बौद्ध दर्शन का मध्यम मार्ग क्या है - bauddh darshan ka madhyam maarg kya hai

Buddha Dharma: बौद्ध धर्म आध्यात्मिक साधना के लिहाज से लचीला धर्म है. जो ना तो शरीर को नष्ट करने वाले कठोर तप पर बल देता है और ना ही सांसारिक जीवन को पूरी तरह छोडऩे पर. ये तो कठोर तपस्या और भोग विलास दोनों के बीच का मार्ग सुझाता है. जिसे साधना का मध्यमा प्रतिपद् यानी मध्यम मार्ग कहा गया है.

जिसमें आगे बढने के लिए गौतम बुद्ध ने सीढ़ी के रूप में अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया है. आज हम आपको उसी अष्टांगिक मार्ग के बारे में बताने जा रहे हैं.

कर्म पर आप कितना भी बल दें , उससे क्या लाभ , जब मन ही स्वस्थ और स्वच्छ न हो। सुमार्ग पर जाना बहुत ही कठिन है , यदि मन गुस्सा या मैला हो। मन के द्वारा ही मानवीय गुणों को सीखा और सींचा जा सकता है। जीवन के आदर्शों को अपनाने में मन का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिए प्रयास होना चाहिए कि मन की बुराइयों को दूर कर मन लायक संस्कार गढ़ें।

बौद्ध दर्शन में ऐसे मूल्यों को प्राप्त करना और उन्हें अपनी दिनचर्या में लागू करने के लिए जिस मार्ग की आवश्यकता होती है- वह है अष्टांगिक मार्ग। अष्टांगिक मार्ग का अर्थ है आठ अंगों वाला मार्ग , आठ तत्वों वाला मार्ग। ऐसी राह जिस पर चलने के लिए आठ बातों का ध्यान रखना है। वे आठ बातें कौन कौन सी हैं ? वे हैं सम्यक दृष्टि , सम्यक वचन , सम्यक काम , सम्यक आजीव , सम्यक व्यायाम , सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। इन्हीं को मिला देने से अष्टांगिक मार्ग बन जाता है। अष्टांगिक मार्ग पर चलने से सभी मानवीय मूल्यों का स्वयं ही मन में विकास हो जाता है।

व्यक्ति मानव के सबसे अच्छे संस्कारों से ओतप्रोत हो कर सम्यक जीवन जीना सीखता है। इस अष्टांगिक मार्ग को ही बुद्ध ने मध्यम मार्ग कहा , जिस पर चलना बहुत कठिन नहीं है। कोई भी व्यक्ति इस मार्ग पर चल सकता है और चलकर सुखी जीवन जी सकता है।

बुद्ध ने मध्यम मार्ग का रास्ता दिखा कर मानव का बहुत बड़ा हित किया। जब सभी लोग और सभी देश अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और कोई भी किसी से कम नहीं होने की बात कर रहा है- ऐसे में ‘ मध्यम मार्ग ‘ एक बहुत बड़ा समाधान हो सकता है मानव और विश्व की सारी परेशानियों को दूर करने का। बीच का रास्ता अपनाओ और सभी बाधाओं को पार कर जाओ-यही मूल मंत्र है सम्यक जीवन जीकर परम लक्ष्य को प्राप्त करने का। मध्यम मार्ग अपनाने से व्यक्ति के मन को कोई ठेस नहीं पहुंचती। उसका सम्मान रह जाता है और टकराव तथा संताप की स्थिति भी पैदा नहीं होती। इसके विपरीत हमें मैत्री और सद्भाव का लाभ मिलता है।

इसी भाव से तो विश्व में शान्तिपूर्ण मानव समाज के विचार को साकार करने में सफलता मिलेगी। नई पीढ़ी के लिए तो बुद्ध का यह दर्शन सबसे ज्यादा उपयोगी है। उसे मन की स्वतंत्रता देकर भविष्य के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। कुंठाओं में डूबे युवा न तो अपने आप का विकास कर सकते हैं और न देश का। स्वतंत्र मन के माध्यम से ही स्वतंत्र समाज और संपन्न राष्ट्र की बात की जा सकती है।

