झारखंड का सबसे बड़ा जनजाति कौन है? - jhaarakhand ka sabase bada janajaati kaun hai?

रांची : जनगणना-2011 के ताजा आंकड़ों के अनुसार संताल राज्य की सबसे बड़ी जनजाति है. इनकी कुल जनसंख्या 27.54 लाख है. इनके बाद उरांव (लगभग 17.16 लाख) व मुंडा (करीब 12.29 लाख) हैं. दरअसल संताल, उरांव व मुंडा कुल जनजातीय आबादी के करीब 66 फीसदी हैं. अकेले संतालों की आबादी ही कुल जनजाजीय आबादी की लगभग 32 फीसदी है.

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राज्य में कुल 32 जनजातियां रहती हैं. इनमें से आठ आदिम जनजाति (पीटीजी) की श्रेणी में शामिल हैं. इनको छोड़ शेष 24 जनजातियों की कुल आबादी करीब 83.52 लाख है. वहीं आठ पीटीजी की कुल आबादी लगभग 2.92 लाख है. जनजातीय (पीटीजी सहित) समुदाय की कुल आबादी वर्ष 2001 की तुलना में 15.5 लाख बढ़ी है. दूसरी ओर राज्य भर में खोंड जनजाति (ट्राइब) के सिर्फ 221 लोग ही बचे हैं. इनकी संख्या लगातार घटती जा रही है. 1991 की जनगणना के अनुसार इनकी संख्या 3869 थी, जो 2001 में घट कर 196 हो गयी.

वहीं, 2011 में इनकी संख्या में मामूली वृद्धि होकर 221 हुई है. खोंड जनजाति में कुल 114 पुरुष तथा 107 महिलाएं बतायी गयी हैं. जनगणना के अनुसार कुल 221 में से खोंड जनजाति के 42 लोग शहरों में रहते हैं. खोंड सामान्यत: हजारीबाग, बोकारो व पू सिंहभूम जिले में रहते हैं. खोंड के बाद आबादी के संदर्भ में बंजारा पर भी खतरा मंडरा रहा है.

साहेबगंज, गुमला, सिमडेगा, गढ़वा, राजमहल, गोड्डा व पलामू जिले में रहने वाले बंजारा की जनसंख्या धीमी गति से बढ़ रही है. वर्ष 1991 में

इनकी कुल संख्या 432 थी. वर्ष 2001 में 374 और 2011 में 487 संख्या दर्ज की गयी है. यानी 10 वर्षो के दौरान बंजारा की संख्या में सिर्फ 55 की वृद्धि हुई है.

शहरों में 7.76 लाख जनजातीय: जनगणना-2011 के आंकड़े के अनुसार झारखंड में जनजातीय लोगों की कुल आबादी करीब 86.45 लाख है. इनमें से करीब 7.76 लाख (4919 पीटीजी सहित) लोग शहरों में रहते हैं. पीटीजी समुदाय में सबसे अधिक 1556 माल पहाड़िया शहरों में हैं. वहीं इसके बाद कुल 1108 असुर भी शहरों में रह रहे हैं.

झारखंड में कुल 32 जनजातियाॅं पाई जाती हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग 1,92,425 है, जो झारखंड की जनसंख्या में 0.72% है। इन 32 जनजातियों में से 8 आदिम जनजातियाॅं हैं। संथाल झारखंड की जनजातियों में सबसे बड़ी जनजाति है, जिनकी जनसंख्या अधिक है। यह जनजाति संथाल परगना में निवास करती है। इनके अलावा झारखंड में कुल 32 जनजातियाॅं पाई जाती हैं, जिनकी अपनी अलग-अलग रीति-रिवाज और संस्कृति है। झारखंड की अन्य प्रमुख जनजातियों में मुण्डा, हो, भूमिज, उरांव, बिरहोर आदि शामिल हैं।[1][2]

वर्गीकरण[संपादित करें]

झारखंड में जनजातियों को मूल रूप से भारतीय मानवविज्ञानी ललिता प्रसाद विद्यार्थी द्वारा उनके सांस्कृतिक प्रकारों के आधार पर वर्गीकृत किया गया था। उनका वर्गीकरण इस प्रकार था:

