इस पेज पर आप हिंदी व्याकरण के अध्याय छंद की जानकारी को पढ़ेंगे। पिछले पेज पर हमने अलंकार की जानकारी शेयर की है उसे जरूर पढ़े। इस पेज पर आज हम छंद की जानकारी पढ़ेगे। छंद किसे कहते हैवर्णो या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास को छन्द कहाँ जाता हैं। छन्द का सबसे पहले उपयोग ऋग्वेद में मिलता हैं। छंद के अंगछंद के चार अंग है। 1. मात्राह्रस्व स्वर जैसे ‘अ’ की एक मात्रा और दीर्घस्वर की दो मात्राएँ मानी जाती है । यदि ह्रस्व स्वर के बाद संयुक्त वर्ण, अनुस्वार अथवा विसर्ग हो तब ह्रस्व स्वर की दो मात्राएँ मानी जाती है । पाद का अन्तिम ह्रस्व स्वर आवश्यकता पडने पर गुरु मान लिया जाता है। 2. चरण या पादचरण को पाद भी कहते हैं। एक छन्द में प्राय: चार चरण होते हैं। चरण छन्द का चौथा हिस्सा होता है। प्रत्येक पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती हैं। चरण दो प्रकार के होते हैं। चरण या पाद दो प्रकार के होते हैं।
समचरण : दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहते हैं। विषमचरण : पहले और तीसरे चरण को विषम चरण कहते है। 3. वर्ण और मात्रावर्णों के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैंं। वर्ण की दृष्टि से दो प्रकार के होते हैं-
4. यतिकिसी छन्द को पढ़ते समय पाठक जहां रूकता या विराम लेता है, उसे यति कहते हैं। 5. गतिछन्द को पढ़ते समय पाठक एक प्रकार का लय या प्रवाह अनुभव करता है, इसे ही गति कहते है। 6. तुकचरण के अंत में वणोर्ं की आवृत्ति को तुक कहते है। 7. गणवर्णिक छन्दों की गणना ‘गण’ के क्रमानुसार की जाती है। तीन वर्णों का एक गण होता है। गणों की संख्या आठ होती है। जैसे :- यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण और सगण। गणसूत्र-यमाताराजभानसलगा। छन्द के प्रकारछन्द मुख्यतः 4 प्रकार के होते है 1. वार्णिक छन्दवर्णिक छन्द के सभी चरणों में वर्णों की गणना की जाती हैं और इनके चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती हैं इसके साथ लघु और गुरु का क्रम समान रहता हैं। उदाहरण :- प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यार कहाँ हैं। वार्णिक छन्द के 3 प्रकार होते हैं।
2. मात्रिक छन्दमात्रिक छन्द में मात्राओं की गणना की जाती हैं और इसके प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या तो समान होती हैं किंतु लघु और गुरु का क्रम निर्धारित नहीं होता हैं। मात्रिक छन्द 3 प्रकार के होते हैं सम मात्रिक छन्द : इस छन्द के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान होती हैं। सम मात्रिक छन्द 2 प्रकार के होते हैं।
अर्द्व सम मात्रिक छन्द : वे छन्द जिनके सम मात्रिक विषम चरणों में मात्राएं अलग अलग होती हैं मात्राओं के आधार पर दोहा (13, 11) दोहा का उल्टा सोरठा (11, 13) होता हैं। विषम मात्रिक छन्द : वे छन्द जो कि दो छन्दों से मिलकर बनते हैं इनमें मात्राओं की संख्या समान नहीं होती हैं। उदाहरण :- कुण्डलिया [दोहा (13, 11) + रोला (24)] 3. मुक्तक छन्दजिस विषम छन्द में वर्ण और मात्राओं पर प्रतिबंध न हो और ना ही प्रत्येक चरण में वर्णों की मात्रा और क्रम समान हो और ना ही मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था हो जिसमें नाद और ताल के आधार पर पंक्तियों में लय लाकर उन्हें गतिशीलता करने का आग्रह हो उसे मुक्तक छन्द कहते हैं। उदाहरण :- a. मातु पिता गुरू स्वामि सिख, सिर धरि
करहीं सुभयूँ। b. रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सुन! 4. वर्णिक वृत छंदइसमें वर्णों की गणना होती है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु -गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है। इसे सम छंद भी कहते हैं। जैसे :- मत्तगयन्द सवैया। प्रमुख मात्रिक छंददोहा छंद : यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये सोरठा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसमें चरण के अंत में लघु (1) होना जरूरी होता है। जैसे :- कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर। सोरठा छंद : यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये दोहा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहा का उल्टा होता है। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना जरूरी होता है।