कुओमितांग पार्टी के सबसे प्रमुख नेता कौन थे? - kuomitaang paartee ke sabase pramukh neta kaun the?

कुओमितांग पार्टी के सबसे प्रमुख नेता कौन थे? - kuomitaang paartee ke sabase pramukh neta kaun the?

च्यांग काई शेक (Chiang Kai-shek ; १८८७-१९७५) चीन के राजनेता एवं सैनिक नेता थे जिन्होंने १९२७ से १९७५ तक चीनी गणराज्य का नेतृत्व किया। वह चीन की राष्ट्रवादी पार्टी कुओमितांग ((KMT) के प्रभावी नेता तथा सन यात-सेन के घनिष्ठ मित्र थे। बाद में वे साम्यवादियों के कट्टर शत्रु बन गए थे।

परिचय[संपादित करें]

च्यांग काई शेक का जन्म चिकोउ (Xikou) नामक कस्बे में हुआ था जो चेकियांग (Zhejiang) प्रान्त में निंग्बो से ३० किमी दक्षिण-पश्चिम में है। साधारण परिवार में उत्पन्न च्यांग ने पाओतुंग सैनिक अकादमी (१९०६) और टोकियो सैनिक कालेज (१९०७-११) में सैनिक शिक्षा के अतिरिक्त चीन के प्राचीन ग्रंथों का अनुशीलन और आधुनिक प्रवृत्तियों का भी ज्ञान प्राप्त किया। टोकियो में वह सुनयातसेन के क्रांतिकारी संगठन 'तुंग मेंग हुई' का सक्रिय सदस्य बना। चीन लौटने पर उसने शंघाई के क्रांतिकारी नेता चेन ची मेई की सेना की एक बिग्रेड का नायकत्व करते हुए १९११ की क्रांति में भाग लिया। चीन के आंतरिक युद्धों में क्रांतिकारियों के पक्ष में लड़ता हुआ वह सुनयातसेन का विश्वासपात्र बना। १९२३ में रूस से लौटने पर ह्वैंपोआ सैनिक अकादमी का प्रधान बना। वहीं साम्यवादियों से उसका संघर्ष प्रारंभ हो गया। अपने सहपाठियों को अकादमी में उच्च पदों पर बुलाया और साम्यवादियों को सैनिक उच्च पदों से वंचित रखा।

सुनयातसेन की मृत्यु (१९२५) के बाद कुओमिंतांग दल में नेतृत्व के संघर्ष में च्यांग काई शेक विजयी हुआ। चीन के एकीकरण को योजना की कार्यान्वित करने के प्रश्न पर दल के वाम एवं दक्षिण पक्ष में काफी खींचतान हुई। किंतु अंत में च्यांग काई शेक के ही सेनापतित्व में १९२६ में 'उत्तरी अभियान' प्रारंभ हुआ। शीघ्र ही यौग्त्से घाटी के प्रमुख नगरों पर अधिकार हो गया। किंतु सफलता के क्षण में ही कुओमिंतांग दल में फूट पड़ गई और अभियान ठप हो गया। आक्रमणकारी सेना के वामपक्षी एवं दक्षिणपक्षी दलों ने वुहान और नानकिंग में अलग अलग अपने प्रधान अधिकरण बना लिए। इस खींचतान के बीच ही कुओमितांग दल के वामपक्षियों और उसके समर्थक साम्यवादियों में भी झगड़ा हो गया। फलत: साम्यवादी निष्कासित कर दिए गए। दक्षिणपक्षी नानकिंग की सरकार में च्यांग काई शेक का प्राबल्य तो था ही, शंघाई नगर भी उसके अधिकार में आ गया। उस कार्य में सशस्त्र बाधा डालनेवाले साम्यवादियों के विरुद्ध च्यांग ने कड़ी कार्रवाई की। सोवियत सलाहकारों को रूस लौट जाने के लिये उसने विवश किया। चीनी साम्यवादियों को कारावास एवं मृत्युदंड दिए। साम्यवादी विरोधी अभियानों में शंघाई के धनपतियों एवं विदेशियों ने उसकी सहायता की। किंतु यह सब होते भी अपने दल के असंतुष्ट नेताओं के विरोध एवं कई पराजयों के कारण च्यांग काई शेक को पदत्याग करना पड़ा। शंघाई में उसने स्वर्गीय सुनयात्तसेन की साली सूंग मेई-लिना के साथ अपना दूसरा विवाह कर ईसाई धर्म अंगीकार कर लिया।

