जयशंकर प्रसाद की सभी रचनाएं कौन कौन सी हैं? - jayashankar prasaad kee sabhee rachanaen kaun kaun see hain?

महाकवि जयशंकर प्रसाद- हिंदी साहित्य के जाने माने महाकवि ,नाटककार ,कथाकार तथा छायावादी युग के कवि जयशंकर प्रसाद को कौन नहीं जानता ,छायावादी कवि के रूप में प्रख्यात हिंदी काव्य में छायावाद के संस्थापक जयशंकर प्रसाद जी एक युगप्रर्वतक लेखक रहे। उनकी कवितायेँ ,नाटक ,उपन्यास और कहानी इन सभी क्षेत्रों में प्रसिद्ध कृतियां रही हैं। अगर हम छायावाद के प्रसिद्ध कवियों की बात करें तो जयशंकर प्रसाद जी उन्ही में से एक थे। मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही कलाधर के नाम से बज्रभाषा में एक सवैया लिखकर रश्मेसिद्ध को दिखाया था। वेद, पुराण ,साहित्य शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था। छायावाद का ब्रह्मा के उपनाम से प्रसिद्ध प्रसाद जी हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार माने जाते है।

जयशंकर प्रसाद की सभी रचनाएं कौन कौन सी हैं? - jayashankar prasaad kee sabhee rachanaen kaun kaun see hain?
जानिए महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं – Jaishankar Prasad ka Sahityik Parichay

आज के इस लेख में हम आपको छायावाद का ब्रह्मा कहे जाने वाले छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद जी की जीवनी, रचनाओं तथा उनकी कविताओं और प्रमुख उपन्यास के बारे में बताने जा रहे हैं। महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाओं के बारे में जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।

जयशंकर प्रसाद जी का संक्षिप्त परिचय

नाम जयशंकर प्रसाद
उपनाम छायावाद का ब्रह्मा
जन्म 30 जनवरी 1889 ई० (माघ शुक्ल दशमी विक्रम सम्वंत 1946)
जन्म का दिन गुरुवार
जन्म स्थान वाराणसी के सरायगोवर्धन (उत्तर प्रदेश )में
शैक्षणिक योग्यता अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का भाषा का अध्ययन
पिता का नाम श्री देवी प्रसाद
काव्यधारा छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक
शैली विचारात्मक, अनुसंधानात्मक, भावात्मक , चित्रात्मक
साहित्य में पहचान छायावाद का प्रवर्तक के रूप में
रुचि साहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन
पुरस्कार “कामायनी” के लिए मंगलप्रसादपारितोषिक
लेखन विधा काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
मृत्यु 15 नवंबर, 1937 में (48 वर्ष की आयु में)
मृत्यु का कारण क्षय रोग

महाकवि जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय

महाकवि जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी 1889 ई० (माघ शुक्ल दशमी विक्रम सम्वंत 1946) को गुरुवार के दिन वाराणसी के सरायगोवर्धन (उत्तर प्रदेश )के प्रतिष्ठित सुमनिसाहु नामक विख्यात परिवार में हुआ था। इनके पिता जी का नाम देवी प्रसाद साहू था जो की शिक्षाप्रेमी थे तथा दादा जी बाबू शिवरतन साहू दान देने के लिए प्रसिद्ध थे। इनके पिता देवी प्रसाद साहू जी का काशी में बड़ा सम्मान था।

काशी के लोग इनका काफी सम्मान किया करते थे इन्हे काशी के लोग सुँघनी साहु नाम से पुकारा करते थे ,जब 1904 में प्रसाद जी की माता और 1906 में बड़े भाई का देहावसान हुआ था प्रसाद जी मात्र 17 वर्ष के थे। माता और बड़े भाई के देहांत उपरांत इनपर छोटी सी ही अवस्था में जिम्मेदारियां पड़ने लगी। इनकी प्रारंभिक शिक्षा काशी में ही स्थित क्वींस कालेज में हुई थी किन्तु बाद में इनकी शिक्षा का प्रबंध घर पर ही किया गया जयशंकर प्रसाद जी ने कई भाषाओं जैसे संस्कृत ,फारसी, हिंदी, उर्दू आदि का अध्ययन किया। बड़े बड़े विद्वानों जैसे दीनबंधु ब्रह्मचारी द्वारा इन्होने संस्कृत का अध्ययन किया।

