जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए। Show
Answer:देश की पहली बोलती फिल्म के विज्ञापन के लिए छापे गए वाक्य इस प्रकार थे- ''वे सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इनसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।'' पाठ के आधार पर ‘आलम आरा’ में कुल मिलाकर 78 चेहरे थे। परन्तु इसमें कुछ मुख्य कलाकार नायिका जुबैदा, नायक विट्ठल, सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, याकूब और जगदीश सेठी जैसे लोग भी मौजूद थे। Page No 66:Question 2:पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए। Answer:फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म 'शो बोट' देखी और तभी उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी। उन्होंने पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को फिल्म ''आलम आरा'' के लिए आधार बनाकर अपनी फिल्म की पटकथा बनाई। Page No 66:Question 3:विट्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुन: नायक होने के लिए क्या किया? विचार प्रकट कीजिए। Answer:पहले फिल्म के नायक के लिए विट्ठल का चयन किया गया। परन्तु इन्हें उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थीं। इसी कमी के कारण उन्हें हटाकर उनकी जगह मेहबूब को नायक बना दिया गया। पुन: अपना हक पाने के लिए उन्होंने मुकदमा कर दिया। विट्ठल मुकदमा जीत गए और भारत की पहली बोलती फिल्म के नायक बनें। Page No 66:Question 4:पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है? लिखिए। Answer:पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को प्रदर्शन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर सम्मानित किया गया और उन्हें ''भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता'' कहा गया तो उन्होंने उस मौके पर कहा था,- ''मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।'' वे विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे उनसे एक नया युग शुरू हो गया। Page No 66:Question 1:मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगा उसमें अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें। Answer:मूक सिनेमा में संवाद न होने के कारण केवल अंगों का प्रयोग किया जाता था। बोलती फिल्म बनने के कारण अभिनेताओं में यह परिवर्तन आया कि उनका पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी हो गया, क्योंकि अब उन्हें संवाद भी बोलने पड़ते थे। दर्शकों पर भी अभिनेताओं का प्रभाव पड़ने लगा। नायक-नायिका के लोकप्रिय होने से औरतें अभिनेत्रियों की केश सज्जा तथा उनके कपड़ों की नकल करने लगीं। तकनीकी दृष्टि से फिल्मों में काफ़ी बदलाव आया, फिल्में अधिक आकर्षक लगने लगी, गीत-संगीत का भी महत्व बढ़ने लगा। धीरे- धीरे आम भाषा का प्रयोग होने लगा। Page No 66:Question 2:डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज़ में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है? Answer:फिल्मों में जब अभिनेताओं को दूसरे की आवाज़ दी जाती है तो उसे डब कहते हैं। कभी-कभी फिल्मों में आवाज़ तथा अभिनेता के मुँह खोलने में अंतर आ जाता है। ऐसा फिल्मों की भाषा तथा डब की भाषा के अंतर से या किसी तकनीकी दिक्कत के कारण हो जाता है। संवाद संयोजन की खराबी से भी यह अंतर आ जाता है। Page No 67:Question 1:सवाक् शब्द वाक् के पहले 'स' लगाने से बना है। स उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ 'स' का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होने वाले परिवर्तन को बताएँ। हित, परिवार, विनय, चित्रा, बल, सम्मान। Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Exercise Questions and Answers. RBSE Class 8 Hindi Solutions Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखाRBSE Class 8 Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Questions and Answersपाठ से - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. पाठ से आगे - प्रश्न 1. दर्शक की दृष्टि से जहाँ पहले दर्शक केवल अभिनय ही देख पाते थे और पात्रों के शारीरिक हाव-भाव और शारीरिक भाषा को देखकर ही अनुमान लगा लेते थे, वहीं वे अब अभिनय के साथ संवादों का भी आनन्द उठा सकते थे। सवाक् फिल्मों का अनुभव और आनन्द उनके लिए नितान्त अनोखा था। तकनीकी दृष्टि से सवाक् पहली फिल्म 'आलम आरा' की शूटिंग रात में की गयी। इस कारण कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था करनी पड़ी। यहीं से प्रकाश प्रणाली विकसित हुई जो आगे फिल्म निर्माण का जरूरी हिस्सा बनी। इसके अलावा हिन्दीउर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा और जनप्रचलित बोलचाल की भाषाओं का प्रचलन हुआ। प्रश्न 2. अनुमान और कल्पना - प्रश्न 1. प्रश्न 2. भाषा की बात - प्रश्न 1. प्रश्न 2. पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं - इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए। RBSE Class 8 Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. रिक्त स्थानों की पूर्ति - प्रश्न 11.
