कुत्ता कौन से भगवान का अवतार है? - kutta kaun se bhagavaan ka avataar hai?

शिव के गणों की सेना में इस सृष्टि में सबसे हाशिए पर मौजूद जीवों को भी शरण मिलती हैं। शिवजी के गणों में एक काले श्वान यानी कुत्ते का भी जिक्र आता है, जिसकी शिवचरणों में उसकी प्रवृति ने तुच्छ जीव को भी निर्वाण का अधिकारी बना दिया और शिवगणों में उसने भी अहम स्थान हासिल किया। वो प्रभु महादेव के भैरव स्वरुप की सेवा में तैनात है और कई धार्मिक ग्रंथों में जगह जगह पर इस काले श्वान का उल्लेख है। भैरव वाहन के रुप में काले श्वान की पूजा होती है, मूर्तियां लगाई जाती हैं। काले कुत्तों को पकवान खिलाए जाते हैं।

कुत्ता कौन से भगवान का अवतार है? - kutta kaun se bhagavaan ka avataar hai?

यह काला श्वान(कुत्ता) वही धर्म का प्रतीक है, जिसने युधिष्ठिर को स्वर्ग तक पहुंचाने का मार्ग दिखाया। इसी धर्म रुपी श्वान ने महर्षि वेदव्यास रचित पंचम वेद कहे जाने वाले महाभारत के आखिर में युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग में प्रवेश किया। सबसे पहले द्रौपदी ने साथ छोड़ा, भीम, नकुल, सहदेव छूटते चले गए। यहां तक कि स्वयं भगवान के मुख से गीता का ज्ञान सुनने वाले नर स्वरुप अर्जुन भी भूलुंठित होकर साथ छोड़ गए। लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर के साथ काले श्वान ने स्वर्ग में प्रवेश किया । 

कुत्ता कौन से भगवान का अवतार है? - kutta kaun se bhagavaan ka avataar hai?

 कौन है ये श्वान(कुत्ता)? क्यों है इसका इतना महत्व?

आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे, कि युधिष्ठिर को स्वर्ग की सीढ़ियों तक पहुंचाना तो इस काले श्वान(कुत्ते) का एक मामूली कृत्य है। बल्कि यह तो वो श्वान(कुत्ता) है जिसके लिए प्रलय तक का खतरा उत्पन्न हो गया था। 

शिव कृपा से प्रेरित इस श्वान ने दक्ष प्रजापति के जिस अहंकार को चोट पहुंचाई। उससे एक बड़ा और रक्तरंजित टकराव हुआ। जिसमें संस्कृतियों के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया। कई गहन वैचारिक बदलाव हुए। ये है इस काले श्वान की महिमा।

 कथा कुछ इस प्रकार है।

बात सृष्टि के शुरुआती दिनों की है। स्वयंभू मनु के मनवंतर की घटना है। जिनकी पुत्री से दक्ष प्रजापति का विवाह हुआ था। जिससे कई पुत्रियां उत्पन्न हुईं। इसमें से सबसे छोटी और सबकी लाड़ली सती का विवाह स्वयं सदाशिव से हुआ था।

दरअसल ये संस्कृतियों का मिलन था। सदाशिव यज्ञ आधारित खेतिहर व्यवस्था को मानव जगत के कल्याण के लिए प्रचलित करने के पक्ष में थे। लेकिन इसमें व्याप्त अत्यधिक कर्मकांड और इसे समाज के विशेष तबकों के हाथ में रखे जाने के विरोधी थे।

शैव परंपरा में गणों की परंपरा है। जिसे शिवगण कहा जाता है। ये गण गणतंत्र का ही एक स्वरुप हैं। इन गणों का वास्तविक स्वरुप शिव विवाह के समय सामने आता है। इसमें सप्तर्षियों, से लेकर अघोरियों और अप्सराओं से लेकर पिशाचनियों तक के लिए स्थान है।

कुत्ता कौन से भगवान का अवतार है? - kutta kaun se bhagavaan ka avataar hai?

दक्ष प्रजापति की राजसिक व्यवस्था और शिवगणों की परंपरा में मतभेद था। लेकिन समन्वय के प्रयास चल रहे थे।

इसी क्रम में महादेव शिव के शिवतत्व के प्रवर्तन के दौरान एक काले श्वान ने स्वयं प्रभु से अपनी मूक भाषा में निवेदन किया।  कि क्या केवल मनुष्य देहधारियों को ही परमतत्व की प्राप्ति का अधिकार है।

करुणामय शिव ने तुरंत उसपर करुणा बिखेरी और उसे वरदान दिया, कि हे श्वान, अगर तुझमें तत्वज्ञान के प्रति रुचि है। तो मैं तुझे तुरंत वाणी देता हूं और तू किसी यज्ञस्थल पर जा और वेदों की पवित्र ऋचाओं का श्रवण कर। इससे तेरी आत्मा का परिशोधन होगा।

उस समय दक्ष प्रजापति का एक यज्ञ चल रहा था। काले श्वान ने एक कोने का स्थान अपने लिए चुना और वेद मंत्रों का श्रवण करने लगा।

दरअसल वेद परमतत्व परमात्मा के मुख से निकला है। इसकी ध्वनि उर्जा चक्रों के द्वार खोल देती है, अपनी अंत:प्रेरणा और शिव आदेश से ये काला श्वान इसी प्रक्रिया में था।
तभी दक्ष ने उसे ताड़ित किया(पीटा) और यज्ञ स्थल से भाग जाने के लिए विवश किया।

