करना = भरा-पूरा होना। निचाट = सूनापन। धुन = लगन। Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैंHBSE 9th Class Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Questions and Answersबच्चे काम पर जा रहे हैं प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 1. बच्चे काम पर जा रहे हैं
Class 9 HBSE Hindi प्रश्न 2. बच्चे काम पर जा रहे HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 3. बच्चे काम पर जा रहे हैं HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 7. प्रश्न 8. पाठेतर सक्रियता किसी कामकाजी बच्चे से संवाद कीजिए और पता लगाइए कि- ये भी जानें संविधान के अनुच्छेद 24 में कारखानों आदि में बालक/बालिकाओं के नियोजन के प्रतिषेध का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार ‘चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।’ HBSE 9th Class Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. बच्चे काम पर जा रहे हैं अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर 1. कोहरे से ढंकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं शब्दार्थ-कोहरा = धुंध । भयानक = डरा देने वाली। सवाल = प्रश्न। प्रश्न (2) व्याख्या कवि ने बताया है कि सुबह-सुबह कोहरे से ढकी हुई सड़क पर छोटे-छोटे बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं। कवि ने पुनः इस पंक्ति पर जोर देते हुए कहा है ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं, यह एक गंभीर बात है। कवि ने इस पंक्ति को इस युग की भयानक पंक्ति बताया है, क्योंकि यह पंक्ति बाल-श्रम की भयानक
एवं गंभीर समस्या की ओर संकेत करती है। इस पंक्ति को पूरे विवरण के साथ लिखना चाहिए अथवा इसे एक प्रश्न के रूप में लिखा जाना चाहिए-‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कहने का भाव है कि हमें इस प्रश्न पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए कि यह समय बच्चों के खेलने एवं पढ़ने का है, काम करने का नहीं है। (3) (क) प्रस्तुत पद्यांश में बाल-श्रम की समस्या का काव्यात्मक भाषा में सुंदर चित्रण किया गया है। (4) कवि ने अत्यंत सशक्त शैली में आज के युग की अत्यंत प्रज्वलित समस्या बाल-श्रम को उठाया है। कवि को आश्चर्य होता है जब बच्चे स्कूल या खेलने के मैदान में जाने की अपेक्षा सुबह-सुबह ठंड में काम पर जाते हैं। ‘बाल-श्रम’ आज के युग की गंभीर समस्या है। इसको एक प्रश्न की भाँति हमें समाज के सामने रखना चाहिए, ताकि इस पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जा सके। (5) कवि ने ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ पंक्ति को भयानक पंक्ति इसलिए कहा है, क्योंकि यह एक गंभीर समस्या की ओर संकेत करती है। यदि इस समस्या की ओर शीघ्र ध्यान नहीं दिया गया तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे। (6) कवि ने इस पंक्ति को सवाल की तरह लिखने के लिए इसलिए कहा है, क्योंकि जब तक हम इस समस्या पर प्रश्न-चिह्न नहीं लगाएँगे, तब तक समाज का या शासन का ध्यान इस ओर नहीं जाएगा। इसलिए इसे एक प्रश्न के रूप में समाज के सामने रखना चाहिए। 2. क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं
सारी गेंदें शब्दार्थ-अंतरिक्ष = ऊँचा आकाश । रंग बिरंगी किताबें = सुंदर पुस्तकें। ढहना = गिर जाना। मदरसों = स्कूलों, विद्यालयों। इमारतें = भवन। प्रश्न (2) व्याख्या कवि ने बाल-श्रम की समस्या पर विचार करते हुए कहा है कि बच्चों को काम पर क्यों भेजा जा
रहा है। क्या बच्चों के खेलने की सब गेंदें आकाश में चली गई हैं या फिर सभी रंग-बिरंगी अर्थात सुंदर-सुंदर पुस्तकों को दीमक ने नष्ट कर दिया है, जिससे बच्चों को पढ़ाने की अपेक्षा उन्हें काम पर भेजा जा रहा है। इसी प्रकार कवि ने कहा है कि क्या उनके खेलने के सभी खिलौने नष्ट हो गए हैं और जिन विद्यालयों के भवनों में बच्चे पढ़ने के लिए जाते हैं क्या वे सब भूकंप में गिरकर नष्ट हो गए हैं, जो बच्चों को विद्यालयों में भेजने की अपेक्षा काम पर भेजा जा रहा है। क्या सारे मैदान, सभी बाग-बगीचे और घरों के आँगन, जहाँ
बच्चे खेला करते थे, सब-के-सब अचानक नष्ट हो गए हैं। (3) (क) प्रस्तुत काव्यांश में कलात्मक ढंग से आज के युग की बाल-श्रम की ज्वलंत समस्या की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया गया है। (4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने ओजस्वी वाणी में आधुनिक समाज की अत्यंत ज्वलंत समस्या ‘बाल-श्रम’ को उजागर किया है। कवि ने कहा है कि बच्चों के खेलने के सभी साधन व मैदान तथा पढ़ने-लिखने के साधन पुस्तकें व विद्यालय के भवन नष्ट हो गए हैं कि बच्चों को खेलने व पढ़ने की अपेक्षा काम करने के लिए कारखानों में भेजा जा रहा है। वस्तुतः यह एक सामाजिक ही नहीं, अपितु कानून की दृष्टि से भी अपराध है। (5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बाल-श्रम की समस्या की ओर संकेत किया है। (6) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि समाज में बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के लगभग सभी साधन विद्यमान हैं, किंतु फिर भी बच्चों के व्यक्तित्व के विकास की ओर ध्यान न देकर उनसे काम करवाया जाता है। समाज की यह आपराधिक वृत्ति ही कवि के आक्रोश का मुख्य कारण है। 3. तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में? शब्दार्थ-दुनिया = संसार। हस्बमामूल = यथावत, ज्यों-की-त्यों। प्रश्न (2) व्याख्या कवि ने आधुनिक युग की समस्या बाल-श्रम का वर्णन करते हुए कहा है कि यदि बच्चों के विकास के साधन ही नष्ट हो गए तो दुनिया में फिर बचा ही क्या है ? यदि सचमुच
में ही ऐसा हो जाता अर्थात बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के साधन समाप्त हो जाते तो बहुत भयानक बात होती। किंतु कवि का मत कुछ अलग है। वह कहते हैं कि इससे भी भयानक यह है कि वे सब वस्तुएँ अथवा साधन यथावत बने हुए हैं अर्थात बच्चों के विकास के साधन विद्यमान हैं और संसार की हजारों सड़कों पर बहुत छोटे-छोटे बच्चे प्रतिदिन काम पर जाते हैं अर्थात उन्हें काम की अपेक्षा पढ़ने जाना चाहिए था। (3) (क)