  • शिकारी-संग्रहकर्ता प्रकार - बिरहोर, कोरवा, पहाड़ी खड़िया
  • स्थानान्तरित कृषि - सौरिया पहाड़िया, माल पहाड़िया
  • साधारण कारीगर — महली, लोहरा, करमाली, चिक बड़ाइक
  • स्थिर कृषक - भूमिज, हो, उरांव, मुंडा, संथाल आदि।

झारखंड की प्रमुख जनजातियाॅं[संपादित करें]

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 1976 के अनुसार और 2000 के अधिनियम 30 द्वारा सम्मिलित झारखंड की प्रमुख जनजातियाॅं -

  1. असुर
  2. बिरहोर
  3. खड़िया
  4. मुंडा
  5. हो
  6. भूमिज
  7. उरांव
  8. संथाल
  9. चेरो
  10. खरवार
  11. खोंड
  12. किसान
  13. कोरवा
  14. बैगा
  15. पहाड़िया
  16. सौरिया पहाड़िया
  17. माल पहाड़िया
  18. चिक बड़ाइक
  19. गोंड
  20. बंजारा
  21. कोल
  22. कंवर
  23. बेदिया
  24. बिंझिया
  25. लोहरा
  26. गोरयत
  27. बथुड़ी
  28. कोरा
  29. करमाली
  30. बिरजिया
  31. सवर
  32. महली

झारखण्ड के प्रमुख आदिम जनजातियाॅं[संपादित करें]

झारखंड में कुल 32 जनजातियाॅं पायी जाती है, और इनमे से 24 जनजातियाॅं प्रमुख श्रेणी में आते हैं और  8 आदिम जनजाति में आते हैं।

  1. बिरहोर
  2. असुर  
  3. माल पहाड़िया
  4. सौरिया पहाड़िया
  5. कोरवा
  6. सबर
  7. बिरजिया
  8. पहाड़िया

जनजातीय भाषाएं[संपादित करें]

झारखंड की प्रमुख जनजातीय भाषाएं -

  • असुर भाषा
  • मुण्डारी भाषा
  • संथाली भाषा
  • भूमिज भाषा
  • हो भाषा
  • बिरहोर भाषा
  • खड़िया भाषा
  • कुड़ुख भाषा

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Minz, Diwakar; Hansda, Delo Mai (2010). Encyclopaedia of Scheduled Tribes in Jharkhand (अंग्रेज़ी में). Gyan Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7835-121-6.
  2. Ghurye, Govind Sadashiv (1980-01-01). The Scheduled Tribes of India (अंग्रेज़ी में). Transaction Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4128-3885-6.

झारखंड राज्य विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों का संगम क्षेत्र कहा जा सकता है। द्रविड़, आर्य, एवं आस्ट्रो-एशियाई तत्वों के सम्मिश्रण का इससे अच्छा कोई क्षेत्र भारत में शायद ही हो। हिंदी, खोरठा, नागपुरी, कुरमाली यहाँ की प्रमुख भाषाएं हैं। झारखंड में बसने वाले स्थानीय हिन्द-आर्य भाषाएँ बोलने वाले लोगों को सादान कहा जाता है। इसके अलावा यहां कुड़ुख, संथाली, मुंडारी, भूमिज, हो जैसी जनजातीय भाषाएं बोली जाती है।[1][2] राजधानी रांची स्थित जनजातीय अनुसंधान संस्थान और संग्रहालय में इनके संस्कृति की झलक देखी जा सकती है।[3]

सादान[संपादित करें]

झारखंड में बसने वाले स्थानीय जन जो हिन्द-आर्य भाषाएँ बोलते हैं उन लोगों को सादान कहा जाता है। सादानो की मुल भाषा नागपुरी, खोरठा, कुरमाली है। सदानो में अहीर, बिंझिया, भोगता, चेरो, चिक बड़ाइक, घासीं, झोरा, केवट, कुम्हार, कुड़मी महतो, लोहरा, रौतिया, तांती, और तेली आदि जातियां शामिल हैं।[4] [5]झुमइर सदानो का लोक नृत्य है। करम और जितिया सदानो के महत्वपूर्ण त्योहार हैं। [6] अन्य मुख्य पर्ब टुसू और फगुआ आदि है।

झारखंड का सबसे बड़ा जनजाति कौन है? - jhaarakhand ka sabase bada janajaati kaun hai?

