NCERT Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 Book Chapter 3 Himalaya ki Betiyan Summary, Explanation with Video and Question AnswersHimalaya ki Betiyan – Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book chapter 3 detailed explanation of lesson ”Himalaya ki Betiyan” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with Summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7 Show
इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 3 ” हिमालय की बेटियाँ ” कहानी के पाठ – प्रवेश , पाठ – सार , पाठ – व्याख्या , कठिन – शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे – कक्षा 7 पाठ 3 हिमालय की बेटियाँलेखक परिचय – Himalaya ki Betiyan Class 7 Video Explanationहिमालय की बेटियाँ पाठ प्रवेशप्रकृति की अपनी ही अनूठी सुंदरता होती है। प्रकृति की बेजोड़ सुंदरता का कोई मुकाबला
नहीं कर सकता। न जाने कितने ही कवियों और लेखकों ने प्रकृति की सुंदरता को शब्दों में पिरोने की कोशिश की है परन्तु कोई भी कामयाब नहीं हो पाया है। प्रस्तुत पाठ में भी लेखक ने हिमालय से बहती नदियों का अत्यधिक सूंदर मानवीकरण किया है। कहीं लेखक ने नदियों को हिमालय की बेटियाँ कह कर सम्बोधित किया है , तो कहीं इनकी चंचलता और कल-कल की ध्वनि की तुलना छोटे बच्चों की शरारतों और खिलखिलाहटों है। पाठ सार ( हिमालय की बेटियाँ ) – Himalaya Ki Betiyan Summaryप्रस्तुत पाठ में लेखक ने गंगा , यमुना और सतलुज नदियों का बहुत ही अद्भुत मानवीयकरण किया है। लेखक कहता है कि उसने इन नदियों को केवल दूर से ही देखा था। लेखक आज तक इन नदियों को बहुत ही शांत और किसी को नुक्सान न पहुँचाने वाली सोचता था। लेखक इन नदियों की तुलना किसी सम्मानित महिला से करता था , जो सरल और सब के प्रति हितकारी हो। जिस तरह लेखक अपनी दादी , माँ , मौसी और मामी की गोद में खेला करता था , उसी की तरह लेखक इन नदियों की धारा में डुबकियाँ लगाया करता था। परंतु इस बार जब लेखक ने हिमालय पर्वत पर चढ़ाई की तो इन नदियाँ का लेखक के सामने जो रूप था वो कुछ और ही रूप था। लेखक हैरान था क्योंकि लेखक को यह समझ में नहीं आ रहा था कि हिमालय पर जो दुबली – पतली गंगा , यमुना , सतलुज नदियाँ हैं उनका आकार समतल मैदानों में उतरकर इतना विशाल कैसे हो जाती हैं ! क्योंकि लेखक ने हिमालय में इन नदियों को बहुत ही सुंदर व् शांत देखा है और समतल मैदानों में बहुत ही भयंकर रूप में देखा है , इसी कारण लेखक हैरान है। यहाँ लेखक इन नदियों को हिमालय की बेटियाँ कह कर सम्बोधित कर रहा है। क्योंकि ये नदियाँ हिमालय से उत्पन्न होती हैं। लेखक के मन में एक सवाल उठता है कि सभी जानते हैं कि पिता से बाद कर कोई भी बेटियों को प्यार नहीं कर सकता , तो यहाँ भी लेखक यही नहीं समझ पा रहा है कि जब हिमालय इन नदियों को इतना प्यार करता है तो ये नदियाँ किसकी तलाश में भटकती रहती हैं। लेखक हिमालय के परिवेश का वर्णन करता हुआ कहता है कि हिमालय की पहाड़ियाँ बिना बर्फ के नंगी प्रतीत होती है , हिमालय की घाटियाँ छोटे – छोटे पौधों से भरी पड़ी हैं , कही हिमालय की भूमि उतार – चढ़ाव