प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में बाल-श्रम या बाल-शोषण की समस्या को यथार्थ रूप में उद्घाटित किया गया है। (4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने आज की प्रमुख समस्या बाल-श्रम को लेकर गहन एवं गम्भीर भावों को व्यक्त किया है। कवि ने प्रश्न-शैली और व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग करते हुए भावों को जहाँ तीव्र, आकर्षक बनाया है, वहीं उनकी आक्रामकता भी देखते ही बनती है। कवि का यह कहना कितना भयानक होता कि यदि संसार से बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के साधन विलुप्त हो जाते। किंतु इससे भी अधिक भयानक यह है कि साधन होते हुए भी बच्चे प्रतिदिन हजारों सड़कों से होकर काम पर जाते हैं। कहने का अभिप्राय है कि बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करने की अपेक्षा उनसे काम करवाकर उनका शोषण किया जाता है। (5) ‘कितना भयानक होता अगर ऐसा होता’ कवि ने ये शब्द उस संदर्भ में कहे हैं कि यदि वास्तव में ही बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के साधन नष्ट हो जाते तो यह अत्यधिक भयानक बात होती। उस स्थिति में बच्चों के व्यक्तित्व का समुचित विकास न हो पाता। (6) कवि को सबसे भयानक यह बात लगी कि संसार में बच्चों के व्यक्तित्व के सब साधन विद्यमान हैं, किंत फिर भी बच्चों को उनका प्रयोग नहीं करने दिया जाता। इतना ही नहीं, उनसे काम करवाकर नन्हे-मुन्नों का शोषण किया जाता है। बच्चे काम पर जा रहे हैं Summary in Hindiबच्चे काम पर जा रहे हैं कवि-परिचय प्रश्न- 2. प्रमुख रचनाएँ-(i) काव्य-संग्रह ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’, ‘मिट्टी का चेहरा’, ‘नेपथ्य में हँसी’ और ‘दो पंक्तियों के बीच’ । (ii) अनुवाद-भर्तृहरि की कविताओं की अनुरचना-‘भूमि का कल्पतरू यह भी’। (ii) मायकोवस्की की कविता का अनुवाद-पतलून पहिना बादल’। श्री जोशी जी की कविताओं के भी अंग्रेजी, रूसी और जर्मन भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। 3. काव्यगत विशेषताएँ-श्री राजेश जोशी समाज से जुड़कर चलने वाले साहित्यकार हैं। इन्होंने गहरे सामाजिक अभिप्राय वाली कविताओं की रचना की है। श्री जोशी की काव्य-रचनाएँ जीवन के संकट में भी गहरी आस्था को उभारती हैं। इनकी कविताओं में स्थानीय बोली-बानी, मिजाज और मौसम, सभी कुछ व्याप्त है। इनकी कविताओं में मानवता को बचाए रखने का एक निरंतर संघर्ष भी है। वे जहाँ एक ओर जीवन व जीवन-मूल्यों के विनाश व खतरे को स्पष्ट रूप में देखते हैं, वहीं वे उसी भाव व जोश से जीवन-संभावनाओं की खोज में भी लगे रहते हैं। पाठ्यपुस्तक में संकलित इनकी कविता में जहाँ वे बच्चों के काम पर जाने या उनके शोषण की बात कहते हैं, वहीं वे उनको पढ़ा-लिखाकर अच्छा इंसान बनाने, उनका बचपन लौटाने की संभावना की ओर भी संकेत करते हैं। 4. भाषा-शैली-श्री राजेश जोशी यदि एक ओर उच्चकोटि के कवि हैं तो दूसरी ओर महान गद्य लेखक तथा पत्रकार भी हैं। इनकी काव्य की भाषा गद्यमय होती हुई भी लयात्मक है। उसमें एक प्रवाह विद्यमान है। श्री जोशी ने अपने काव्य की भाषा में तत्सम शब्दों के साथ विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी अत्यंत सफलतापूर्वक किया है। बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता का सार काव्य-परिचय प्रश्न- Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 1 इस जल प्रलय में Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 1 इस जल प्रलय मेंHBSE 9th Class Hindi इस जल प्रलय में Textbook Questions and Answersइस जल प्रलय में के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1. Kritika Chapter 1 Class 9 HBSE प्रश्न 2. Kritika Chapter 1 Class 9 Questions And Answers HBSE प्रश्न 3. Class 9th Kritika Chapter 1 Question Answer HBSE प्रश्न 4. Class 9th Chapter 1 Kritika HBSE प्रश्न
5. Class 9 Hindi Book Kritika Chapter 1 Question Answer HBSE प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. HBSE 9th Class Hindi इस जल प्रलय में Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न
26. इस जल प्रलय में Summary in Hindiइस जल प्रलय में पाठ-सार/गद्य-परिचय प्रश्न- संध्या हो चुकी थी। बहुत-से लोग पान की दुकान के सामने खड़े समाचार सुन रहे थे। पानी स्टूडियो तक आ चुका था। समाचार दिल दहलाने वाला था। किंतु लोग कुछ ज्यादा परेशान नहीं थे। वे अन्य दिनों की भाँति ही हँस-खेल रहे थे। उस पान वाले की बिक्री अवश्य बढ़ गई थी। कोई भी व्यक्ति बाढ़ से भयभीत नहीं दिखाई दे रहा था। हमारे ही चेहरे दुःखी लग रहे थे। कुछ लोग कह रहे थे कि एक बार पटना भी पूरी तरह से डूब जाए तो सारे पाप धुल जाएँगे। वे ताश खेलने के लिए बैठना चाहते थे कि तभी उनके मन में विचार आया कि इनकम टैक्स वालों को इसी समय छापा मारना चाहिए। उन्हें बहुत-सा माल एक ही स्थान पर मिल जाएगा। लेखक अपने मकान पर पहुँचा ही था कि उसी समय लाउडस्पीकर से घोषणा करने वाली गाड़ी उनके मुहल्ले में पहुंची। वह घोषणा कर रही थी कि ‘भाइयो! ऐसी संभावना है कि बाढ़ का पानी रात के बारह बजे तक लोहानीपुर, कंकड़बाग और राजेंद्रनगर में घुस सकता है। अतः आप लोग सावधान रहें। लेखक घर में गैस की स्थिति का पता लगाता है। वह फिर सोने की कोशिश करता है पर नींद कहाँ आती है। वह उठ जाता है और कुछ लिखना चाहता है तो उसके मन में अनेक पुरानी यादें आने लगती हैं। लेखक याद करता हुआ लिखता है कि 1947 में मनिहारी में बाढ़ आई थी। लेखक गुरु जी के साथ बाढ़ से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए उस क्षेत्र में गया था। उनकी हिदायत थी कि हर नाव पर दवा, माचिस तथा किरासन तेल अवश्य रहना चाहिए। इसी प्रकार सन् 1949 में लेखक महानंदा की बाढ़ से घिरे बापसी थाना के एक गाँव में लोगों की सहायता के लिए पहुंचा। वे नाव पर चढ़ाकर बीमारों को कैंप तक ले जाना चाहते थे कि एक बीमार के साथ उसका कुत्ता भी चढ़ गया। किंतु दूसरे लोगों द्वारा एतराज करने पर वह व्यक्ति अपने कुत्ते समेत नाव से नीचे कूद गया