करण का मृत्यु कैसे हुआ था? - karan ka mrtyu kaise hua tha?

कर्ण की मृत्यु – महाभारत का युध्द कौरवों और पांडवों के बीच था, इस युध्द में कौरवों का विनाश तो हुआ ही लेकिन साथ ही कईं अच्छे लोग भी वीरगति को प्राप्त हुए।

अगर बात कौरवों के सेनापति कर्ण की करें तो युद्ध के 17वें दिन अर्जुन के दिव्यास्त्र से उन्हे वीरगति प्राप्त हुई लेकिन असल में कर्ण के मृत्यु के पीछे कईं कारण छिपे थे जो अगर नहीं होते तो शायद कर्ण की मृत्यु सम्भव नहीं थी।

आइए आपको बताते हैं उन कारणों के बारे में–

1- अर्धम का साथ देना-

कर्ण महापराक्रमी और ज्ञानी थे लेकिन सच की जानकारी ना होने की वजह से वो महाभारत के युध्द में दुर्योधन का साथ दे रहे थे और ये भी उनकी मृत्यु की एक वजह था।

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2- अपनी असली पहचान का बोध ना होना-

कर्ण को अपनी असली पहचान ज्ञात नहीं थी। वो कुंती पुत्र थे और क्षत्रिय थे लेकिन वो खुद को सूत पुत्र बताते थे। सूर्य के वरदान से उत्पन्न हुए कर्ण का त्याग उनकी माता कुंती ने जन्म लेते ही कर दिया था इस वजह से वो अपनी सच्चाई से अनजान थे।

3- ये श्राप बना उनकी मृत्यु का कारण-

कर्ण के रथ से अनजाने में एक बछिया की मृत्यु हो गई थी जिस बात से रुष्ट होकर एक साधु ने उन्हे श्राप दिया था कि , ज‌िस रथ पर चढ़कर अभिमान के प्रभाव में उन्होंने गाय की बछ‌िया का वध क‌िया है, उसी तरह एक न‌िर्णायक युद्ध उनके रथ का पह‌िया धरती न‌िगल जाएगी और उनकी मृत्यु हो जाएगी। महाभारत के युध्द में भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ था।

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4- कर्ण का महादानी होना-

कर्ण का महादानी होना भी उनकी मृत्यु का कारण बना। कर्ण जब सूर्यदेव की पूजा करते थे उस समय उनसे कोई कुछ भी मांगता था तो वो बिना किसी सवाल जवाब के उसे वो वस्तु दे दिया करते थे। इसी बात का लाभ लेते हुए और अर्जुन की रक्षा करने के उद्देश्य से देवराज इन्द्र ने  कर्ण से भगवान सूर्य से प्राप्त कवच और कुंडल दान में मांग लिए और युध्द में कर्ण की मृत्यु हो गई।

5- दिव्यास्त्र का गलत उपयोग- 

कर्ण से भगवान सूर्य से प्राप्त कवच और कुंडल दान में मांगने के बाद देवराज इन्द्र ने कर्ण को एक दिव्यास्त्र दिया था जिसका उपयोग वो पूरे युध्द में एक ही बार कर सकते थे। उन्होने स्वंय भी इस दिव्यास्त्र को अर्जुन के लिए बचाकर रखा था लेकिन बाद में घटोत्कच पर इसका उपयोग कर दिया।

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6- भगवान कृष्ण भी थे इसकी वजह-

भगवान कृष्ण ने देवराज इंद्र को वचन दिया था कि वो अर्जुन को युध्द में विजयी बनाएगे और सूर्यपुत्र कर्ण पर जीत हासिल करेंगे. ये वचन भी कर्ण की मृत्यु का कारण बना।

7- भावुकता बनी घातक-

जब कर्ण को ये ज्ञात हुआ कि वो कुंती के पुत्र हैं और पांडव उनके भाई है तो उनके ह्दय में पांडवों के लिए भाव उतपन्न होने लगे, ये भाव भी कर्ण की मृत्यु का कारण बनें।

करण का मृत्यु कैसे हुआ था? - karan ka mrtyu kaise hua tha?

महाभारत के युध्द में कईं ऐसी घटनाएं हैं जो हमे काफी कुछ सिखाती और समझाती है, ये सिर्फ एक युध्द ही नहीं है बल्कि जीवन से जुड़ी कईं जानकारियां भी देता है।

करण का मृत्यु कैसे हुआ था? - karan ka mrtyu kaise hua tha?

