कबीर के पदों की व्याख्या Class 11 अंतरा? - kabeer ke padon kee vyaakhya chlass 11 antara?

प्रश्न-अभ्यास

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1. ‘अरे इन दोहुन राह न पाई’ से कबीर का क्या आशय है और वे किस राह की बात कर रहे हैं?

उत्तर

कबीर ने इस पंक्ति में कहा है कि हिन्दू और मुसलमान धार्मिक आडंबरों में उलझे हुए हैं| इन्हें सच्ची भक्ति का अर्थ नहीं मालूम है। धार्मिक आंडबरों को धर्म मानकर चलते हैं। कबीर के अनुसार ये दोनों भटके हुए हैं।

2. इस देश में अनेक धर्म, जाति, मजहब और संप्रदाय के लोग रहते थे किंतु कबीर हिंदू और मुसलमान की ही बात क्यों करते हैं?

उत्तर

कबीर ने हिंदू और मुसलमान की बात इसलिए की है क्योंकि उस समय भारत में हिंदू और मुस्लिम दो धर्म सबसे ज्यादा प्रचलित थे। जैन, बौद्ध आदि धर्म हिन्दू धर्म की ही शाखाएँ हैं। इसलिए उन्होंने उस समय कबीर ने अलग-अलग करके नहीं देखा था। इन दो धर्मों के बीच ही लड़ाई होती रहती थी| उन्होंने दोनों की भक्ति विधि का खंडन करते हुए उन्हें संमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।

3. ‘हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई’ के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं? वे उनकी किन विशेषताओं की बात करते हैं?

उत्तर

कबीर कहते हैं कि दोनों ही धर्मों में अनेक प्रकार के आडंबर प्रचलित है। दोनों स्वयं को श्रेष्ठ बताकर आपस में लड़ते हैं। हिन्दू छुआछूत में भरोसा रखते हैं और दूसरी ओर वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं परन्तु अपवित्र नहीं होते हैं। इसलिए इनकी शुद्धता और श्रेष्ठा बेकार है। वे मुसलमानों के बारे में कहते हैं कि वे जीव हत्या करते हैं और उसे मिल-जुलकर खाते हैं और सगे-संबंधियों से विवाह करते हैं। इसलिए हिंदू मुसलमान दोनों ही एक जैसे हैं।

4. ‘कौन राह है जाई’ का प्रश्न कबीर के सामने भी था। क्या इस तरह का प्रश्न आज समाज में मौजूद है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

प्राचीनकाल से लेकर अभी तक मनुष्य इसी दुविधा में फँसा हुआ है कि वह किस राह को चुने। आज के समाज में भी यह प्रश्न सभी के सामने है। भारत जैसे देश में तो हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन इत्यादि धर्म प्रचलित हैं। सब स्वयं को अच्छा और श्रेष्ठ बताते हैं। सबकी अपनी मान्यताएँ हैं। मनुष्य इनके मध्य उलझकर रह गया है। उसे समझ ही नहीं आता है कि वह किसे अपनाए, जिससे उसे जीवन की सही राह मिले।

5. ‘बालम आवो हमारे गेह रे’ में कवि किसका आह्वान कर रहा है और क्यों?

उत्तर

प्रस्तुत पंक्ति में कबीर भगवान का आह्वान कर रहे हैं। वे अपने भगवान के दर्शन के प्यासे हैं। अपने भगवान के दर्शन पाने के लिए उन्हें अपने पास बुला रहे हैं।

6. ‘अन्न न भावै नींद न आवै’ का क्या कारण है? ऐसी स्थिति क्यों हो गई है?