उत्तर : अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. लघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. गद्यांश पर आधारित प्रश्न - प्रश्न 32. प्रश्न : 2. आलम आरा फिल्म अरेबियन नाइट्स' जैसी फैंटेसी थी। फिल्म ने हिन्दी-उर्दू के मेलवाली 'हिन्दस्तानी' भाषा को लोकप्रिय बनाया। इसमें गीत, संगीत तथा नृत्य के अनोखे संयोजन थे। फिल्म की नायिका जुबैदा थीं। नायक थे विट्ठल। वे उस दौर के सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाले स्टार थे। उनके चयन को लेकर भी एक किस्सा काफी चर्चित है। विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थीं। - पहले उनका बतौर नायक चयन किया गया मगर इस कमी के कारण उन्हें हटाकर उनकी जगह मेहबूब को नायक बना दिया गया। प्रश्न : 3. दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी। यह फिल्म दस हजार फुट लम्बी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। सवाक् फिल्मों के लिए पौराणिक कथाओं, पारसी रंगमंच के नाटकों, अरबी प्रेम-कथाओं को विषय के रूप में चुना गया। इनके अलावा कई सामाजिक विषयों वाली फिल्में भी बनीं। ऐसी ही एक फिल्म थी-'खुदा की शान'। इसमें एक किरदार महात्मा गाँधी जैसा था। इसके कारण सवाक् सिनेमा को ब्रिटिश प्रशासकों की तीखी नजर का सामना करना पड़ा। प्रश्न : 4. सवाक् सिनेमा के नए दौर की शुरुआत कराने वाले निर्माता-निर्देशक अर्देशिर इतने विनम्र थे कि जब 1956 | में 'आलम आरा' के प्रदर्शन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर उन्हें सम्मानित किया गया और उन्हें 'भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता' कहा गया तो उन्होंने उस मौके पर कहा था, "मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।" प्रश्न : 5. मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीर वाले, स्टंट करने वाले और उछल-कूद करने वाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए 'आलम आरा' के बाद आरंभिक 'सवाक् ' दौर की फिल्मों में कई 'गायक-अभिनेता' बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। हिन्दी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्यादा देसी हुआ। एक तरह की नयी आजादी थी जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा। प्रश्न : जब सिनेमा ने बोलना सीखा Summary in Hindiपाठ का सार - भारतीय सिनेमा जगत में 14 मार्च, 1931 बड़े परिवर्तन का दिन था। इस दिन भारत में बोलती फिल्म की शुरुआत हुई। पहली सवाक् फिल्म अर्देशिर एम. ईरानी ने 'आलम आरा' बनाई। इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद भारतीय सिनेमा नई-नई ऊँचाइयों को छूता गया। यह परिवर्तन और सुधार आज भी जारी है। इन्हीं परिवर्तनों का रोचक वर्णन किया गया है। जब सिनेमा ने बोलना सीखा शीर्षक से क्या निर्दिष्ट होता है?इसके कुछ समय के बाद सिनेमा जगत में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया और सवाक् फिल्मों का आरम्भ शुरू हुआ। इस अध्याय को निबंध के रूप में लिखा गया है जैसा कि इस अध्याय के नाम 'जब सिनेमा ने बोलना सीखा' के अर्थ से ही स्पष्ट होता है कि इस अध्याय में उस समय का वर्णन है जब सिनेमा में आवाज को शामिल किया गया।
जब सिनेमा ने बोलना सीखा से क्या अभिप्राय है?14 मार्च 1931 की वह ऐतिहासिक तारीख भारतीय सिनेमा में बड़े बदलाव का दिन था । इसी दिन पहली बार भारत के सिनेमा ने बोलना सीखा था। हालाँकि वह दौर ऐसा था जब मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था। 'पहली बोलती फिल्म जिस साल प्रदर्शित हुई, उसी साल कई मूक फिल्में भी विभिन्न भाषाओं में बनीं।
सिनेमा ने कब बोलना सीखा?'सभी सजीव हैं, सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए उनको बोलते, बातें करते देखो। ' 14 मार्च, सन् 1931 का दिन भारतीय सिनेमा के इतिहास का सबसे बड़ा और चमत्कारी दिन था, क्योंकि इसी दिन भारतीय सिनेमा ने बोलना सीखा इसी दिन से बोलती फिल्मों का नया युग प्रारंभ हो गया।
जब सिनेमा ने बोलना सीखा पाठ के आधार पर बताइए इनमें से कौन नायक और स्टंटमैन दोनों था?विट्ठल मुकदमा जीते और भारत की पहली बोलती फ़िल्म के नायक बने। उनकी कामयाबी आगे भी जारी रही। मराठी और हिंदी फ़िल्मों में वे लंबे समय तक नायक और स्टंटमैन के रूप में सक्रिय रहे।
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