था। लेखक सहायता के लिए कुछ और आगे गया तो पता चला कि वहाँ लोग कई दिनों से मछली व चूहों को झुलसाकर खा रहे हैं। जब ये लोग एक टोले के पास पहुंचे तो पता चला कि ऊँची-सी जगह पर मंच बनाकर ‘बलवाही’ लोक नाटक कर रहे हैं। लाल साड़ी पहने काला-कलूटा ‘नटुआ’ दुलहिन के हाव-भाव दिखला रहा था। वहाँ बैठे लोगों के चेहरों पर जरा भी बाढ़ का भय नहीं था। इसी प्रकार सन् 1967 की बाढ़ में जब पुनपुन का पानी राजेंद्रनगर में घुस आया था, तो एक नाव पर कुछ सजे-धजे युवक-युवतियों की टोली किसी फिल्म में देखे हुए कश्मीर का आनंद घर बैठे लेने के लिए निकली थी। नाव पर चाय बन रही थी। एक युवती अनोखी अदा से नैस्कैफे के पाउडर को मथकर ‘एस्प्रेसो’ बना रही थी। दूसरी लड़की रंगीन पत्रिका पढ़ रही थी। एक युवक उस युवती के सामने घुटनों पर कोहनी टेककर डायलॉग बोल रहा था। ट्रांजिस्टर पर कोई फिल्मी गाना बज रहा था। लेखक रात के ढाई बजे तक जागता रहा, किंतु तब तक बाढ़ का पानी नहीं आया था। सभी लोग जागते रहे। उस समय लेखक के मन में अपने मित्रों के प्रति चिंता हुई कि न जाने किस हाल में होंगे। लेखक को नींद नहीं आ रही थी। वह फिर लिखने बैठ गया पर इस समय वह क्या लिखे। पाँच बजे लेखक फिर आवाज़ सुनता है कि पानी आ रहा है। वह दौड़कर छत पर गया। उसने देखा कि चारों ओर से लोगों की चीख-पुकार सुनाई दे रही थी। पानी की लहरों का नृत्य भी दिखाई दे रहा था। पानी तेज गति से सब कुछ अपने साथ समेटता हुआ आगे बढ़ रहा था। लेखक बाढ़ को तो बचपन से देखता हुआ आ रहा था, किंतु पानी इस तरह आता उसने कभी न देखा था। कठिन शब्दों के अर्थ – (पृष्ठ-1) : पीड़ित = दुःखी। पनाह = शरण। ट्रेन = रेलगाड़ी। विशाल = बहुत बड़ी। सपाट = सरल, सीधी। परती = वह जमीन जो जोती-बोई न जाती हो। विभीषिका = भयंकरता। रिलीफवर्कर = राहत पहुंचाने वाला कार्यकर्ता। प्रस्तुत किया = लिखा। छुटपुट = छोटे-छोटे। . (पृष्ठ-2) : विनाश लीला = नाश करने वाली क्रिया। अविराम = निरंतर। वृष्टि = वर्षा । हैसियत = शक्ति। प्रतीक्षा = इंतजार। प्लावित = जिस पर बाढ़ का पानी चढ़ आया हो, जो जल में डूब गया हो। अबले = अधिक। अनवरत = निरंतर। अनर्गल = बेतुकी, व्यर्थ। अनगढ़ = बेडौल, टेढ़ा-मेढ़ा। स्वगतोक्ति = अपने आप से कुछ बोलना। (पृष्ठ-3) : जुबान = जीभ। जिज्ञासा = जानने की इच्छा। एरिया = क्षेत्र। आतंक = भय। बाबस = अचानक। समय = भय सहित। अस्फुट = अस्पष्ट । अनुनय = प्रार्थना। गैरिक = गेरुए रंग का। आवरण = पर्दा। (पृष्ठ–4) : आच्छादित = ढका हुआ। शनैः शनैः = धीरे-धीरे। अधेड़ = चालीस वर्ष की आयु वाला। मुस्टंड = बदमाश। गंवार = ग्रामीण। उत्कर्ण = सुनने को उत्सुक। दिल दहलाने वाले = डरा देने वाले। चेष्टा = प्रयास। परेशान = दुःखी। आसन्न = पास आया हुआ। आदमकद = आदमी के कद के बराबर। मुहर्रमी = निराश, आतंकित। (पृष्ठ-5) : हुलिया = वेशभूषा। धनुष्कोटि = एक स्थान का नाम। माकूल = सही। मौका = अवसर। बा-माल = माल सहित। पूर्ववत् = पहले की भांति । सुधि लेना = ध्यान रखना। अलमस्त = मौजमस्ती मनाने वाला, बेपरवाह। ऐलान करना = घोषणा करना। (पृष्ठ-6) : गृहस्वामिनी = घर की मालकिन। अंदाज = अनुमान। आकुल = व्याकुल। बेतरतीब = बेढंगे। बालूचर = रेतीला क्षेत्र। (पृष्ठ-7) : हिदायत = निर्देश। मुसहरी = एक जाति विशेष का नाम। बलवाही = एक लोक-नृत्य का नाम। दुलहिन = नई नवेली। (पृष्ठ-8) : रिलीफ़ = राहत का सामान । भेला = नाव। झिंझिर = जल-विहार । अनोखी = अद्भुत। डायलॉग = संवाद । वॉल्यूम = ध्वनि। फूहड़ = बेसुरे। (पृष्ठ-9) : एक्ज़बिशनिम = प्रदर्शनवाद। छूमंतर होना = समाप्त होना। आसन्नप्रसवा = जिसे आजकल में बच्चा होने वाला हो। बेहतर = बढ़िया। (पृष्ठ-10-11) : उजले = सफेद। आ रहलौ = आ गया है। किलोल करना = क्रीड़ाएँ करना। अतिथिशाला = विश्राम गृह। अवरोध = रुकावट। कलरव = पक्षियों की ध्वनि। नर्तन = नाच। सशक्त = शक्तिपूर्वक। लोप होना = डूब जाना। Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आएHBSE 9th Class Hindi मेघ आए Textbook Questions and AnswersClass 9 Chapter 15 Hindi HBSE प्रश्न 1. Class 9 Hindi Chapter 15 Bhavarth HBSE प्रश्न 2. मेघ आए के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 3. Class 9 Hindi Chapter 15 Hindi Translation प्रश्न 4. (ख) जब बादल आकाश में छा गए तो नदी रूपी युवती थोड़ा रुककर और आश्चर्यपूर्वक अपने मुख से यूँघट उठाकर तिरछी दृष्टि से बादल रूपी मेहमानों को देखने लगती है। कहने का तात्पर्य है कि बादलों के एकाएक छा जाने से नदी के मन में आश्चर्य-सा छा गया कि ये एकाएक कहाँ से आ गए। Class 9 Hindi Chapter 15 Vyakhya HBSE प्रश्न 5. Megh Aaye Summary HBSE 9th Class प्रश्न 6. मेघ आए कविता का सार HBSE 9th Class प्रश्न 7. रूपक-(क) मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। Class 9 Kshitij Chapter 15 Question Answer HBSE प्रश्न 8. मेघ आए कविता Class 9 HBSE प्रश्न 9. मेघ आए कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 10. रचना और अभिव्यक्ति Megh Aaye Class 9 HBSE प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. भाषा-अध्ययन प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. पाठेतर सक्रियता वसंत ऋतु के आगमन का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए। उत्तर-विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं लिखेंगे। • प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिएधिन-धिन-धा धमक-धमक मेघ बजे दामिनि यह गई दमक मेघ बजे दादुर का कंठ खुला मेघ बजे धरती का हृदय धुला मेघ बजे पंक बना हरिचंदन मेघ बजे हल का है अभिनंदन मेघ बजे धिन-धिन-धा …….. प्रश्न- अपने शिक्षक और पुस्तकालय की सहायता से केदारनाथ सिंह की ‘बादल ओ’, सुमित्रानंदन पंत की ‘बादल’ और निराला की ‘बादल-राग’ कविताओं को खोजकर पढ़िए। HBSE 9th Class Hindi मेघ आए Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न