संस्कृत,साहित्य और कला जैसे विषयों में रूचि रखने वाले जयशंकर प्रसाद जी एक युगप्रवर्तक कवियों में से एक थे ,जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी, उपन्यासके क्षेत्र में हिंदी साहित्य को शिखर पर पहुँचाया। एक कवि के रूप में जयशंकर प्रसाद जी निराला, पंत, महादेवी वर्मा, के साथ छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित हुए। वह एक प्रयोगधर्मी रचनाकार भी थे ,नाटक लेखन की बात की जाए तो प्रसाद जी भारतेन्दु जी के बाद युगप्रवर्तक नाटककार के रूप में प्रतिष्ठित हुए। इनके द्वारा लिखे गए नाटक पाठकों द्वारा आज भी बड़े चाव से पढ़े जाते हैं।

जयशंकर प्रसाद ऐसे कवि हैं जिन्होंने छायावाद को हिंदी काव्य में स्थापित करने का कार्य किया। प्रसाद जी द्वारा उनकी सर्वप्रथम छायावादी रचना “खोलो द्वार” जो की संन्न 1914 में इंदु में प्रकाशित की गयी थी। प्रसाद जी छायावाद के प्रतिस्थापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरल संगीतमयी गीतों को लिखने वाले श्रेष्ठ कवि भी हैं। इनके द्वारा हिंदी में करुणालय द्वारा गीत नाटक का भी आरम्भ किया। साथ ही इनके द्वारा कहानी कला की नयी तकनीक का सहयोग काव्य कथा से कराया गया। सन्न 1963 में ‘भारतेन्दु’ में प्रसाद जी की पहली रचना प्रकाशित हुई थी।

प्रसाद जी द्वारा इंदु नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया इसी पत्रिका से साहित्य जगत में प्रसाद जी को पहचान मिलने लगी। बहुमुखी प्रतिभा वाले प्रसाद जी की रूचि विशेष रूप से साहित्य के क्षेत्र में थी इनकी ख्याति एक कवि और नाटककार के रूप में विशेष तौर पर जानी जाती है।छायावादी कवियों में से चौथे स्तम्भ के रूप में जाने जाने वाले प्रसाद जी बचपन से ही साहित्य की ओर अपना झुकाव रखते थे कामायनी जो की प्रसाद जी का एक सुप्रसिद्ध काव्य ग्रन्थ है, जिसकी तुलना संसार के श्रेष्ठ काव्यों में से की जाती है।

प्रसाद जी द्वारा ब्रजमाषा एवं खड़ी बोली का प्रयोग काव्य में किया गया। मानव सौन्दर्य तथा प्रकृतिक सौन्दर्य को सजीव रूप से वर्णित करने की कला प्रसाद जी भली-भाँति जानते थे। छायावादी कवि प्रसाद जी का निधन मात्र 48 वर्ष की आयु में 15 नवंबर सन्न 1937 में क्षय रोग की वजह से हुआ था।

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं

प्रसाद जी युग-प्रर्वतक महाकवि के रूप में जाने जाते हैं। छायावाद कवी के रूप में प्रख्यात प्रसाद जी द्वारा साहित्य की लगभग सभी विधाओं में रचना की गयी है शायद ही कोई ऐसी विधा होगी जिसपर उन्होंने रचना करने से परहेज किया हो। कहानियाँ, उपन्यास, निबंध ,मुक्तक, नाटक, खण्डकाव्य, महाकाव्य सभी में अपनी रचना से सभी को मंत्रमुग्ध किया है घर से ही प्रसाद जी ने हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा के विद्वानों से साहित्य के साथ साथ काव्य रचना की प्रारम्भिक शिक्षा को प्राप्त किया। जयशंकर प्रसाद जी ने मात्र 9 वर्ष की बाल्यावस्था से ही साहित्य ,काव्य,नाटक आदि के लेखन की शुरुआत की थी। जयशंकर प्रसाद जी की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार से है –

  1. नाटक:-  सज्जन, कल्याणी-परिणय, विशाख, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, प्रायश्चित्त, स्कन्दगुप्त, अजात-शत्रु, एक-घूँट, ध्रुवस्वामिनी।
  2. काव्य:- झरना, चित्राधार, करूणालय, महाराणा का महत्व, कानन-कुसुम, प्रेम-पथिक, आँसू, लहर, कामायनी और प्रसाद-संगीत।
  3. उपन्यास:-कंकाल, इरावती (अपूर्ण उपन्यास ), तितली
  4. कहानी:- प्रतिध्वनि, आँधी और इन्द्रजीत, छाया, आकाशदीप ,आँधी और इन्द्रजीत।
  5. निबन्ध:-काव्य और कला तथा अन्य निबन्धी।
  6. चंपू:-  बभ्रुवाहन, उर्वषी (दोनों चित्राधार में संकलित हैं।)
  7. अन्य:- पत्र-साहित्य, चन्द्रगुप्त मौर्या।

