हर सामाजिक विभिनता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती कैसे? - har saamaajik vibhinata saamaajik vibhaajan ka roop nahin letee kaise?

             

लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

हर सामाजिक विभिनता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती कैसे? - har saamaajik vibhinata saamaajik vibhaajan ka roop nahin letee kaise?


प्रश्न 1.  हर एक सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेती । कैसे?



उत्तर :- हर  सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेती है क्योंकि सामाजिक विभाजन का कोई आधार नही होता है जो व्यक्ति जिस जाति या समुदाय में जन्म लेता है वह उसी जाति या समुदाय का हो जाता है।कभी-कभी दो अलग-अलग समुदायों के लोगों का विचार अलग-अलग होता है ,परन्तु उनका हित समान होता है।
               जैसे की मुम्बई में मराठियों के हिंसा के शिकार हुए लोगो की जातियां भिन्न-भिन्न थी ,परन्तु उनका क्षेत्र एक ही था।अतः हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेती है।


प्रश्न 2. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है?

उत्तर:- सामाजिक विभाजन तब होता है जब कोई सामाजिक अंतर अन्य सामाजिक विभिन्नताओं से बड़ा हो जाता है ।जैसे उच्च वर्ग के लोग और दलित वर्ग के लोगों का अंतर सामाजिक विभाजन है।सम्पूर्ण देश में दलित वर्ग के लोग आमतौर पर गरीब बेघर और कमजोर है परंतु उच्च वर्ग के लोग अमीर और सम्पन्न है ।जिसके कारण दलित वर्ग के लोगो को महसूस होने लगता है कि वे इनसे अलग है।
                 जैसे :- अमेरिका में श्वेत एवम अश्वेत का अंतर सामाजिक विभाजन है।


प्रश्न 3. सामाजिक विभाजनों की राजनीती के परिणामस्वरूप  लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता है।भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे स्प्ष्ट करे।

उत्तर:- कोई भी देश चाहे छोटा हो या बड़ा उसमे सामाजिक विभाजनों का प्रभाव उसके राजनीती पर अवश्य पड़ता है।
         भारतीय गणतन्त्रात्मक में भी दलित वर्ग के लोगों के लिए नौकरी और शिक्षा संस्थाओं में आरक्षण देने का प्रावधान है,लेकिन यह व्यवस्था काफी हिंसा और संघर्ष के बाद बनी है।ऐसी स्थिति में राजनितिक पार्टियां भी जाति आधार पर निर्णय लेने लगी है।1971 में राजनीती में उच्च वर्ग के लोगो का वचर्सव था,लेकिन इसके बाद पिछले वर्ग के लोगो द्वारा राजनीति को प्रभावित किया जाने लगा।




प्रश्न 4. सत्तर के दशक से आधुनिक दशक के बीच भारतीय लोकतंत्र का सफर(सामाजिक न्याय के संदर्भ में)का संक्षिप्त वर्णन करें।


उत्तर:- सत्तर के दशक के पूर्व भारतीय लोकतंत्र में राजनितिक में सुविधापरस्त हित समूह के लोगो का वर्चस्व था।सत्तर से  नब्बे दशक के बीच उच्च वर्ग के लोगों और मध्य वर्ग के लोगों के बीच राजनीती में वर्चस्व के लिए संघर्ष चला। नब्बे दशक के बाद पिछड़ी जातियों और दलित वर्ग के लोग राजनीती में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे और इसकी नीतियों को प्रभावित करते रहे,लेकिन आधुनिक दशक में राजनीती में दलित एवम महादलित के पक्ष में राजनीती का पलड़ा झुकता है।



प्रश्न 6. सामाजिक विभाजनों को संभालने के संदर्भ में इनमे से कौन-सा बयान लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर लागू नही होता है।


उत्तर:-  लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज के विखण्डन की ओर ले जाता है।


प्रश्न 7. निम्नलिखित तीन बयानों पर विचार करे-
(क) जहाँ सामाजिक अंतर एक-दूसरे से टकराते हैं।

