गजब हो गया।

लगा जैसे जिंदगी के मैं उस पड़ाव में हूं,
मानो कि जैसे बहते नाव में हूं
ना पतवार है न दिख रहा पार है,
सामने दिख रहा मुझे सिर्फ अंधकार है,
मन में है डर बसा, तन में भूचाल है,
मानों आ गया मेरा,जैसे अंतकाल है,
मैंने धैर्य रखी और साहस रखा,
कुछ देर यूहीं नौका पर बैठा रहा,
तभी मुझको दूर कहीं किनारा दिखा,
मानो जैसे डूबते को तिनके सहारा मिला,
तभी लहरे उठी और "गजब" हो गया,
मेरी नाव किनारे की तरफ हो गयी,
हवाओं ने भी मेरा दामन लिया,
नाव को अब किनारे पर ले गया,
हवा ने काम पतवार का किया,
मेरी नाव अब भूतल पर पहुंच ही गयी,
मुझको इससे ये "सबब" हो गया,
चाहे मुश्किल कितनी बड़ी क्यों ना हो,
सामने चाहे दीवार खड़ी क्यों ना हो,
"धैर्य" हो और "सुकर्म" रखो,
जिंदगी का यही "बीजमंत्र" रखो,
"साहस" अगर हो तो "मंजिल" मिलेगी ही,
बस "मुसाफ़िर" रहो और चलते रहो,
बात तो अब सच में गजब हो गई,
मेरी कहानी प्रेरक कविता हो गई,
बात ये सच में गजब हो गई..२

-चंद्रकांत तिवारी
(Student)
B.tech (2nd year)
L.n.c.t. bhopal

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3 years ago