राजनीतिक उथल पुथल के मध्य नानकिंग सरकार ने उसे १९२७ के अंत में महासेनापति पद पर पुन: बुलाया। उसके नेतृत्व में १९२८ में कुओमिंतांग सेनाओं ने पीकिंग पर अधिकार किया। मंचूरिया के नए सेनासत्ताधारी ने बिना लड़े ही कुओमिंतांग सरकार की अधीनता स्वीकार कर ली। चीन में राष्ट्रीय एकता स्थापित हो गई, किंतु वस्तुत: यह सैनिक एकीकरण मात्र था। नानकिंग में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई और च्यांग काई शेक उसका राष्ट्रपति (१९२८-३१) बना। किंतु तानाशाही अधिकारों का भोग करते हुए भी प्रबल विरोधियों के संघर्ष के कारण उसका सारे चीन पर कभी नियंत्रण न स्थापित हो सका।

च्यांग काई शेक ने साम्यवादियों के विनाश करने के सारे प्रयत्न किए। पर साम्यवादियों ने माओ त्से-तुंग के संचालन में दक्षिणी चीन के क्यांग्सी प्रांत के पर्वतीय प्रदेश में चीनी सोवियत रिपब्लिक की स्थापना (१९३१) कर ली। १९३४ में मंचूरिया में जापान के आक्रमण की गति धीमी पड़ जाने पर च्यांग काई शेक ने साम्यवादियों को चारों ओर से घेर लिया। विवश होकर साम्यवादियों को शेंसी प्रांत के लिये 'महाप्रस्थान' करना पड़ा। किंतु उसी समय च्यांग काई शेक को जापान के अति भयंकर बाह्य संकट का सामना करना पड़ा। मंचूरिया पर कब्जा कर लेने के बाद जापानियों ने उत्तरी चीन के लिये भी संकट उपस्थित कर दिया। साम्यवादियों की येनान की सरकार ने जापान के विरुद्ध संयुक्त प्रतिरोध नीति की घोषण की। उनके साथ मिलकर जापान से लड़ने के लिये च्यांग काई शेक पर दबाव डाला जाने लगा। किंतु वे साम्यवादियों को देश का शत्रु मानते थे। उनकी योजना के अनुसार साम्यवादियों को विनष्ट करके संपूर्ण चीन में एकता स्थापित करने के बाद ही जापान से सफल युद्ध किया जा सकता था। इसी से उन्होंने साम्यवादियों से सहानुभूति रखनेवाली सेना को येनान पर आक्रमण करने का आदेश दिया। किंतु आदेशपालन कराने के लिये जब च्यांग काई शेक स्वयं सियान पहुँचे तो विद्रोही सेना ने उन्हीं का अपहरण करके (१९३६) उन्हें बंदी बना लिया। फिर मुक्त होकर भी १९२७ में जापान के आक्रमण के कारण वे साम्यवादियों के विरुद्ध कुछ भी न कर सके। साम्यवादियों को जापान के विरुद्ध छापामार युद्ध करने की छूट भी देनी पड़ी। द्वितीय महायुद्ध में अमेरिका के प्रवेश (१९४१) से च्यांग काई शेक की स्थिति कुछ सँभल गई। चीन के रणमंच पर मित्रराष्ट्रों की संयुक्त सेनाओं के सर्वोच्च (१९४२-४५) के रूप में भी उसने कार्य किया। १९४५ में जापान ने आत्समर्पण कर दिया।

१९४६ में चीन के नए संविधान के अंतर्गत च्यांग काई शेक राष्ट्रपति बना किंतु साम्यवादियों के विनाश के लिये किए जानेवाले अभियानों के परिणाम भयंकर युद्ध हुए, जिनमें च्यांग को पराजित होकर चीन छोड़ भाग जाना पड़ा। दिसंबर, १९४३ में उसने फारमोसा में चीन की राष्ट्रवादी सरकार का संघटन किया।

च्यांग काई शेक कृत 'चाइनीज डेस्टिनी' और 'चाइनीज इकोनामिक थियरी' प्रसिद्ध पुस्तकें हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • चीन का गृहयुद्ध
  • माओ त्से-तुंग