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जनजातियाँ[संपादित करें]

पौराणिक असुर, संथाल, बंजारा, बिरहोर, चेरो, गोंड, हो, खोंड, मुंडा, भूमिज, उरांव, लोहरा, करमाली, माई पहरिया आदि बत्तीस से अधिक आदिवासी समूहों (राज्य की कुल आबादी का 28 %), इस क्षेत्र की संस्कृति पर अपनी छाप छोड़ गए हैं |[7]

संथाल[संपादित करें]

झारखण्ड की आदिवासी आबादी में संथाल वर्चस्व रखते हैं | उनकी अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है और सबसे याद करने वाला उनके लोक संगीत, गीत और नृत्य हैं | संथाली भाषा व्यापक रूप से है, दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है | उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'ओल चिकी' है, जो अतुलनीय है| संथाल के सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है -- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन, और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है| दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी | संथाल के सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के पैटर्न -- पितृसत्तात्मक, पति पत्नी के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है| विवाह अनुष्ठानों में पूरा समुदाय आनन्द के साथ भाग लेते हैं | लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं | संथाल मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है | धार्मिक विश्वासों और अभ्यास को हिंदू और ईसाई धर्मों से लेकर माना जाता है। संथालों का अपनी मूल धर्म सारना है, इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिञ बोंगा' (सिञ चाँदो), 'माराङ बुरु' और 'जाहेर आयो' हैं । पूजा अनुष्ठान में बलिदानों का इस्तेमाल किया जाता है | सरकार और उद्योग के कई महत्वपूर्ण पदों पर आज संथाल लोगों का कब्जा है।

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असुर (आदिवासी)[संपादित करें]

सबसे प्राचीन जनजातीय समुदायों में से एक है, ये अपने सदियों पुरानी " लोहे के प्रगालन " कौशल के लिए जाने जाते हैं| पुरुष और महिलाएं साथ मिलकर काम करते है, साथ मिलकर खाते हैं, एक साथ वंश की देखभाल करते हैं और रोटी कमाने के लिए संघर्ष करते हैं और अपने परिवार के साथ रहते है | श्रम का विभाजन अद्वितीय है सामाजिक, आर्थिक एकता भी है | तथाकथित आधुनिक समाज को इन लोगों से बहुत कुछ सीखना चाहिए |

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बंजारा[संपादित करें]

यह एक और समूह है जिनकी संख्या तेजी से घट रही है | उनके गाँव पहाड़ियों और जंगलों के निकट स्थित है |वे कुशल बुनकर हैं और मैट, टोकरियाँ, ट्रे आदि जंगल के जंगली घास से बनते है | वे बच्चे के जन्म पर गांवों के आसपास प्रार्थना गाने के लिए भी जाते है| ये झारखंड में सबसे 'छोटी' आदिवासी आबादी है |

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महली[संपादित करें]

बंसफोर महली टोकरी बनाने के विशेषज्ञ हैं, पतर महली टोकरी बनाने के उद्योग से जुड़े हैं और सुलुन्खी महली श्रम की खेती पर जीवित है, तांती महली पारंपरिक 'पालकी' के पदाधिकारी हैं और मुंडा महली किसान है | आमतौर पर महली वंश, जनजाति और कबीले के साथ उत्कृष्ट संबंध बनाए रखते हैं |

मुण्डा[संपादित करें]

यह एक प्रमुख जनजाति है, जो मुख्य रूप से झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में निवास करता है। यह मुण्डारी भाषा बोलते हैं और इनकी अपनी लिपि मण्डारी बानी में लिखते हैं। यह मुख्य रूप से सरहुल, करम, मांगे और फागु जैसी त्योहारों को मनाते हैं। मुण्डा अन्य आदिवासियों की तरह सरना धर्म को मानते हैं। आधुनिक काल में, कुछ मुण्डाओं ने हिन्दू और ईसाई धर्मों को अपना लिया है। उनका भोजन मुख्य रूप से धान, मड़ुआ, मक्का, जंगल के फल-फूल और कंद-मूल हैं। महिलाओं के लिए विशेष प्रकार की साड़ी होती है, जिसे बारह हथिया (बारकी लिजा) कहते हैं। पुरुष साधारण-सा धोती का प्रयोग करते हैं, जिसे तोलोंग कहते हैं।

