ज्ञान पर संस्कृत श्लोक Gyan shlok in hindi by Sanskritshlok.com · Published October 19, 2020 · Updated October 19, 2020 Show ज्ञान पर संस्कृत श्लोक Gyan shlok in hindi
ज्ञान श्लोक Gyan shlok in hindi
महाकश्यप भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य थे। बुद्ध उनकी त्याग भावना तथा ज्ञान से संतुष्ट होकर बोले- 'वत्स, तुम आत्मज्ञान से पूरी तरह मंडित हो। तुम्हारे पास वह सब है, जो मेरे पास है। अब जाओ और सत्संदेश का जगह-जगह प्रचार-प्रसार करो।' महाकश्यप ने ये शब्द सुने, तो वे मायूस हो गए। वह बोले, 'गुरुदेव यदि मुझे पहले से पता होता कि आत्मज्ञान का ज्ञान होने के बाद आपसे दूर जाना पड़ता, तो मैं इसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न नहीं करता। मुझे आपके सानिध्य में रहने में, आपके चरण स्पर्श करने में जो परमानंद की प्राप्ति होती है। उससे मैं वंचित नहीं होना चाहता हूं। मैं अपने आत्मज्ञान को भुला देना चाहता हूं।' भगवान बुद्ध ने अपने इस अनूठे शिष्य को गले लगा लिया। उन्होनें उसे समझाया, 'तुम सदविचारों व ज्ञान का प्रचार करते समय जहां भी रहोगे, मुझे अपने निकट देखोगे।मेरा हाथ हमेशा सदैव तुम्हारे साथ रहेगा।' इस बात को सुनकर महाकश्यप अपने आत्मज्ञान के प्रकाश को मिटाने के लिए अभियान पर चल दिया। संक्षेप में हमें आत्मज्ञान की प्राप्ति तभी हो सकती है। जब हम मोह, माया और दूसरे गुणों पर आसक्त न होते हुए पूरी तरह ईश्वर और कर्म पर ध्यान दें। आत्मज्ञान होने पर इसे स्वयं तक सीमित रखना बिल्कुल भी श्रेयस्कर नहीं है। इसे और लोगों में बांटे इसीलिए कहा भी गया है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है। हिंदी अर्थ:- ज्ञान अद्भुत धन है, ये आपको एक ऐसी अद्भुत ख़ुशी देती है जो कभी समाप्त नहीं होती। जब कोई आपसे ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा लेकर __ आता है और आप उसकी मदद करते हैं तो आपका ज्ञान कई गुना बढ़ जाता है।शत्रु और आपको लूटने वाले भी इसे छीन नहीं पाएंगे यहाँ तक की ये इस दुनिया के समाप्त हो जाने पर भी ख़त्म नहीं होगी। अतः हे राजन! यदि आप किसी ऐसे ज्ञान के धनी व्यक्ति को देखते हैं तो अपना अहंकार त्याग दीजिये और समर्पित हो जाइए, क्यूंकि ऐसे विद्वानो से प्रतिस्पर्धा करने का कोई अर्थ नहीं है। आशा हि लोकान् बध्नाति कर्मणा बहुचिन्तया । हिंदी अर्थ:- बडी बड़ी चिंताएं कराके, कर्मो द्वारा आशा इंसान को बंधन में डालती है । इससे खुद के आयुष्य का क्षय हो रहा है, उसका उसे भान नहीं रहेता; इस लिए “जागृत हो, जागृत हो ।” ज्ञानं तु द्विविधं प्रोक्तं शाब्दिकं प्रथमं स्मृतम् । हे राजा ! ज्ञान दो प्रकार के होते हैं; एक तो स्मृतिजन्य शाब्दिक ज्ञान, और दूसरा अनुभवजन्य ज्ञान जो अत्यंत दुर्लभ है। न जातु कामः कामानुपभोगेन शाम्यति । हिंदी अर्थ:- जैसे अग्नि में घी डालने से वह अधिक प्रज्वलित होती है, वैसे भोग भोगने से कामना शांत नहीं होती, उल्टे प्रज्वलित होती है। जन्मदुःखं जरादुःखं मृत्युदुःखं पुनः पुनः । संसार सागर में जन्म का, बुढापे का, और मृत्यु का दुःख बार बार आता है, इसलिए (हे मानव!), “जाग, जाग!” शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दसामिति । हिंदी अर्थ:- शिक्षा, कल्पसूत्र, व्याकरण (शब्द/व्युत्पत्ति शास्त्र), निरुक्त (कोश), छन्द (वृत्त), और ज्योतिष (समय/खगोल शास्त्र) – ये छः