बारिश के दौरान पशुपालक दोहरी चुनौतियों से जूझते हुए दिखाई देते हैं। इसमें एक समस्या पशुपालकों को होती है पशु की उत्पादकता को लेकर और दूसरी होती है पशु से जुड़ी बीमारियों को लेकर। आज हम मानसून में पशुओं को होने वाले ऐसे ही रोग गलघोंटू के बारे में बताने वाले हैं। Show
ये एक संक्रामक रोग है जिसके होने पर पशु की मौत 24 घंटे के अंदर – अंदर हो जाती है। आज हम अपने इस लेख और वीडियो में आपको बताएंगे कि गलघोटू रोग के कारण, लक्षण और उपाय के बारे में जानकारी देंगे। अगर आप मानसून में होने वाले इस गलघोंटू रोग से जुड़ी किसी प्रकार की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख पर अंत तक बने रह सकते हैं। गलघोंटू रोग के कारकगलघोंटू रोग मानसून के दौरान बहुत तेजी से अपने पैर पसारता है। आपको बता दें कि ये रोग पशु को पास्चुरेला मल्टोसिडा नामक जीवाणु की चपेट में आने की वजह से होता है। इस रोग के दौरान पशु के सांस की ऊपर वाली नली बुरी तरह प्रभावित होती है। गलघोंटू रोग के लक्षण क्या हैइस रोग के होने पर पशु के ऊपर इसके कई लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं।
गलघोंटू रोग से पशु को बचाने का तरीकाकहा जाता है न कि किसी भी रोग के उपचार से बेहतर बचाव होता है। ये बात इंसान और पशु दोनों पर ही लागू होती है। ऐसे में अब हम आपको बताते हैं कि पशु को गलघोंटू रोग से बचाए रखने के लिए आपको क्या करना चाहिए।
गलघोटू रोग का उपचार या उपायये एक बेहद संक्रामक रोग है, ऐसे में इस रोग के उपाय करने में जरा भी वक्त गवाना भारी पड़ सकता है। इसलिए कोशिश करें कि रोग के लक्षणों की पहचान होते ही किसी चिकित्सक से सहायता ले। पशु चिकित्सक इस दौरान पशु को एंटीबायोटिक दवा दे सकता है। लेकिन इस रोग से ठीक होने की संभावना तब भी बेहद कम है। हमें उम्मीद है कि आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा। अगर आपको ये लेख पसंद आया है तो आप अपने दोस्तों के साथ ये साझा कर सकते हैं। इसके अलावा आप चाहें तो हमारी एनिमॉल ऐप भी डाउनलोड कर सकते हैं। हमारी ऐप को पशुपालन से जुड़ी जानकारी तो मिलती ही है। इसके अलावा आपको पशु खरीदने और बेचने का भी मंच प्रदान किया जाता है। ऐप पर पशु की फोटो और जानकारियां डालकर पशु को बेचा जा सकता है। इसके साथ ही पशु चिकित्सक से भी तत्काल सहायता ली जा सकती है। ऐप को डाउनलोड करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। Galghotu Disease: पशु विशेषज्ञों के अनुसार गलघोंटू बीमारी उन स्थानों पर पशुओं में अधिक होती है जहां बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है. इस रोग के जीवाणु अस्वच्छ स्थान पर रखे जाने वाले पशुओं तथा लंबी यात्रा या अधिक काम करने से थके पशुओं पर शीघ्र आक्रमण करती है. रोग का फैलाव बहुत तेजी से होता है.