प्रश्न 1. Show प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
रचना और अभिव्यक्ति - प्रश्न 5. पाठेतर सक्रियता - बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए। अट नहीं रही है - प्रश्न 1. 'कहीं सांस लेते हो प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. रचना और अभिव्यक्ति - प्रश्न 6. RBSE Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answersअतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. कवि जीवन को बहुत व्यापक और समग्र दृष्टि से देखते हैं। कविता में ललित कल्पना और क्रांति चेतना दोनों हैं। सामाजिक क्रांतियाँ बदलाव में साहित्य की भूमिका होती है। कविता 'उत्साह' में कवि इसमें 'नवजीवन' और 'नूतन कविता' के सन्दर्भ में देखते हैं। बादलों को नव शिशु के धुंघराले बालों की उपमा देकर गर्जन करने को कहते हैं। इससे तात्पर्य है कि बादलों को धीमे-धीमे बरसने को न कहकर नव क्रांति चाहते हैं। प्रश्न 2. वसंत के आगमन के साथ ही फागुन महीने में प्रकृति में चारों तरफ सुन्दर-सुन्दर फूल खिलने लगते हैं। उनकी भीनी-भीनी खुशबू से घर आंगन पूरा वातावरण महकने लगता है। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कहा है कि 'ऐसा लगता है मानो फालान के सांस लेने से पूरा वातावरण खुशबू से भर गया और सुन्दर फूल मानो प्रकृति की सुन्दर माला बन गये हो। चारों तरफ हरियाली, रंग-बिरंगी तितलियाँ व भौरों के मधुर गुंजार सुनाई व दिखाई देते हैं। लाल-हरे फूल-पत्तों की सुन्दरता प्रकृति को नई दुल्हन के समान सज्जित करती है जिस पर से आँख हटाना मुश्किल हो जाता है, इस कविता के माध्यम से कवि ने फाल्गुन माह की प्रकृति का अद्भुत सौन्दर्य प्रकट किया है। रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न - प्रश्न 1. 'अनामिका', 'परिमल', 'गीतिका', 'कुकुरमुत्ता' और 'नए पत्ते' काव्य संग्रह हैं। उपन्यास, कहानी, आलोचना] निबन्ध लेखन भी इन्होंने पर्याप्त लिखा है। उपेक्षितों के प्रति इनकी कविताओं में गहरी सहानभति का भाव मिलता है, वहीं शोषक वर्ग के प्रति प्रचंड प्रतिकार का भाव भी मिलता है। साहित्यिक मोर्चे पर निरन्तर संघर्ष करते हुए सन् 1961 में इनका देहान्त हो गया। उत्साह और अट नहीं रही Summary in Hindiकवि-परिचय : सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल के महिषादल में सन् 1899 में हुआ। वे मूलतः गढ़ाकोला (जिला-उन्नाव) उत्तर प्रदेश के निवासी थे। निराला की औपचारिक शिक्षा कक्षा नौवीं तक महिषादल में हुई थी। उन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी का ज्ञान अर्जित किया। वे रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द की विचारधारा से विशेष रूप से प्रभावित थे। निराला का पारिवारिक जीवन दु:खों तथा संघर्षों से भरा रहा। साहित्यिक जीवन में भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। वे छायावादी एवं प्रगतिवादी कवि तथा मुक्त छन्द के प्रथम प्रयोक्ता थे। सन् 1961 में उनका देहान्त हो गया। उनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ-'अनामिका', 'परिमल', 'गीतिका', 'कुकुरमुत्ता' और 'नये पत्ते' हैं। इनके अलावा उन्होंने उपन्यास, कहानी, आलोचना और निबन्ध भी लिखे हैं। पाठ-परिचय : हमारे पाठ्यक्रम में उनकी दो रचनाएँ शामिल की गई हैं - (i) उत्साह और (ii) अट नहीं रही है। उत्साह-'उत्साह' शीर्षक कविता एक आह्वान गीत है। इसमें बादलों के माध्यम से मानव के उत्साह का वर्णन हुआ है। कविता में बादल एक ओर पीडित-प्यासे जन की आकांक्षाओं को परा करने वाला है तो दसरी अ ओर बादल नयी कल्पना औ नये अंकर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रान्ति चेतना को सम्भव करने वाला भी है। अट नहीं रही है-इस कविता में निराला ने फागुन मास की मस्ती और शोभा का मनमोहक वर्णन किया है। कवि | ने फागुन की सर्वव्यापक सुन्दरता और प्राकृतिक उल्लास को लेकर आह्माद व्यक्त किया है। सप्रसंग व्याख्याएँ। 