19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. मेघ आए अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर 1. मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के। शब्दार्थ-मेघ = बादल। बन-ठन के = बन-सँवरकर, सज-धजकर। बयार = ठंडी एवं सुगंधित वायु। पाहुन = मेहमान। प्रश्न (2) व्याख्या-कवि ने बादलों के आने का वर्णन करते हुए लिखा है कि आज बादल बहुत ही बन-सँवरकर आए हैं अर्थात आकाश में छाए हुए हैं। बादलों के स्वागत में मानों बादलों के आगे-आगे नाचती-गाती हुई ठंडी एवं सुगंधित वायु चली आ रही है। जिस प्रकार शहरी मेहमान को देखने के लिए लोग खिड़कियाँ व दरवाजे खोल देते हैं, ठीक उसी प्रकार आकाश में बादल छा जाने से लोग बादलों को देखने के लिए घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खोल देते हैं। कहने का तात्पर्य है कि बादल
छा जाने से वातावरण प्रसन्नतामय बन जाता है। (3) (क) कवि ने ग्रामीण संस्कृति एवं सद्भावना का मनोरम चित्रण किया है। (4) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भावपूर्ण शैली में नए-नए बादलों के आकाश में छा जाने से वातावरण में उत्पन्न प्रसन्नता का उल्लेख किया है। कवि ने बादलों के सौंदर्य की तुलना नगर से सज-धजकर आए अतिथियों से की है। जिस प्रकार नगर एवं गाँव में अतिथि के पधारने पर वहाँ के लोग प्रसन्न हो जाते हैं और उत्सुकतापूर्वक अपने घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खोल देते हैं, उसी प्रकार बादलों के आकाश पर छा जाने पर गली-गली में लोग उन्हें देखने के लिए अपने घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खोल देते हैं। जैसे गाँव के लोग अतिथियों का स्वागत करने के लिए उनके आगे-आगे चलते हैं, वैसे ही बादलों के आने से पूर्व ठंडी एवं सुगंधित वायु बहने लगती है। कवि ने बादलों के सौंदर्य के साथ-साथ ग्रामीण संस्कृति एवं सद्भावना का अत्यंत सुंदर चित्रण किया है। (5) प्रस्तुत पद्यांश में बादलों का चित्रण सज-धजकर आए शहरी मेहमानों के रूप में किया गया है। दोनों में सौंदर्य की समानता के साथ-साथ उनके स्वागत की विधि भी समान है। (6) कवि ने बताया है कि मेघ व वर्षा के स्वागत तथा आनंद-प्राप्ति के लिए लोगों ने अपने घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खोल दी थीं। 2. पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए, शब्दार्थ-गरदन उचकाए = गरदन उठाकर । झाँकना = देखना। बाँकी चितवन = तिरछी मनमोहक दृष्टि। ठिठकी = रुकी। यूंघट सरकाना = यूंघट हटाना। प्रश्न (2) व्याख्या-कवि का कथन है कि जब आकाश में बादल छा गए तो ऐसा लगने लगा कि गाँव के लोगों की भाँति पेड़ गरदन उठाकर तथा कुछ झुक-झुककर बादलों को देखने लगे हों। जिस प्रकार मेहमान के आने की सूचना देने के लिए
कोई किशोरी घाघरा सँभालती हुई भागती है; उसी प्रकार धूल-भरी आँधी भी बादलों के आने की सूचना देने के लिए बहने लगी। नदी भी अपने प्रवाह को रोककर मेघों को देखने के लिए कुछ देर के लिए रुकी हुई-सी लगी। उसने अपने मुख से मानों बूंघट सरका दिया हो और वह सजे हुए बादलों को देखने लगी हो जैसे युवतियाँ मेहमान को ठिठककर देखने लगती हैं। मेघ बन-सँवरकर अर्थात नए रूप में आकाश में छा गए हैं। (3) पेड़ बादलों को देखने के लिए झुक गए थे। (4) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने दर्शाया है कि जब कोई नगर का व्यक्ति बन-सँवरकर गाँव में मेहमान बनकर आता है तो वहाँ के वातावरण में प्रसन्नता छा जाती है। शहरी मेहमान के गाँव में आने से वहाँ के वातावरण में जैसा परिवर्तन आता है वैसा ही परिवर्तन बादल आ जाने से प्रकृति में भी छा जाता है। गाँव के बूढ़े लोग मेहमान को उचक-उचककर देखते हैं और झुक-झुककर उसका अभिवादन करते हैं। स्त्रियाँ अपना यूँघट सरकाकर उसे तिरछी दृष्टि से देखती हैं। (5) आँधी किशोरी का प्रतीक है। वह अपना घाघरा सम्भालती हुई दौड़ी। (6) मेघ बहुत सज-संवर व बन-ठन कर आए। (7) घाघरा से सतर्क होने का भाव या आशय है। 3. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की, शब्दार्थ-जुहार = आदर के साथ झुककर नमस्कार करना। बरस = वर्ष । सुधि = याद । लीन्हीं = ली। अकुलाई = व्याकुल। ओट = आड़। किवार = किवाड़, दरवाजा। हरसाया = हर्ष से भरा, प्रसन्नता से युक्त। ताल = तालाब। मेघ = बादल । प्रश्न (2) व्याख्या-कवि का कथन है कि मेहमान रूपी बादल सज-धज कर आ गए हैं। जिस प्रकार गाँव के बड़े-बूढ़े झुककर मेहमान का स्वागत करते हैं; उसी प्रकार पीपल के पेड़ ने बादलों का स्वागत किया। जिस प्रकार मेहमान की विरहिणी
पत्नी किवाड़ की ओट में छिपकर पति को बहुत दिन बाद आने का उपालंभ देती है, उसी प्रकार प्यासी लता ने बादलों को उलाहना देते हुए कहा कि पूरे एक वर्ष बाद हमारी सुध ली है। मेहमान रूपी बादल के आने की प्रसन्नता में तालाब रूपी परिवार का सदस्य पानी की परात भरकर ले आया अर्थात तालाब पानी से लबालब भर गया। (3) (क) प्रकृति के संपूर्ण दृश्य का चित्रात्मक शैली में वर्णन किया गया है। (4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने बादल छा जाने से व्याप्त प्रसन्नता का वर्णन किया है। बादल का स्वागत ऐसे किया गया है जैसे गाँव में मेहमान पहुंचने पर उसका स्वागत किया जाता है। पीपल ने सर्वप्रथम आगे बढ़कर झुककर बादल का अभिवादन किया है। पत्नी की भाँति लता ने बादल को उपालंभ देते हुए कहा कि एक वर्ष बाद हमारी सुध ली है। वर्षा होने पर तालाब पानी से भर जाता है। ऐसा लगता है कि वह बहुत प्रसन्न है और परात में पानी भर कर लाया हो। कहने का अभिप्राय है कि बादल छा जाने पर सर्वत्र हर्ष का वातावरण बन गया है। (5) ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ में प्रिया के उपालंभ भाव की अभिव्यक्ति हुई है। (6) वर्षा होने पर तालाब पानी से भर जाता है। ऐसा लगता है कि बादल के आने पर वह तालाब बहुत प्रसन्न हो उठा है और परात भर पानी ले आया है। 4. क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी, शब्दार्थ-क्षितिज = जहाँ आकाश और पृथ्वी मिलते हुए दिखाई देते हैं। अटारी = भवन या महल का ऊपरी भाग। गहराना = छा जाना। दामिनि = बिजली। दमकी = चमकी। गाँठ खुल जाना = भ्रम दूर हो जाना। भरम = संदेह । बाँध = सेतु, पुल । अश्रु = आँसू। प्रश्न (2)
