करवा चौथ कैसे मनाया जाता - karava chauth kaise manaaya jaata

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करवाचौथ एक ऐसा व्रत है जिसका इंतज़ार हर विवाहित महिला बड़ी बेसब्री से करती है। करवाचौथ संपूर्ण भारत में खासतौर पर उत्तरी भारत में हिन्दू महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक मुख्य त्यौहार है। इस दिन महिलाएं अपने पति (कभी-कभी मंगेतर) की लम्बी उम्र और रक्षा के लिए सूर्योदय से रात चाँद दिखने तक निर्जल व्रत रखती हैं। इस प्राचीन हिन्दू त्यौहार के बारे में अधिक जानने के लिए आगे पढ़ें।

  1. करवा चौथ कैसे मनाया जाता - karava chauth kaise manaaya jaata

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    यह त्यौहार राजस्थान, उत्तर प्रदेश के कुछ भागों, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में मुख्य रूप से मनाया जाता है: इसी तरह के और त्यौहार पूरे भारत में मनाये जाते हैं, लेकिन करवाचौथ विशिष्ट रूप से उत्तरी भारत में मनाया जाता है।

  2. करवा चौथ कैसे मनाया जाता - karava chauth kaise manaaya jaata

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    इसकी तैयारी कुछ दिनों पहले से ही शुरू कर दें: यदि आप यह व्रत रखने वाली हैं, तो आप मेकअप, कॉस्मेटिक्स (श्रृंगार), आभूषण, गहने, करवा और मट्ठी, इत्यादि खरीदना चाहेंगी। बाज़ार पहले से ही करवाचौथ त्यौहार से संबंधित चीजों से सजे-धजे रहते हैं, जिससे आपको मज़ेदार विकल्पों को चुननें में कोई परेशानी नहीं होती। [१]

  3. करवा चौथ कैसे मनाया जाता - karava chauth kaise manaaya jaata

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    करवाचौथ के दिन सूर्योदय से पहले उठें: इस दिन आपको उषाकाल से पहले यह व्रत रखने वाली और महिलाओं के साथ उठकर कुछ खाना तथा पीना चाहिए। यदि आप उत्तर प्रदेश से संबंधित क्षेत्र से हैं तो आप उषाकाल से पहले शक्कर और दूध के साथ सूत फेनी (चने और दूध से बना एक पारम्परिक व्यंजन) लेना पसंद करेंगी। इस मिश्रण के सेवन से अगले दिन बिना पानी पीये रहने में मदद मिलती है। पंजाब में उषाकाल से पहले लिए गए अन्न में सरगी का एक महत्वपुर्ण स्थान है।

    • परंपरा के अनुसार सरगी सास द्वारा अपनी बहु को करवाचौथ पर दिया जाने वाला बहुमूल्य उपहार है जिसमें काजू बादाम, मीठी मट्ठी और सुहाग की निशानियाँ होती है।
    • यदि आप अपने सास के साथ ही रहती हैं तो उषाकाल के पहले खाया जाने वाला पदार्थ आपकी सास द्वारा ही बनाया जाता है।

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    ध्यान रहे कि व्रत उषाकाल से ही शुरू हो जाता है: यह एक कठिन व्रत है और इसमें आप दिन भर कुछ भी खा या पी नहीं सकतीं। और मज़े की बात यह है कि: इस दिन आपको घर के काम भी नहीं करने पड़ते।[२]

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    करवाचौथ के दिन सामूहिक गतिविधियों में सम्मिलित होइए: सुबह के समय दूसरी महिलाओं के साथ समय बिताइए, और एक-दूसरे के हाथ और पैरों में मेहँदी लगाइए। सूर्यास्त से पहले, आप सभी पूजा संबंधित रस्मों को निभाने के लिए एक जगह एकत्रित होंगे (जो किसी का घर हो सकता है) । आप सभी एक दुसरे से बयाना की अदला बदली कर के एक साथ मिलकर अपने पति के कल्याण, सुरक्षा और लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करेंगी।[३]

    • इस पूजा में महिलाएं करवा माता की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करती हैं।
    • बयाना एक उपहार से भरी टोकरी की तरह होता है जिसमे श्रृंगार का सामान, बादाम, सात पुड़ियाँ, गुलगुले, मिठाइयां आदि होते हैं।