(ख) यह सम्भव है एक व्यक्ति की कई पहचान हो।

(ग) सिर्फ भारत जैसे बड़े देशों में ही सामाजिक विभाजन होते हैं।

इन बयानों में से कौन -कौन से बयान सही है--


उत्तर:- क और ख



प्रश्न 8. निम्नलिखित व्यक्तियों में कौन लोकतंत्र में रंगभेद के विरोधी नही थे?
(क) किंग मार्टिन लूथर 

(ख) महात्मा गाँधी

(ग) ओलम्पिक धावक टोमी स्मिथ एवम जॉन कॉलेर्स

(घ) जेडी गुड़ी


उत्तर :- जेडी गुड़ी।


प्रश्न 9. निम्नलिखित का मिलान करे----

(क)   पाकिस्तान         =>        इस्लाम

(ख)  हिन्दुस्तान           =>        धर्मनिरपेक्ष

(ग)    इंग्लैण्ड             =>         प्रोटेस्टेंट


प्रश्न 10. भावी समाज में लोकतंत्र का जिम्मेवारी और उद्देश्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर :- भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेवारी काफी बढ़ गई है।आज समाज में जाति, धर्म,लिंग आदि को लेकर भेदभाव किया जा रहा है।इस समाज में विभिन्न प्रकार की विभिन्नताएं पाई जाती है और लोकतंत्र का उद्देश्य यह होना चाहिए कि समाज में हो रहे इन सामाजिक विभिन्नताओं तथा असमानताओं के बीच सामंजस्य बिठाए।
         जाति प्रथाओं के कारण आज शादी अपने ही जाति में करना उत्तम माना जाता है।जातिय प्रावधान होने के बावजूद भी हमारे समाज में छुआ-छूत विद्यमान है ।एक जाति, धर्म को दूसरे जाति या धर्म से बड़ा मान कर आपस में साम्प्रदायिक दंगे हो रहे हैं। इन सामाजिक कठिनाइयों के बीच सामंजस्य बिठाना भावी समाज के प्रति लोकतंत्र की यही जिम्मेवारी और उद्देश्य होना है।


प्रश्न 11. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएं जारी है? स्प्ष्ट करें।

उत्तर :- इस संसार के हर समाज में सामाजिक असमानताएं तथा श्रम-विभाजन विद्यमान है ।जब कोई पेशा एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक चलता है तो पेशे पर आधारित इस सामाजिक व्यवस्था  को जाति कहते हैं।इनकी पहचान एक अलग समुदाय में होने लगती है तथा लड़के-लड़कियों की शादी-ब्याह इनके जैसे ही समुदाय में होने लगता है और एक खान-पान भी अपने ही समुदाय में होता है। इस समुदाय के लोग अन्य समुदाय के लोगो के साथ अपने संतान की शादी न करते हैं और न करने देते है।अपने समुदाय से अलग दूसरे समुदाय के साथ अगर कोई परिवार वैवाहिक सम्बन्ध बनाता है तो उसे उसके समुदाय से अलग कर दिया जाता है।
           भारत में जाति प्रावधान होने के बाद भी भारतीय समाज में जात-पात ,छुआ-छूट ,उच्च नीच का भेद भाव होता है।


प्रश्न 12. क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकता है? इसके दो कारण बतावें।

उत्तर :- सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नही हो सकते हैं।इसके डीओ कारण इस प्रकार है--

1) किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का गठन एक ही जाति  के लोगों के होने से नही किया जा सकता है क्योंकि जिस जाति के लोगों की संख्या अधिक होगी वहाँ कम लोगों वाले जाति के लोगों की भागीदारी सही से नही हो पाईगी।

2) कोई भी राजनितिक पार्टी एक ही जाति के लोगों के वोट पा कर सत्ता में नही आ सकती है।



प्रश्न 13. जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिसमे भारत में स्त्रियों के साथ भेद-भाव है या वे कमजोर स्थिति में है।