व्याख्या-कवि ने बताया है कि मेघ क्षितिज रूपी अटारी पर पहुँच गए अर्थात जैसे अतिथि को देखने के लिए लोग अटारी पर जमा हो जाते हैं, वैसे ही बादलों के गहराने से उनमें बिजली चमकने लगती है। प्रकृति के विविध उपादान मानों मेघ से कह रहे हों कि हमें क्षमा करना। हमारे मन में जो भ्रम था कि तुम वर्षा नहीं करोगे, अब वह दूर हो गया है अर्थात वर्षा हो गई है। झर-झर की आवाज करती हुई बूंदें गिरने लगीं। पति-पत्नी के संदर्भ में बहुत दिनों के बाद पति-पत्नी घर की छत पर मिले । गले मिले, शिकवा-शिकायतें की और आपसी भ्रम दूर
हो जाने पर पत्नी पति से गले मिलकर रोने लगी। उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे। (3) मेघ आए’ शीर्षक कविता से उद्धृत इन पंक्तियों में कवि ने बादल के बरसने का वर्णन अत्यंत सुंदर कल्पनाओं के माध्यम से किया है। साथ ही कवि ने वर्षा के प्रभाव का उल्लेख भी किया है। (4) (क) कवि ने वर्षा का वर्णन अत्यंत कलात्मकतापूर्ण किया है। (5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने चित्रात्मक शैली के द्वारा वर्षा के सौंदर्य एवं प्रभाव का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। कवि ने बताया है कि गाँव के लोगों में अतिथि का सत्कार करने की अत्यधिक लगन होती है। वे अतिथि को देखने के लिए छत पर जमा हो जाते हैं। उनके वस्त्रों व गहनों की चमक-धमक ऐसी लगती है जैसे बादलों में बिजली चमकती है। प्रकृति के विविध अंग मानों कह रहे हों कि हमें क्षमा करना। हमारे मन में जो भ्रम था कि तुम वर्षा नहीं करोगे, अब वह भ्रम समाप्त हो गया। कहने का भाव है कि वर्षा हो गई। वर्षा पड़ने का शोर मच रहा है। दूसरे अर्थ में कहा जा सकता है कि पति-पत्नी के बीच जो भ्रम था, वह समाप्त हो गया और मानों पत्नी पति के गले लगी हो और उसकी आँखों से झर-झर करके अश्रुधारा बह निकली हो। अतः स्पष्ट है कि कवि के वर्षा-वर्णन से संबंधित भाव अत्यंत सुंदर एवं सार्थक बन पड़े हैं। (6) प्रस्तुत पंक्ति द्विअर्थक है। प्रथम अर्थ है प्रकृति के अन्य उपादान यह समझ रहे थे कि शायद बादल न बरसें, किंतु बादलों के बरस जाने पर उनके मन से भ्रम समाप्त हो गया और अब वे बहुत प्रसन्न हैं। इसी प्रकार पति के घर आने पर पत्नी के मन के सब भ्रम समाप्त हो गए और प्रसन्नचित्त हो पति के गले से लगकर आँसू बहा रही है कि मैंने पति के विषय में कैसी-कैसी धारणाएँ बना ली थीं। मेघ आए Summary in Hindiमेघ आए कवि-परिचय प्रश्न- 2. प्रमुख रचनाएँ-
3. काव्यगत विशेषताएँ-उनके काव्य में शिल्प-विधान की अपेक्षा विषय वस्तु पर अधिक ध्यान दिया गया है। उन्होंने अपने काव्य में सम-सामयिक जीवन के परिवेश का यथार्थ चित्रण किया है। उनके काव्य में अनुभूतियों की गहराई देखते ही बनती है। यथा ‘कोट के गुलाब और जूड़े के
फूल को, वे अपने जीवन में आने वाली पराजय और घुटन की अनुभूतियों से निराश होने की अपेक्षा निरंतर प्रेरणा प्राप्त करते रहे। उनके काव्य में नयी कविता का कोरा बुद्धिवाद नहीं है, अपितु हृदय को छूने वाली कोमल भावनाएँ भी हैं। उन्होंने रोमानी वातावरण की कविताओं की रचना भी की है। 4. भाषा-शैली-उनके काव्य की भाषा सर्वत्र सुलभ, स्पष्ट और बोलचाल की है। भाषा प्रसाद गुण संपन्न है। उनके काव्य में तीखे व्यंग्य भी प्रभावशाली बन पड़े हैं। उनकी भाषा में कहीं भी उलझाव प्रतीत नहीं होता। उनकी कल्पना-शक्ति बेजोड़ है। उनकी कविता के बारे में सुमित्रानंदन पंत ने लिखा था वे जन्मजात, अकृत्रिम कवि हैं। नयी कविता की पहचान कराने वाले कवियों में उनका विशेष स्थान है। प्राकृतिक परिवेश का मानवीकरण करने में वे सिद्धहस्त हैं। मेघ आए कविता का सार काव्य-परिचय प्रश्न- Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिलाHBSE 9th Class Hindi कैदी और कोकिला Textbook Questions and Answersकैदी और कोकिला प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1. कैदी और कोकिला व्याख्या HBSE 9th Class प्रश्न 2. Class 9
Hindi Chapter 12 Bhavarth HBSE प्रश्न 3. Class 9 Hindi Kaidi Aur Kokila Vyakhya HBSE प्रश्न 4. कैदी और कोकिला
HBSE 9th Class प्रश्न 5. कैदी और कोकिला Question And Answer HBSE प्रश्न 6. Kaidi Aur Kokila Class 9 HBSE प्रश्न 7. कैदी और कोकिला प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 8. Kaidi Aur Kokila Summary HBSE 9th Class प्रश्न
9. Class 9 Hindi Chapter 12 Vyakhya
HBSE प्रश्न 10. Kaidi Aur Kokila Vyakhya HBSE 9th Class प्रश्न 11. (ख) (1) प्रस्तुत पंक्तियों में कोयल के प्रति कवि के मन के ईर्ष्या भाव को प्रस्तुत किया गया है। रचना और अभिव्यक्ति Kaidi Aur Kokila Prashn Uttar HBSE 9th
Class प्रश्न 12. Kaidi
Aur Kokila HBSE 9th Class प्रश्न 13. पाठेतर सक्रियता पराधीन भारत की कौन-कौन सी जेलें मशहूर थीं,
उनमें स्वतंत्रता सेनानियों को किस-किस तरह की यातनाएँ दी जाती थीं? इस बारे में जानकारी प्राप्त कर जेलों की सूची एवं स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को राष्ट्रीय पर्व पर भित्ति पत्रिका के रूप में प्रदर्शित करें। HBSE 9th Class Hindi कैदी और कोकिला Important Questions and AnswersClass 9 Hindi Kshitij Chapter 12 Vyakhya HBSE प्रश्न 1. Kaidi Aur Kokila Ke Prashn Uttar HBSE 9th Class प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. वह फुदक-फुदक कर एक टहनी से दूसरी टहनी पर जा बैठती है। वह प्रसन्नतापूर्वक मधुर ध्वनि में कूक-कूक कर अपने मन की प्रसन्नता व्यक्त कर रही है। दूसरी ओर, कवि तंग कोठरी में पड़ा हुआ दुःखी हो रहा है। प्रश्न 5. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न