बंधा हुआ और विचलित मन कभी पर्याप्त परिणाम और परिमाण नहीं दे सकता। इसलिए जरूरी है कि नई पीढ़ी को हम आजादी दें , बंधन मुक्त करें। लेकिन कितनी स्वतंत्रता दें ? क्या पूरी तरह से छोड़ दें ? नहीं , मध्य मार्ग पर रहें- वीणा के तार को थोड़ा कसें , थोड़ा ढील दें। लेकिन आजाद हो कर युवा पीढ़ी भी क्या करे ? इस स्वतंत्रता के उपभोग में भी मध्यम मार्ग का अनुसरण उपयोगी है। क्योंकि मध्यम मार्ग जहां हमारे मन के मान की रक्षा करता है , वहीं अनेकानेक कुविचारों से भी बचाता है। अच्छे कर्मों का संचय और बुरे कार्यों का त्याग-मध्यम मार्ग के माध्यम से ही सम्भव है।

इसके लिए ‘ मिलाजुला कर ‘ कह सकते हैं कि ‘ मध्यम मार्ग ही मानव की मुक्ति का मार्ग है! ‘ वही मानव को जीवन सागर पार कराने वाला यान भी है , चाहे आप संसारी की तरह जीवन का सुख पाना चाहें या निर्वाण ही प्राप्त करना चाहें।

राजकुमार सिद्धार्थ जब ज्ञान प्राप्त कर महात्मा बुद्ध हो गये तो बुद्ध ने अपनी साधना के बाद जो ज्ञान प्राप्त किया और जो उपदेश दिया वह अष्टांगिक मार्ग कहलाया। उन्होंने सम्यक दृष्टि, सम्यक जीवन, सम्यक संकल्प, सम्यक समाधि, सम्यक आजीविका आदि के माध्यम से जीवन में संतुलन बनाने का संदेश दिया।

महात्मा बुद्ध ने कहा कि जीवन में दुःख है, दुःख का कारण है और दुख को दूर करने का उपाय भी हें दूसरों के दुःख को देखकर वे घर छोड़कर निकल गये। जंगल के रास्ते से जब वे जा रहे थे तो गंधर्व लोग गीत गा रहे थे, जिसका मतलब था कि वीणा के तारों को इतना मत कसो कि टूट जायें और इतना ढीला भी मत छोड़ों कि आवाज भी न निकले। इसका आशय यह है कि मध्यम मार्ग अपनाओ, मध्यम मार्ग ही संतुलन का मार्ग है। जिसमें व्यक्ति संसार में रहते हुए भी करतार की ओ बढ़ सकता है। एकाएक यदि कोई घर छोड़ता है तो हो सकता है कि उसे अतिरिक्त वासनाएं भटकाएं और साधना भक्ति में मन टिकने में परेशानियां आएं लेकिन जो संसार में रहते हुए सांसारिक वासनाओं से तृपत है उसका भगवान की भक्ति में आसानी से मन टिक जाता है।

बौद्ध धर्म की स्थापना के बाद बौद्ध भिक्षुओं को समता का उपदेश देते हुए भगवान बुद्ध ने कहाµआप लोग कई देशों और जातियों से आये हैं, किंतु यहां सब एक हो गये हैं। जिस प्रकार भिन्न-भिन्न स्थानों में अनेक नदियां बहती हैं और उनका अलग-अलग अस्तित्व दिखाई देता है, किन्तु जब वे सागर में मिलती हैं तो अपना पृथक अस्तित्व खो देती हैं, उसी प्रकार बौद्ध बन जाने के बाद आप सभी एक हैं। सभी समान हैं।