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    अपने पति या मंगेतर को भी इस विधि में सम्मिलित करें: यद्यपि यह त्यौहार खास तौर से महिलाओं का है, फिर भी पति इसमें सक्रीय रूप से भाग लेते हैं। वे खुद के लिए अपनी पत्नी द्वारा किये गए इस कठोर व्रत और प्रार्थना के बदले में उन्हें उपहार देते हैं। यह त्यौहार दो सहेलियों के आपसी प्रेम के साथ-साथ पति और पत्नी के बीच अटूट रिश्ते की भी याद दिलाता है।[४]

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    करवाचौथ का व्रत और पूजन पूरे विधि-विधान के साथ होता है: आगे दी गयी सामग्री और विधि द्वारा करवाचौथ की पूजा की जाती है।

    • पूजन सामग्री: मिट्टी, ताम्बा अथवा पीतल के दो करवे, दूध, जल, धुप, सुपारी, मौलि, अक्षत, दीप, कपूर, सिंदूर, काजल, पुष्प एवं पुष्पमाला, जल के लिए तीन पात्र, नैवेध्य के लिए पूर्ण फल, मेवा या मिठाई, इत्यादि।
    • इस व्रत में पीसी हुई चावल के घोल से दीवाल पर सबसे ऊपर चन्द्रमा बनते हैं उसके नीचे शिव, गणपति और कार्तिकेय का चित्र बनाया जाता है। फिर पीली मिट्टी से माता गौरी बनायी जाती हैं जिनकी गोद में गणपति को बैठाया जाता है। गौरी को चौकी पर बिठाकर सभी सुहाग चिन्हों से उन्हें सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। एक पुष्प को नन्दीश्वर स्वरुप मानकर स्थान दिया जाता है।
    • करवा में रक्षासूत्र बांधें, तथा हल्दी और आटे के सम्मिश्रण से एक स्वस्तिक बनाएं। एक करवे में जल भरें तथा दुसरे करवे में दूध भरें और इसमें ताम्बे या चांदी का सिक्का डालें। आचमन के लिए छोटे पात्र में जल भर कर रखें तथा साथ में एक चम्मच भी रखें।[५]
    • पूजा के लिए मंत्र:‘ॐ शिवायै नमः‘ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय‘ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः‘ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः‘ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः‘ से चंद्रमा का पूजन करें।[६]
    • सब तैयारी हो जाने के बाद करवाचौथ की कथा सुनें और फिर चन्द्रमा निकलते ही श्री चन्द्रदेव को अर्ध्य दीजिये।

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    करवाचौथ के दिन व्रत कथा पढ़ना अनिवार्य माना गया है: करवाचौथ की कई कथाएं है लेकिन सबका मूल एक ही है। करवाचौथ की कुछ प्रचलित कथाएँ आगे दी गयीं हैं।

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    वीरावती की कथा: इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवाचौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी।

    • उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।
    • परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवाचौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।[७]

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    करवा की कथा: एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

    • उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।
    • यमराज बोले, “अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता।” इस पर करवा बोली, “अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी।” सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी।
    • हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।[८]

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    द्रौपदी की कथा: इस कथा के अनुसार एक समय की बात है, जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा।

    • तब चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा।
    • तब कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवाचौथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सबकुछ ठीक हो जाएगा।
    • कृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रोपदी ने वैसा ही करवाचौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं।[९]

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    यह जानें कि, एक नव-विवाहिता अपने गाँव या शहर को छोड़कर अपने पति के साथ रहने लगती है: वह अपने घर को पूरी तरह भूलाकर अपने ससुराल को ही अपना नया घर बना लेती है। यह प्रथा तब शुरू हुई, जब नव-विवाहिता इस नए वातावरण में एक नयी सहेली बना पायी। यह रिश्ता एक महत्वपूर्ण बंधन में परिवर्तित हो गया और इस जाने माने त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा।[१०]

    • यह नयी सहेली नव-विवाहिता की एक अच्छी सहेली या बहन जैसी बन गयी।
    • ये दोनों महिलाएं एक दुसरे को साहस देती होंगी और अपने पतियों के कल्याण के लिए मिलकर प्राथर्ना करती होंगी।
    • करवाचौथ, नव-विवाहिता और उसकी इस अच्छी सहेली या अच्छी बहन जैसी दोस्त के बीच गहन संबंध को प्रकट करता है।
    • यह अच्छी सहेली या अच्छी बहन जैसी दोस्त परिवार के सदस्य की तरह ही होती थी।