श्वान ने मनुष्य की वाणी में दक्ष से प्रार्थना की। अपनी जिज्ञासा बताई और सदाशिव के आदेश की भी दुहाई दी। लेकिन दक्ष ने काले श्वान को भगा दिया और कहा कि स्वयं शिव से ही तत्वज्ञान क्यों नहीं हासिल करता। लेकिन काले श्वान को मिली इस ताड़ना के कुछ क्षणों के भीतर ही पूरा यज्ञ स्थल प्रेत और अपरुप पिशाचों से भर गया।

कुत्ता कौन से भगवान का अवतार है? - kutta kaun se bhagavaan ka avataar hai?

सबने सिर उठाकर देखा तो यज्ञपुरुष के तौर पर स्वयं सदाशिव उपस्थित थे और यज्ञभाग का भोग कर रहे थे।

सदाशिव ने दक्ष को समरसता का ज्ञान देते हुए कहा, कि आपको ब्रह्मा ने प्रजापति बनाया है। आप केवल मात्र कुछ लोगों के प्रजापति नहीं हैं, बल्कि पूरी सृष्टि का पालन आपका धर्म है। चाहे वो श्वान हों या पिशाच। अगर वो ज्ञानपिपासु है, तो आप उसका मार्गबलपूर्वक नहीं रोक सकते हैं।

इस प्रश्न पर दक्ष और महादेव के बीच कटुता हो गई। हालांकि परमेश्वर के प्रति असम्मान दिखाना दक्ष के वश के बाहर की बात थी।

लेकिन उनके मन में फांस सुलगती रही। एक तुच्छ काले श्वान के लिए अपने अपमान को दक्ष भूल नहीं सके। यहां तक कि महादेव ने इस श्वान को स्वयं परमज्ञान देकर अपने गणों में शामिल कर लिया। अपने द्वारा बनाए गए नियमों की ऐसी अनदेखी से दक्ष बहुत क्रोधित हुए।

इसके बाद दूसरी घटना हुई, जब दक्ष के आगमन पर ब्रह्मा और सदाशिव के अतिरिक्त सभी उठ खड़े हुए। तब भी दक्ष ने सार्वजनिक रुप से अपना क्रोध प्रकट किया और कहा, कि आप रिश्ते में मेरे जामाता लगते हैं। मैं आपसे सम्मान प्राप्त करने का अधिकारी हूं।

यहां ऋषियों ने बीच बचाव किया था, और परमेश्वर शिव का वास्तविक स्वरुप सबको बताकर विवाद शांत किया था।

इसके बाद दक्ष ने एक ऐसा यज्ञ करने का निश्चय किया, जिसमें सदाशिव महादेव का भाग ही नहीं हो। बाद में ऐसा हुआ भी। जिसमें बिना बुलाए पहुंचने पर अपमानित हुई सती ने योगाग्नि में स्वयं को भस्म कर दिया। जिसके बाद शिव की जटा से उत्पन्न वीरभद्र ने दंड स्वरुप दक्ष का सिर काट लिया।

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के मूल में ये ज्ञान है, कि शिव चरण में स्वयं को समर्पित करने वालों का साथ वो कभी नहीं छोड़ते हैं। 

काला श्वान इस बात का जीवंत उदाहरण है। आज भी कई जगहों पर इसकी मूर्तियां बनी हुई हैं। भैरव के साथ इसकी भी पूजा होती है। शनिवार को काले कुत्ते को भोग अर्पित करने से ग्रहों की दशा शांत होती है।

कुत्ता कौन से भगवान का अवतार है? - kutta kaun se bhagavaan ka avataar hai?

कुत्तों के देवता कौन है?

भैरव महाराज का सेवक : कुत्ते को हिन्दू देवता भैरव महाराज का सेवक माना जाता है। कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं। मान्यता है कि कुत्ते को प्रसन्न रखने से वह आपके आसपास यमदूत को भी नहीं फटकने देता है।

कुत्ते की सवारी कौन सा देवता करता है?

-काले रंग के कुत्ते को कालभैरव की सवारी माना जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार काले कुत्ते को रोटी खिलाने से कालभैरव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति आकस्मिक मृत्यु के भय से दूर रहता है. -ज्योतिषशास्त्र में कुत्ते को शनि और केतु का प्रतीक भी माना जाता है.

कुत्ते किसका प्रतीक है?

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कुत्ता भगवान भैरव का वाहन है. इसके अलावा इसे शनि और केतु का भी प्रतीक माना गया है. कुत्ते को पालना और रोटी खिलाना इंसान के लिए भाग्यशाली साबित होता है. शनि, राहु और केतु को कैसे शांत रखें.

कौन सा कर्म करने से कुत्ते का जन्म होता है?

महर्षि ने बताया कि यद‍ि कोई व्‍यक्ति किसी का कत्‍ल करता है तो यह जघन्‍य अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसा कर्म करने वाला अगले जन्‍म में गधा बनता है। लेकिन यद‍ि वह जिस शस्‍त्र से हत्‍या करता है उसी से उसकी भी हत्‍या हो जाए तो उसे मृग योन‍ि मिलती है। इसके बाद वह मछली, कुत्‍ता और बाघ बनता है।