तुक प्रथम और तृतीय चरणों में होता है। जैसे :- “कहै जु पावै कौन , विद्या धन उद्दम बिना। रोला छंद :- यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से 24 मात्राएँ होती हैं। इसे अंत में दो गुरु और दो लघु वर्ण होते हैं। जैसे :- “नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है। गीतिका छंद : यह मात्रिक छंद होता है। इसके चार चरण होते हैं। हर चरण में 14 और 12 के करण से 26 मात्राएँ होती हैं। अंत में लघु और गुरु होता है। जैसे :- “हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये। हरिगीतिका छंद : यह मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 और 12 के क्रम से 28 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु गुरु का प्रयोग अधिक प्रसिद्ध है। जैसे :- “मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता। उल्लाला छंद : यह मात्रिक छंद होता है। इसके हर चरण में 15 और 13 के क्रम से 28 मात्राएँ होती है। जैसे :- “करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की। चौपाई छंद : यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में गुरु या लघु नहीं होता है लेकिन दो गुरु और दो लघु हो सकते हैं। अंत में गुरु वर्ण होने से छंद में रोचकता आती है। जैसे :- 1. “इहि विधि राम सबहिं समुझावा 2. बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥ विषम छंद : इसमें पहले और तीसरे चरण में 12 और दूसरे और चौथे चरण में 7 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण और तगण के आने से मिठास बढती है। यति को प्रत्येक चरण के अंत में रखा जाता है। जैसे :- “चम्पक हरवा अंग मिलि अधिक सुहाय। छप्पय छंद : इस छंद में 6 चरण होते हैं। पहले चार चरण रोला छंद के होते हैं और अंत के दो चरण उल्लाला छंद के होते हैं। प्रथम चार चरणों में 24 मात्राएँ और बाद के दो चरणों में 26-26 या 28-28 मात्राएँ होती हैं। जैसे :- “नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है। कुंडलियाँ छंद : कुंडलियाँ विषम मात्रिक छंद होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। शुरू के 2 चरण दोहा और बाद के 4 चरण उल्लाला छंद के होते हैं। इस तरह हर चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। जैसे :- (i). “घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध। (ii). कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम। दिगपाल छंद : इसके हर चरण में 12-12 के विराम से 24 मात्राएँ होती हैं। जैसे :- हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती। आल्हा या वीर छंद : इसमें 16 -15 की यति से 31 मात्राएँ होती हैं। सार छंद : इसे ललित पद भी कहते हैं। सार छंद में 28 मात्राएँ होती हैं। इसमें 16-12 पर यति होती है और बाद में दो गुरु होते हैं। ताटंक छंद : इसके हर चरण में 16,14 की यति से 30 मात्राएँ होती हैं। रूपमाला छंद: इसके हर चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 14 और 10 मैट्रन पर विराम होता है। अंत में गुरु लघु होना चाहिए। त्रिभंगी छंद : यह छंद 32 मात्राओं का होता है। 10,8,8,6 पर यति होती है और अंत में गुरु होता है। पिछली पोस्ट में हम हिंदी व्याकरण के अध्याय रस की जानकारी शेयर की है उसे जरूर पढ़े। आशा है छंद की जानकारी आपको पसंद आयी होगी। छंद से संबंधित किसी भी अन्य जानकारी के लिए कमेंट करे। यदि छंद की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण की जानकारी पसंद आयी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे। छंद किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?छन्द के मुख्य तीन भेद हैं (क) वर्णिक, (ख) मात्रिक और (ग) मुक्तक या रबड़। वर्णिक छंद: जिनमें वर्णों की संख्या, क्रम, गणविधान तथा लघु-गुरू के आधार पर रचना होती है। मात्रिक छंद: जिनमें मात्राओं की संख्या, लघु-गुरू, यति-गति, के आधार पर पद-रचना होती है। मुक्तक छन्द: इनमें न वर्णों की गिनती होती है, न मात्राओं की।
छंद क्या है छंद के प्रकार लिखिए?निश्चित चरण, वर्ण, मात्रा, गति, यति, तुक और गण आदि के द्वारा नियोजित पद्य रचना को छंद कहते हैं।
छंद की परिभाषा क्या है?छन्द (Metres) की परिभाषा वर्णो या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आहाद पैदा हो, तो उसे छंद कहा जाता है। दूसरे शब्दो में-अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रागणना तथा यति-गति से सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्यरचना 'छन्द' कहलाती है।
छंद के अंग कितने प्रकार के होते हैं?छंद के अंग निम्नलिखित हैं:. १ पाद अथवा चरण छंद की प्रत्येक पंक्ति को पाद अथवा चरण कहते हैं। ... . २ वर्ण बे चिन्ह जो मुख से निकलने वाली ध्वनि को सूचित करने के लिए निश्चित किए गए हैं वर्ण कहलाते हैं वर्ण को अक्सर भी कहते हैं वर्ण दो प्रकार के होते हैं। ... . ३ मात्रा ... . ४ यति ... . ५ गति ... . ६ तुक ... . ७ वर्णिक गण ... . वर्णिक छंद. |