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    ध्यान दें, कि यह त्यौहार भारत के उत्तरी और उत्तरी-पश्चिम क्षेत्र में मनाया जाता है: यद्यपि इस त्यौहार की उत्पत्ति को लेकर अनेकों अनुमान है, फिर भी यह कोई नहीं जानता कि यह त्यौहार भारत के उत्तरी क्षेत्र और सिर्फ अक्टूबर के महीने में क्यों मनाया जाता है। यहाँ पर इससे संबंधित व्यापक रूप से स्वीकार्य धारणा है।[११]:

    • अक्टूबर में वर्षा-ऋतू के बाद अक्सर जमीन सूखी रहती है।
    • मिलिट्री कैंप और लम्बी दुरी की यात्रा भी अक्सर अक्टूबर या नवम्बर के महीने में शुरू होते हैं।
    • महिलाओं ने अपने पति (या मंगेतर) की लम्बी आयु और सुरक्षा के लिए व्रत तथा प्रार्थना की शुरुआत की होगी ताकि वे यात्रा और दायित्व निभाने में सफल हों।

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    ध्यान रहे कि यह त्यौहार और गेहूं की बुवाई एक ही समय होती है: गेहूं के भण्डारण में इस्तेमाल आने वाले पात्र काफी बड़े और मिट्टी के बने होते थे, और उन्हें करवा कहा जाता था। चौथ शब्द का मतलब चौथा होता है। ऐसा कुछ अनुमान लगया जाता है कि यह त्यौहार अच्छी फसल हेतु आरंभ हुआ होगा।

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    ध्यान दें कि करवाचौथ अक्टूबर महीने में चन्द्रमा के क्षय वाले पक्ष में चौथी तिथि को पड़ता है: इस दिन को हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी कहते है। इसकी कोई विशिष्ट तारीख नहीं होती पर यह अक्सर अक्टूबर महीने में पड़ता है।[१२]

सलाह

  • व्रत तोड़ने के पश्चात् बहुत अधिक न खाएं। अधिक से अधिक पानी पीना और स्वस्थ आहार लेना महत्वपुर्ण है।
  • यदि आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई चिकित्सीय समस्या हो तो उस वर्ष के लिए यह व्रत आप छोड़ सकती हैं |
  • व्रत के दौरान कसरत या व्यायाम न करें।

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यह लेख ने कैसे आपकी मदद की?

पहली बार करवा चौथ का व्रत कैसे करें?

सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।.
स्नान करने के बाद मंदिर की साफ- सफाई कर ज्योत जलाएं।.
देवी- देवताओं की पूजा- अर्चना करें।.
निर्जला व्रत का संकल्प लें।.
इस पावन दिन शिव परिवार की पूजा- अर्चना की जाती है।.
सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। ... .
माता पार्वती, भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय की पूजा करें।.

करवा चौथ कैसे मनाई जाती बताइए?

करवाचौथ एक ऐसा व्रत है जिसका इंतज़ार हर विवाहित महिला बड़ी बेसब्री से करती है। करवाचौथ संपूर्ण भारत में खासतौर पर उत्तरी भारत में हिन्दू महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक मुख्य त्यौहार है। इस दिन महिलाएं अपने पति (कभी-कभी मंगेतर) की लम्बी उम्र और रक्षा के लिए सूर्योदय से रात चाँद दिखने तक निर्जल व्रत रखती हैं।

भारत में करवा चौथ कैसे मनाया जाता है?

इस व्रत में करवे का विशेष रूप से प्रयोग होता है। महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास रखती हैं और चंद्रोदय के बाद भोजन-जल ग्रहण करती हैं। करवे में पकवान भरे जाते हैं या पताशे रखे जाते हैं और उन्हें दान में दिया जाता है। कई स्थानों पर चावल से बने व्यंजन भी रखे जाते हैं।

करवा चौथ के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

करवा चौथ के द‍िन भूलकर भी मांस, मछली, अंडा और मुर्गा आदि तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। ध्‍यान रखें इस न‍ियम का पालन केवल व्रती मह‍िलाओं को ही नहीं बल्कि उनके पतियों को भी करना चाह‍िए। मान्‍यता है क‍ि अगर इस न‍ियम का पालन न क‍िया जाए तो व्रत करना व्‍यर्थ जाता है। करवा महारानी भी व्रती पर प्रसन्‍न नहीं होतीं।