उत्तर:- भारत एक पुरुष प्रधान देश है।जहाँ पुरुषों की प्रधानता अधिक है और महिलाओं की कम है। लिंग विभेद पर आधारित सामाजिक विभाजन सार्वजनिक क्षेत्र एवम निजी क्षेत्र दोनों में पाए जाते हैं।लड़कियो की मुख्य जिम्मेवारी गृहस्थी चलानी और बच्चों के पालन-पोषण तक सिमित होती है।महिलाएं अपने घरेलू कार्य के अतिरिक्त आमदनी के लिए कई कार्य करती है लेकिन इन्हें महत्व नही दिया जाता है।महिलाओं में साक्षरता दर 54 फीसदी है जबकि पुरुषों की साक्षरता 74 फीसदी है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत में स्त्रियो के साथ भेद-भाव है और वे कमजोर स्थिति में है।


प्रश्न 14. भारत की  विधायिकाओं में महिलाओं के  प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?

उत्तर:- भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति दयनीय है।औरतो के प्रति समाज के घटिया नजरिए के कारण ही महिला आंदोलन की शुरुआत हुइ । भारत की लोकसभा में महिला प्रतिनिधित्व की संख्या 59है फिर भी इसका प्रतिशत 11 के नीचे है।



प्रश्न 15. किन्ही दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाता है?

उत्तर :- किन्ही दो प्रावधानों का जिक्र इस प्रकार है जो भारत को धर्म-निरपेक्ष देश बनाता है---

1) संविधान में हर नागरिक को यह स्वतंत्रता दी गई है कि अपने विश्वास से वह किसी भी धर्म को अपना सकता है।

2) हमारे संविधान के अनुसार धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेद-भाव  असंवैधानिक घोषित है।

प्रश्न 16. जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है----

क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अंतर
ख) समाज द्वारा स्त्रियों और पुरुषों को दी गई असमान भूमिकाएं
ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात 
घ) लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना

उत्तर:- समाज द्वारा स्त्रियों और पुरुषो को दो गई असमान भूमिकाएं।

प्रश्न 17. भारत में यहां औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है--

क) लोकसभा 
ख) विधानसभा
ग) मंत्रिमंडल
घ) पंचायती राज्य संस्थाए

उत्तर :- पंचायतो राज्य संस्थाए

प्रश्न 18. सांप्रदायिक राजनीती के अर्थ संबन्धी निम्न कथनों पर गौर करें । साम्प्रदायिक राजनीती किस पर आधारित है- 
अ) एक धर्म दूसरे से श्रष्ठ है।
ब) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में ख़ुशी -सुखी साथ रहते है।
स) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकि सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नही किया जा सकता है।

उत्तर :- एक धर्म दूसरे से श्रष्ठ है।

प्रश्न 19. भारतीय संविधान के बारे में इनमे से कौन -सा कथन सही है----

क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।
ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बनाता है।
ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।
घ) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।


उत्तर:- यह एक धर्म को राजकीय धर्म बनाता है ।


प्रश्न 20. ............... पर  आधारित विभाजन सिर्फ भारत में है।

उत्तर:- वर्ण - व्यवस्था ।


प्रश्न 21. मिलान करें-------


क) अधिकारों और अवसरों के मामले में स्त्री और पुरुष की बराबरी मानने वाला व्यक्ति  =>  नारीवादी 

ख) धर्म को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति  =>  सांप्रदायिक  
ग) जाति को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति  =>   जातिवाद 
घ) व्यक्तियों के बीच धार्मिक आस्था पर आधार पर भेदभाव न करने वाला व्यक्ति =>  धर्मनिरपेक्ष



हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेते हैं कैसे?

प्रश्न 1. हर एक सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेती । कैसे? उत्तर :- हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेती है क्योंकि सामाजिक विभाजन का कोई आधार नही होता है जो व्यक्ति जिस जाति या समुदाय में जन्म लेता है वह उसी जाति या समुदाय का हो जाता है।

सामाजिक विभाजनों का प्रमुख आधार क्या है?

सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं, भेदभाव के शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं।

सामाजिक विभाजन का क्या अर्थ है?

Solution : जाति, धर्म, रंग, क्षेत्र आदि के आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा परस्पर गलत व्यवहार करना, आपसी संघर्ष को सामाजिक विभाजन कहते हैं।

सामाजिक विभाजन की स्थिति कब उत्पन्न होती है?

जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज़्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे एक सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है।