प्रसाद जी की काव्य रचनाएँ

  • जयशंकर प्रसाद की काव्य रचनाएँ हैं:-
  • कानन कुसुम,
  • चित्राधार
  • करुणालय
  • महाराणा का महत्व,
  • झरना (1918),
  • आंसू, (रससिद्ध रचना)
  • लहर, (रससिद्ध रचना)
  • कामायनी (1935) (रससिद्ध रचना)
  • प्रेम पथिक

प्रसाद जी की काव्य रचनाएँ के भाग

प्रसाद जी की काव्य रचना को दो भागों में बनता गया है –
1.काव्यपथ अनुसंधान की रचनाएँ
2. रससिद्ध रचनाएँ।

रससिद्ध रचनाओं में आंसू ,लहर कामायनी आती हैं। अपने काव्य की रचना के लिए प्रसाद जी द्वारा बज्रभाषा से आरम्भ किया गया जिसके बाद उन्होंने खड़ी बोली को अपनाया। खड़ी बोली के अन्य कवियों में प्रसाद जी की गणना होने लगी।

महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं – कहानी संग्रह

प्रसाद जी द्वारा कुल मिलाकर 72 कहानियाँ लिखी गयी हैं ,प्रसाद जी की कहानियों में भावना की प्रधानता देखने को मिलती है साथ ही साथ उन्होंने यथार्थपूर्ण कुछ कहानियाँ लिखी हैं। सन्‌ 1912 ई. में ‘इंदु’ नमक पत्रिका में उनकी पहली कहानी जिसका नाम ‘ग्राम’ था को प्रकाशित किया गया था। उनके कुछ प्रमुख कहानी संग्रह के नाम नीचे दिए गए हैं:-

  • देवदासी
  • चंदा
  • गुंडा
  • पंचायत
  • जहांआरा
  • बिसाती
  • प्रणय-चिह्न
  • नीरा
  • शरणागत
  • पुरस्कार
  • रमला
  • छाया,
  • प्रतिध्वनि,
  • आकाशदीप,
  • आंधी और इन्द्रजाल।
  • छोटा जादूगर
  • बभ्रुवाहन
  • विराम चिन्ह
  • मधुआ
  • उर्वशी
  • इंद्रजाल
  • गुलाम
  • ग्राम
  • स्वर्ग के खंडहर में
  • भीख में
  • चित्र मंदिर
  • ब्रह्मर्षि
  • छाया
  • प्रतिध्वनि
  • सालवती
  • अमिट स्मृति
  • सिकंदर की शपथ
  • रसिया बालम
  • आकाशदीप
  • आकाशदीप
  • आंधी और इन्द्रजाल

प्रसाद जी द्वारा ऐतिहासि एवं पौराणिक कथानकों पर कलात्मक कहानियाँ भी लिखी। समस्यामूलक कहानियाँ लिखी हैं। उनकी प्रेमकथाएँ में भावना की प्रधानता देखने को मिलती है। उनके द्वारा भावना प्रधान प्रेमकथाएँ, रहस्यवादी, प्रतीकात्मक, आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों को अपने लेखन में जगह दी है।

महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं – उपन्यास

प्रसाद जी द्वारा अपने उपन्यासों में ग्राम, नगर, प्रकृति और जीवन का बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रण किया गया है। इनके द्वारा 3 यथार्थवादी उन्यास, आदर्शोन्मुख यथार्थ, और एक अपूर्ण उपन्यास लिखा गया है।
जयशंकर प्रसाद जी द्वारा तीन उपन्यास लिखे गए है जो कुछ इस प्रकार से हैं –
1. ‘कंकाल’,(यथार्थवादी उन्यास) (कंकाल नामक उपन्यास में नागरिक सभ्यता का अंतर यथार्थ उद्धाटित किया गया है)
2. ‘तितली (आदर्शोन्मुख यथार्थ) (इसमें ग्रामीण जीवन के सुधार के संकेत हैं )
3. इरावती’ (ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया जयशंकर प्रसाद जी का अधूरा उपन्यास है) (इरावती उपन्यास ऐतिहासिक रोमांस के उपन्यासों में विशेष स्थान रखता है।)

नाटक

प्रसाद जी द्वारा कुल मिलाकर 13 नाटकों की रचना की जिसमे से 8 ऐतिहासिक, 3 पौराणिक तथा 2 भावात्मक नाटक की रचना की गयी। प्रसाद जी की गिनती हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार में की जाती हैं।प्रसाद जी द्वारा लिखे गए नाटक के नाम नीचे दिए गए हैं –

