B.A-I-History-II Show
प्रश्न 19."फ्रांस में राज्यक्रान्ति से पूर्व बौद्धिक क्रान्ति हुई थी।" 1789 ई.की फ्रांसीसी क्रान्ति के सन्दर्भ में इस कथन की विवेचना कीजिए। अथवा "मॉण्टेस्क्यू, रूसो एवं वॉल्टेयर के विचारों ने फ्रांसीसी क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार की।" विवेचना कीजिए।अथवा1789 ई. की फ्रांस की क्रान्ति लाने में दार्शनिकों के योगदान का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।उत्तर-1789 ई. की फ्रांस की राज्यक्रान्ति विश्व के इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना थी। इसके प्रारम्भ होने में अन्य घटकों के साथ-साथ कुछ दार्शनिकों एवं विचारकों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी। 18वीं शताब्दी में अनक दार्शनिकों का उदय हुआ, जिन्होंने अपने विचारों से जनता को उनकेमौलिक अधिकारों के प्रति जाग्रत किया। उनके द्वारा लिखित पुस्तकों एवं लेखों ने तत्कालीन समाज में हलचल उत्पन्न कर दो। इसीलिए कहा जाता है कि "फ्रांस में राज्यक्रान्ति से पूर्व बौद्धिक क्रान्ति हुई थी।" प्रसिद्ध इतिहासकार Chateaubriand ने लिखा है "फ्रांस की राज्यक्रान्ति का उदय बौद्धिक जागरण तथा जनता के कष्टों के मेल के फलस्वरूप हुआ था। बौद्धिक जागरण ने जनता को भौतिक जीवन की कठिनाइयों को समाप्त करने की शक्ति एवं प्रेरणा प्रदान की थी।" बौद्धिक क्रान्ति के सूत्रधार निम्नलिखित दार्शनिक थे (1) मॉण्टेस्क्यू -मॉण्टेस्क्यू का जन्म एक कुलीन परिवार में हुआ था। उसकी गणना उस युग के प्रमुख विचारकों में की जाती है। उसने अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में वकालत का कार्य किया था। इसलिए उसे फ्रांस की प्रशासनिक व्यवस्था तथा उसके दोषों का अच्छा ज्ञान था। वह रोमन कैथोलिक धर्म का समर्थक था। कुलीन वर्ग में जन्म लेने के कारण वह कट्टर राजसत्ता में विश्वास रखता था। उसने अपने जीवन में विभिन्न देशों की यात्रा की थी, जिससे उसे उन देशों की शासन प्रणालियों की पर्याप्त जानकारी थी। वह फ्रांस की शासन व्यवस्था को दोषपूर्ण मानता था, क्योंकि उस समय फ्रांस में राजा की निरंकुशता, स्वेच्छाचारिता, चर्च की अव्यवस्था, सामाजिक असमानता आदि अनेक दोष विद्यमान थे। वह राजा के दैवी अधिकार के सिद्धान्त का कट्टर विरोधी था। 'मॉण्टेस्क्यू ने अपने राजनीतिक विचारों को अपनी पुस्तक 'The Spirit of Laws' में व्यक्त किया। उसने इस पुस्तक के माध्यम से फ्रांस की जनता को एक आदर्श शासन व्यवस्था के लक्षणों तथा देश की तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था के दोषों से अवगत कराया। तत्कालीन राजनीतिक एवं धार्मिक संस्थाओं की कडी आलोचना इस पुस्तक की मुख्य विषय-वस्तु थी। मॉण्टेस्क्यू ने निरंकुश राजसत्ता को जनता के कष्टों का मुख्य कारण मानते हुए अपनी पुस्तक में लिखा था कि सर्वोत्तम शासन वह होता है जिसमें शासन की तीनों शक्तियों (कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका) को स्वतन्त्र रूप से कार्य करने का अवसर प्रदान किया जाता है। उसने शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हुए यह मत प्रकट किया कि राजा