हमारे चरित्र निर्माण के लिए क्या क्या महत्वपूर्ण है? - hamaare charitr nirmaan ke lie kya kya mahatvapoorn hai?

बच्चों में चरित्र का विकास कैसे करें? शिक्षा का उद्देश्य क्या है? चरित्र निर्माण में आवश्यक बातें? चरित्र बनाने के लिए जरूरी बातें? एक शिक्षक का पहला कर्तव्य बच्चों में चरित्र निर्माण करना है। अच्छा करैक्टर ही अच्छा नागरिक बनाता है।

इन सभी प्रश्नों का जवाब आपको इस लेख में बड़े ही सरल और सहज ढंग से मिलेगा। आप चाहे शिक्षक हो या पेरेंट्स या किसी और प्रोफेशन में, चरित्र निर्माण की जो आध्यात्मिक प्रक्रिया है। उसे बचपन से ही बच्चों में डाला जाता है। इसके बारे में आपको जानना बहुत जरूरी है।  तो मैं आपको अपने व्यवहारिक अनुभव बताना चाहता हूं-

 छात्रों में चरित्र निर्माण, उनके मानसिक शक्ति का निर्माण  एवं आलोचनात्मक चिंतन (क्रिटिकल थिंकिंग)  के लिए एक शिक्षक होने के नाते मैंने व्यवहारिक अनुभव के बारे में इस लेख में बताया है। (My practical experiment as a teacher for character building, building their mental strength and critical thinking in students)

 छात्रों में चरित्र निर्माण,  चरित्र का अर्थ

(Character building in students, meaning of character)

अध्यात्म ही  हमारे चरित्र का निर्माण करता है ।  छात्रों को अध्यात्म की शिक्षाहम  विषय के ज्ञान के साथ ही दे सकते हैं  बस हमें आध्यात्मिक नजरिया  उत्पन्न करना है।

 सर्वप्रथम जान ले कि चरित्र  होता क्या है? चरित्र का मतलब  ऐसी मनोस्थिति (मानसिक रूप से) जो हमें नैतिक मूल्य युक्त और कर्तव्यपरायणता  का गुण प्रदान करता है, ( Provides moral values ​​and virtues of duty) हमारे व्यक्तित्व की रचना करता है।  इन्हीं गुणों को बालक में विकास (development) करके उन्हें चरित्रवान बनाने की प्रक्रिया चरित्र निर्माण कहलाती है। (The process of making them character is called character building)  और फिर इस लेख में आध्यात्मिक विकास के हर पहलुओं को भी शामिल किया गया है किस तरह से आध्यात्मिक विकास बालक के एजुकेशन में मदद करता है।

 चरित्र निर्माण  के लिए  व्यवहारिक ज्ञान

(Practical knowledge for character building)

शिक्षक स्वयं चरित्रवान होना चाहिए।  शिक्षक की स्पष्टता और उसकी सत्यता ही व्यावहारिक (Practical knowledge) रूप से  छात्रों को सीखने (Learning) हेतु प्रेरित करती है।

 उनके व्यवहार कुशलता और सामाजिक कुशलता से ही बच्चे सीखकर स्वयं अपने चरित्र  का निर्माण करते हैं अतः व्यावहारिक रूप से हमें इन बातों का ध्यान रखना चाहिए कि हम क्या बोलते हैं? क्या पहनते हैं? कैसा प्रतिक्रिया करते हैं, कैसी हमारी सोच है, इन बातों पर एक  टीचर/ पेरेंट्स को गहन अध्ययन करना चाहिए, स्वयं के व्यक्तित्व (सेल्फ डेवलपमेंट इंप्रूवमेंट) में बदलाव लाकर ही हम एक सफल उदाहरण बन सकते हैं और  छात्र के चरित्र निर्माण में उन्हें  प्रेरित कर सकते हैं। यह आपकी आध्यात्मिक शक्ति से ही संभव हो सकता है।  स्प्रिचुअल पावर (आध्यात्मिक शक्ति) त्याग से ही आता है।  चरित्र निर्माण की पहली प्रक्रिया में त्याग ही है।  यहां त्याग ही इंसान के चरित्र को निर्मित करता है और उसका रिफ्लेक्शन उनके बच्चों पर भी पड़ता है।

लोगों की आपके प्रति राय क्या है/

अपनी अच्छी छवि का निर्माण करें

(Build your good image)

 आपने गौर किया होगा बालक (children) आपकी छोटी से छोटी बातों पर ध्यान देते हैं और अपनी एक राय बनाते हैं। अतः हमें अपने व्यक्तित्व को इतना विशाल बनाना चाहिए कि बच्चे वैसा बनने के लिए प्रेरित हो।

ताकि आपके प्रति आपके पास छात्रों की राय सकारात्मक (Positive) हो और आपके बताए हुए सदाचार और नैतिक मूल्यों (Ethics and moral values) की बातों का प्रभाव उनके मन मस्तिष्क पर प्रभावशाली ढंग से पड़ता है तो वह जीवनभर आपके उस व्यक्तित्व में एक शिक्षक की छवि देखते हैं और आपके समर्पण और कर्तव्यनिष्ठता  से स्वयं को आलोकित करते हैं और अपने जीवन में स्वयं को चरित्रवान बनाते हैं।

 दोहरा जीवन नहीं जिओ

 छात्रों में मानसिक शक्ति का निर्माण

(Building mental strength in students)

 छात्रों में मानसिक शक्ति का निर्माण कैसे करें

 सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान (practical knowledge) को जब हम विश्लेषण (Analysis) करते हैं तो हमारा मन अपने अनुभव और अपने ज्ञान के अनुसार उसका विश्लेषण करता है।

