Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के छन्द टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे । Show
Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द ) छोटी-बड़ी ध्वनियां, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं और जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं तब उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है और लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशिष्ट नाम वाला छन्द कहलाने लगती है । Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं –
Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )छन्दों के भेद : छन्द मुख्यतः दो प्रकार के हैं:
प्रमुख मात्रिक छंद सम मात्रिक छंद :
अर्द्धसम मात्रिक छंद :
विषम मात्रिक छंद :
प्रमुख वर्णिक छंद :
मात्रिक छन्द के उदाहरण Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )
।ऽ ।ऽ । । ऽ । ऽ ऽऽ ऽ ऽऽ । महद्धनं यदि ते भवेत्, दीनेभ्यस्तद्देहि । विधेहि कर्म सदा शुभं, शुभं फलं त्वं प्रेहि ॥
। । ऽ । ऽ ऽ ऽ ।ऽ । ।ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा । नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः । स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः, अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥
ऽ । ऽ ॥ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ हे दयामय दीनबन्धो, प्रार्थना मे श्रूयतां यच्च दुरितं दीनबन्धो, पूर्णतो व्यपनीयताम् । चञ्चलानि मम चेन्द्रियाणि, मानसं मे पूयतां शरणं याचेऽहं सदा हि, सेवकोऽस्म्यनुगृह्यताम् ॥
यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि। अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश साऽऽर्या।। इसके पहले और तीसरे चरण में बारह-बारह मात्राएँ होती हैं। दूसरे चरण में अठारह मात्राएँ होती हैं। अन्तिम चौथे चरण में पन्द्रह मात्राएँ होती हैं। Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )वर्णिक छन्द के उदाहरण –
मात्राओं में जो अकेली मात्रा है, उस के आधार पर इन्हें आदिलघु या आदिगुरु कहा गया है । जिसमें सब गुरु है, वह ‘मगण’ सर्वगुरु कहलाया और सभी लघु होने से ‘नगण’ सर्वलघु कहलाया ।
श्लोके षष्ठं गुरुर्ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम् । द्विचतुः पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥ यह छन्द अर्धसमवृत्त है । इस के प्रत्येक चरण में 8 वर्ण होते हैं । चारो चरणों मे 32 वर्ण होते है। पहले चार वर्ण किसी भी मात्रा के हो सकते हैं । पाँचवाँ वर्ण लघु और छठा वर्ण गुरु होता है । दूसरे और चौथे पाद में सातवाँ अक्षर (वर्ण) लघु होता है। पहले और तीसरे पाद में सातवाँ अक्षर (वर्ण) गुरु होता है। जैसे: ।ऽ ऽ ऽ । ऽ । ऽ लोकानुग्रहकर्तारः, प्रवर्धन्ते नरेश्वराः । लोकानां संक्षयाच्चैव, क्षयं यान्ति न संशयः ॥
सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगाः शार्दूलविक्रीडितम् । प्रत्येक चरण मे मगण (ऽऽऽ), सगण (।।ऽ), जगण (।ऽ।), सगण (।।ऽ), तगण (ऽऽ।), तगण (ऽऽ।) और एक गुरु होते हैं। इसमें बारहवें और सातवें वर्ण पर यति होती है। वह शार्दूलविक्रीडित छन्द होता है; जैसे: Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )ऽ ऽ ऽ । । ऽ । ऽ । ॥ ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ रे रे चातक ! सावधान-मनसा मित्र क्षणं श्रूयताम् अम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वे तु नैतादृशाः । केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः॥
रसैः रुद्रैश्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी जिसमें यगण, मगण, नगण, सगण, भगण और लघु तथा गुरु के क्रम से प्रत्येक चरण में वर्ण रखे जाते हैं और 6 तथा 11 वर्णों के बाद यति होती है, उसे शिखरिणी छन्द कहते हैं; जैसे: । ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ॥ ॥ । ऽ ऽ ॥ ।ऽ यदा किञ्चिज्ज्ञोऽहं द्विप इव मदान्धः समभवं तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः । यदा किञ्चित्किञ्चिद् बुधजनसकाशादधिगतं तदा मूर्खोऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः॥
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः । इसका अर्थ है कि इन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण और दो गुरु के क्रम से वर्ण रखे जाते हैं । इसका स्वरुप इस प्रकार से है: ऽऽ । ऽऽ । ।ऽ । ऽऽ तगण तगण जगण दो गुरु उदाहरण: ऽ ऽ । ऽऽ । । ऽ । ऽ ऽ विद्येव पुंसो महिमेव राज्ञः प्रज्ञेव वैद्यस्य दयेव साधोः । लज्जेव शूरस्य मुजेव यूनो, सम्भूषणं तस्य नृपस्य सैव॥ यहाँ प्रत्येक पंक्ति में प्रथम पंक्ति वाले ही वर्णों का क्रम है । अतः यहाँ इन्द्रवज्रा छन्द है । Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )
मन्दाक्रान्ताऽभ्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ ग-युग्मम् । क्यों कि अम्बुधि (सागर) 4 हैं, रस 6 हैं, और नग (पर्वत) 7 हैं, अतः इस क्रम से यति होगी और मगण, भगण, नगण, तगण, तगण और दो गुरु वर्ण होंगे । उदाहरण: ऽ ऽ ऽ ऽ ॥ । ॥ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ यद्वा तद्वा विषमपतितः साधु वा गर्हितं वा कालापेक्षी हृदयनिहितं बुद्धिमान् कर्म कुर्यात् । किं गाण्डीवस्फुरदुरुघनस्फालनक्रूरपाणिः नासील्लीलानटनविलखन् मेखली सव्यसाची॥
उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ इस का अर्थ यह है कि उपेन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण और दो गुरु वर्णों के क्रम से वर्ण होते हैं । इस का स्वरुप इस प्रकार से है: ।ऽ । ऽऽ । ।ऽ । ऽऽ जगण तगण जगण दो गुरु उदाहरण: । ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव-देव॥ (अंतिम ‘व’ लघु होते हुए भी गुरु माना गया है ।
अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः । इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु वदन्ति जातिष्विदमेव नाम॥ अर्थात् इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा अथवा अन्य प्रकार के छन्द जब मिलकर एक रुप ग्रहण कर लेते हैं, तो उसे उपजाति कहते हैं । Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )साहित्यसङ्गीत कला-विहीनः साक्षात्पशुः पृच्छ-विषाणहीनः । तृणं न खादन्नपि जीवमानः तद्भागधेयं परमं पशुनाम्॥ अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः । पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥
न-न-मयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः । इसका अर्थ है कि मालिनी छन्द में प्रत्येक चरण में नगण, नगण, मगण और दो यगणों के क्रम से 15 वर्ण होते हैं और इसमें यति आठवें और सातवें वर्णों के बाद होती है; जैसे : । ॥ । ॥ ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ वयमिह परितुष्टाः वल्कलैस्त्वं दुकूलैः सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः । स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला मनसि तु परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः॥
द्रुतविलम्बितमाहो नभौ भरौ अर्थात् द्रुतविलम्बित छ्न्द के प्रत्येक चरण में नगण, भगण, भगण और रगण के क्रम से 12 वर्ण होते हैं । । । । ऽ ॥ ऽ । ।ऽ । ऽ विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः । यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्॥
उक्ता वसन्ततिलका तभजाः जगौ गः । उदाहरण: ऽ ऽ । ऽ । । ।ऽ । । ऽ । ऽ ऽ हे हेमकार परदुःख-विचार-मूढ किं मां मुहुः क्षिपसि वार-शतानि वह्नौ । सन्दीप्यते मयि तु सुप्रगुणातिरेको- लाभः परं तव मुखे खलु भस्मपातः॥ Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )
भुजङ्गप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः उदाहरण: । ऽ ऽ । ऽऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ प्रभो ! देशरक्षा बलं मे प्रयच्छ नमस्तेऽस्तु देवेश ! बुद्धिं च यच्छ । सुतास्ते वयं शूरवीरा भवाम गुरुन् मातरं चापि तातं नमाम॥
जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ उदाहरण: । ऽ । ऽ ऽ ॥ ऽ । ऽ । ऽ न तस्य कार्यं करणं च विद्यते न तत्समश्चाभ्यधिकश्च दृश्यते । पराऽस्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञान-बल-क्रिया च॥ यति / विराम
संस्कृत में छन्द कितने प्रकार के होते हैं?वैदिक साहित्य तथा गद्य पद्य संस्कृत साहित्य में पद्य का पडला आज भी भारी है साहित्य की अभिवृद्धि के साथ-साथ छंदों की भी वृद्धि हुई है जिस का क्रमिक विकास इस प्रकार हुआ है । वेदों में कुल 21 छंद पाए जाते हैं । इनमें भी प्रमुख सात छंद है। तदनंतर वाल्मीकि रामायण में 13 छन्दो का प्रयोग हुआ है ।
छंद कितने होते हैं?छन्द के प्रकार
26 वर्णों तक के चरण जिसमें शामिल होते हैं उसे साधारण छंद कहते हैं. जब 26 से ज्यादा वर्णों वाले जो चरण होते हैं उनको दंडक छंद कहा जाता है साधारण छंद में 26 वर्ण और दंडक छंद में 26 से ज्यादा वर्णों के चरण को दंडक छंद कहा जाता है.
छंद क्या है छंद के प्रकार?छंद के भेद: Chhand Ke Prakar. वर्णिक छंद (या वृत) – जिस छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान हो।. वर्णिक वृत छंद- इसमें वर्णों की गणना होती है. मात्रिक छंद (या जाति) – जिस छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान हो।. मुक्त छंद – जिस छंद में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबंध न हो।. छंद कितने प्रकार के होते हैं उदाहरण सहित?छन्द के मुख्य तीन भेद हैं (क) वर्णिक, (ख) मात्रिक और (ग) मुक्तक या रबड़। वर्णिक छंद: जिनमें वर्णों की संख्या, क्रम, गणविधान तथा लघु-गुरू के आधार पर रचना होती है। मात्रिक छंद: जिनमें मात्राओं की संख्या, लघु-गुरू, यति-गति, के आधार पर पद-रचना होती है।
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