  • स्कंदगुप्त
  • चंद्रगुप्त
  • ध्रुवस्वामिनी,
  • जन्मेजय का नाग यज्ञ,
  • राज्यश्री, कामना,
  • एक घूंट।

जयशंकर प्रसाद जी की कविताएं

प्रसाद जी की लिखी गयी कविताओं इस प्रकार हैं-

  • ओ री मानस की गहराई
  • पेशोला की प्रतिध्वनि
  • शेरसिंह का शस्त्र समर्पण
  • अंतरिक्ष में अभी सो रही है
  • अरे! आ गई है भूली-सी
  • शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा
  • अरे कहीं देखा है तुमने
  • मधुर माधवी संध्या में
  • निधरक तूने ठुकराया तब
  • अपलक जगती हो एक रात
  • जग की सजल कालिमा रजनी
  • मेरी आँखों की पुतली में
  • कितने दिन जीवन जल-निधि में
  • कोमल कुसुमों की मधुर रात
  • अब जागो जीवन के प्रभात
  • तुम्हारी आँखों का बचपन
  • आह रे,वह अधीर यौवन
  • उस दिन जब जीवन के पथ में
  • हे सागर संगम अरुण नील
  • आँखों से अलख जगाने को
  • वसुधा के अंचल पर
  • काली आँखों का अंधकार
  • चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर
  • जगती की मंगलमयी उषा बन

प्रमुख निबंध –

  • सम्राट चंदगुप्त मौर्य
  • प्राचीन आर्यावर्त और उसका प्रथम सम्राट
  • काव्य कला

पुरस्कार

“कामायनी” के लिए प्रसाद जी को मंगलप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार मिला। कामायनी खड़ी बोली का अनोखा महाकाव्य है इस महाकाव्य में मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचना की गयी है।सुमित्रानंदन पंत जी ने “कामायनी” को हिंदी में ताजमहल के सामान माना है।

जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विशेषतायें

प्रसाद जी के साहित्य में नैतिक, सांस्कृतिक, एवं राष्ट्रीय चेतना का समावेश है। उनके द्वारा भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण रूप को अपने साहित्य में उभारा है ,प्रसाद जी के साहित्य में उमंग और उत्साह का अलोक है इनकी भाषा सहज होने के साथ ही साहित्य में रूपक,उपमा ,उत्प्रेक्षा ,विरोधाभास आदि अलंकारों के साथ मानवीकरण का सफल प्रयोग किया है। प्रसाद जी को छायावाद का ब्रह्माकहा जाता है। इनकी कहानियों और कविताओं में भारतीय मूल्यों की झलक मिलती है।

निधन

जयशंकर प्रसाद जी का निधन 15 नवम्बर, सन् 1937 ई. में क्षय रोग से ग्रसित होने के कारण हुआ था। एक छायावादी कवि के रूप में पहचान बनाने वाले इस महाकवि की मात्र 48 वर्ष की आयु में देहांत हो गया।

जयशंकर प्रसाद की कुल कितनी रचनाएं हैं?

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं नाटक:- सज्जन, कल्याणी-परिणय, विशाख, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, प्रायश्चित्त, स्कन्दगुप्त, अजात-शत्रु, एक-घूँट, ध्रुवस्वामिनी। काव्य:- झरना, चित्राधार, करूणालय, महाराणा का महत्व, कानन-कुसुम, प्रेम-पथिक, आँसू, लहर, कामायनी और प्रसाद-संगीत।

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचना कौन कौन सी है?

उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं -झरना, ऑसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक (काव्य) स्कंदगुप्त चंद्रगुप्त, पुवस्वामिनी जन्मेजय का नागयज्ञ राज्यश्री, अजातशत्रु, विशाख, एक घूँट, कामना, करुणालय, कल्याणी परिणय, अग्निमित्र प्रायश्चित सज्जन (नाटक) छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी.

जयशंकर प्रसाद की पहली रचना कौन सी है?

महान लेखक जयशंकर प्रसाद की पहली कहानी 'ग्राम' थी जो इंदु पत्रिका में प्रकाशित हुई थी । उनका पहला काव्य संग्रह 'कानन कुसुम' है । उनका पहला नाटक 'सज्जन' था जो अप्राप्य है ।

जयशंकर प्रसाद के संग्रह कौन कौन से हैं?

संग्रह.
प्रतिध्वनि / जयशंकर प्रसाद (लघुकथा संग्रह).
छाया / जयशंकर प्रसाद (कथा संग्रह).
आकाशदीप / जयशंकर प्रसाद (कथा संग्रह).
आंधी / जयशंकर प्रसाद (कथा संग्रह).
इन्द्रजाल / जयशंकर प्रसाद (कथा संग्रह).