जब मैं स्वयं  बचपन में आत्मनिष्ट प्रवृत्ति का था। शर्मीले स्वभाव का था। इस कारण से सीखे गए तथ्यों को मैं सही से व्यक्त नहीं कर सकता था। मानसिक शक्ति  के विश्लेषण की छमता मेरी बहुत  कमजोर थी। आत्मशक्ति डगमगा जाती थी।  शिक्षक के  डांट के डर से स्वयं को व्यक्त भी नहीं करता था।  

 मानसिक शक्ति के साथ आलोचनात्मक चिंतन का विकास

(Developing critical thinking with mental strength)

 मानसिक शक्ति को किस तरह से विकसित किया जाए बच्चों में उस आध्यात्मिक शक्ति को विकसित करने के लिए हमें साधारण तरीके से नए टूल्स की जरूरत होगी, जैसे-

  1. मानसिक शक्ति का विकास कहानियों और पहेलियों के माध्यम से बच्चों का उत्साहवर्धन करके कक्षा में किया जा सकता है।  बच्चे को उत्साहित करना यानी किसी कार्य को करने में उन्हीं अगर परेशानी हो रहा है मानसिक रूप से उसे मजबूत बनाने के लिए एक शिक्षक के तौर पर उसके साथ मित्रता का भाव रखते हुए उसे प्रेरित करना आवश्यक होता है।  आध्यात्मिक शक्ति के विकास में यह प्रक्रिया बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। आदर्श और नैतिकता का निर्माण इसी तरीके से व्यवहारिक रूप से हो सकता है।
  2. शारीरिक शक्ति से मानसिक शक्ति और मानसिक शक्ति से शारीरिक शक्ति का विकास होता है इसलिए खेल के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि वहां शारीरिक शक्ति के साथ मानसिक शक्ति का प्रयोग होता है और इसका उदाहरण आप किसी भी खेल खेलते समय स्वयं भी अनुभव किया होगा।
  3.  खेल में शारीरिक और मानसिक शक्ति का सही प्रयोग व्यवहारिक तौर पर कराने के लिए प्रेरित  करना चाहिए।  खेल आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने वाला होता है। अध्यात्म  की आत्मशक्ति बच्चों में खेल के माध्यम से भी दिया जा सकता है। मित्रता सद्भाव और एक दूसरे से प्रतियोगिता की स्वस्थ भावना ताकि मनुष्य के इस खेल को बढ़ावा मिल सके। यह खेल के माध्यम से ही सीखा जा सकता है।
  4.  शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य खेल शिक्षा के अध्यात्म से ही प्राप्त हो सकता है। इसलिए अपनी कक्षा  के कुछ विषयों जैसे व्याकरण और कहानी को खेल-खेल पद्धति में सिखाना और एक समस्या देकर मानसिक शक्ति से उनका समाधान निकालना और उनकी इस समाधान का उत्साहवर्धन करते हैं कक्षा में उनके विचारों से सभी छात्रों को अवगत कराना और इन्हीं विचारों से एक सही विचार चुनकर सभी छात्रों के बीच सहमति बनाना मानसिक शक्ति के विकास के साथ ही  आलोचनात्मक चिंतन यानी क्रिटिकल  थिंकिंग के गुणों को विकसित करना।

यह एक उदाहरण है, ऐसे कई उदाहरण विषयों के साथ समाहित  करके बालक में मानसिक चिंतन के साथ आलोचनात्मक चिंतन का विकास किया जा सकता है।  उसके आध्यात्मिक शक्ति को पढ़ाई के साथ ही विकास किया जा सकता है। और इसके साथ इसी उपक्रम में बालक का चरित्र निर्माण किया जा सकता है।

एक अच्छे चरित्र का निर्माण कैसे होता है?

सेवा, दया, परोपकार, उदारता, त्याग, शिष्टाचार और सद्व्यवहार आदि चरित्र के बाह्य अंग हैं, तो सद्भाव, उत्कृष्ट चिंतन, नियमित-व्यवस्थित जीवन, शांत-गंभीर मनोदशा चरित्र के परोक्ष अंग हैं। किसी व्यक्ति के विचार इच्छाएं, आकांक्षाएं और आचरण जैसा होगा, उन्हीं के अनुरूप चरित्र का निर्माण होता है।

चरित्र निर्माण के लिए कौन कौन से गुण होने चाहिए?

चरित्र निर्माण के लिए निम्नलिखित गुण आवश्यक हैं....
व्यक्ति में विनम्रता होना बेहद आवश्यक है।.
व्यक्ति मृदुभाषी होना चाहिए।.
उसके अंदर परोपकार की भावना होनी चाहिए।.
वह सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहे।.
उसके अंदर दयालुता होनी चाहिए।.
वह निर्धनों और असहायों के प्रति करूणा का भाव रखता हो।.

चरित्रवान बनने के लिए क्या करना चाहिए?

चरित्रवान कैसे बने.
वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च। अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः!.
भावमिच्छति सर्वस्य नाभावे कुरुते मनः। सत्यवादी मृदृर्दान्तो यः स उत्तमपूरुषः ॥.
✴ क्रोध को अपने ऊपर हावी न होने दें:.
✴ दूसरा गुण है विनम्रता का गुण :.
प्राप्नोति वै वित्तमसद्बलेन नित्योत्त्थानात् प्रज्ञया पौरुषेण।.

चरित्रवान मनुष्यों में कौन से गुण आवश्यक हैं?

सत्य भाषण, उदारता, विशिष्टता, विनम्रता, सुशीलता, सहानुभूतिपरकता आदि गुण जिस व्यक्ति में होते हैं वह सच्चरित्र कहलाता है। उस व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा होती है, उसे समाज में आदर और सम्मान मिलता है। वह इस लोक में कीर्ति का पात्र बनता है।