वाली है तो कहीं पहाड़ के ऊपर की भूमि समतल है , कही पर हरी- भरी लहलहाती हुई घाटियाँ हैं। लेखक कहता है कि सिंधु और ब्रह्मपुत्र ऐसी दो महानादियाँ हैं जिनका नाम सुनते ही हिमालय की छोटी – बड़ी सभी बेटियाँ अर्थात नदियाँ आँखों के सामने नाचने लगती हैं। लेखक कहता है कि यदि हिमालय पर बर्फ न होती तो वह पिघल के पानी न बनती और इकठ्ठा हो कर वह इन महान नदियों की जगह न ले पाती। इसीलिए लेखक ने कहा है कि सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं में कुछ भी नहीं हैं , सब हिमालय की देन है। लेखक के अनुसार जिन लोगों ने इन नदियों को केवल मैदानों में देखा है उन्होंने इनका केवल उग्र व् भयानक रूप ही देखा है उनके अनुसार ये नदियाँ जहाँ भी जाती होंगी वहाँ केवल उग्र व् भयानक रूप में ही रहती होंगी परन्तु जब लेखक ने इन नदियों को इनके जन्म स्थल यानि हिमालय पर देखा तो पाया कि वहाँ पर तो इन नदियों का स्वरूप बिलकुल अलग है। वहाँ पर तो ये नदियां ऐसे खेलती हैं जैसे बेटियाँ अपने पिता की गोद में खेलती हैं। लेखक आगे कहता है कि पहाड़ के लोग हमेशा से इन नदियों के इस चंचल और नटखट रूप को देखते आए है इस कारण लेखक को लगता है कि किसी भी पहाड़ी व्यक्ति को इन नदियों का यह रूप उतना सुंदर नहीं लगा होगा जितना लेखक को। तभी तो लेखक ने इन नदियों को हिमालय की बेटियाँ और समुद्र में इन नदियों के मिल जाने के कारण समुद्र को हिमालय का दामाद कह दिया है। लेखक को इन चंचल नदियों को देखकर अचानक याद आया कि शायद महाकवि यानि कालिदास जी को भी नदियों का चेतन रूप पसंद आ गया होगा था। तभी उन्होंने भी इन नदियों का एक प्रेमिका के तौर पर मानवीकरण किया था। लेखक कहता है कि जो भी व्यक्ति इन नदियों को पहाड़ी घाटियों में और समतल आँगनों के मैदानों में देखेगा वह इनकी मैदानों की भयानकता को बिलकुल भूल जाएगा और पहाड़ों में इनकी चंचलता और सुंदरता को देख कर इनकी प्रशंसा करने से अपने आप को रोक नहीं पाएगा। लेखक कहता है कि काका कालेलकर जी ने भी नदियों को सारे संसार की माता कहा है। क्योंकि वह सारे संसार का समान भाव से पोषण करती है। परन्तु लेखक कहता है कि माता बनने से पहले अगर हम इन नदियों को बेटियों के रूप में देख लें तो उसमे क्या नुक़सान है , क्योंकि लेखक के अनुसार माता से पहले बेटी बुलाने में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होनी चाहिए और लेखक यह भी कहता है कि बेटी के बाद आगे चल कर इन्हीं में अगर हम किसी की प्रेमिका का वर्णन करे या प्रमिका की भावना को इन नदियों में देखें तो भी किसी को कोई हानि नहीं होनी चाहिए। माता के आलावा ममता का एक और भी धागा है , जिसे हम इन नदियों के साथ जोड़ सकते हैं। वह घागा है बहन का। लेखक के अनुसार न जाने कितने कवियों ने इन नदियों को माता , प्रेमिका के आलावा बहन का भी स्थान दिया है। लेखक अपने एक अनुभव को हमें बताते हुए कहता है कि एक दिन लेखक को भी नदी के लिए बहन की भावना उजागर हुई थी। लेखक बताता है कि यह बात थो – लिङ् , जो तिब्बत में है वहाँ की है। उस दिन लेखक का मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था , लेखक की तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी। लेखक सतलुज नदी के किनारे जाकर बैठ गया। उस समय दोपहर का समय था। लेखक ने अपने पैर सतलुज नदी के पानी में लटका दिए। लेखक कहता है कि थोड़ी ही देर में उस लगातार आगे बढ़ने वाले जल ने अपना असर डालना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में लेखक को लगा कि उसका तन और मन ताज़ा हो गया है। इसी की ख़ुशी में लेखक एक गाना भी गुनगुनाने लगा था – कि सतलुज बहन तुम्हारी जय हो , सतलुज बहन तुम्हारी लीला बहुत अनोखी है क्योंकि तुम सारी पीड़ाओं का नाश करने वाली हो। तुम्हें देख कर मन प्रसन्न हो जाता है और सारा आलस दूर भाग जाता है। तुम पर न्योछावर हो जाने को मन करता है। वह हिमालय तुम्हारा पिता है और तुम उसकी बेटी हो क्योंकि तुम्हारा उद्गम हिमालय से हुआ है। हिमालय तुम्हारे लिए उसी तरह चिंतित है जैसे कोई भी अन्य पिता अपनी बेटी के लिए होता है परन्तु वह हिमालय चुप – चाप खड़ा है। लेखक प्रकृति को एक अभिनेत्री बताता है और सतलुज नदी को उस अभिनेत्री के वस्त्र पर छापे हुए चित्र के समान बताता है। वह हिमालय अनोखा और सबसे उत्तम है , उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता और उस बेजोड़ हिमालय से उत्पन्न बहन सतलुज तुम्हारी जय हो। पाठ व्याख्या ( हिमालय की बेटियाँ )अभी तक मैंने उन्हें दूर से देखा था। बड़ी गंभीर , शांत , अपने आप में खोई हुई लगती थीं। संभ्रांत महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं। उनके प्रति मेरे दिल में आदर और श्रद्धा के भाव थे। माँ और दादी , मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में डुबकियाँ लगाया करता। परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं। मैं हैरान था कि यही दुबली – पतली गंगा , यही यमुना , यही सतलुज समतल मैदानों में उतरकर विशाल कैसे हो जाती हैं ! इनका उछलना और कूदना , खिलखिलाकर लगातार हँसते
जाना , इनकी यह भाव – भंगी , इनका यह उल्लास कहाँ गायब हो जाता है मैदान में जाकर ? किसी लड़की को जब मैं देखता हूँ , किसी कली पर जब मेरा ध्यान अटक जाता है , तब भी इतना कौतूहल और विस्मय नहीं होता , जितना कि इन बेटियों की बाललीला देखकर ! कहाँ ये भागी जा रही हैं ? वह कौन लक्ष्य है जिसने इन्हें बेचैन कर रखा है ? अपने महान पिता का विराट प्रेम पाकर भी अगर इनका हृदय अतृप्त ही है तो वह कौन होगा जो
इनकी प्यास मिटा सकेगा ! बरफ जली नंगी पहाड़ियाँ , छोटे – छोटे पौधों से भरी घाटियाँ , बंधुर अधित्यकाएँ , सरसब्ज उपत्यकाएँ – ऐसा है इनका लीला निकेतन ! खेलते – खेलते जब ये जरा दूर निकल जाती हैं तो देवदार , चीड़ , सरो , चिनार , सफेदा , कैल के जंगलों में पहुँचकर शायद इन्हें बीती बातें याद करने का मौका मिल जाता होगा। कौन जाने , बुड्ढा हिमालय अपनी इन नटखट बेटियों के लिए कितना सिर धुनता होगा ! बड़ी – बड़ी चोटियों से जाकर पूछिए तो उत्तर में विराट मौन के सिवाय उनके पास और रखा ही क्या है ? सिंधु और ब्रह्मपुत्र – ये दो ऐसे नाम हैं जिनके सुनते
