कम से कम पानी कुशल फसल कौन सी है? - kam se kam paanee kushal phasal kaun see hai?

कम पानी में होने वाली फसलें | सबसे कम पानी की फसल | कम पानी वाली फसल | kam pani ki kheti | बारिश के बिना खेती कैसे करते हैं | सबसे कम पानी का उपयोग किस काम में हुआ | कम सिंचाई वाली फसल | crops which need less water in india

Show

भारत एक कृषि प्रधान देश होने के नाते यहाँ की अधिकांश आबादी खेतीबाड़ी पर निर्भर है. फिर भी यहाँ बहुत से इलाकों में फसलों की सिंचाई के लिए पानी की समस्या होती है. हमारे देश में बहुत से किसान वर्षा पर आश्रित होकर खेती करते हैं तो बहुत से किसान नहरों में आने वाली पानी पर आश्रित रहते हैं.

कम से कम पानी कुशल फसल कौन सी है? - kam se kam paanee kushal phasal kaun see hai?

ऐसे में होता यह है की कभी-कभी समय से बारिश नहीं होता है या फिर समय से नदियों में पानी नहीं आता है तो पानी की आभाव के कारण इसका असर फसलों के उत्पादन पर पड़ता है. जिससे फसल की पैदावार में भारी कमी देखने को मिलती है.

अतः किसान भाइयों को चाहिए की ऐसे फसलों की बुआई करें जो कम पानी में होने वाली फसलें हों. और देखा जाय तो बहुत सी ऐसी फसलें हैं जिनको अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है. तो दोस्तों अगर आप भी यह जानना चाहते हैं की सबसे कम पानी की फसल कौन सी है? तो इस पोअत को पूरा जरू पढ़े. और अगर आपको कम पानी में उगने वाली फसल की यह जानकारी अच्छी लगे तो इसे शेयर जरुर करें.

सबसे कम पानी की फसल कौन सी है

उतैला या उर्द की खेती

यह गर्मियों तथा बरसात दोनों मौसमों में उगाया जाता है. ये एक दाल वाली फसल है तथा ये कम पानी वाली फसल है. अतः जिन किसान भाइयों के यहाँ फसलों की सिंचाई के लिए पानी की समस्या होती हो, उनके लिए यह फसल बहुत अच्छी मानी जाती है.

अरहर की खेती

अरहर की बुआई जुलाई महीने में बरसात की शुरुआत में की जाती है. यह एक ऐसी दाल वाली फसल है जिसमें एक भी सिंचाई की जरुरत नहीं होती है. यह बारिश के पानी से कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसलिए यह बारिश में उगाई जाने वाली फसल है. बुआई से लेकर कटाई तक इसमें 8 से 9 महीने तक का समय लगता है.

बाजरा और ज्वार की खेती

ज्वार और बाजरा की खेती भी बरसात में ही किया जाता है. यह लगभा 4 महीने पककर तैयार हो जाती है. यह भी कम pani me hone wali fasal हैं. अगर समय से बारिश होती रहती है तो in फसलों में भी अलग से सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

मूंग की खेती

यह गर्मी की दाल वाली फसल है. इसे गर्मियों के मौसम में बोया जाता है. इसमें सिंचाई बहुत ही कम किया जाता है.

चना की खेती

इसकी खेती सर्दियों में किया जाता है. इसे दाल और बेसन के रूप में उपयोग किया जाता है. अगर सिंचाई की बात करें तो, यदि बुआई करते समय मुख्य खेत में पर्याप्त नमी हो तो इसमें एक भी सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. और बुआई के लगभग 150 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है.

अलसी या तीसी की खेती

उत्तर प्रदेश में अलसी को तीसी कहा जाता है. इसकी खेती सर्दियों के मौसम में किया जाता है. चने की तरह इसमें भी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. यह भी बुआई के 150 दिन बाद पककर तैयार होती है.

मक्का की बुआई

मक्का की खेती बरसात के मौसम में किया जाता है. इसे भुट्टा या जोन्हरी भी कहा जाता है. इस फसल में भी सिंचाई बहुत कम करनी पड़ती है. कुछ राज्यों में इसकी खेती गर्मियों में भी किया जाने लगा है. ट्रेनों में या दुकानों में इसके सूखे भुने हुए लावे को बेचा जाता है जिसे पापकार्न कहते हैं.

तिल की बुआई

यह तिलहन की फसल है. इसके दानो से मशीनों द्वारा पेराई करके तेल निकाला जाता है. इसकी खेती बरसात के महीने में की जाती है. इसे बहुत कम सिंचाई की आवश्यकता होती है.

सरसों की खेती

इसकी खेती सर्दियों में की जाती है. इस राई या सरसो के नाम से जाना जाता है. यह भी तिल की फसल की तरह kam pani me hone wali fasal है.

कम सिंचाई वाली फसल सह फसलें
अरहर ज्वार
अरहर बाजरा
उर्द ज्वार
अरहर तिल

FAQ:

Q: सबसे जल्दी तैयार होने वाली फसल कौन सी है?