भगवान बुद्ध अपने उपदेशों में ‘निर्वाण’ को सबसे ज्यादा महत्व दिया। उन्होंने कहा, ‘निर्वाण’ से बढ़कर सुखद कुछ भी नहीं। भगवान बुद्ध ने निर्वाण का जो अर्थ बताया वह निर्वाण उनके पूर्ववर्ती महापुरुषों से बिल्कुल भिन्न है। पूर्ववर्तियों की दृष्टि में निर्वाण का मतलब था आत्मा का मोक्ष। बुद्ध के अनुसार निर्वाण का मतलब है राग, द्वेष और मोह की अग्नि का बुझ जाना। अर्थात् राग, द्वेष, मोह से मुक्ति। राग-द्वेष की आधीनता ही मनुष्य को दुःखी बनाती है और निर्वाण तक नहीं पहुंचने देती। भगवान बुद्ध के अनुसार निर्दोष जीवन का ही दूसरा नाम निर्वाण है।

भगवान बुद्ध ने अपने आप को कभी श्रेष्ठ नहीं बताया। उन्होंने हमेशा यही कहा कि वे भी बहुत से मनुष्यों में से एक हैं और उनका संदेश एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य को दिया गया संदेश हे। बुद्ध ने कहा उनका पथ मुक्ति का सत्य मार्ग है और कोई भी मनुष्य इस विषय में प्रश्न पूछ सकता है, परीक्षण कर सकता है और देख सकता है कि वह सन्मार्ग है।

बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग के साथ चार आर्य सत्य बताये। उनका पहला सत्य है बुढ़ापा दुःख है। मृत्यु दुःख है। हम जो इच्छा करते हैं उसकी प्राप्ति न होना दुःख है, जिसकी इच्छा नहीं करते उसकी प्राप्ति दुःख है। जो प्रिय है, उसका वियोग सबसे बड़ा दुःख है। दूसरा सत्य दुःख का कारण तृष्णा है। तृष्णा ही दुःख का मूल कारण है। तीसरा सत्य है कि तृष्णा के त्याग से ही दुःख का निरोध सम्भव है। जब तृष्णा का सर्वनाश होता है तभी दुःख का अंत होता है। तृष्णा की जननी इच्छा है और जब तक इसकी पूर्ति नहीं होती यह दुःख ही देती रहती है। चौथा सत्य है आर्य आष्टांगिक मार्ग पर चलने से आदमी सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है।

भगवान बुद्ध ने जीवन और धर्म में अनुभव को पहले स्थान पर रखा है, जबकि श्रद्धा को अनुभव के बाद। उनका कहता था कि अनुभव होगा तो श्रद्धा होगी, अनुभव होगा तो आस्था होगी। अनुभव को मजबूती प्रदान करते हुए उन्होंने कहाµमुझ पर भरोसा मत करना। मैं जो कहता हूं, उस पर इसलिये भरोसा मत करना कि मैं कहता हूं। सोचना, विचारना, जीना तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर सही हो जाये तो ही सही ह। पूरे संसार को मध्यम मार्ग का सरल, सहज, आसान और अनुभवपरक मार्ग दिखाने वाले भगवान बुद्ध को उनकी जयंती बुद्ध पूर्णिमा पर कोटि-कोटि प्रणाम।

बौद्ध दर्शन का मध्य मार्ग क्या है?

बौद्ध धर्म मानता है कि यदि आप अभ्यास और जाग्रति के प्रति समर्पित नहीं हैं तो कहीं भी पहुँच नहीं सकते हैं। आष्टांगिक मार्ग सर्वश्रेष्ठ इसलिए है कि यह हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है। बुद्ध ने इस दुःख निरोध प्रतिपद आष्टांगिक मार्ग को 'मध्यमा प्रतिपद' या मध्यम मार्ग की संज्ञा दी है।

त्रिरत्न और अष्टांगिक मार्ग क्या है?

त्रिरत्न (तीन रत्न) बौद्ध धर्म के सबसे महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इन त्रिरत्नों पर ही बौद्ध धर्म आधारित हैं। त्रिरत्न :- बुद्ध, धम्म और संघ.

बौद्ध दर्शन का प्रमुख सिद्धांत क्या है?

बौद्ध दर्शन तीन मूल सिद्धांत पर आधारित माना गया है- 1. अनीश्वरवाद 2. अनात्मवाद 3. क्षणिकवाद।