(मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-2; विषय- महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।) Show संदर्भ हाल ही में, गुट-निरपेक्ष आंदोलन की स्थापना के 60 वर्ष पूर्ण हुए हैं तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती भी मनाई गई, जिन्होंने इस आंदोलन के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस अवसर पर गुट-निरपेक्ष आंदोलन के मद्देनज़र विश्व राजनीति में नेहरू के योगदान का विश्लेषण किया गया। यदि ऐतिहासिक घटनाओं का गहराई से परीक्षण करें तो गुट-निरपेक्ष की अवधारणा की शुरुआत वर्ष 1814-15 की ‘वियना कॉन्ग्रेस’ से मानी जा सकती है। वस्तुतः इस दौरान विभिन्न देशों के आपसी संघर्ष से स्विट्ज़रलैंड को तटस्थ रहने की अनुमति प्रदान की गई थी। पृष्ठभूमि
गुट-निरपेक्ष आंदोलन (Non-Alignment Movement – NAM)
गुट-निरपेक्ष आंदोलन की सीमाएँ
विभिन्न संगठनों का जीवनकाल
Gutnirpeksh Andolan Ki प्रासंगिकताPradeep Chawla on 11-10-2018 यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मजबूती लेन हेतु कृतसंकल्प गुटनिरपेक्षता की नीति का मूलतः भारत की देन है। अंतरिम प्रधानमंत्री का भार संभालने के तुरंत बाद प. जवाहर लाल नेहरू ने जिस विदेश नीति की घोषणा की थी वही आगे चलकर गुटनिरपेक्षता की अवधारणा के रूप में विकसित हो गई। यह अवधारणा प्रत्यक्षतः शीत युद्ध से संबंधित है। वस्तुतः शीत युद्ध उस तनाव की स्थिति का नाम है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच उत्पन्न हो गयी थी। ये दोनों देश 1939 से 1945 के महायुद्ध में मित्र राष्ट्रों के रूप में भागीदार थे। परिणामतः युद्ध के दौरान जो विद्वेष धीरे धीरे पनप रहा था वह अब खुलकर सामने आ गया था। ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ तथा अन्य मित्र राज्यों की युद्ध में स्पष्ट विजय हुई। भले ही मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी, इटली और जापान को पराजित किया हो परंतु वें वैचारिक मतभेद स्थायी रूप से भुला नही पाए थे। शीत युद्ध इन्ही मतभेदों का परिणाम था। यह एक अनोखा युद्ध था जिसे दो विरोधी गुटों के राजनयिक रूप से लड़ा गया। विश्व के देश दो निम्न गुटों में बंट गए थे :- (1) अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी गुट या पश्चिमी गुट या लोकतांत्रिक गुट (2) सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी गुट या समाजवादी गुट या सोवियत गट जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, गुटनिरपेक्षता की नीति का उद्देश्य गुटों की राजनीति से दूर रहना दोंनो गुटों के साथ मैत्री रखना, किसी के साथ भी सैनिक संधिया न करना और एक स्वतंत्र विदेश नीति का विकास करना था। प. नेहरू ने 7 सितंबर 1946 को कहा था कि- ” हम अपनी इच्छा से इतिहास का निर्माण करेंगे।” उन्होंने आगे यह भी कहा था कि हमारा प्रस्ताव है कि जहां तक संभव होगा हम समुहों की ‘शक्ति राजनीति’ से दूर रहेंगें। क्योंकि इस प्रकार की गुटबन्दी से पहले दो विश्व युद्ध हो चुके है और यह हो सकता है कि एक बार फिर अधिक भयंकर दुर्घटना हो जाये। भारत ऐसी किसी भी घटना के प्रति सचेत था एवं किसी भी प्रकार का कोई युद्ध नही चाहता था। 1947 में नेहरू ने अपनी बात दोहराते हुए कहा था कि भारत किसी भी शक्ति गुट में शामिल नही है। भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति को एक सकारात्मक तटस्थता कहा जा सकता है। ओस व्यवस्था के अंतर्गत देश स्वतंत्रत रूप से कार्य करता है और प्रत्येक प्रश्न पर गन दोष के आधार पर ही किसी नतीजे पर पहुँचता है। गुटनिरपेक्षता अंतराष्ट्रीय राजनीति की एक ऐसी घटना है जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद घटी। आज की तिथि में गुटनिरपेक्षता की प्रकृति निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाती है। अंतराष्ट्रीय संबंधो के संचालन में और विशेषकर दो महाशक्ति के प्रति अपनाई गई नीतियों के परिप्रेक्ष्य में पूरी तरह स्वतंत्र होना गुटनिरपेक्षता की अभिव्यक्ति करता है। कोई भी गुटनिरपेक्ष देश अपनी नीतियाँ बनाने और कार्य विधि तय करने के लिए स्वतंत्र होता हैं। इस नीति से अंतरराष्ट्रीय शांति सुरक्षा और सहयोग को प्रोत्साहन मिलता है। गुटनिरपेक्षता के लिए असंलग्नता शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। क्योंकि कोई भी गुटनिरपेक्ष देश किसी महाशक्ति के साथ स्थायी रूप से नही जुड़ा था। गुटनिरपेक्षता की अवधारणा इतनी मूल्यवान हो गई की जो भी देश इस काल में स्वतंत्र हुए उन्होंने अपनी राजनीतिक स्वतन्त्रता की रक्षा और आर्थिक विकास के लिए गुटनिरपेक्ष का मार्ग ही चुना। साथ ही गुटनिरपेक्षता