ANS: खीरा, ककड़ी, पालक, तरबूज, धनिया आदि

Q: पानी की अधिक आवश्यकता वाली फसल कौन सी है?

ANS: धान, मक्का, केला, ईख आदि.

Q: कौन सी फसल में सबसे कम पानी का इस्तेमाल होता है?

ANS: तिल्ली, अरहर, उर्द, मुंग, अलसी, चना आदि.

यह भी पढ़ें:

  • पुरे वर्ष ऐसे करें गेंदा फूल की खेती
  • कोकोपीट क्या है | कोकोपीट का उपयोग कैसे करें
  • बरसात में कौन सी सब्जी की खेती करें
  • अब बिना मिटटी के हवा में उगेगा आलू होगी बम्पर पैदावार

सागर (मध्यप्रदेश)। पानी की बढ़ती किल्लत से किसानों के हर साल हजारों एकड़ खेत खाली पड़े रहते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने असिंचित और कम पानी में बेहतर उपज देनी वाली नई प्रजातियां विकसित की हैं।

हमारे देश में तिलहन में अलसी एक ऐसी फसल है जिसे किसान कम पानी में ले सकते हैं। इस फसल में न तो कोई कीटनाशक लगता है और न ही प्रतिकूल वातावरण का कोई असर पड़ता है। छुट्टा जानवर और नीलगाय इस फसल को नुकसान नहीं पहुंचाती। किसान दो सिंचाई में एक हेक्टेयर में 20 कुंतल से ज्यादा उपज ले सकता है। देश में अलसी के कुल रकबे का 56 प्रतिशत रकबा मध्य प्रदेश का है।

कई वर्षों से अलसी की बेहतर गुणवत्ता पर नई प्रजातियों को विकसित करने वाले सागर जिले के डॉ देवेन्द्र कुमार प्यासी का कहना है , “जिन क्षेत्रों में चार-पांच पानी लगाने की सुविधा नहीं है वहां के किसान अलसी की ये प्रजाति जेएलएस-66, जेएलएस-67, जेएलएस-73 और जेएलएस-95 लगा सकते हैं। इस फसल में कीट और पाला का प्रकोप नहीं आता है और न ही छुट्टा जानवर इसको नुकसान पहुंचाते हैं।”

ये भी पढ़ें- नीलम, गरिमा, श्वेता और पार्वती बढ़ाएंगी अलसी की खेती

देश के कुल रकबे में 56 प्रतिशत अलसी मध्य प्रदेश में होती है

वो आगे बताते हैं, “अन्य फसलों की अपेक्षा इसमें मेहनत 30 प्रतिशत कम और लागत आधे से भी कम आती है। एक हेक्टेयर में 10 हजार लागत और 20 कुंतल से ज्यादा पैदावार होती है। अलसी के पौधे से निकलने वाले तने के रेशे की मांग देश और विदेशों में बहुत ज्यादा है इसके बीज में 33 से 45 प्रतिशत तेल, 20 से 30 प्रतिशत प्रोटीन, चार से आठ प्रतिशत रेशा पाया जाता है।”

डॉ देवन्द्र कुमार प्यासी जवाहर लाल कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के अंतर्गत क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र सागर में संचालित अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना में कृषि वैज्ञानिक है। अलसी की दो प्रजाति जेएलएस-66,जेएलएस-95 का शोध डॉ प्यासी ने किया है। किसान ज्यादा से ज्यादा अलसी की विकसित नई प्रजातियों को लगाएं इसके लिए डॉ प्यासी प्रयासरत रहते हैं।

अखिल भारतीय अलसी अनुसंधान परियोजना 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल दो लाख 62,000 हेक्टेयर अलसी का रकबा था जिसमें मध्यप्रदेश में 1,1600 हजार हेक्टेयर अलसी की बुवाई हुई थी। उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम-बंगाल, छत्तीसगढ़, असम में भी किसान बेहतर उत्पादन ले रहे हैं। अलसी में औषधि गुण भरपूर मात्रा में होने की वजह से स्वास्थ्य संगठन ने अलसी को ‘सुपर फूड’ का नाम दिया है।

ये भी पढ़ें- राजस्थान के इस युवक ने किसान और बाजार के बीच खत्म कर दिए बिचौलिए

“हमारे यहां पिछले कुछ वर्षों में पानी 200 फिट नीचे चला गया है। गेहूं में चार से पांच पानी लगाने पड़ते हैं जो अब सम्भव नहीं हैं। डॉ देवेन्द्र कुमार प्यासी से अलसी का बीज लिया और इस बार 32 एकड़ बोया है जो अप्रैल के पहले सप्ताह में कटना शुरू हो जायेगा। अलसी का बीज सस्ता मिलता है, 60-80 रुपए प्रति किलो बीज मिलता है जिसे किसान एक एकड़ में 10 किलो आसानी से खरीदकर बुवाई कर सकते हैं।” ये कहना है दिनेश माहेश्वरी (57 वर्ष) का। जो होशंगाबाद जिले के बनखेड़ी ब्लॉक में गोदरई गाँव के रहने वाले हैं।

