कन्यादान कविता में मां ने बेटी को अपने चेहरे पर न रीझने की सलाह क्यों दी? - kanyaadaan kavita mein maan ne betee ko apane chehare par na reejhane kee salaah kyon dee?

क) ‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को अपने चेहरे पर न रीझने की सलाह दी| सुन्दर चेहरे की प्रशंसा सुनकर अकसर महिलाएँ खुश हो जाती हैं और फिर वे हमेशा उस प्रशंसा की अपेक्षा करने लगती हैं| उस प्रशंसा की अपेक्षा में वे अपनी स्वतंत्रता खो देती हैं और जीवन भर के बंधनों में बंधकर रह जाती हैं| इसीलिये कन्यादान कविता में बेटी की माँ ने अपनी बेटी से कहा है कि अपने चेहरे पर मत रीझना|

ख) जिस संतान को किसी माँ ने इतने जतन से पाल पोस कर बड़ा किया हो, उसे किसी अन्य को सौंपने में गहरी पीड़ा होती है। बच्चे को पालने में माँ को कहीं अधिक दर्द और त्याग करना पड़ता है जो एक माँ ही समझ सकती है| और एक दिन उसी संतान को किसी को दान करना पड़े तो उस दुःख को एक माँ ही समझ सकती है| अपनी बेटी को दान करते वक्त माँ का दुःख प्रमाणिक था क्योंकि उस माँ ने अपनी जीवन भर की पूँजी को एक पल में किसी दूसरे को सौंप दिया था|

ग) ‘जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’- कथन में कवि यह कहना चाहते है कि उन्हें समय पर कुछ प्राप्त नहीं हुआ उनके जीवन में सुख तो आया पर जब उसकी कोई अहमियत नहीं थी वह यह कहते है कि हमे जिस समय जो मिले जीवन में उसमे खुश रहना चाहिए और हर पल को खुल कर जीना चाहिए| हमने अतीत में जो कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा की थी वो न मिलने पर उसके दुःख में अपना वर्तमान खराब नहीं करना चाहिए वल्कि भविष्य के लक्ष्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए|

घ) राम का स्वभाव कोमल एवं शांत था इसके विपरीत परशुराम क्रोधित स्वभाव के थे इसलिए उनका गुस्सा शांत करने के लिए राम ने खुदको उनका दास कहा इससे उनकी सहनशीलता, धैर्य, गंभीरता का पता लगता है|

ङ) परशुराम के स्वभाव से क्रोधी, बाल ब्रम्हचारी एवं क्षत्रियों के प्रबल विरोधी थे| धनुष टूटने के पश्चात् उनकी प्रतिक्रिया से उनके क्रोधी होने का प्रमाण मिलता है साथ ही धनुष क्षत्रियों के द्वारा टोडा गया था इसी कारण उनका क्रोध और भी अधिक था इससे उनके क्षत्रिय विरोधी होने का प्रमाण मिलता है|


मां ने बेटी को अपने चेहरे पर मत रीझना क्यों कहा है क्योंकि?

माँ ने लड़की से अपने चेहरे पररीझने को क्यों कहा? उत्तर: क्योंकि अपनी सुन्दरता पर मोहित होने वाली लड़की अहंकार का और दूसरों की ईष्र्या का कारण बन जाती है।

कन्यादान कविता में चेहरे पर मत रीझना में क्या निहित है?

'अपने चेहरे पर मत रीझना' वाक्यांश से तात्पर्य अपनी सुंदरता पर आत्म-मुग्ध ना होना और अपनी सुंदरता पर अभिमान ना करना है। Explanation: यह प्रश्न 'ऋतुराज' द्वारा रचित कविताकन्यादान” से संबंधित है। इसमें एक मां अपनी बेटी को उपदेश देते हुए कहती है कि उसकी बेटी अपनी सुंदरता पर आत्ममुग्ध ना हो।

कन्यादान कविता में लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई न देने की बात क्यों कही गई है?

'कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना। उत्तर: ऋतुराज जी की कविता 'कन्यादान' में माँ बेटी को यह सीख देती है कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई न देना अर्थात वह अपनी बेटी को अबला या कमज़ोर बनने की सीख दे रही है। यह समाज लड़की को दुर्बल मानकर उसका शोषण करने लगता है।

चेहरे पर मत रीझना में क्या निहित है प्यार दुलार फटकार नसीहत?

इसका अर्थ है कि अपने चेहरे पर इतना ध्यान मत देना कि तुम अपने अस्तित्व को ही भुला बैठे। रूपवती होना अच्छी बात होती है लेकिन इसके मोह में स्वयं को भूल बैठना मूर्खता होती है।