14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. कैदी और कोकिला अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर 1. क्या गाती हो ? शब्दार्थ-घेरे में = बंधन में। बटमार = रास्ते में यात्रियों को लूटने वाला । तम = अंधकार । हिमकर = चंद्रमा। कालिमामयी = काले रंग वाली। आली = सखी। प्रश्न (2) प्रस्तुत काव्यांश श्री माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख काव्य रचना ‘कैदी और कोकिला’ में से उद्धृत है। कवि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कारागार में बंद कर दिया गया था। वहाँ एकाकी और यातनामय वातावरण के कारण उसके मन में निराशा भर गई है। रात को कोयल की ध्वनि सुनकर वह जाग जाता है और अपने मन के दुःख और ब्रिटिश शासन के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करता हुआ कोयल से ये शब्द कहता है। (3) व्याख्या-कवि कोयल की ध्वनि सुनकर उससे पूछता है कि इस समय तुम रह-रहकर क्या गाती हो ? अपनी इस ध्वनि के माध्यम से तुम किसके लिए और क्या संदेश लाती हो। मुझे इसके विषय में बताओ।। कवि अपने विषय में उसे बताता है कि मैं यहाँ कारागार की ऊँची-ऊँची काली दीवारों के घेरे में डाकुओं, चोरों तथा रास्ते में दूसरों को लूटने वाले बटमारों के बीच बंद हूँ। दूसरी ओर, अंग्रेज सरकार जीने के लिए भर पेट खाना भी नहीं देती। यहाँ ऐसी दशा बना दी गई है कि न हम मर सकते हैं और न ही भली-भाँति जी सकते हैं, बस तड़पते रहते हैं। यहाँ हमारे जीवन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया गया है। अंग्रेजी शासन का प्रभाव गहरे अंधकार के प्रभाव के समान है। कहने का भाव है कि जिस प्रकार अंधकार में कुछ नहीं सूझता; उसी प्रकार अंग्रेजी शासन में किसी के साथ सही न्याय नहीं होता। अब रात काफी बीत चुकी है। चंद्रमा भी मानो निराश होकर चला गया है और उसके जाने के पश्चात रात पूर्णतः अंधकारमयी हो गई है। इस कालिमामयी अर्थात् गहरे काले रंग वाली कोयल तू इस अंधेरी रात में क्यों जाग गई। तुझे क्या गम या चिंता है। भावार्थ-इन काव्य-पंक्तियों में जहाँ एक ओर कवि के मन की निराशा का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज शासन के अत्याचारों को उजागर किया गया है। (4) प्रस्तुत पद में कवि ने जहाँ अपने मन के निराश भावों को अभिव्यक्त किया है वहीं अंग्रेज सरकार के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ किए गए दुर्व्यवहारों एवं शोषण का यथार्थ चित्रण किया है। अंग्रेज सरकार द्वारा किए गए अन्याय एवं अत्याचारों को उजागर करना ही इस काव्यांश का मूल भाव है। (5) (क) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। (6) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उन्हें कारागार में बंद कर देती थी। उन्हें भर पेट खाना भी नहीं देती थी। वे न तो जी सकते थे और न ही मर सकते थे। उन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया जाता था। 2. क्यों हूक पड़ी? शब्दार्थ-हूक = बोलना। वेदना = पीड़ा। मृदुल = कोमल, मधुर। वैभव = धन-संपत्ति, सुख। बावली = पागल। दावानल = जंगल की आग। ज्वालाएँ = लपटें। प्रश्न (2) व्याख्या कविवर माखनलाल चतुर्वेदी अर्द्धरात्रि के समय कोयल की पीड़ा भरी आवाज सुनकर उससे पूछते हैं, हे कोयल! तू इस प्रकार पीड़ा के बोझ से दबी हुई-सी आवाज में क्यों बोल उठी है ? बताओ तो सही तूने क्या किसी को लूटते हुए देखा है। तू सदा मधुर ध्वनि में बोलने के कारण मधुरता के ऐश्वर्य की रक्षक-सी लगती थी, किंतु आज ऐसी वेदनायुक्त आवाज में क्यों बोल रही हो ? हे कोयल ! क्या तुम पगला गई हो जो आधी रात के समय इस प्रकार कूकने लगी हो। क्या तुझे कहीं जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी हैं जिन्हें देखकर तुम इस प्रकार कूक रही हो। (3) प्रस्तुत पद्यांश में कवि रात्रि के समय कोयल की कूकने की ध्वनि को सुनकर आशंकित हो उठता है और उससे इस प्रकार रात को कूकने का कारण जानना चाहता है, क्योंकि कवि को कोयल की ध्वनि में मृदुलता की अपेक्षा पीड़ा अनुभव होती है। (4) (क) प्रस्तुत पद प्रश्न शैली में रचित है। इससे जहाँ कवि के मन की जिज्ञासा का बोध होता है, वहीं काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है। 3. क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना? शब्दार्थ-गहना = आभूषण। चर्रक चूँ = कोल्हू के चलने पर निकलने वाली ध्वनि। मोट खींचना = पुर, चरसा (चमड़े का डोल जिससे कुएँ आदि से पानी निकाला जाता है।)। जूआ = बैल के कंधों पर रखी जाने वाली लकड़ी। गज़ब ढाना = जुल्म करना। प्रश्न (2) व्याख्या कवि ने कोयल से पूछा है कि क्या वह देख नहीं सकती कि अंग्रेज सरकार ने उन्हें जंजीरों के गहने पहनाए हुए हैं। ये हथकड़ियाँ जो हमने पहनी हुई हैं यही तो ब्रिटिश राज्य के गहने हैं जो वह भारतीयों को पहनाता है। कहने का भाव है ब्रिटिश शासक भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों
के पैरों में बेड़ियाँ और हाथों में हथकड़ियाँ डाल देते थे। कवि पुनः कहता है कि कैदियों से कोल्हू चलवाया जाता था उससे जो चर्रक चूँ की ध्वनि निकलती है, वह मानो हमारे जीवन की तान हो। यहाँ कारागार में रहते हुए स्वतंत्रता सेनानी भी मिट्टी पर अपनी अँगुलियों से ही देश-भक्ति के गीत लिखते हैं। मैं अपने पेट पर जूआ लगाकर मोट खींचता हूँ अर्थात् कुएँ से पानी निकालता हूँ। मुझे उस समय ऐसा लगता है कि मैं कुएँ से पानी नहीं, अपितु ब्रिटिश शासन की अकड़ (अहंकार) के कुएँ को खाली कर रहा हूँ। कवि पुनः कोयल को संबोधित
करता हुआ कहता है कि दिन में रुलाने वाली करुणा क्यों जगे अर्थात् दिन में हम करुणा के भाव को चेहरे पर व्यक्त नहीं करते ताकि अंग्रेज शासक यह न समझ लें कि हम टूट चुके हैं। इसलिए तू भी रात को करुणा जगाने वाली ध्वनि करके गजब ढा रही है। (3) कवि के कहने का भाव है कि ब्रिटिश शासन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति क्रूरता एवं अमानवीय व्यवहार करता था। वह उन्हें कड़ी-से-कड़ी सजा देता था। साधारण अपराधियों और स्वतंत्रता सेनानियों में उसे कोई अंतर महसूस नहीं होता था। कवि ने अंग्रेज शासन के दुर्व्यवहार को दर्शाकर भारतवासियों में राष्ट्रीय चेतना जगाने का सफल प्रयास किया है। (4) (क) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में चित्रात्मक शैली में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग एवं बलिदान की भावना को उद्घाटित किया गया है। (5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उन्हें कारागार में बंद कर देती थी। उनके पैरों में जंजीरें और हाथों में हथकड़ियाँ पहना देती थी। इतना ही नहीं, उन्हें पशुवत कोल्हू और कुँओं में जोत दिया जाता था। अतः स्पष्ट है कि ब्रिटिश शासक उनके प्रति अमानवीय व्यवहार करते थे। (6) प्रस्तुत पंक्ति में कवि का स्वाभिमान अभिव्यक्त हुआ है। स्वतंत्रता सेनानी दिन में अपने चेहरे पर करुणा के भाव नहीं आने देते थे ताकि अंग्रेज अधिकारी यह न समझ लें कि वे टूट चुके हैं। इसलिए कवि कोयल से भी यही कहता है कि तू भी दिन में न कूक कर अब रात को ही कूकती है। 4. इस शांत समय में, शब्दार्थ-विद्रोह-बीज = विद्रोह की भावना। प्रश्न (2) व्याख्या कवि ने कोयल से पूछा है कि तुम रात के इस शांत समय में और गहन अंधकार को