अखिल भारतीय अलसी अनुसन्धान के राष्ट्रीय परियोजना समन्यवक डॉ पी के सिंह बताते हैं, “ घटते जल स्तर की वजह से किसानों का रुझान अलसी की खेती की तरफ बढ़ा है। वर्ष 2016-17 में 46 प्रतिशत इजाफा हुआ है। 76 प्रकार की प्रजातियां विकसित की गयी हैं जिनमें पदमनीय, शारदा, जेएलएस-73 जेएलएस-66, जेएलएस-67, जेएलएस-95, इंद्रा अलसी-32, कार्तिकेय, दीपिका मुख्य हैं जो कम पानी में किसानों को बेहतर उपज देती हैं।”

वो आगे बताते हैं, “अलसी के रकबे में पिछले दो वर्षों में लगातार इजाफा हो रहा है। धान के बाद 11 मिलियन हेक्टेयर खेत खाली रहते हैं। उन क्षेत्रों के लिए किसान उतेरा पद्यति अपना सकते हैं। जब धान बालियों पर रहे उस समय अलसी का बीज फैला देते हैं इसे उतेरा पद्यति कहते हैं।”

ये भी पढ़ें-सेहत के लिए मुफीद होने के बावजूद घट रही अलसी की खेती

वैज्ञानिक नई प्रजातियों को विकसित करते रहते

अलसी की पैकेजिंग कर ले सकते हैं कई गुना मुनाफा

मंदसौर जिले के एक किसान अर्जुन पाटीदार अलसी को थोक में न बेचकर इसको रोस्टेड और पैकेजिंग करके 200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेच रहे हैं। इस साल 20 एकड़ अलसी की खेती करने वाले अर्जुन बताते हैं, “कम पानी और कम लागत के अलावा इसे किसान फसल चक्र के लिए भी अपना सकते हैं। इसमें कोई खाद और दवाई नहीं डाली है, ये बारिश के मौसम में सड़ती नहीं है। ओमेगा-3 की मात्रा इसमें नौ प्रतिशत होती है। एक एकड़ में सात से आठ कुंतल उत्पादन आसानी से हो जाता है।”

किसानों की मांग इसका भाव हो ज्यादा

सागर जिले के एक किसान आलमवीर सिंह रंधावा (63 वर्ष) ने पिछले वर्ष 80 एकड़ अलसी बोई थी इस बार 62 एकड़ बोई है। ये बताते हैं, “अलसी बोने से सबसे ज्यादा फायदा ये हुआ कि फसल को नीलगाय ने नुकसान नहीं किया। 80 एकड़ में 500 कुंतल पैदावार हुई थी जिसका बाजार भाव 4,000 रुपए प्रति कुंतल मिला। इसमें औषधि गुण बहुत ज्यादा हैं उस हिसाब से बाजार भाव नहीं है। अगर इसका बाजार भाव अच्छा हो जाए तो किसानों के लिए इससे ज्यादा कम लागत में मुनाफा देने वाली दूसरी फसल नहीं होगी।”

ये भी पढ़ें-अलसी अच्छे मुनाफे की तिलहनी फसल

मंदसौर के किसान अर्जुन पाटीदार ने बताया, “छुट्टा जानवर इस फसल को नहीं पहुंचाते नुकसान

सबसे कम पानी वाली फसल कौन सी है?

हमारे देश में तिलहन में अलसी एक ऐसी फसल है जिसे किसान कम पानी में ले सकते हैं। इस फसल में न तो कोई कीटनाशक लगता है और न ही प्रतिकूल वातावरण का कोई असर पड़ता है। छुट्टा जानवर और नीलगाय इस फसल को नुकसान नहीं पहुंचाती।

जल्दी तैयार होने वाली फसल कौन सी है?

मूली सब्जियों की खेती है. यह पुरे वर्ष उगाई जाने वाली सब्जी की फसल है. बुआई के 50 दिन बाद यह मंडियों में बेचने के लिए तैयार हो जाती है. अतः मुली की फसल सबसे जल्द तैयार होने वाली फसल है.

सबसे ज्यादा पानी वाली फसल कौन सी है?

पानी की सबसे ज्यादा खपत करने वाली कपास और गन्ने की यहां सबसे अधिक खेती होती है. गन्ने के उत्पादन में पहले नंबर पर यूपी, दूसरे पर महाराष्ट्र और तीसरे पर कर्नाटक है. जबकि कॉटन में गुजरात पहले और महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है. धान की फसल पैदा करने में पश्चिम बंगाल पहले, यूपी दूसरे और आंध्र प्रदेश तीसरे नंबर पर है.

कौन सी सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाली फसल है?

भारत में सबसे ज्यादा कमाई वाली चंदन की खेती है जो 1 एकड़ में 1 करोड़ की आमदन देती है। इस फसल से अगर आप किसान है तो करोड़पति बन सकते है। यहाँ क्लिक करें और जॉइन करें किसान समाधान टेलीग्राम चैनल और किसान समाधान फेसबुक ग्रुप जॉइन कर सकते है।