सोयाबीन - गेहूँ फसल प्रणाली में असिंचित/अर्धसिंचित गेहूँ की देरी से बोवाई (प्रचलित किस्में लम्बी अवधि की है) Show प्रचलित किस्मों की कम ‘‘जल उपयोग‘‘ तथा ‘‘पोषक तत्व उपयोग‘‘ क्षमता (ब.) सिंचित क्षेत्रों से सम्बन्धित
प्रदेश में गेहूँ की काश्त का बदलता स्वरूप (अ) पूर्व के वर्षों में असिंचित रकबा अधिक
(ब) सिंचित गेहूँ क्षेत्र में वास्तविक परिदृष्टि में सीमित सिंचाई उपलब्धता
उत्पादन तकनीक खेत की तैयारी
उपयुक्त किस्मों का चयन (अ) मालवा अंचल: रतलाम, मन्दसौर,इन्दौर,उज्जैन,शाजापुर,राजगढ़,सीहोर,धार,देवास तथा गुना का दक्षिणी भागक्षेत्र की औसत वर्षा: 750 से 1250 मि.मी. मिट्टी: भारी काली मिट्टीअसिंचित/अर्धसिंचितसिंचित(समय से)सिंचित(देरी से)जे.डब्ल्यू. 17, जे.डब्ल्यू. 3269, जे.डब्ल्यू. 3288, एच.आई. 1500, एच.आई. 1531, एच.डी. 4672 (कठिया)जे.डब्ल्यू. 1201, जे.डब्ल्यू. 322, जे.डब्ल्यू. 273, एच.आई. 1544, एच.आई. 8498 (कठिया), एम.पी.ओ. 1215जे.डब्ल्यू. 1203, एम.पी. 4010, एच.डी. 2864, एच.आई. 1454 (ब) निमाड अंचल: खण्डवा, खरगोन, धार एवं झाबुआ का भाग जे.डब्ल्यू. 3173, एच.आई. 1500, जे.डब्ल्यू. 3269जे.डब्ल्यू. 1142, जे.डब्ल्यू. 1201, जी.डब्ल्यू. 366, एच.आई. 1418 इस क्षेत्र में देरी से बुआई से बचें समय से बुआई को प्राथमिकता क्योंकि पकने के समय पानी की कमी। (स) विन्ध्य पठार: रायसेन, विदिशा, सागर, गुना का भाग जे.डब्ल्यू. 3173, जे.डब्ल्यू. 3211, जे.डब्ल्यू. 3288, एच.आई. 1531, एच.आई. 8627(कठिया)जे.डब्ल्यू. 1142, जे.डब्ल्यू. 1201, एच.आई. 1544, जी.डब्ल्यू. 273, जे.डब्ल्यू. 1106 (कठिया), एच.आई. 8498 (कठिया), एम.पी.ओ. 1215 (कठिया), जे.डब्ल्यू. 1202, (द) नर्मदा घाटी: जबलपुर, नरसिंहपुर, होषंगाबाद, हरदा जे.डब्ल्यू. 3288, एच.आई. 1531, जे.डब्ल्यू. 3211, एच.डी. 4672 (कठिया)जे.डब्ल्यू. 1142, जी.डब्ल्यू. 322, जे.डब्ल्यू. 1201, एच.आई. 1544, जे.डब्ल्यू. 1106, एच.आई. 8498, जे.डब्ल्यू. 1215 जे.डब्ल्यू. 1202, (य) बैनगंगा घाटी: बालाघाट एवं सिवनी जे.डब्ल्यू. 3211, जे.डब्ल्यू. 3288, एच.आई. 1544,जे.डब्ल्यू. 1201, जी.डब्ल्यू. 366, एच.आई. 1544, राज 3067 जे.डब्ल्यू. 1202, (र) हवेली क्षेत्र: रीवा, जबलपुर का भाग, नरसिंहपुर का भाग जे.डब्ल्यू. 3173, जे.डब्ल्यू. 3269, जे.डब्ल्यू. 17, एच.आई. 1500,जे.डब्ल्यू. 1142, जे.डब्ल्यू. 1201, जे.डब्ल्यू. 1106, जी.डब्ल्यू. 322, एच.आई. 1544, जे.डब्ल्यू. 1202, ल. सतपुड़ा पठार: छिंदवाड़ा एवं बैतूल जे.डब्ल्यू. 3173, जे.डब्ल्यू. 3211, जे.डब्ल्यू. 3288, एच.आई. 1531, एच.आई. 1418, एच.डी. 2864, (व) गिर्द क्षेत्र: ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना एवं दतिया का भाग जे.डब्ल्यू. 3211, जे.डब्ल्यू. 17, एच.आई. 1531, जे.डब्ल्यू. 3269, एच.डी. 4672 एच.आई. 1544, एम.पी. 4010, (ह) बुन्देलखण्ड क्षेत्र: दतिया, शिवपुरी, गुना का भाग टीकमगढ़,छतरपुर एवं पन्ना का भाग जे.डब्ल्यू. 3211, जे.डब्ल्यू. 17, एच.आई. 1500, एच.आई. 153 जे.डब्ल्यू. 1201, एम.पी. 4010, विशेष : सभी क्षेत्रों में अत्यन्त देरी से बुवाई की स्थिति में किस्में: एच.डी. 2404, एम.पी. 1202 जी डब्लू 173 लोक 1 एम पी 4010 एम पी 1202 एम पी 1203 एच डी 2864 मध्य प्रदेश राज्य वर्ष 2003 से कठिया गेहूँ कृषि निर्यात जोन चिन्हित किया गया है। प्रदेश के गेहू उत्पादन में कठिया किस्मों का 8 से 10 प्रतिशत योगदान है। उन्नत कठिया किस्म एच डी 8713 (पूसा मंगल) ,एच आई 8381 (मालवश्री) ,एच आई 8498 (मालवशक्ति) ,एच आई 8663 (पोषण),एम पी ओ 1106 (सुधा),एम पी ओ 1215, एच डी 4672(मालवरत्न) ,एच आई 8627 (मालवर्कीति)जे डब्लू 3211 जे डब्लू 3173 बीज की मात्रा