चीरती हुई क्यों रो रही हो ? इस विषय में कुछ तो बोलो। इस प्रकार अपनी मधुर भाषा के द्वारा तुम क्रांति के बीज बो रही हो। कहने का भाव है कि कोयल की ध्वनि में कवि को विद्रोह की भावना अनुभव हुई है। कवि भी अपनी मधुर भाषा में रचित कविता के द्वारा लोगों के मन में विद्रोह की भावना उत्पन्न करता है। (3) रात के गहन अंधकार एवं शांत वातावरण में जब संपूर्ण संसार सोया हुआ है तब कोयल अपनी ध्वनि द्वारा एक हलचल उत्पन्न करना चाहती है। इसी प्रकार कवि अंग्रेजों के शासन में व्याप्त अंधकार अर्थात् अन्याय के प्रति जनता को सचेत करने का संदेश देना चाहता है। (4) (क) संपूर्ण काव्यांश सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा में रचित है। (5) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने बताया है कि विद्रोह की भावना केवल ओजस्वी भाषा में ही नहीं, अपितु मधुर वाणी में भी उत्पन्न की जा सकती है। 5. काली तू, रजनी भी काली, शब्दार्थ-रजनी = रात। करनी काली = बुरे कर्म। लौह-शृंखला = लोहे की जंजीर । हुंकृति = हुँकार। व्याली = सर्पिणी। आली = सखी। मदमाती = मस्ती। प्रश्न (2) व्याख्या प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर किए गए अन्याय एवं अत्याचारों का उल्लेख किया है। कैदी रूपी कवि कोयल से कहता है कि तू काली है और रात भी
काली है। इतना ही नहीं, ब्रिटिश शासन के कर्म भी काले हैं अर्थात् उसके द्वारा किए गए सभी कार्य बुरे हैं। उसकी कल्पना भी काली है अर्थात् वे बुरा ही सोचते हैं। जिस कोठरी में मुझे बंद किया गया है, वह भी काली है। मेरी टोपी काली है। मुझे जो कंबल दिया गया है, वह भी काला है। जिन जंजीरों से मुझे बाँधा गया है, उनका रंग भी काला है। हे कोयल! उनके द्वारा बिठाए गए पहरे की हुंकार सर्पिणी की भाँति काली है। हे सखी! इतना कुछ होने पर भी वे गाली देकर बोलते हैं, किंतु इस काले संकट रूपी सागर के लहराने पर अर्थात् जीवन
पर संकट मंडराते रहने पर भी हमें मरने की अर्थात् बलिदान देने की मस्ती छाई रहती है। हे कोयल! तू बता कि अपने चमकीले गीतों को इस काले वातावरण पर किस प्रकार तैराती हो। मुझे इसका भेद बता दो। (3) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति किए गए दुर्व्यवहार एवं अन्याय को उद्घाटित किया है। वे (स्वतंत्रता सेनानी) संकटकाल की चिंता न करके अपने जीवन का बलिदान करने की मस्ती में झूमते रहते थे। कवि ने उनकी बलिदान की भावना के माध्यम से भारतीयों में देश-प्रेम व राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया है। (4) (क) संपूर्ण कवितांश में सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया गया है। (5) पहरेदारों की हुंकार कवि को सर्पिणी जैसी प्रतीत होती है। (6) कवि ने काली कोयल, रात्रि काली, ब्रिटिश शासन के कार्य काले, कल्पना काली, काल कोठरी काली, टोपी काली, कंबल काला और लोहे की काली जंजीरों की गणना की है। 6. तुझे मिली हरियाली डाली, शब्दार्थ-डाली = टहनी, शाखा। नसीब = भाग्य। संचार = घूमना-फिरना, उड़ना। दस फुट का संसार = दस फुट की लंबी कोठरी, जिसमें कवि बंद है। कहावें वाह = प्रशंसा प्राप्त करना। गुनाह = अपराध । विषमता = अंतर। रणभेरी = युद्ध का नगाड़ा। हुंकृति = हुँकार। कृति = रचना (काव्य)। मोहन = मोहनदास कर्मचंद गाँधी। आसव = अर्क (आनंद)। प्रश्न (2)
व्याख्या-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन की स्थितियों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति सहानुभूति अभिव्यक्त की है। कैदी कोयल से कहता है कि तुझे बैठने के लिए हरी-भरी टहनी मिली है और मुझे काल-कोठरी मिली हुई है अर्थात वह कारागार में बंद है। तेरे उड़ने के लिए सारा आकाश है, जबकि मेरे लिए केवल दस फुट की काल-कोठरी है अर्थात् कैदी को दस फुट की छोटी-सी कोठरी में बंद किया हुआ है। इतना ही नहीं, लोग तेरे गीतों को सुनकर वाह-वाह कर उठते हैं अर्थात् तेरे गीतों की सराहना की
जाती है किंतु मेरा तो रोना भी अपराध माना जाता है अर्थात् मैं तो रो भी नहीं सकता। हे कोयल! तेरे-मेरे जीवन में कितना बड़ा अंतर है। तू इस विषमता को देखते हुए भी युद्ध का नगाड़ा बजा रही है। कवि कोयल से पुनः प्रश्न पूछता है कि इस हुँकार पर मैं अपनी रचना में क्या कर सकता हूँ अर्थात् अपनी काव्य-रचनाओं के माध्यम से अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारतीय जनता में विद्रोह की भावना ही भर सकता हूँ। हे कोयल! तू ही बता कि महात्मा गाँधी (मोहनदास कर्मचंद गाँधी) के स्वतंत्रता-प्राप्ति के व्रत पर प्राणों का आनंद किस में
भर दूं। (3) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने कैदी और कोयल के जीवन की परिस्थितियों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति भारतीयों के मन में सहानुभूति उत्पन्न की है। साथ ही कवि ने महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता प्राप्ति के दृढ़ निश्चय को भी उजागर किया है। (4) (क) तुलनात्मक शैली से विषय आकर्षक बन पड़ा है। (5) कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन का अंतर स्पष्ट करते हुए बताया है कि कोयल हरी-भरी टहनी पर बैठी थी और कैदी के भाग्य में काल-कोठरी है। इसी प्रकार कोयल खुले आकाश में उड़ान भर सकती है, जबकि कैदी दस फुट लंबी कोठरी में बंद है। कोयल की ध्वनि को सुनकर लोग उसकी प्रशंसा करते हैं, जबकि कैदी अपने दुःख को भी व्यक्त नहीं कर सकता। इस प्रकार कैदी और कोयल के जीवन में अत्यधिक विषमता है। (6) कवि ने मोहन (महात्मा गाँधी) के देश को स्वतंत्र कराने के व्रत की ओर संकेत किया है। कैदी और कोकिला Summary in Hindiकैदी और कोकिला कवि-परिचय प्रश्न- चतुर्वेदी साहित्यिक-क्षेत्र में पत्रकारिता के माध्यम से आए। उनके द्वारा संपादित पत्रों में उनकी रचनाएँ बराबर प्रकाशित होती रहीं। संपादक की हैसियत से उन्हें अपने राष्ट्रीय विचारों को प्रचारित करने तथा देश-सेवा करने का पर्याप्त अवसर मिला। उन्होंने ‘प्रभा’, ‘प्रताप’ तथा ‘कर्मवीर’ नामक तीन पत्रों का संपादन किया। उनकी