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भूमिज[संपादित करें]

यह पुराने सिंहभूम जिले में रहने वाली एक प्रमुख जनजाति है, जिन्हें उनकी साहस और वीरता के लिए जाना जाता है। इनकी संस्कृति और परंपरा अन्य आदिवासियों की तरह है, जो प्रकृति की पूजा करते हैं। इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिञ बोंगा', 'माग बोंगा', 'हादि बोंगा' और 'बुरु बोंगा' हैं। समय के साथ-साथ, हिन्दूओं के संपर्क में आने से कुछ हिन्दू परंपराओं को अपना रहे हैं। परंतु, सिंहभूम के भूमिज आज भी अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाए रखें हैं। यह भूमिज भाषा में बोलते हैं और 'ओल ओनल लिपि' में लिखते हैं। ब्रिटिश काल में भूमिज जमींदारों को राजा कहा जाता था। विवाह अनुष्ठानों में पूरा समुदाय आनन्द के साथ भाग लेते हैं। लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं। भूमिज मृत्यु के बाद दस दिनों तक शोक मनाते हैं और उनके अस्थियों को बर्तन में एक पत्थर के नीचे रखतें हैं जिसे 'निशान दिरि' कहा जाता है। यह मुख्य रूप से सरहुल, करम, मागे और बुरु जैसी त्योहारों को मनाते हैं।

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बिरहोर[संपादित करें]

यह एक खानाबदोश जनजाति है जो उनके फायटोप्लेकटन क्षमताओं के लिए जाने जाते है |ये उच्च पहाड़ी चोटियों या जंगलों के बाहरी इलाके में वास करते हैं |जो अस्थायी झोपडियों में समूहों में वास करते हैं और लच्छीवाला परिवार के जीवन का आनंद ले रहे हैं जगही बिरहोर के नाम से जाना जाता है और कलाइयों समूहों को ऊथेइअन बिरहोर कहा जाता है |

बिरजिया बैगा[संपादित करें]

ये छोटी अनुसूचित जनजातियाँ अभी भी वन संसाधनों पर निर्भर है। ये गहरे जंगल और दुर्गम कृषि क्षेत्रों में रहते हैं। हाल के दिनों में उन्होंने खेती को त्याग दिया है। बैगाओं की खोज 1867 में 'जंगली' के रूप में और दूरदराज के दुर्गम पहाड़ियों के वन क्षेत्रों में रहने वाले के रूप में हुई थी।

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सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में मातृभाषा दिवस मनाया गया". rashtriyakhabar.com. मूल से 24 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2019.
  2. "People of jharkhand". www.traveljharkhand.com. अभिगमन तिथि 2022-09-11.
  3. Pioneer, The. "Tribal life rejuvenated at Tribal Museum". The Pioneer (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-09-11.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 दिसंबर 2018.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 दिसंबर 2018.
  6. "talk on nagpuri folk music at ignca". daily Pioneer.com. मूल से 28 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 मार्च 2019.
  7. "Tribals in Jharkhand | Department of Police, State Government of Jharkhand, India". jhpolice.gov.in. मूल से 15 अगस्त 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-09-11.

झारखंड राज्य की सबसे बड़ी जनजाति कौन सी है?

Notes: जनसंख्या की दृष्टि से झारखंड की सबसे बड़ी जनजाति संथाल है।

झारखण्ड की सबसे पुरानी जनजाति कौन है?

झारखंड की सबसे पुरानी व विशेष संरक्षित जनजातियों में से सबर समुदाय एक है। इनकी संख्या दूसरी जनजातियों की अपेक्षा बहुत कम है।

झारखंड में सबसे ज्यादा कौन सी जाति निवास करती है?

मुण्डा यह एक प्रमुख जनजाति है, जो मुख्य रूप से झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में निवास करता है।

झारखंड की मुख्य जनजाति कौन सी है?

झारखंड राज्य में कुल 32 जनजातियां निवास करती हैं जिसमें सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजातियां क्रमश: संथाल, उरांव, मुंडा और हो हैं ।