का यह कर्त्तव्य है कि वह प्रशासनिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण कर दे। उसने यह चेतावनी भी दी कि उपर्युक्त तीनों शक्तियों पर एक ही व्यक्ति का अधिकार हो जाने से तानाशाही का जन्म होता है तथा साधारण जनता के हितों की सुरक्षा नहीं की जा सकती। अत: तानाशाही और निरंकुशवाद के खतरे को समाप्त करने के लिए प्रशासनिक शक्तियों की स्वतन्त्रता एवं पृथक्करण आवश्यक है। उस समय फ्रांस का सम्पूर्ण शासन सम्राट् लुई सोलहवे में केन्द्रित था। अत: मॉण्टेस्क्यू ने अपने विचारों के द्वारा फ्रांस की जनता प्रत्यक्ष रूप से आह्वान किया कि प्रशासनिक घटकों की स्वतन्त्रता के लिए का को क्रान्ति का मार्ग अपनाना चाहिए, ताकि देश में निरंकुश राजतन्त्र को समाप्त किया जा सके। (2) वॉल्टेयर -वॉल्टेयर अपने समय का महान् लेखक, नाटककार, सालोचक तथा व्यंग्यकार था। उसका जन्म मध्यवर्गीय परिवार में हआ था। उसने अपनी व्यंग्यात्मक शैली में फ्रांस की तत्कालीन राजनीतिक अव्यवस्था, आर्थिक दर्दशा, सामाजिक असमानता, भ्रष्टाचार तथा धार्मिक आडम्बरों पर अनेक लेख लिखे। वह अपने लेखों में तत्कालीन परिस्थितियों का ऐसा कुशल चित्रण करता था कि फ्रांस की सरकार ने चिन्तित होकर उसे बन्दी बना लिया। वॉल्टेयर ने चर्च की अव्यवस्था तथा भ्रष्टाचार पर सबसे अधिक प्रहार किए। वॉल्टेयर व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का कट्टर समर्थक था तथा कार्यों की शुद्धता में विश्वास करता था। उसने जनता को उसके अधिकारों के प्रति सजग करने के लिए 'आत्म-निर्णय के सिद्धान्त' का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त का आशय यह था कि जनता को सरकार के गलत कार्यों एवं नीतियों का विरोध साहस के साथ करना चाहिए। वॉल्टेयर ने अपनी स्पष्ट शैली में अनेकों लेख लिखे, जिनके माध्यम से उसने राजा की निरंकुशता तथा चर्च के भ्रष्टाचार का भण्डाफोड़ किया। इस प्रकार फ्रांस के बौद्धिक जागरण तथा जन-जागृति में वॉल्टेयर के विचारों की सराहनीय भूमिका थी। (3) रूसो -रूसो का जन्म जेनेवा के एक घड़ीसाज के परिवार में हुआ था। सम्भवतः रूसो ही एक ऐसा विचारक था जिसने फ्रांस की क्रान्ति के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया। यद्यपि उसका व्यक्तिगत जीवन दूषित एवं कलंकित था, तथापि उसके राजनीतिक एवं सामाजिक विचारों में मौलिकता थी। वह सच्चे अर्थों में एक युग-प्रवर्तक था। मौलिक विचारों की दृष्टि से वह मॉण्टेस्क्यू व वॉल्टेयर से भी श्रेष्ठ था। मॉण्टेस्क्यू के विचार शुद्ध राजनीतिक थे। वॉल्टेयर तत्कालीन भ्रष्ट एवं दूषित संस्थाओं को समाप्त करना चाहता था। इन सबसे अलग रूसो के मस्तिष्क में एक रचनात्मक तथा मौलिक योजना थी, जिसके द्वारा वह नवीन समाज की रचना करना चाहता था। अपने विचारों के आधार पर रूसो ने 'Social Contract' नामक पुस्तक की रचना की। इस पुस्तक की प्रमुख विशेषता सामाजिक समझौते के सिद्धान्त की व्याख्या थी। इस पुस्तक में रूसो ने समाज की रचना, उत्पत्ति, विकास एवं राजनीतिक घटनाक्रम का बडे रोचक ढंग से वर्णन किया है। इस पुस्तक का प्रथम वाक्य है-"मनुष्य स्वतन्त्र जन्मा है, किन्तु वह सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा हुआ है।" इस पुस्तक में रूसो ने लिखा है कि प्रारम्भ में मनुष्य बिल्कुल स्वतन्त्र था। उस समय 'राजा' शब्द की उत्पत्ति नहीं हुई थी। किन्तु नवीन आविष्कारों तथा सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव-जीवन में भी जटिलता आ गई, जिसे दूर करने के लिए व्यक्तियों ने एक समझौता करके एक व्यक्ति को राजा बना दिया। समझौते की शर्तों के अन्तर्गत राजा ने प्रजा की सम्पत्ति व अधिकारों की सुरक्षा का आश्वासन दिया। रूसो ने आगे लिखा है कि यदि राजा समझौते की शर्तों का उल्लंघन करके निरंकुश बनने का प्रयास करे, तो जनता को यह अधिकार है कि वह उस व्यक्ति को राजा के पद से हटाकर किसी अन्य उपयुक्त व्यक्ति को राजा बना दे। रूसो ने राजा की निरंकुशता तथा दैवी अधिकार के सिद्धान्त का खण्डन किया और जनता की इच्छा को सर्वोपरि बतलाया। इस सिद्धान्त ने फ्रांस की तत्कालीन सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था में उथल-पुथल मचा दी। फलस्वरूप फ्रांस की निराश जनता के हृदय में नवीन आशा और उत्साह का संचार हुआ। इसलिए नेपोलियन ने ठीक ही लिखा है, "यदि रूसो न होता, तो फ्रांस में क्रान्ति न होती।" (4) दिदरो -वैचारिक क्रान्ति के क्षेत्र में दिदरो का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अन्य दार्शनिकों की भाँति वह भी क्रान्तिकारी विचारों का समर्थक था। उसने आलोवेयर की सहायता से 17 भागों का एक विशाल विश्वकोश' सम्पादित किया। इस 'विश्वकोश' में अनेक विषयों के साथ एकतन्त्रात्मक शासन, सामन्त प्रथा, कर पद्धति, अन्धविश्वास, असहिष्णुता, कानून तथा दास प्रथा पर विशद् रूप से विचार किया गया है। उसके विचारों तथा विश्वकोश ने फ्रांस में क्रान्तिकारी भावनाओं को फैलाने में विशेष योगदान दिया। (5) क्वेसने -क्वेसने एक मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुआ था। वह एक. अर्थशास्त्री था और व्यापारियों पर चुंगी लगाने का घोर विरोधी था। उसका मानना था कि कृषि और खाने राष्ट्र की सम्पत्ति होती हैं। व्यापारी केवल उनका विनिमय करते हैं या रूप बदलते हैं। अत: व्यापार तथा उद्योग-धन्धों पर सरकारी नियन्त्रण कम-से-कम होना चाहिए। व्यापार तथा उद्योग-धन्धों को स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिए। उसके इन विचारों का क्रान्ति की प्रगति पर काफी प्रभाव पड़ा। उपर्युक्त सभी दार्शनिक अपने समय के उच्च कोटि के लेखक तथा विचारक थे। अपने क्रान्तिकारी विचारों के कारण इन्हें 'क्रान्ति का अग्रदूत' कहा जाता है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य विचारक भी थे, जिनमें कान्दीलेक, हालवैश, रेनाल, माबली, हेल्वेशियस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इस
प्रकार यह स्पष्ट है कि बौद्धिक क्रान्ति के फलस्वरूप जनता में नवीन आशा, स्फूर्ति, चेतना व जागृति उत्पन्न हुई। इतिहासकार कैटेल्बी के शब्दों में, "फ्रांस की राज्यक्रान्ति को सभी प्रकार के लेखकों ने तैयार किया था। इस युग का साहित्य राज्य को नष्ट करने के लिए उच्च कोटि के गोला-बारूद के समान था।" M. J. P. RAU., B. A. I, History II ,MJPRU STUDYPOINT |