जॉर्ज पंचम की नाक पाठ में नाक के माध्यम से समाज पर क्या व्यंग्य किया गया? - jorj pancham kee naak paath mein naak ke maadhyam se samaaj par kya vyangy kiya gaya?

Solution : जॉर्ज पंचम की नाक. पाठ के आधार पर लेखक ने समाज एवं देश की बदहाल स्थितियों पर करारा व्यंग्य किया गया है। इस पाठ में दर्शाया गया है कि अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी प्राप्त करने के बाद भी सत्ता से जुड़े लोगों की औपनिवेशक दौर की मानसिकता के शिकार हैं। .नाक. मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का प्रतीक है, जबकि कटी हुई नाक अपमान का प्रतीक है। जॉर्ज पंचम की नाक अर्थात् सम्मान एक साधारण भारतीय की नाक से भी छोटी (कम) है, फिर भी सरकारी अधिकारी उनकी नाक बचाने के लिए जी जान से लगे रहे। अंत में किसी जीवित व्यक्ति की नाक काटकर जॉर्ज पंचम की नाक लगा दी गई। केवल दिखावे के लिए या दूसरों को खुश करने के लिए अपनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया भारतीय जनता के आत्मसम्मान पर प्रहार दर्शाती है। इसमें सत्ता से जुड़े लोगों की मानसिकता पर व्यंग्य है।

जॉर्ज पंचम की नाक पाठ के माध्यम से लेखक ने समाज पर क्या व्यंग्य किया है ?

नाक तो सिर्फ़ एक चाहिए थी और वह भी बुत के लिए । 1. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है।

जॉर्ज पंचम की नाक में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करते हुए बताइए कि मानसिक पराधीनता से मुक्ति पाना क्यों आवश्यक है?

Solution : जॉर्ज पंचम की नाक. पाठं एक सटीक व्यंग्य है हमारे शाही तंत्र की गुलामी की मानसिकता पर जब रानी एलिजाबेथ द्वितीय भारत दौरे पर आ रही थी तो बड़े-बड़े हुक्कामों ने दिल्ली का काया पलट कर दिया। वे भूल चुके हैं कि इसी महारानी के देश ने ही उन्हें कभी गुलाम बनाया था। इस निबंध में सरकारी कार्यप्रणाली पर भी व्यंग्य है

जॉर्ज पंचम की नाक पर किसका व्यंग्य किया गया?

'जॉर्ज पंचम की नाक' नामक पाठ व्यंग्य प्रधान रचना है। इसमें जॉर्ज पंचम की टूटी नाक को प्रतिष्ठा बनाकर मंत्रियों एवं सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली पर करारा व्यंग्य किया गया है।

जॉर्ज पंचम की नाक का क्या उद्देश्य है?

Solution : जॉर्ज पंचम की नाक. निबंध स्वाभिमानशून्य भारतीय शासकों पर व्यंग्य है। लेखक ने आजाद भारत के उन शासकों का उपहास उड़ाया है जो अपने आत्मसम्मान को भूल चुके हैं। वे अतीत में हुए अपने अपमान को भूलकर अत्याचारियों का सम्मान करने में लगे हुए हैं।