उत्तर

अपने नायक के वियोग में जिस तरह नायिका को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह खाना-पीना छोड़ देती है और उसे नींद भी नहीं आती। उसी तरह से कबीर की जीवात्मा को भी परमात्मा रूपी प्रियतम के वियोग में खाना-पीना अच्छा नहीं लगता। वह निरंतर उसी के चिंतन में डूबे रहते हैं, इसलिए उसे नोंद भी नहीं आती है। उसकी यह स्थिति परमात्मा रूपी प्रियतम से नहीं मिलने के कारण हो गई है।

7. ‘कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नौर रे’ से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

कबीर कहते हैं कि कामिनी औरत को प्रियतम (बालम) बहुत प्रिय होता है। प्यास से व्याकुल व्यक्ति को पानी बहुत प्रिय होता है। ऐसे ही भक्त को अपने भगवान प्रिय होते हैं। कबीर को भी अपने भगवान प्रिय हैं और वे उनके लिए व्याकुल हो रहे हैं।

8. कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं और यह पद (बालम आवो हमारे गेह रे) साकार प्रेम की ओर संकेत करता है। इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए।

उत्तर

कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं। वे ईश्वर के मूर्ति रूप को नहीं मानते हैं परन्तु सांसारिक संबंधों को अवश्य मानते हैं। उनका प्रेम में अटूट विश्वास है। प्रेम कभी साकार या निराकार नहीं होता। बल्कि यह एक भावना है| संतों ने परमात्मा को पति और जीवात्मा को पत्नी के प्रतीक के रूप में दर्शाया है। परमात्मा रूपी पति को न मिलने से पत्नी रूपी जीवात्मा की प्रेम-भावना तड़प उठती है। इसलिए यह पद प्रतीत तो साकार प्रेम की तरह हो रहा है लेकिन सत्य यह है कि वह निर्गुण रूप ही है।

9. उदाहरण देते हुए दोनों पदों का भाव-सौंदर्य और शिल्प-सौंदर्य लिखिए।

उत्तर

प्रथम पद में कबीर ने व्यंग्य शैली को अपनाया है। विभिन्न उदाहरणों द्वारा उन्होंने हिन्दुओं तथा मुस्लमानों के धार्मिक आंडबरों पर करारा व्यंग्य किया है। दोनों के बीच की लड़ाई को भी दर्शाया है|  भाषा बहुत ही सरल तथा सुबोध है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है तद्भव शब्दावली का प्रयोग किया गया है और प्रतीकात्मकता विद्यमान है|

दूसरे पद में कबीर ने परमात्मा के प्रति अपने प्रेम को दर्शाया है| उन्होंने जीवात्मा को पत्नी और परमात्मा को पति के प्रतीक के रूप में बताकर उनसे मिलने की तड़प को दिखाया है| यहाँ पर प्रियतम और प्रिया के साकार प्रेम को माध्यम बनाया गया है। विरह उसकी साधना में बाधक के स्थान पर मार्ग बनाने का कार्य करती है। इस पद की भाषा भी सरल और सधुक्कड़ी है। परमात्मा को प्रियतम और स्वयं को प्रिया दिखाने के कारण प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग हुआ है। भक्ति रस की प्रधानता है|

हम एक एक करि जांनां ।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां ॥
एके पवन एक ही पानी एके जोति समानां ।
एके खाक गढ़े सब भांड़ै एके कोंहरा सांनां ॥
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।
सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई ॥
माया देखि के जगत लुभानां काहे रे नर गरबांनां ।
निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवांनां ॥

कबीर के पद प्रसंग-भक्तिकाल की निर्गुण ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि संत कबीरदास द्वारा रचित पद 'हम तौ एक-एक करि जाना' हमारी पाठ्य-पुस्तक‘आरोह' भाग 1 में संकलित है। यहाँ कवि ने परमात्मा को सम्पूर्ण संसार में व्याप्त बताया है। उन्हें ज्योति रूप में स्वीकार किया है और उन्हें एक-एक कण में देखा है। उन्होंने ईश्वर की अद्वैत सत्ता के दर्शन किए हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि

कबीर के पद की व्याख्या - मैंने तो एक-एक कण को बहुत अच्छी तरह समझा प्रत्येक कण में एक ही परमात्मा व्याप्त है।जो इनके दो बताता है और उन्हें अच्छीप्रकार से नहीं जानता है वह नरक का भागीदार है। प्रत्येक प्राणी में एक हवा और जल का संचार है, वह परमपिता परमात्मा की ज्योति स्वरूपहोकर सब विद्यमान है। एक तरह की मिट्टी को अच्छी तरह मिलाकर शरीर रूपी बर्तन बनाने वाला कुम्भकार भी एक ही है। जिस प्रकार बढ़ईलकड़ी को तो काट सकता है किंतु आग नहीं काट सकता उसी प्रकार शरीर समाप्त हो जाता है किंतु परमात्मा अपने शास्वत रूप में रहते हैं।परमात्मा प्रत्येक शरीर में व्याप्त होकर उस जैसा ही स्वरूप धारण कर लेता है। अहंकारी मनुष्य को संबोधित करते हुए कवि ने कहा है कि हेमनुष्य! तुम धन-संपत्ति पाकर संसार भूलकर किसलिए अहंकार करते हो। कबीरदास जी कहते हैं कि जो अहंकार आदि से मुक्त होता है वहभयहीन होता है। उसे किसी प्रकार का कोई भय नहीं सताता है।

कबीर के पद का विशेष- यहाँ कबीर ने परमात्मा को ज्योति स्वरूप में स्वीकार किया है। ईश्वर को कण-कण में विद्यमान बताया है। मनुष्य को अहंकारी वृत्ति सेदूर रहने के लिए कहा है। विविध उदाहरणों द्वारा निर्गुण ईश्वर की अद्वैत सत्ता का समर्थन किया है। 'एक-एक' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैतथा सम्पूर्ण पद में यत्र-तत्र अनुप्रास अलंकार का सौंदर्य देखने को मिलता है। इसमें सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग है।

संतो देखत जग बौराना
साँच कहाँ तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।।
नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितेब कुराना ।
के मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना ॥
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना ॥
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना ।
हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना ।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभियाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अंत काल पछिताना ।
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना।
केतिक कहौं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना

कबीर के पद का प्रसंग - कबीरदास ने यहाँ साधु-संतों को इस संसार के पागलपन की बातें बताई हैं। उन्होंने आंतरिक सत्ता को जानने की बात पर बल देते हुएबाह्याडंबरों का विरोध किया है। लोग वास्तविक संसार से अनभिज्ञ रहते हुए अनजाने में अवास्तविक संसार से संबंध जोड़ लेते हैं। कबीर ने ऐसेलोगों को समझाते हुए कहा है कि

कबीर के पद व्याख्या- हे संतो! देखो यह संसार पागल हो गया है। सच्चाई बताने पर सांसारिक लोग उसका विरोध करते हैं और मारने दौड़ते हैं। जबकि झूठी बातों पर विश्वास कर लेते हैं। मैंने इस संसार में अनेक ऐसे लोग देखे जो नियमों का पालन करने वाले और धार्मिक अनुष्ठान करने वाले थे और वे प्रातः जल्दी उठकर स्नान भी करते थे। ऐसे लोगों का ज्ञान दिखावा है। ये लोग आत्म तत्त्व को छोड़कर पत्थर की मूर्ति की पूजा करते हैं। इस्लाम धर्म के अनुयायी अनेक पीर, फ़कीर औलिया नियमपूर्वक पवित्र कुरान पाठ करते हैं, ये भी शिष्य बनाते हैं और उन्हें अनेक तरह के उपाय बताते हैं, उनमें कौन ज्ञानवान है। हिंदू लोग आसन लगाकर भी अहंकार का त्याग नहीं करते हैं, इन लोगों को अपने ऊपर विशेष घमंड है। ये लोग पीपल और मूर्तियों की पूजा करने में व्यस्त रहते हैं इसलिए तीर्थ और व्रतों को बिलकुल भुला दिया है। ये लोग सिर पर टोपी पहनते हैं, गले में माला पहनते हैं और माथे पर तिलक एवं शरीर पर छापे लगाते हैं। ये साखी और सबद भी गाना भूल गए हैं यहाँ तक कि अपनी आत्मा का रहस्य भी नहीं जानते हैं। हिंदू धर्म के लोग राम की पूजा करते हैं और राम को अपना बताया है। इसी प्रकार मुसलमान भी रहमान को अपना बताते हैं हिंदू और मुसलमान अपनी कट्टरता के कारण राम और रहमान के नाम पर लड़ते रहते हैं। दोनों संप्रदायों में से कोई भी प्रभु की सत्ता को नहीं जानता। हिंदू संप्रदाय के लोगों को यश का बहुत अभिमान है और घर-घर जाकर मंत्र आदि देते फिरते हैं। इस प्रकार के शिष्य और गुरु अज्ञानता के अंधकार में फँसे होते हैं और इन्हें अपने अंतिम समय में पछताना पड़ता है। कबीरदास जी कहते हैं कि हे संतो! सुनिए, यह सब भ्रांति स्वरूप भुला दिया जाताहै। इनको कितना ही कहो फिर भी कहना नहीं मानते हैं उन्हें तो सहज भाव से इकट्ठा करना चाहिए। अर्थात् सहजता से प्रभु प्राप्ति का मार्ग अपनाना चाहिए।