ही रावी , सतलुज , व्यास , चनाब , झेलम , काबुल ( कुभा ) , कपिशा , गंगा , यमुना , सरयू , गंडक , कोसी आदि हिमालय की छोटी – बड़ी सभी बेटियाँ आँखों के सामने नाचने लगती हैं। वास्तव में सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं कुछ नहीं हैं। दयालु हिमालय के पिघले हुए दिल की एक – एक बूँद न जाने कब से इकठ्ठा हो – होकर इन दो महानदों के रूप में समुद्र की ओर प्रवाहित होती रही है। कितना सौभाग्यशाली है वह समुद्र जिसे पर्वतराज हिमालय की इन दो बेटियों का हाथ पकड़ने का श्रेय मिला ! कालिदास के विरही यक्ष ने अपने मेघदूत से कहा था – वेत्रवती ( बेतवा ) नदी को प्रेम का प्रतिदान देते जाना , तुम्हारी वह प्रेयसी तुम्हें पाकर अवश्य ही प्रसन्न होगी। यह बात इन चंचल नदियों को देखकर मुझे अचानक याद आ गई और सोचा कि शायद उस महाकवि को भी नदियों का सचेतन रूपक पसंद था। दरअसल जो भी कोई नदियों को पहाड़ी घाटियों और समतल आँगनों के मैदानों में जुदा – जुदा शक्लों में
देखेगा , वह इसी नतीजे पर पहुँचेगा। काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है। किन्तु माता बनने से पहले यदि हम इन्हें बेटियों के रूप में देख लें तो क्या हर्ज है ? और थोड़ा आगे चलिए… इन्हीं में अगर हम प्रेयसी की भावना करें तो कैसा रहेगा ? ममता का एक और भी धागा है , जिसे हम इनके साथ जोड़ सकते हैं। बहन का स्थान कितने कवियों ने इन नदियों को दिया है। एक दिन मेरी भी
ऐसी भावना हुई थी। थो – लिङ् ( तिब्बत ) की बात है। मन उचट गया था , तबीयत ढीली थी। सतलज के किनारे जाकर बैठ गया। दोपहर का समय था। पैर लटका दिए पानी में। थोड़ी ही देर में उस प्रगतिशील जल ने असर डाला। तन और मन ताज़ा हो गया तो लगा मैं गुनगुनाने – हिमालय की बेटियाँ – प्रश्न – अभ्यासप्रश्न 1 – नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं ? प्रश्न 2 – सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं ? प्रश्न 3 – काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है ? प्रश्न 4 – हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन – किन की प्रशंसा की है ? हिमालय की बेटी के पाठ के लेखक कौन है?हिमालय की बेटियाँ वसंत भाग - 1 (Summary of Himalaya ki Betiyan Vasant) यह पाठ लेखक नागार्जुन ने लिखा है जिसमें उन्होंने हिमालय और उससे निकलने वाली नदियों के बारे में बताया है| हिमालय से बहने वाली गंगा, यमुना, सतलुज आदि नदियाँ दूर से लेखक को शांत, गंभीर दिखाई देती थीं| लेखक के मन में इनके प्रति श्रद्धा के भाव थे।
हिमालय पाठ के लेखक का क्या नाम है?प्रस्तुत पाठ ” हिमालय की बेटियाँ ” में लेखक ” नागार्जुन ” ने गंगा , यमुना और सतलुज नदियों का बहुत ही अद्भुत मानवीयकरण किया है।
हिमालय की बेटी का नाम क्या है?- सिंधु और ब्रह्मपुत्र - ये दो ऐसे नाम हैं जिनके सुनते ही रावी, सतलुज, व्यास, चनाब, झेलम, काबुल (कुभा), कपिशा, गंगा, यमुना, सरयू, गंडक, कोसी आदि हिमालय की छोटी-बड़ी सभी बेटियाँ आँखों के सामने नाचने लगती हैं। वास्तव में सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं कुछ नहीं हैं।
हिमालय की बेटियां कौन सी विधा है?NCERT Solutions for Class Hindi CBSE Chapter 3: Himalaya Ki Betiyan | TopperLearning.
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