1. बादल, गरजो! कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित कविता 'उत्साह' से लिया गया है। यह एक आह्वान गीत है। बादलों को बरसने को कहते हैं क्योंकि बादल नई चेतना. नये अंकर को जन्म देते हैं। व्याख्या - उपरोक्त पंक्तियों में कवि निराला ने उस सुन्दर वातावरण का वर्णन किया है जब आकाश काले-काले बादलों से भर जाता है। बिजली चमकने और बादलों के गर्जन का शोर होता है। तब कवि बादल को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि हे बादल! तुम गरजो! समस्त आकाश को घेर-घेर कर मूसलाधार वर्षा करो। हे बादल ! तुम अत्यन्त सुन्दर हो। तुम्हारा स्वरूप छोटे बालक के समान है जिसके सिर पर काले धुंघराले बाल है, यहाँ बादलों का मानवीकरण किया गया है। कवि कहते हैं कि 'ओ काले रंग के सुन्दर-सुन्दर घुघराले बादल, तुम पूरे आसमान को घेर कर जोरदार ढंग से गर्जना करो।' तुम अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गये हो। तुम अपने हृदय में बिजली की शोभा को धारण करते हो। तुम नवीन सृष्टि करने वाले हो। तुम जल रूपी नवीन जीवन प्रदान करने वाले हो। तुम्हारे अन्दर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है अर्थात् परिवर्तन करवाना ही तुम्हारा नियम है। तुम मेरे हृदय में नयी कविता को जन्म दो और संसार को फिर से नवीन प्रेरणा से भर दो। हे बादल! तुम गरजो। यहाँ बादलों के माध्यम से कवि नवयुवकों में उत्साह का संचार करते हैं। विशेष :
2. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित कविता 'उत्साह' से लिया गया है। इसमें कवि ने गर्मी से बेहाल लोगों के बारे में वर्णन किया है। भावार्थ - कवि बादल को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि हे बादल! गर्मी की तपन के कारण सारी धरती के लोग व्याकुल तथा बेचैन (उदास) हो रहे हैं। इस कारण इनका मन कहीं और नहीं लग रहा है। इसी समय इस अनंत आकाश में न मालूम तुम किस ओर से आकर छा गए। हे बादल! तुम बरस कर इस गर्मी के ताप से तपी हुई इस धरती को शीतलता प्रदान करो। हे बादल! गरज कर बरसो। धरती पर वर्षा हो जाने के बाद लोग भीषण गर्मी से राहत पाते हैं और उनका मन फिर नये उत्साह और उमंग से संचारित होने लगता है। अर्थात् कार्य की नयी आशाएँ जन्म लेती हैं। विशेष :
3. भाषा का सरल-सहज रूप प्रस्तुत है। अट नहीं रही है कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित कविता 'अट नहीं रही है ' से लिया गया है। इसमें फागुन मास की सुन्दरता का वर्णन किया गया है। फागुन में ऋतुराज बसंत का आगमन होता है और उसकी सुन्दरता सबसे अनुपम होती है। व्याख्या - कवि फागुन मास की मादकता का वर्णन करते हुए कहता है कि फागुन मास का सौन्दर्य इतना अधिक है कि उसकी शोभा समा नहीं पा रही है। यह शोभा प्रकृति के साथ-साथ मानव तन पर भी दृष्टिगोचर हो रही है। परिणामस्वरूप मानव चेहरों पर खुशी झलक उठी है। कवि कहता है कि इस महीने में कहीं सुगन्धित हवा का झोंका उठता है, तो उससे ऐसा प्रतीत होने लगता है कि तुम खुलकर श्वास ले रहे हो। इससे घर-घर महक उठता है। तुम वातावरण में ऐसी मादकता भर देते हो कि मन रूपी पक्षी कल्पनाओं के पंख लगाकर उन्मुक्त गगन में उड़ने के लिए आतुर हो उठता है। कवि सर्वत्र फागुन के फैले सौन्दर्य का दर्शन करता है। उसकी आँखें इस फैले हुए सौन्दर्य को देखकर अघाती नहीं हैं। इसलिए वह अपनी दृष्टि को इससे हटा नहीं पाता है। पेड़-पौधों की डालियाँ हरे-हरे पत्तों से लद गयी हैं। वे कहीं अपनी हरीतिमा और कहीं लालिमा झलकाती हुई प्रतीत होती हैं। कहीं वृक्षों के गलों में मंद-मंद सुगन्ध वाले फूलों की माला पड़ी हुई है। आशय यह है कि वसन्त के इस मादक वातावरण में वृक्षों की डालियों पर सुगन्धित पुष्प खिल गये हैं जो अपनी मंद-मंद सुगन्ध को चारों ओर फैला रहे हैं। जगह-जगह सौन्दर्य राशि इतनी अधिक खिल उठी है कि वह समा नहीं पा रही है। वह सब जगह प्रकट हो रही है। विशेष :
कवि ने बादलों को मानव मन को सुख से भर देने वाले क्यों कहा?कवि कहता है कि चारों ओर वातावरण में बेचैनी व्याप्त थी, लोगों के मन भी दुःखी थे, इसलिए वह बादलों को कहता है-लोगों के मन को सुख से भर देने वाले बादलों ! आकाश को घेर घेर कर गरजो। संसार के सभी प्राणी भयंकर गर्मी के कारण बेचैन और उदास हो रहे हैं।
कवि ने बादलों से क्या करने के लिए कहा है?कवि बादल से गरजने के लिए कह रहे हैं क्योंकि 'गरजना' शब्द क्रान्ति विप्लव और विरोध का सूचक है। परिवर्तन के लिए आह्वान है। कवि को विश्वास है कि बादलों के गरजने से प्राणि जगत में नई स्फूर्ति और चेतना का संचार होगा। वे उत्साहित होकर नव निर्माण करेंगे।
बादल सुख का क्या आशय है?व्याख्या- कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहता है कि इस समीर रूपी सागर में तू तैरता है। अर्थात लोगों की इच्छा से युक्त उनकी नाव हवा रूपी सागर में तैरती है। संसार में व्याप्त सुख सदैव साथ नहीं रहते हैं।
कवि बादलों को करने के सलए क्यों कह रहे हैं?कवि का मानना है कि किसी भी प्रकार के परिवर्तन के लिए कोमलता नहीं कठोरता की आवश्यकता होती है। इसलिए कवि बादलों को बरसने के स्थान पर गरजने का आह्वान कर रहे हैं।
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