कबीर के पद के साथ प्रश्न उत्तर 

1- कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?

उत्तर- कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने तर्क देते हुए कहा है कि सबके भीतर एक जैसी हवा, एक जैसे पानी, एक हीज्योतिपुंज व्याप्त है। सभी एक ही मिट्टी से बने हुए हैं और एक ही वातावरण में लिपटे हुए हैं। इसी प्रकार प्रत्येक शरीर में एक ही परमपितापरमात्मा व्याप्त है।

2- मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्त्वों से हुआ है?

उत्तर- मानव शरीर का निर्माण अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश पंच तत्त्वों से

3- जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।     सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई ॥


इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?

उत्तर- कबीर ने ईश्वर के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा है कि बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है किंतु अग्नि को किसी भी तरह से नहीं काटा जासकता है। इस तरह ईश्वर भी अग्नि रूप को धारण करके प्रत्येक शरीर में समाया हुआ है। जिसे शरीर के न रहने पर समाप्त नहीं किया जा सकता है।

4- कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?

उत्तर- कबीर ने स्वयं को दीवाना इसलिए कहा है क्योंकि उन्होंने स्वयं को ईश्वर में रमा कर अपने अहंकार का त्याग कर दिया है। अब उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं सता सकता है।

5- कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है? 

उत्तर- कबीरदास कहते हैं कि संसार के लोगों को वास्तविकता बताई जाती है, तो वे मारने के लिए दौड़ते हैं। उन्हें सत्य अच्छा नहीं लगता है और झूठी आडंबरयुक्त बातें कही जाती हैं तो उन्हें सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। इसीलिए उन्होंने कहा है कि संसार बौरा गया है।

6- कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?

उत्तर- कबीर ने बताया है कि नियम और धर्म का पालन करने वाले लोग अपनी आत्मा अर्थात् स्वयं की उपेक्षा करके पत्थर की पूजा करते हैं। इस प्रकार के लोगों को ईश्वर भक्ति का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है।

7- अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?

उत्तर- अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों की दुर्गति होती है। वे पतन की ओर जाते हैं और अपने अंतिम समय में उन्हें इसका पश्चाताप होता है।

8. बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर- बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात निम्नलिखित पंक्तियों में कही गई है 'साखी सब्दहि गावत भूले, आत्म खबरि नजाना' कुछ लोग अपनी विद्वता दिखाने के लिए साखी-सबद गति फिरते हैं और स्वयं को धार्मिक मान लेते हैं किंतु ऐसे लोगों को आत्मज्ञान नहींहोता है। फलस्वरूप वे परमात्मा के साक्षात्कार के लिए प्रयत्न नहीं करते हैं।

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कबीर के पद कक्षा 11 व्याख्या?

पाठ का सारांश पहले पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है। कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही देखा है।

कबीर के पद के प्रश्न उत्तर?

कबीर के पद के साथ प्रश्न उत्तर.
1- कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?.
2- मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्त्वों से हुआ है?.
3- जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई। ... .
4- कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?.
5- कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?.

कबीर दास जी के पद अर्थ सहित?

कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित.
अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। ... .
अर्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। ... .
अर्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। ... .

कबीर के पद अर्थ सहित PDF?

काशी :- कबीरदास का जन्म स्थान काशी हैं।