साहित्यिक-सेवाओं के कारण हिंदी साहित्य जगत ने उनका स्वागत भी प्रभूत मात्रा में किया। सन् 1958 में सागर विश्वविद्यालय के खंडवा में विशेष दीक्षांत समारोह का आयोजन कर उन्हें डी० लिट् की मानद उपाधि प्रदान की गई। सन् 1963 में इन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ एवं ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। सन् 1965 में मध्य प्रदेश शासन ने खंडवा में इनको विशेष रूप से सम्मानित किया। 2. प्रमुख रचनाएँ-चतुर्वेदी जी के काव्य संग्रह हैं-‘हिम किरीटनी’, ‘हिम तरंगिनी’, ‘माता’, ‘वेणु लो गूंजे धरा’, ‘युग चरण’, ‘समर्पण’, ‘भरण ज्वार’, ‘बीजुरी काजल आँज रही’ आदि। 3. काव्यगत विशेषताएँ-श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी के काव्य में राष्ट्रीयता की भावना सर्वाधिक रूप में मुखरित हुई है। उन्हें अपने देश एवं संस्कृति पर गर्व था। उन्हें अपने देश की स्वतंत्रता और उसके विकास के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान देने में भी सुख अनुभव होता था। इस दृष्टि से उनकी ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक कविता विचारणीय है। माखनलाल चतुर्वेदी जी की आरंभिक कविताओं में भक्ति-भावना भी देखी जा सकती है। उनकी भक्ति-भावना वैष्णव प्रभाव और राष्ट्रीय भावना का मिश्रण है। कहीं-कहीं रहस्यवादी कवियों की भाँति परम सत्ता के प्रति जिज्ञासा और कौतूहल का भाव प्रकट करते हैं। श्री माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य में प्रेमानुभूति की भावना का भी चित्रण हुआ है, किंतु वह बहुत कम है। उनके प्रेम काव्य में वैयक्तिक चेतना के साथ-साथ समर्पण की भावना भी है। प्रकृति उनके काव्य का प्रमुख विषय रही है। उन्होंने अपने काव्य में प्रकृति-सौंदर्य के अनेक चित्र अंकित किए हैं “लाल फले हैं गुल बाँसों में मकई पर मोती के दाने 4. भाषा-शैली-चतुर्वेदी जी की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। उन्होंने बोलचाल के शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फारसी आदि के शब्दों का भी प्रयोग किया है। उनकी छंद-योजना में नवीनता है। चित्रात्मकता उनकी भाषा-शैली की प्रमुख विशेषता है। उनकी काव्य-भाषा में यदि हुँकार और ओज है तो कहीं करुणा की धारा भी प्रवाहित होती दिखाई देती है। अतः स्पष्ट है कि चतुर्वेदी जी के काव्य का कला-पक्ष अर्थात् भाषा-शैली अत्यंत समृद्ध है। कैदी और कोकिला कविता का सार काव्य-परिचय प्रश्न- कवि स्वयं महान् स्वतंत्रता सेनानी है। वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद है। वह वहाँ के एकाकी एवं यातनामय जीवन से उदास एवं निराश है। कवि रात को कोयल की ध्वनि सुनकर जाग उठता है। वह कोयल को अपने मन का दुःख, असंतोष और आक्रोश सुनाता है। वह कोयल से पूछता है कि तुम रात्रि के समय किसका और क्या संदेश लाती हो। मैं यहाँ जेल की ऊँची और काली दीवारों में डाकुओं, चोरों और लुटेरों के बीच रहता हूँ। यहाँ कैदियों को भरपेट भोजन भी नहीं दिया जाता । यहाँ अंग्रेजों का कड़ा पहरा है। अंग्रेज शासन भी गहन अंधकार की भाँति काला लगता है। तुम बताओ कि रात के समय पीडामय स्वर में क्यों बोल उठी हो ? क्या तुझे कही जंगल की भयंकर आग दिखाई दी जिसे देखकर तुम कूक उठी हो ? क्या तुम नहीं देख सकती कि यहाँ कैदियों को जंजीरों से बाँधा हुआ है। मैं दिन भर कुएँ से पानी खींचता रहता हूँ किंतु फिर भी दिन में करुणा के भाव चेहरे पर नहीं आने देता। रात को ही करुणा गजब ढाती है। तुम बताओ कि तुम रात के अंधकार को अपनी ध्वनि से बेंधकर मधुर विद्रोह के बीज क्यों बोती हो? इस समय यहाँ हर वस्तु काली है-तू काली, रात काली, अंग्रेज शासन की करनी काली, यह काली कोठरी, टोपी, कंबल, जंजीर आदि सब काली हैं। तू काले संकट-सागर पर अपने मस्ती भरे गीतों को क्यों तैराती हो। तुझे तो हरी-भरी डाली मिली है और मुझे काली कोठरी। तू आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक घूमती है और मैं दस फुट की काल कोठरी में बंद हूँ। मेरी और तेरी विषम स्थिति में बहुत अंतर है। अतः कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को कारागार के रूप में देखने लगी है। इसीलिए वह आधी रात को कूक उठी है। 1 कवि ने कोयल के वेदना युक्त स्वर को सुनकर क्या अनुमान लगाया?कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी ? उत्तर:- कोयल की कूक सुनकर कवि को ऐसा लगता है जैसे कोयल उसके लिए कोई संदेशा लेकर आई है, संदेशा शायद अति महत्वपूर्ण है इसलिए कोयल ने सुबह होने का भी इन्तजार नहीं किया।
कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई?Question 2: कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई? उत्तर: कवि को लगता है कि कोयल किसी का संदेश लेकर आई होगी। कवि को ये भी लगता है कि कोयल वहाँ पर विद्रोह के बीज बोने आई होगी। कवि को ये भी लगता है कि कोयल उसके साथ सहानुभूति दिखाने आई होगी।
कोयल की आवाज में किसकी अनुमति होती है?Answer. Answer: Answer: कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कुछ मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं। कोयल हरी डाली पर बैठकर अपनी मधुर वैभवशाली आवाज़ से संपूर्ण सृष्टि को अलंकृत करती है, उसके मधुर गीतों से उसकी खुशी झलकती है, वह स्वतंत्रता पूर्वक अपना गीत गाती है परन्तु अब वह अपनी इन विशेषताओं को नष्ट करने पर तुली है।
कवि ने कोयल की आवाज कब सुनी?कवि ने कोयल की आवाज आधी रात को सुनी। वही कोयल असमय आधी रात को क्रंदन कर रही है, इसलिए उसकी बोली दर्दभरी लग रही है। 4. कवि ने कोयल को बावली इसलिए कहा है कि वह असमय आधी रात में कूक रही है।
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