भगवान परशुराम विष्णु के एक ऐसे अवतार हैं जो चिरंजीवी (Karan Ki Mrityu Kaise Hui) हैं। इसी कारण वे विष्णु के अन्य अवतारों के समयकाल में भी थे और अभी भी जीवित हैं। इसी के साथ उन्होंने भगवान विष्णु के बाद के अवतारों में भी अपनी भूमिका निभाई थी। यह महाभारत काल के समय की बात है जब भगवान परशुराम के द्वारा तीन महान योद्धाओं ने शिक्षा ग्रहण की (Karna Death In Mahabharata In Hindi) थी जो थे भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य तथा दानवीर कर्ण। इसमें से कर्ण ने परशुराम से असत्य बोलकर शिक्षा ग्रहण की थी जिसका विपरीत फल भी उसे भोगना पड़ा (Parshuram And Karna Story In Hindi) था। आज हम उसी कथा के बारे में जानेंगे।

परशुराम और कर्ण की कथा (Parshuram Karan Ki Kahani)

कर्ण की शिक्षा ग्रहण करने की लालसा (Karan Ki Kahani In Hindi)

कर्ण वैसे तो माता कुंती का पुत्र था लेकिन वह कुंती के विवाह से पहले जन्म ले चुका था। इसलिए कुंती ने लोक-लज्जा के भय से उसका त्याग कर दिया था तथा नदी में बहा दिया था। कुंती इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि कर्ण सूर्य देव का पुत्र हैं, इसलिए उसकी रक्षा हो जाएगी। नदी में बहाने के पश्चात उसका पालन-पोषण एक सूत के घर में हुआ था, इसलिए कर्ण को सूत पुत्र भी कहा जाता है। स्वयं कर्ण को भी नहीं पता था कि उसकी माँ का नाम कुंती है तथा वह एक क्षत्रिय कुल से है।

क्षत्रिय कुल से होने के कारण उसके अंदर पहले से ही अस्त्र-शस्त्र की विद्या प्राप्त करने की इच्छा थी। एक दिन इसी इच्छा स्वरूप वह गुरु द्रोणाचार्य के पास गया तथा उनसे शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की। चूँकि कर्ण एक सूतपुत्र था, इसलिए गुरु द्रोणाचार्य ने उसे शिक्षा देने से मना कर दिया।

कर्ण का भगवान परशुराम से झूठ बोलना (Parshuram And Karna Story In Hindi)

गुरु द्रोणाचार्य के द्वारा नकारे जाने के पश्चात कर्ण क्रोध से भर उठा और अब उसमें गुरु द्रोणाचार्य के शिष्यों से भी महान योद्धा बनने की चाह जाग उठी। इसी आशा से वह भगवान परशुराम के आश्रम पहुंच गया। परशुराम ने ही द्रोणाचार्य को शिक्षा प्रदान की थी, इसलिए कर्ण सीधे उन्हीं के पास गया। चूँकि भगवान परशुराम केवल ब्राह्मणों तथा विशिष्ट मनुष्यों को ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देते थे, इसलिए कर्ण ने ब्राह्मण वेशभूषा धारण कर एक ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया।

ब्राह्मण वेश में कर्ण भगवान परशुराम के पास गया तथा स्वयं को ब्राह्मण पुत्र (Karan Parshuram Samvad) बताया। इसी के साथ उसने उनसे शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। भगवान परशुराम ने भी उसे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर (Karan Parshuram Shiksha) लिया। कर्ण परशुराम के सभी शिष्यों से अधिक तेज तथा बुद्धिमान था, इसलिए उसने बहुत तेजी से सब ज्ञान ले लिया। भगवान परशुराम भी कर्ण की योग्यता से प्रसन्न थे। उन्होंने कर्ण को अपना संपूर्ण ज्ञान दिया तथा हर अस्त्र-शस्त्र चलाने के मंत्र सिखा दिए। कर्ण ने भगवान परशुराम से ब्रह्मास्त्र चलाने का मंत्र भी सीख लिया था।

परशुराम ने कर्ण को कौन सा श्राप दिया (Pashuram Ka Karna Ko Shrap Dena)

एक दिन भगवान परशुराम थके हुए थे, इसलिए उन्होंने सोने की इच्छा प्रकट की। वे कर्ण की गोद में अपना सिर रखकर सो गए। उसी समय एक रक्त चूसने वाला कीड़ा कर्ण की जांघ में घुस गया तथा उसे डंक मारने लगा। कर्ण को उस कीड़े के द्वारा रक्त चूसने से बहुत पीड़ा हुई लेकिन वह हिलता तो उसके गुरु की निद्रा टूट जाती। इसलिए वह उसी अवस्था में पीड़ा सहन करते हुए बैठा रहा।

वह कीड़ा लगातार उसका रक्त चूसता जा रहा था जिस कारण वहां बहुत बड़ा घाव हो गया था। साथ ही उसमें से रक्त बहकर बाहर निकलने लगा था। वह रक्त बहता हुआ भगवान परशुराम के पास भी पहुंचा जिससे उनकी निद्रा टूट गयी। जब उन्होंने उठकर सब देखा तो उन्हें यह ज्ञान हो गया कि कर्ण ब्राह्मण पुत्र नही हो सकता क्योंकि एक ब्राह्मण पुत्र में इतनी पीड़ा सहन करने की शक्ति नही हो सकती।