भारत की विदेश नीति का तर्कसंगत सिद्धांत बन गया था। जिसने जनमानस में गौरव की भावना विकसित की और देश की एकता का निर्माण करने में सहायता की। आंदोलन की पृष्ठभूमि:- इस नीति को आंदोलन के रूप में स्वीकृति मिलना कोई आश्चर्यजनक घटना नही थी। गुटनिरपेक्ष आंदोलन को 1961 में भारत की पहल पर शुरू किया गया और औपचारिक रूप से गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सुभारम्भ भारत के प्रधानमंत्री प. नेहरू युगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो और मिश्र के राष्ट्रपति नासिर ने किया। बेलग्रेड में गुटनिरपेक्ष के फके सम्मेलन में 25 देशों ने भाग लिया। इसके अध्यक्ष मार्शल टीटो थे। किस देश को आमंत्रित करने है और किसको नही इसका निर्णय पंडित नेहरू, नासिर एवं टीटो ने सामुहिक रूप से लिया था। प्रथम शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाँच मानदण्ड निर्धारित किये गए थे:- 1. संबद्ध देश गुटनिरपेक्षता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की विदेश नीति पर स्वतन्त्र आचरण करता हो। 2. संबद्ध देश उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरोध करता हो। 3. सम्बद्ध देश शीत युद्ध से संबंधित न हो। 4. संबद्ध देश ने किसी महाशक्ति के साथ कोई द्विपक्षीय संधि न कि हो। 5. उस देश की भूमि पर कोई भी विदेशी सैनिक अड्डा स्थापित न किया गया हो। आरम्भ में गुटनिरपेक्ष आंदोलन पच्चीस देशों ने शुरू किया था। कालांतर में इसके विकास क्रम में कई परिवर्तन आये है। समय समय पर इसके शिखर सम्मेलन होते है, जिनमे अंतरष्ट्रीय राजनीति से जुड़े ज्वलंत प्रश्नों पर विचार किया जाता है और यह प्रयत्न किया जाता है कि आंदोलन के सभी देश एक समान दृष्टिकोण अपनाएं। हालाँकि यह कार्य कठिन हो गया है क्योंकि सदस्य देशों की संख्या बढ़ने से आम सहमति का निर्णय प्रायः जटिल होता है। फिर भी गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सफलता आज भी अंतरास्ट्रीय संबंधों में एक नया आयाम जोड़ती है सम्बन्धित प्रश्नComments Laxita on 26-06-2022 Gut nirpeksh ma kahi 5 baate baataye शिव on 25-03-2021 गुटनिरपेक्षता निती के प्रासंगिक और अप्रासंगिक होने के कारण Rashida on 08-01-2021 Uttar se dudh kal mein good nirpeksh andolan ki prasangikta batao Pratima on 04-10-2020 Gutnirpeksh andoln ki prasangikta Ki vivechna kijiye Garima singh on 14-02-2020 Nirgut andolan ki prasgitiyo ko sapast kre aur sityudh ke smapti ki bad vartman me iski auchity ko spast kre Apoorva on 12-05-2019 Kin 3 netao ne gutnirpeksh andolan ko shuru kiya Dev on 12-05-2019 Gutnirpeksh Andolan sa kaya Samantha haa present ma ish Angolan ki kaya prasinta haa? Manisha on 12-05-2019 Why non alien movement is important in todays world . comment nd give reason why ? गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता क्या है?गुटनिरपेक्षता शीत युद्ध के दौरान उत्पन्न नाटो, सीटो एवं वार्सा समझौतों का विरोध करती है। गुटनिरपेक्षता की नीति का मानना है कि सैनिक गठबन्धन साम्राज्यवाद, युद्ध तथा नव-उपनिवेशवाद को बढ़ावा हैं। ये शीत युद्ध या अन्य तनावों को जन्म देते हैं। इन्हीं से विश्व शान्ति भंग होती है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन कब आप प्रासंगिक हो गया है समीक्षा कीजिए?गुटनिरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से निशस्त्रीकरण की आवाज उठाई जा रही है जो गुटनिरपेक्ष देशों को सुरक्षा प्रदान करती है। अधिकतर गुट निरपेक्ष देश विकासशील या अविकसित हैं। सभी की आर्थिक समस्याएं समान है। अतः आपसी सहयोग से ही आर्थिक उन्नति की जा सकती है।
गुटनिरपेक्षता की नीति वर्तमान समय में कितनी प्रासंगिक है?गुटनिरपेक्ष नीति को लाए हुए 55 से भी अधिक वर्ष बीत चुके हैं किंतु अपनी प्रगतिशीलता एवं समतावादी अवधारणा के कारण यह नीति आज भी प्रासंगिक है। वर्तमान समय में अमेरिका तथा चीन विश्व की बड़ी शक्तियों के रूप में उभर रहे हैं और ये अपने हितों के लिये विश्व के देशों को अपने-अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे हैं।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का क्या महत्व है?इस समूह में वर्ष 2018 तक कुल 120 विकासशील देश शामिल थे। इसके अतिरिक्त इस समूह में 17 देशों और 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) ने सदैव एक स्वतंत्र राजनीतिक पथ बनाने का प्रयास किया है, ताकि सदस्य राष्ट्र को दो महाशक्तियों के वैचारिक युद्ध के बीच फँसने से बचाया जा सके।
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