हमारे हरि हारिल की लकरी पंक्ति में रस क्या है - hamaare hari haaril kee lakaree pankti mein ras kya hai

हमारे हरि हारिल की लकरी

हमारे हरि हारिल की लकरी।

मन बच क्रम नंदनंद सों उर यह दृढ़ करि पकरी॥

जागत, सोबत, सपने सौंतुख कान्ह-कान्ह जक री।

सुनतहि जोग लगत ऐसो अति! ज्यों करुई ककरी॥

सोई व्याधि हमें लै आए देखी सुनी करी।

यह तौ सूर तिन्हैं लै दीजै जिनके मन चकरी॥

गोपियाँ कहती हैं हे उद्धव, हमारे लिए तो श्रीकृष्ण हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जैसे हारिल पक्षी जीते जी अपने चंगुल से उस लकड़ी को नहीं छोड़ता ठीक उसी प्रकार हमारे हृदय ने मनसा, वाचा और कर्मणा श्रीकृष्ण को दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया है (यह संकल्प मन, वाणी और कर्म तीनों से है) अतः सोते समय, स्वप्न में तथा प्रत्यक्ष स्थिति में हमारा मन ‘कान्ह’ ‘कान्ह’ की रट लगाया करता है। तुम्हारे योग को सुनने पर हमें ऐसा लगता है जैसे कड़वी ककड़ी। तुम तो हमें वही निर्गुण ब्रह्मोपासना या योग-साधना का रोग देने के लिए यहाँ चले आए। जिसे कभी देखा और जिसके बारे में कभी सुना और कभी इसका अनुभव किया। इस ब्रह्योपासना या योग-साधना का उपदेश तो उसे दीजिए जिसका मन चंचल हो। हम लोगों को इसकी क्या आवश्यकता—हम लोगों का चित्त तो श्रीकृष्ण के प्रेम में पहले ही से दृढतापूर्वक आबद्ध है।

स्रोत :

  • पुस्तक : भ्रमरगीत सार (पृष्ठ 80)
  • रचनाकार : आचार्य रामचंद्र शुक्ल
  • प्रकाशन : लोकभारती
  • संस्करण : 2008

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हमारे हरि हारिल की लकरी कहकर गोपियों ने क्या स्पष्ट किया है?

Solution : गोपियाँ अपने को हारिल पक्षी के समान मानती हैं। हारिल अपने पंजों में कोई एक छोटी-सी लकड़ी या तिनका पकड़े रहता है। वही उसके जीवन का सहारा है। गोपियों कृष्ण को हारिल की लकड़ी इसलिए मानती हैं कि कृष्ण ही उनके जीवन का एकमात्र सहारा है।

हमारे हरि हारिल की लकरी पंक्ति में कौन सा रस है * 1 Point शांत रस वात्सल्य रस वीर रस श्रृंगार रस?

इसमें संयोग श्रृंगार रस है, जिसका स्थायी भाव रति है।

हाररि की िकड़ी का क्या तात्पर्य है गोवपयों िे कृ ष्ण को हाररि की िकड़ी क्यों कहा है?

Answer: गोपियों का कृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' कहने का तात्पर्य यह है कि उनके ह्रदय में कृष्ण का प्रेम इतना दृढ़तापूर्वक समाया हुआ है जो किसी भी प्रकार निकल नहीं सकता। कहने का आशय है कि गोपियाँ कृष्ण के प्रति ही एकनिष्ठ हैं।

हारिल की लकड़ी किसे और क्यों कहा गया है?

Solution : गोपियाँ "हारिल की लकरी श्रीकृष्ण के लिए कहती हैं। क्योंकि जैसे हारिल पक्षी लकड़ी के आश्रय को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण के आश्रय को नहीं छोड़ सकतीं। उन्होंने मन-क्रम-वचन पूरी तरह से श्रीकृष्ण को पकड़ रखा है।