केंद्र सरकार किसानों की आय में वृद्धि करने के लिए पशुपालन पर फोकस कर रही है. लेकिन, पशुपालन तब अच्छा होगा जब पशु रोगों से मुक्त हों. वरना इसकी सारी कमाई डॉक्टरों के पास ही चली जाएगी. इन दिनों पशुओं में गलघोंटू नामक खतरनाक बीमारी (Hemorrhagic Septicemia) होती है. जिनसे पशुओं को बचाना बहुत जरूरी है. इससे पशु अकाल मौत का शिकार हो जाता है. मानसून के समय यह रोग बहुत तेजी से फैलता है. इस बीमारी से बचाव के लिए सरकार टीकाकरण अभियान चला रही है. देश में हर साल दूध और दूध से बनी चीजों का करीब 8 लाख करोड़ रुपये का कारोबार होता है. ऐसे में समझ सकते हैं कि हमारे लिए पशुपालन कितना महत्वपूर्ण है. पशुओं की देखभाल कितनी जरूरी है. गलाघोंटू रोग (Galghotu Disease) मुख्य तौर से गाय तथा भैंस होता है. यह बीमारी मई-जून में होती है. इसको गलाघोंटू, गलघोंटू और घूरखा आदि नामों से भी जाना जाता है. यह पशुओं में होने वाली छूतदार बीमारी है. यह एक जीवाणु जनित रोग है. आईए जानते हैं कि यह बीमारी कैसे होती है. इसके लक्षण क्या हैं और इसका निदान कैसे होगा. कैसे होती है बीमारीयह बीमारी उन स्थानों पर अधिक होती है जहां बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है. इस रोग के जीवाणु अस्वच्छ स्थान पर रखे जाने वाले पशुओं तथा लंबी यात्रा अथवा अधिक कार्य करने से थके पशुओं पर शीघ्र आक्रमण करते हैं. रोग का फैलाव बहुत तेजी से होता है. राजस्थान पशुपालन (Animal Husbandry) विभाग के मुताबिक रोगी पशुओं के जूठे चारे, दाने एवं पानी के सेवन और रोगी पशुओं के बिछावन के संपर्क में आने से यह रोग होता है. मादा पशु के दूध से भी यह फैलता है. बीमार पशु को सार्वजानिक स्थल जहाँ पशु एकत्र होते हैं वहां न ले जाएँ क्योंकि यह रोग साँस द्वारा तथा साथ-साथ पानी पीने एवं चारा ग्रहण करने से भी फैलता है।और देखें : पशुओं में 'सिस्टायटिस रोग' उपचार
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। गलघोटू का इलाज क्या है?यदि इस बीमारी का पता लगने पर उपचार शीघ्र शुरू किया जाए तो इस जानलेवा रोग से पशुओं को बचाया जा सकता है। एंटी बायोटिक जैसे सल्फाडीमीडीन ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन और क्लोरोम फॉनीकोल एंटी बायोटिक का इस्तेमाल इस रोग से बचाव के साधन हैं। टीकाकरण : वर्ष में दो बार गलघोंटू रोकथाम का टीका अवश्य लगाना चाहिए।
गला घोट बीमारी क्या है?गलाघोंटू (Hemorrhagic Septicemia) रोग मुख्य रूप से गाय तथा भैंस को लगता है। इस रोग को साधारण भाषा में गलघोंटू के अतिरिक्त 'घूरखा', 'घोंटुआ', 'अषढ़िया', 'डकहा' आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग से पशु अकाल मृत्यु का शिकार हो जाता है। यह मानसून के समय व्यापक रूप से फैलता है।
गाय को बुखार आने पर क्या करें?पशुओं को बुखार आने पर
पशु को अधिक से अधिक ताजा पानी पीने को देना चाहिए। मीठा सोडा (सोडियम बाइकार्बोनेट) 15 ग्राम, नौसादर 15 ग्राम, सैलीसिलिक एसिड 15 ग्राम, 500 मिली. पोटैशियम नाइट्रेट, 30 ग्राम चिरायता का महीन चूर्ण और गुड़ 100 ग्राम लगभग 200 ग्राम पानी में घोल कर गाय या भैंस को 8 से 10 घंटे के अंतर पर पिलाना चाहिए।
लंगड़ा बुखार के लक्षण क्या है?रोग के लक्षण
इस रोग में पशु को तेज बुखार आता है तथा उसका तापमान १०६ डिग्री फॉरेनाइट से १०७ फॉरेनाइट तक पहुंच जाता है। पशु सुस्त होकर खाना पीना छोड देता है। पशु के पिछली व अगली टांगों के ऊपरी भाग में भारी सूजन आ जाती है। जिससे पशु लंगड़ा कर चलने लगता है या फिर बैठ जाता है।
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