वेदांग कहे गये हैं। एकः शत्रुर्न द्वितीयोऽस्ति शत्रुः । हे राजन् ! इन्सान का एक ही शत्रु है, अन्य कोई नहीं; वह है अज्ञान । विषययोगानन्दौ द्वावद्वैतानन्द एव च । हिंदी अर्थ:- विषयानंद, योगानंद, अद्वैतानंद, विदेहानंद, और ब्रह्मानंद, ऐसे पाँच प्रकार के आनंद कहे गए हैं। यावज्जीवेत् सुखं जीवेणं कृत्वा धृतं पिबेत् । हिंदी अर्थ:- जितना जिओ, शौक से जिओ;ऋण (लोन) लेकर भी घी पीओ (भोग भुगतो) | भस्मीमभूत होने के बाद, यह देह वापस कहाँ आनेवाला है ? (चार्वाक दर्शन, नास्तिक मत) विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं हिंदी अर्थ:- वास्तव में केवल ज्ञान ही मनुष्य को सुशोभित करता है, यह ऐसा अद्भुत खजाना है जो हमेशा सुरक्षित और छिपा रहता है, इसी के माध्यम से हमें गौरव और सख मिलता है। श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन। हिंदी अर्थ:- कानों में कुंडल पहन लेने से शोभा नहीं बढ़ती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है। हाथों की सुन्दरता कंगन पहनने से नहीं होती बल्कि दान देने से होती है। सज्जनों का विद्या मित्रं प्रवासेषु,भार्या मित्रं गृहेषु च। हिंदी अर्थ – विदेश में ज्ञान, घर में अच्छे स्वभाव और गुणस्वरूप पत्नी, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का सबसे बड़ा मित्र होता है। येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः। हिंदी अर्थ – जिस मनुष्यों में विद्या का निवास है, न मेहनत का भाव, न दान की इच्छा और न ज्ञान का प्रभाव, न गुणों की भिव्यक्ति और न धर्म पर चलने का संकल्प, वे मनुष्य नहीं वे मनुष्य रूप में जानवर ही धरती पर विचरते हैं। येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः। हिंदी अर्थ – जिस मनुष्यों में विद्या का निवास है, न मेहनत का भाव, न दान की इच्छा और न ज्ञान का प्रभाव, न गुणों की भिव्यक्ति और न धर्म पर चलने का संकल्प, वे मनुष्य नहीं वे मनुष्य रूप में जानवर ही धरती पर विचरते हैं। सत्यं रूपं श्रुतं विद्या कौल्यं शीलं बलं धनम्। हिंदी अर्थ अर्थ– स्तय, विनय, शास्त्रज्ञान, विद्या, कुलीनता, शील, बल, धन, शूरता और वाक्पटुता ये दस लक्षण स्वर्ग के कारण हैं। विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभ्य सह। हिंदी अर्थ – जो दोनों को जानता है, भौतिक विज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक विज्ञान भी, पूर्व से मृत्यु का भय अर्थात् उचित शारीरिक और मानसिक प्रयासों से और उतरार्द्ध अर्थात् विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। हिंदी अर्थ – ज्ञान विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से धन प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति धर्म के कार्य करता है और सुखी रहता है। मातृवत परदारांश्च परद्रव्याणि लोष्टवत्। हिंदी अर्थ– पराई स्त्री अर्थात किसी अन्य की पत्नी को अपनी मां के समान, दूसरे के धन को मिट्टी की तरह और सभी प्राणियों को अपने समान ही देखता है। असल में वो ही ज्ञानी है। अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद्विश्वतो मुखम् । अल्पाक्षरता, असंदिग्धता, साररुप, सामान्य सिद्धांत, निरर्थक शब्द का अभाव, और दोषरहितत्व – ये छे ‘सूत्र’ के लक्षण कहे गये हैं । शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दसामिति । शिक्षा (उच्चार शास्त्र), कल्पसूत्र, व्याकरण (शब्द/व्युत्पत्ति शास्त्र), निरुक्त (कोश), छन्द (वृत्त), और ज्योतिष (समय/खगोल शास्त्र) – ये छे वेदांग कहे गये हैं । सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । सर्ग (उत्पत्ति), प्रतिसर्ग (लय), पुनरुत्पत्ति, मन्वन्तर (अलग मनु से शुरु होनेवाला काल), और वंशानुचरित (कथाएँ) ये पुराण के पाँच लक्षण हैं । विषययोगानन्दौ द्वावद्वैतानन्द एव च । विषयानंद, योगानंद, अद्वैतानंद, विदेहानंद, और ब्रह्मानंद, ऐसे पाँच प्रकार के आनंद हैं । ग्रन्थार्थस्य परिज्ञानं तात्पर्यार्थ निरुपणम् । ग्रंथ का संपूर्ण ज्ञान, तात्पर्य निरुपण करने की समज, और ग्रंथ के किसी भी भाग पर विवेचन करने की शक्ति – ये शास्त्रविद् के गुण है । ज्ञानं तु द्विविधं प्रोक्तं शाब्दिकं प्रथमं स्मृतम् । हे राजा ! ज्ञान दो प्रकार के होते हैं; एक तो स्मृतिजन्य शाब्दिक ज्ञान, और दूसरा अनुभवजन्य ज्ञान जो अत्यंत दुर्लभ है । श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन , भावार्थ:- कुंडल पहन लेने से कानों की शोभा नहीं बढ़ती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ, कंगन धारण करने से सुन्दर नहीं होते, उनकी शोभा दान करने से बढ़ती हैं | सज्जनों का शरीर भी चन्दन से नहीं आगम तत्त्वं तु बुधः परीक्षते सर्वयत्नेन ॥ जो बाह्य चिह्नों को देखता है, वह बालबुद्धि का है; जो वृत्ति का विचार करता है, वह मध्यम बुद्धि का है; और जो सर्वयत्न से आगम तत्त्व की परीक्षा करता है, वह बुध/ज्ञानी है । न स्वर्गो वाऽपवर्गो वा नैवात्मा पारलौकिकः । स्वर्ग, मोक्ष, आत्मा, परलोक – ये कुछ भी नहीं है । वर्णाश्रम, या कर्मफल इत्यादि भी सत्य नहीं । (नास्तिक मत) पञ्चभूतात्मकं वस्तु प्रत्यक्षं च प्रमाणकम् । प्रत्यक्ष प्रमाण हि प्रमाण है; पञ्चभूतात्मक देह और सृष्टि हि आत्मा है, अन्य नहीं । नास्तिकों के मतानुसार शुभ-अशुभ भुगतना पडता है, ऐसा भी नहीं । लोकायता वदन्त्येवं नास्ति देवो न निवृत्तिः ।(gyan shlok) लोकायत (नास्तिक वर्ग) लोग ऐसा कहते हैं कि देव या मुक्ति जैसा कुछ नहीं है; धर्म-अधर्म नहीं है; पाप-पुण्य का फल होता है, ऐसा भी मानने की आवश्यकता नहीं । विद्या मित्रं प्रवासेषु,भार्या मित्रं गृहेषु च | भावार्थ:- विदेश में ज्ञान, घर में अच्छे स्वभाव और गुणस्वरूपा पत्नी, औषध रोगी का ,तथा धर्म मृतक का सबसे बड़ा मित्र होता है | येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ! भावार्थ:- जिन मनुष्यों में न विद्या का निवास है, न मेहनत का भाव, न दान की इच्छा, और न ज्ञान का प्रभाव, न गुणों की अभिव्यक्ति और न धर्म पर चलने का संकल्प, वे मनुष्य नहीं, वे मनुष्य रूप में जानवर ही विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । भावार्थ:- ज्ञान विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से धन प्राप्त होता है जिससे व्यक्ति धर्म के कार्य करता हैं और सुखी रहता है| ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ भावार्थ:- हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए। रूप यौवन सम्पन्नाः विशाल कुल सम्भवाः। भावार्थ: अच्छा रूप, युवावस्था और उच्च कुल में जन्म लेने मात्र से कुछ नहीं होता। अगर व्यक्ति विद्याहीन हो, तो वह पलाश के फूल के समान हो जाता है, जो दिखता तो सुंदर है, लेकिन उसमें कोई खुशबू नहीं होती। येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ! भावार्थ: जिन लोगो के पास विद्या, तप, दान, शील, गुण और धर्म नहीं होता. ऐसे लोग इस धरती के लिए भार है और मनुष्य के रूप में जानवर बनकर घूमते है. बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः ! भावार्थ: जो व्यक्ति अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है वह व्यक्ति बलवान होने पर भी असमर्थ, धनवान होने पर भी निर्धन व ज्ञानी होने पर भी मुर्ख होता है. निवर्तयत्यन्यजनं प्ररमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते हिंदी अर्थ- जो दूसरों को प्रमाद (नशा, गलत काम ) करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते पर चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध (यथार्थ ज्ञान का बोध) कराते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं! ॐ न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते !! हिंदी अर्थ- इस सम्पूर्ण संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ भी नहीं है। नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनि हिंदी अर्थ- आपको नमस्कार माँ शारदा ( माँ सरस्वती ), हे देवी, हे कश्मीर में रहने वाली में आपके सामने प्रतिदिन प्रार्थना करता हूं, कृपया करके मुझे ज्ञान का दान दें! त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव हिंदी अर्थ- हे प्रभु! तुम मेरी माँ हो, तुम मेरे पिता हो, तुम्ही मेरे भाई बंधू हो सखा हो तुम ही मेरा ज्ञान हो और हे हरी भगवान तुम ही सर्वत्र देवता भी हो। कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु: हिंदी अर्थ- इस संसार में न कोई किसी का मित्र (दोस्त) है न कोई किसी का शत्रु (दुश्मन) है कार्यवश ही लोग एक दूसरे के मित्र और शत्रु बनते हैं! आलस्य कुतो विद्या अविध्स्य कुतों धनम हिंदी अर्थ– आलसी व्यक्ति के लिए ज्ञान कहाँ हैं, अज्ञानी मुर्ख के लिए धन (पैसा) कहाँ हैं, गरीब के लिए मित्र (दोस् ) कहाँ होते हैं और दोस्तों के बिना कोई कैसे खुश रह सकता हैं! ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम हिंदी अर्थ- हम उस पूजनीय, ज्ञान का भंडार ईश्वर का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है। जो हमें पापों और अज्ञानता से दूर रखता है। वह ईश्वर हमें हमें सत्य का मार्ग दिखाए और इस मार्ग पर चलने का आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञया सदृशागमः | हिंदी अर्थ:- जैसा उसका शरीर था, वैसी ही उसकी बुद्धि भी थी, जैसी उसकी बुद्धि थी, वैसा ही उसे शास्त्रों का भी ज्ञान था, जैसा उसका शास्त्राभ्यास था, वैसे ही उसके उद्यम भी थे, और जैसे उसके उद्यम थे, वैसी ही उसकी एकादशम् मनोज्ञयम् स्वगुणेनोभयात्मकम् | हिंदी अर्थ:- मन अपने गुणों के प्रभाव से ग्यारहवीं उभयात्मक अर्थात ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय भी है, इसीलिए मन के जीत लेने पर ये दोनों ज्ञान व कर्मेन्द्रियां स्वमेव विजित हो जाती है। सत्यं रूपं श्रुतं विद्या कौल्यं शीलं बलं धनम्। अर्थ- सत्य, विनय, शास्त्रज्ञान, विद्या, कुलीनता, शील, बल, धन, शूरता और वाक्पटुता ये दस लक्षण स्वर्ग के कारण हैं। मूर्खो वदति विष्णाय धीरो वदति विष्णवे। अर्थ- मूर्ख कहता है विष्णाय नमः जोकि अशुद्ध है और ज्ञानी कहता है विष्णवे नमः जो व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध है। लेकिन दोनों का फल एक ही है। क्योंकि भगवान शब्द नहीं भाव देखते हैं। ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसश्श्रियः। अर्थ- धर्म, यश, श्री, ज्ञान, वैराग्य और विभूति इन छः ऐश्वर्यों से युक्त परमशक्ति का नाम भगवान है। अपि मानुष्यकं लब्ध्वा भवन्ति ज्ञानिनो न ये। अर्थ- मनुष्य जन्म पाकर भी जो ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करता है। उसका जन्म व्यर्थ है। ऐसे मनुष्य से तो पशु ही श्रेष्ठ हैं। अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति, बुद्धिमत्ता, अच्छे कुल में जन्म, इंद्रियों पर संयम, शास्त्रों का ज्ञान, वीरता, मितभाषण, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता। ये आठ गुण मानव के जीवन को उज्जवल करते हैं। अज्ञेभ्यो ग्रन्थिनः श्रेष्ठा, ग्रंथिभ्यो धारिणो वराः। अर्थ- अनपढ़ों की अपेक्षा पुस्तक पढ़ने वाले श्रेष्ठ हैं। पुस्तक पढ़ने वालों की अपेक्षा अर्थ को धारण करने वाले श्रेष्ठ हैं। ग्रंथों के अर्थ को धारण करने वालों की अपेक्षा ज्ञानी श्रेष्ठ हैं। ज्ञानियों की अपेक्षा अर्थ को क्रियान्वित अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषते। हिंदी अर्थ- श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन ! तू न सोच करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक कर रहा है। ज्ञानी पुरुषों की तरह तर्क कर रहा है। जबकि ज्ञानी पुरुष जीवित अथवा मृत किसी के लिए शोक नहीं करते हैं। या कुन्देन्दु तुषारहार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता। हिंदी अर्थ- जो देवी शारदा कुंद के फूल, बर्फ के हार और चन्द्रमा के समान श्वेत और श्वेत वस्त्रों से सुशोभित हैं। जिनके हाथों में वीणा का दंड शोभित है। जो श्वेत कमल पर आसीन हैं और जिनकी स्तुति ब्रम्हा, विष्णु, महेश आदि देवता सदा ही किया करते हैं। वे भगवती सरस्वती अज्ञान के अंधकार से मेरी रक्षा करें। ऐसा कौन सा श्लोक है जिसमें विद्या को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है?अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥ अर्थात:- सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है, क्यों कि वह किसी से हरा नहि जा सकता; उसका मूल्य नहि हो सकता, और उसका कभी नाश नहि होता । विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः । विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
ज्ञान क्या है संस्कृत में?ज्ञान को संस्कृत भाषा में क्या कहते हैं? ज्ञान स्वयं ही संस्कृत भाषा का शब्द है। ज्ञानवानेन सुखवान् ज्ञानवानेव जीवति। ज्ञानवानेव बलवान् तस्मात् ज्ञानमयो भव।
प्रेम से जुड़े संस्कृत के श्लोक क्या हैं?प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित. बन्धनानि खलु सन्ति बहूनि प्रेमरज्जुकृतबनधनमन्यत्। दारुभेद निपुणोऽपि षडङ्घ्रि निष्क्रियो भवति पङ्कजकोशे॥. यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्। स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्त्वा वसेत्सुखम्॥. दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा। यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते॥. जीवन क्या है संस्कृत श्लोक?sanskrit shlok on life. 1. जीवितं क्षणविनाशि शाश्वतं किमपि नात्र। यह जीवन क्षणभंगुर है यहाँ कुछ भी शाश्वत नहीं है।
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