बीजोपचार
पोषक तत्वों का प्रयोग
80 4020 कि.ग्रा./हे.सिंचाई -
मेड़ - नाली पद्धति
जीरो टिलेज तकनीक:- जीरो टिलेज तकनीक के लाभ :-
फरो इरीगेशन रेज्ड बेड (फर्व) मेड़ पर बुवाई तकनीक:-
मेड़ पर (फर्व) फसल लेने से लाभ
वैष्विक उष्णता
जल तथा पोषक तत्व उपयोग क्षमता
किस्म अवस्था (उपज क्विंटल /हे.) असिंचित एक सिंचाई दो सिंचाई जे.डब्ल्यू. 1718-2030-32 -जे.डब्ल्यू. 302018-2032-3440-42जे.डब्ल्यू. 317318-2034-3640-42जे.डब्ल्यू. 321118-2037-3943-45जे.डब्ल्यू. 326918-2037-3943-45काले गेरूआ के नये प्रभेद का प्रकोप (UG 99)
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा एम पी ओ 1215, एम पी 3336, एम पी 4010 किस्में विकसित की इन किस्मों को ‘‘कीनिया‘‘में परीक्षण किया गया। सभी किस्में भन्ह 99 के प्रतिरोधी एवं अधिक उत्पादन देने की क्षमता है। गुणों का संकलन (Value addition)
ज.ने.कृ.वि.वि. द्वारा विकसित किस्मों में गुणवत्ता का समादेश ट्रेंट किस्म जे.डब्ल्यू1201जे.डब्ल्यू1203जी.डब्ल्यू. 173डी.एल. 788-2 एम.पी.4010प्रोटीन प्रतिशत 12.6413.5012.2012.412.43सेडीमेंटशन वेल्यू4338384041एक्सटेªक्षन रेट70.670.970.469.569.9ग्लूटेन इंडेक्स6352515648बी - केरोटीन3.103.772.192.612.81लोहा (पी.पी.एम.)42.233.937.037.140.5जिंक (पी.पी.एम.)41.935.333.933.634.4मैंग्नीज (पी.पी.एम.)51.949.741.350.843.5म.प्र. का सकारात्मक पक्ष
खरपतवार नियंत्राण खरपतवारों द्वारा 25-35 प्रतिशत तक उपज में कमी आने की संभावना बनी रहती है। यह कमी फसल में खरपतवारों की सघनता पर निर्भर करती है उत्पादन में कमी के अलावा फसल को दिये गये पोषक तत्व, जल, प्रकाश एवं स्थान आदि का उपयोग खरपतवार के पौधों के स्वयं के द्वारा करने के कारण होती है गेहूँ में नीदाँ नियंत्रण उपायों को मुख्यतः तीन विधियों से किया जा सकता है।गेहूँ की फसल में होने वाले खरपतवार मुख्यतः दो भागों में बांटे जाते है।
रासायनिक विधि:- रासायनिक विधि से नींदा तक को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इससे समय की बचत होती है। रूप से भी लाभप्रद रहता है। इस विधि से नींदा नियंत्रण निम्न प्रकार करते हैं -नींदनाशक रसायनों की मात्रा एवं प्रयोग समय:- नींदानाशकखरपतवारदर/हे.प्रयोग का समयपेण्डीमिथेलीन संकरी एवं चौड़ी1.0 किग्रा.बुवाई के तुरन्त बादसल्फोसल्फूरान संकरी एवं चौड़ी33.5 ग्रा.बुवाई के 35 दिन तकमेट्रीब्यूजिन संकरी एवं चौड़ी250 ग्रा.बुवाई के 35 दिन तक2, 4 - डी चौड़ी पत्तिया0.4 - 0.5 किग्रा.बुवाई के 35 दिन तकआइसोप्रोपयूरानसंकर पत्तिया750 ग्रा.बुवाई के 20 दिन तकआइसोप्रोपयूरान +2, 4 - डी चौड़ी पत्तिया एवं संकरी पत्तिया750 ग्रा +750 ग्रा.बुवाई के 35 दिन तकगेहूँ के विपुल उत्पादन के लिए मुख्य आवश्यक बातें:-
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