उन्होंने जान लिया कि इतनी पीड़ा केवल एक क्षत्रिय ही सहन कर सकता है। इसी के साथ उन्हें इस बात का सबसे ज्यादा क्रोध था कि उनके शिष्य ने उनसे असत्य कहकर छलपूर्वक उनसे शिक्षा ग्रहण की हैं जबकि अपने शिष्यों को चुनने का अधिकार केवल एक गुरु का होता है। एक शिष्य की पहचान उसके गुरु से ही होती है लेकिन कर्ण ने असत्य बोलकर उनसे शिक्षा ग्रहण की थी।

इससे वे अत्यधिक क्रोध में आ गए तथा कर्ण को श्राप दिया कि वह जिस विद्या को सीखने यहाँ आया था वह उसका प्रयोग तो कर पायेगा तथा सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर भी बनेगा लेकिन जब उसको अपनी इसी विद्या की सबसे अधिक आवश्यकता होगी तब वह उसे भूल जायेगा।

कर्ण की मृत्यु कैसे हुई (Mahabharat Me Karan Vadh)

भगवान परशुराम के द्वारा दिया गया यही श्राप कर्ण की मृत्यु का कारण बना था। भगवान परशुराम के द्वारा प्राप्त की गयी शिक्षा से कर्ण ने अपने जीवन में कई युद्ध जीते और कई महान योद्धाओं पर विजय प्राप्त की लेकिन उसे अपनी विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता महाभारत के युद्ध के समय (Mahabharat Karan Yudh) थी।

भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य के वध के पश्चात कर्ण को कौरवों की सेना का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त हुआ था। वह पांडवों की सेना में त्राहिमाम मचाता हुआ आगे बढ़ रहा था कि तभी उसके सामने भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन का रथ लेकर आ गए।

युद्ध भूमि में कर्ण अर्जुन के सामने पहली बार आया था और विश्व में इन्हीं दो योद्धाओं को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर की उपाधि प्राप्त थी। किंतु भगवान परशुराम के दिए गए श्राप के अनुरूप कर्ण उस समय अपनी सारी विद्या भूल गया और दैवीय अस्त्र-शस्त्रों को चलाने के मंत्र भूल (Karan Ki Mrityu Kaise Hui) गया।

इसी का लाभ उठाकर और भगवान श्रीकृष्ण के आदेशानुसार अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया। इस प्रकार महाभारत के भीषण युद्ध में कर्ण की मृत्यु का कारण (Karan Death In Mahabharata In Hindi) भगवान परशुराम से छल के द्वारा शिक्षा प्राप्त करना और उसके परिणामस्वरुप मिला श्राप था।

कृष्ण ने कर्ण को क्यों मरवाया?

पल भर में आगबबूला होने वाले परशुराम ने शाप दिया कि तुमने मुझसे जो भी विद्या सीखी है वह झूठ बोलकर सीखी है इसलिए जब भी तुम्हें इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तभी तुम इसे भूल जाओगे। कोई भी दिव्यास्त्र का उपयोग नहीं कर पाओगे। आपको बता दें कि कृष्ण ने इसी शाप का इस्तेमाल कर कर्ण का अर्जुन के हाथों वध करवाया था।

कर्ण की मृत्यु का कारण क्या था?

साधु ने कहा कि युद्ध के दौरान उसके रथ का पहिया धरती निगल लेगी और वो ही उसकी मौत का कारण बनेगा। महाभारत युद्ध के 17वें दिन कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया। तभी अर्जुन ने अपना दिव्यास्त्र निकाला और कर्ण पर वार कर दिया। जैसा साधू ने श्राप दिया था उसी तरह कर्ण की मृत्यु हो गई।

कर्ण का अंतिम संस्कार कैसे हुआ?

इसके बाद कर्ण ने अपने समीप पड़े पत्थर को उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर ब्राह्मण को दे दिया। इस पर ब्राह्मण ने कहा कि यह दांत को गंदा हो गया उसे साफ करो। इस पर कर्ण ने अपने धनुष से धरती पर बाण चलाया तो वहां से गंगा की तेज जलधारा निकल पड़ी। उससे दांत धोकर कर्ण ने कहा अब तो ये शुद्ध हो गया।

कर्ण की मृत्यु के बाद क्या होता है?

ऐसा माना जाता है कि उनसे बड़ा कोई और दानी नहीं हुआ। भगवान कृष्ण खुद भी कर्ण को सबसे बड़ा दानी मानते थे। लेकिन ये बात अर्जुन को पसंद नहीं थी। कर्ण की मृत्यु के समय भगवान कृष्ण उनकी परीक्षा लेने गए और कर्ण के व्यवहार से खुश होकर इसे वरदान भी दिया।