हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता में पक्षी क्यों व्यथित हैं *? - ham panchhee unmukt gagan ke kavita mein pakshee kyon vyathit hain *?

CBSE Class 7 Saaransh Lekhan Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke

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सारांश

कवि शिवमंगल सिंह सुमन ने हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता में पक्षियों के माध्यम से स्वतंत्रता का जीवन में क्या महत्त्व होता है यह समझाने का प्रयास किया है।
कविता में पक्षी कहते हैं कि हम खुले आसमान में घूमने वाले प्राणी हैं, हमें पिंजरे में बंद कर देने पर हम अपने सुरीले गीत नहीं गा पाएँगे।
हमें सोने के पिंजरे में भी मत रखना, क्योंकि हमारे पंख पिंजरे से टकराकर टूट जाएँगे और हमारा जीवन बर्बाद हो जाएगा। हम स्वतंत्र होकर नदी-झरनों का जल पीते हैं, पिंजरे में हम भला क्या खा-पी पाएँगे। हमें गुलामी में सोने के कटोरे में मिले मैदे से ज्यादा, स्वतंत्र होकर कड़वी निबौरी खाना पसंद है।
आगे कविता में पंछी कहते हैं कि पिंजरे में बंद होकर तो पेड़ों की ऊँची टहनियों पर झूला झूलना अब एक सपना मात्र बन गया है। हम आकाश में उड़कर इसकी हदों तक पहुँचना चाहते थे। हमें आकाश में ही जीना-मरना है।
अंत में पक्षी कहते हैं कि तुम चाहे हमारे घोंसले और आश्रय उजाड़ दो। मगर, हमसे उड़ने की आज़ादी मत छीनो, यही तो हमारा जीवन है।

भावार्थ
1. हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएँगे।

नए शब्द/कठिन शब्द
उन्मुक्त- खुला,बंधनरहित
गगन-आसमान
पिंजरबद्ध- पिंजरे में बंद
कनक-सोना,स्वर्ण
पुलकित- प्रसन्नता से भरे

भावार्थ- कविता की इन पंक्तियों में पंछियों की स्वतंत्र होने की चाह को दर्शाया है। इन पंक्तियों में पक्षी मनुष्यों से कहते हैं कि हम खुले आकाश में उड़ने वाले प्राणी हैं, हम पिंजरे में बंद होकर खुशी के गीत नहीं गा पाएँगे। आप भले ही हमें सोने से बने पिंजरे में रखो, मगर उसकी सलाख़ों से टकरा कर हमारे कोमल पंख टूट जाएँगे।


2. हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,

नए शब्द/कठिन शब्द
कटुक- कड़वी
निबोरी- नीम का फल
कनक-कटोरी- सोने से बना हुआ बर्तन

भावार्थ- आगे पक्षी कह रहे हैं कि हम तो बहते झरनों-नदियों का जल पीते हैं। पिंजरे में रहकर हमें कुछ भी खाना-पीना अच्छा नहीं लगेगा। चाहे आप हमें सोने की कटोरी में स्वादिष्ट पकवान लाकर दो, हमें तब भी अपने घोंसले वाले नीम की निबौरी ज्यादा पसंद आएगी। पिंजरे में हम कुछ भी नहीं खाएँगे और भूखे-प्यासे मर जाएँगे।


3. स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।

नए शब्द/कठिन शब्द
स्वर्ण-सोना
श्रृंखला- जंजीरें
तरु- पेड़
फुनगी- वृक्ष का सबसे ऊपरी भाग
भावार्थ- कवि शिवमंगल सिंह जी ने हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता की इन पंक्तियों में पिंजरे में बंद पक्षियों का दुख-दर्द दिखाया है। पिंजरे में बंद रहते-रहते बेचारे पक्षी अपनी उड़ने की सब कलाएँ और तेज़ उड़ना भूल चुके हैं। कभी वो बादलों में उड़ा करते थे, पेड़ों की ऊँची टहनियों पर बैठ करते थे। अब तो उन्हें बस सपने में ही पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर बैठना नसीब होता है।


4. ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
अरमान-इच्छा
तारक- तारे
भावार्थ- पंछियों के मन में यह इच्छा थी कि वो उड़कर आसमान की सभी सीमाओं को पार कर जाएँ और अपनी लाल चोंच से सितारों को दानों की तरह चुनें। मगर, इस गुलामी भरी ज़िंदगी ने उनके सभी सपनों को चूर-चूर कर दिया है। अब तो पिंजरे में कैद होकर रह गए हैं और बिल्कुल खुश नहीं हैं।


5. होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।

नए शब्द/कठिन शब्द
सीमाहीन- असीमित
क्षितिज- जहाँ धरती और आसमान परस्पर मिलते हुए प्रतीत होते हैं
होड़ाहोड़ी- आगव बढ़ने की प्रतियोगिता
भावार्थ- कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने हम पँछी उन्मुक्त गगन के कविता की आखिरी पंक्तियों में पक्षियों की स्वतंत्र होकर उड़ने की इच्छा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।
इन पंक्तियों में पक्षी कहते हैं कि अगर हम आजाद होते तो उड़कर इस आसमान की सीमा को ढूँढ़ने निकल जाते। अपनी इस कोशिश में हम या तो आसमान को पार कर लेते, तो फिर अपनी जान गंवा देते। पक्षियों की इन बातों से हमें पता चलता है कि उन्हें अपनी आज़ादी कितनी प्यारी है।


6. नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।
भावार्थ- हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता की आखिरी पंक्तियों में मनुष्यों से उन्हें स्वतंत्र कर देने की विनती की है। वो मनुष्यों से कहते हैं कि आप हमसे हमारा घोंसला छीन लो, हमें आश्रय देने वाली टहनियाँ छीन लो, हमारे घर नष्ट कर दो, लेकिन जब भगवान ने हमें पंख दिए हैं, तो हमसे उड़ने का अधिकार ना छीनो। कृपया हमें इस अंतहीन आकाश में उड़ने के लिए स्वतंत्र छोड़ दो।

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हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी पंछी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है।

म पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के

पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,

कनक-तीलियों से टकराकर

पुलकित पंख टूट जाऍंगे।

हम बहता जल पीनेवाले

मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे,

कहीं भली है कटुक निबोरी

कनक-कटोरी की मैदा से,

व्याख्या - हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी पंछी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। कविता में पंछी अपनी व्यथा का वर्णन करता हुआ कहता है कि हम पंछी स्वतंत्र आकाश में उड़ने वाले हैं। अपना गान हम पिंजरों में गा नहीं पायेंगे। पिंजड़ा भले ही सोना का बना हो ,हमारे आकाश में उड़ने वाले पंख इससे टकराकर टूट जायेंगे। हम बहता हुआ पानी अर्थात नदियों का पानी पीने वाले हैं। हमारे लिए सोने की कटोरी में रखी हुई मैदा से कहीं भली नीम की कड़वी निबोरी है। हम भूखें प्यासे मर जाना पसंद करेंगे न कि पिंजड़े का गुलामी जीवन जीना। 

स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में

अपनी गति, उड़ान सब भूले,

बस सपनों में देख रहे हैं

तरू की फुनगी पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते

नील गगन की सीमा पाने,

लाल किरण-सी चोंचखोल

चुगते तारक-अनार के दाने।

व्याख्या -कविता में पंछी कहते हैं कि हमें सोने के पिंजड़े में बंद कर दिया गया है। इससे हम अपनी गति उडान ,सब कुछ भूल गए हैं।सपने में हम देखते हैं कि पेड़ों की ऊँची डालियों में हम झूल रहे हैं। पिंजड़ों की कैद में आने से पहले हम सोचते थे कि नीले आसमान की सीमा को नाप लेंगे। अपनी सूरज की जैसी लाल चोंच से तारों को जो अनार के दाने जैसे हैं ,उन्हें चुग लेते। यह सब मात्र कल्पना है ,क्योंकि हम पिंजरों के बंधन में कैद है।

होती सीमाहीन क्षितिज से

इन पंखों की होड़ा-होड़ी,

या तो क्षितिज मिलन बन जाता

या तनती साँसों की डोरी।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का

आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,

लेकिन पंख दिए हैं, तो

आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।

व्याख्या -कविता में पंछी कहते हैं कि यदि हम आजाद होते तो सीमाहीन आकाश की सीमा को पार कर लेते। हमारे पंखों की उड़ान से आकाश की क्षितिज की प्रतिस्पर्धा होती।इस प्रतिस्पर्धा में हम आकाश की ऊँचाईयों को माप पाते या हमारे प्राण पंखेरू उड़ जाते।पंछी कहते हैं कि हमें भले ही रहने का स्थान न दो ,हमारे घोसलों को नष्ट कर डालो। किन्तु हम पंछी हैं। उड़ना ही हमारा काम है। अतः हमारे नैसर्गिक अधिकार अर्थात उड़ने में बंधन मत बांधों।

हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता का मूल भाव /सारांश 

हम पंछी उन्मुक्त गगन में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पंछियो के माध्यम से आजादी और उसके मूल्य का अर्थ बताया है।सोने के पिंजरे और सोने की कटोरी में मैदा खाने से जीवन का अभिप्राय सफल नहीं होता है। पराधीन व्यक्ति सिर्फ सपने देख सकता है। वह स्वतंत्र रूप में विचरण नहीं कर सकता है। कविता के प्रारंभ में ही पंछी आकाश में स्वतंत्र रूप से विचरण करने की कामना करते हैं। उनके पुलकित पंख सोने के पिंजरों की तीलियों से टकराकर टूट जायेंगे।पंछी उन्मुक्त विचरण करने वाले होते हैं।वह नदियों ,झरने का पानी पीने वाले हैं। वे भले ही भूखे प्यासे मर जायेंगे ,उनके लिए नीम की कड़वी निबोरी ही अधिक प्यारी हैं। सोने की कटोरी  में मैदा सिर्फ गुलामी है। पंछी पिंजरे की गुलामी के कारण अपना प्राकृतिक उड़ान सब भूल गए हैं ,वे सिर्फ सपने में पेड़ों की डालियों में झूलते हैं।

पंछियों के आकाश में उड़ने के अरमान थे। वे आकाश की सीमा के नापने वाले हैं। अपने सूरज जैसी लाल चोंच से अनार के दाने यानी तारों को चुग लेते। अपने पंखों को फैला कर वे आकाश की अंतहीन सीमा को भी पार कर लेते। पंछी अपने आश्रय के प्रति भी लालायित नहीं हैं। वे आकाश में उड़ना चाहते हैं। कोई उनकी आकाश में उड़ने की आजादी में विघ्न न डाले। 

हम पंछी उन्मुक्त गगन के प्रश्न अभ्यास कविता से 

प्र.१. हर तरह की सुख सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद क्यों नही रहना चाहते?

उ. पंछी को स्वतंत्रता प्यारी है। वह पिंजरे में कैद होकर सोने की कटोरी को मैदा खाने की अपेक्षा कड़वी निबोरी खाना ही पसंद करता है। वह जीवन के अभावों में रहना पसंद करेगा न की बंधन में रहना।यदि कारण है कि वह सुख सुविधाएं पाकर अपनी स्वतंत्रता के बदले में पिंजरे में कैद होना नहीं चाहता है। 

प्र.२. हर तरह की सुख सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद क्यों नही रहना चाहते?

उ. पंछी स्वतंत्र रहकर आकाश में उड़ना चाहता है। वह नीला आसमान की सीमा को नापना चाहता है। अपनी सूरज जैसी लाल चोंच से अनार के दाने अर्थात तारों को चुगना चाहता है। वह स्वतंत्र रहकर नदियों झरनों को जल पिएगा। आकाश की अंतहीन सीमा को मापेगा और वृक्षों की डालियों पर बैठकर झुला करेगा। 

प्र.३. भाव स्पष्ट कीजिए-

या तो क्षितिज मिलन बन जाता/या तनती साँसों की डोरी।

उ. पंछी आकाश की अंतहीन सीमा तक पहुंचना चाहते हैं।उनका प्रण है कि आकाश की सीमा तक पहुँच जायेंगे। या तो वे अंतहीन आकाश की ऊंचाईयों को माप लेंगे या अपने प्राण त्याग देंगे। पंछी आकाश से प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं। 

#Hindi #Class7  

पंछी उन्मुक्त गगन के कविता में पक्षी क्यों व्यथित हैं?

कवि 'शिवमंगल सिंह सुमन' ने अपनी कविता 'हम पंछी उन्मुक्त गगन के' में आज़ादी के महत्त्व के बारे में बताया है। इसे कवि ने पिंजरे में बंद पक्षियों के माध्यम से दर्शाना चाहा है। पक्षी अपनी व्यथा इस प्रकार प्रकट करते हैं- हम खुले आकाश में विचरण करने वाले पक्षी हैं

हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता में पक्षी क्या चाहते है?

उत्तर : पक्षी उन्मुक्त रहकर बहता जल पीना चाहते हैं , पेड़ के फल खाना चाहते हैं , पेड़ों की टहनियों पर बैठना चाहते हैं , अपने पंखों की झूलों पर झूलना चाहते हैं , सीमाहीन क्षितिज को छूना चाहते हैं , अनार के दाने खाना चाहते हैं।

पक्षी क्यों व्यथित हैं * 1 Point?

Answer: क्योंकि वे बंधन में हैं। वे आसमान की ऊँचाइयाँ छूने में असमर्थ हैं। वे अनार के दानों रूपी तारों को चुगने में असमर्थ हैं

हम पंछी उन्मुक्त गगन के इस कविता से हमें क्या संदेश मिलता है?

'हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता के माध्यम से कवि हमें क्या सन्देश देना चाहता है? Solution : इस कविता के माध्यम से कवि हमें संदेश देना चाहता है कि हमें परतंत्रता किसी भी कीमत पर पसन्द नहीं है । यदि किसी कारण परतंत्रता की बेड़ियाँ पड़ भी जाएँ तो हमें स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु निरन्तर प्रयास करना चाहिए।