बादल राग पाठ के प्रश्न उत्तर - baadal raag paath ke prashn uttar

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प्रश्न 3. विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर:-
‘विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते’ पंक्ति में विप्लव-रव से तात्पर्य है – क्रांति। क्रांति जब आती है तब गरीब सामान्य वर्ग आशा से भर जाता है एवं धनी पूॅंजीपति वर्ग अपने विनाश की आशंका से भयभीत हो उठता है। छोटे लोगों के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं उन्हें सिर्फ़ इससे लाभ होगा। इसीलिए कहा गया है कि ‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ जैसे भयंकर आॅंधी,तूफान के बीच छोटे-छोटे पौधे अपनी जड़ नहीं छोड़ते।

प्रश्न 4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?

उत्तर:-

बादलों के आगमन से प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते है।

• समीर बहने लगती है।
• बादल गरजने लगते है।
• मूसलाधार वर्षा होती है।
• बिजली चमकने लगती है।
• छोटे-छोटे पौधे खिल उठते हैं।मौसम सुहावना हो जाता है।
• गर्मी के कारण दुखी प्राणी बादलों को देखकर प्रसन्न हो जाता है।

व्याख्या कीजिए

तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुख की छाया-

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया-

उत्तर:-
कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे क्रांति दूत रूपी बादल। तुम आकाश में ऐसे मंडराते रहते हो जैसे पवन रूपी सागर पर नौका तैर रही हो। छाया ‘उसी प्रकार पूंजीपतियों के वैभव पर क्रांति की छाया मंडरा रही है इसीलिए कहा गया है ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’अर्थात उनके सुख अस्थिर हैं जो कभी नष्ट हो सकते हैं।
कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा, उसके विशाल रूप को रण-नौका तथा गर्जन-तर्जन को रणभेरी के रूप में दिखाया है। कवि कहते है कि हे बादल! तेरी भारी-भरकम गर्जना से धरती के गर्भ में सोए हुए अंकुर सजग हो जाते हैं अर्थात् कमजोर व् निष्क्रिय व्यक्ति भी शोषण के विरूद्ध संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं।

अट्टालिका नहीं है रे

आतंक-भवन

सदा पंक पर ही होता

जल-विप्लव-प्लावन

उत्तर:-
कवि कहते है कि पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे भवन मात्र भवन नहीं हैं अपितु ये गरीबों को आतंकित करने वाले भवन हैं। इसमें रहनेवाले लोग महान नहीं हैं। ये तो भयग्रस्त हैं। जल की विनाशलीला तो सदा पंक को ही डुबोती है, कीचड़ को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसी प्रकार क्रांति की ज्वाला में धनी लोग ही जलते है, गरीबों को कुछ खोने का डर ही नहीं क्योंकि क्रांति का प्रतिनिधित्व हमेशा निम्न वर्ग ही करता है।

कला की बात

प्रश्न 1. पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों?

उत्तर:-
कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
मुझे बादलों का गर्जन कर क्रांति लानेवाला रूप पसंद है। क्योंकि जिस प्रकार बादलों की गर्जना और मूसलाधार वर्षा में बड़े-बड़े पर्वत, वृक्ष घबरा जाते हैं। उनको उखड़कर गिर जाने का भय होता है। उसी प्रकार क्रांति की हुंकार से पूँजीपति घबरा उठते हैं, वे दिल थाम कर रह जाते हैं। उन्हें अपनी संपत्ति एवं सत्ता के छिन जाने का भय होता है।
….ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर
बार -बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र हुंकार।

प्रश्न 2.कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए।

उत्तर:-

• तिरती है समीर-सागर पर
• अस्थिर सुख पर दुःख की छाया
• यह तेरी रण-तरी
• भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
• ऐ विप्लव के बादल!
• ऐ जीवन के पारावार

प्रश्न 3. इस कविता में बादल के लिए ऐ विप्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेष पाँच खंडों में भी कई संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे – अरे वर्ष के हर्ष!, मेरे पागल बादल!, ऐ निर्बंध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है?

उत्तर:-
कवि इन संबंधों द्वारा कविता की सार्थकता को बढ़ाना चाहते हैं। बादलों के लिए किए संबोधनों की व्याख्या इस प्रकार है –

अरे वर्ष के हर्ष! खुशी का प्रतीक
मेरे पागल बादल! मदमस्ती का प्रतीक
ऐ निर्बंध! बंधनहीन
ऐ स्वच्छंद! स्वतंत्रता से घूमने वाले
ऐ उद्दाम! भयहीन
ऐ सम्राट! सर्वशक्तिशाली
ऐ विप्लव के प्लावन! प्रलय या क्रांति
ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार बच्चों के समान चंचल

प्रश्न 4. कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए।

'अस्थिर सुख पर दुख की छाया' पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया और क्यों? 

'अस्थिर सुख पर दुख की छाया' पंक्ति में दुख की छाया क्रांति अथवा विनाश का प्रतीक है। सुविधा भोगी लोगों के पास सुख के अनेक साधन होते हैं। इसलिए वे क्रांति से हमेशा डरे रहते हैं। क्रांति से पूँजीपतियों को हानि होगी, गरीबों को नहीं। इसलिए कवि ने अमीर लोगों के सुख को अस्थिर कहा है। क्रांति की संभावना ही दुख की वह छाया है जिससे वे हमेशा डरे रहते हैं। यही कारण है कि दुख की छाया का प्रयोग किया गया है।


प्रश्न 2. अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर- पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?

'अशनि पात से शापित उन्नत शत शत वीर' पंक्ति में क्रांति विरोधी अभिमानी पूँजीपतियों की ओर संकेत किया गया है जो क्रांति को दबाने का भरसक प्रयास करते हैं। परंतु क्रांति के वज्र के प्रहार से घायल होकर वे क्षत विक्षत हो जाते हैं। जिस प्रकार बादलों के द्वारा किए गए अशनि पात से पर्वतों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ क्षत विक्षत हो जाती है उसी प्रकार क्रांति की मारकाट से बड़े बड़े पूँजीपति तथा वीर लोग की धरती चाटने लगते हैं।


प्रश्न 3. विप्लव रव से छोटे ही शोभा पाते -पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे ही शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?

'विप्लव-रव' से तात्पर्य है- क्रांति की गर्जना। क्रांति से समाज के सामान्य जन को ही लाभ प्राप्त होता है। उससे सर्वहारा वर्ग का विकास होता है क्योंकि क्रांति शोषकों और पूँजीपतियों के विरुद्ध होती है। संसार में जहाँ कहीं क्रांति हुई है, वहाँ पूँजीपतियों का विनाश हुआ है और गरीब तथा अभावग्रस्त लोगों की आर्थिक हालत सुधरी है। इसलिए कवि ने इस भाव के लिए 'छोटे ही है शोभा पाते' आदि शब्दों का प्रयोग किया है।


प्रश्न 4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?

बादलों के आगमन से प्रकृति में असंख्य परिवर्तन होते हैं। पहले तो तेज हवा चलने लगती है और बादल गरजने लगते हैं। उसके बाद मूसलाधार बरसात होती है। बिजली के गिरने से ऊँचे ऊँचे पर्वतों की चोटियों क्षत विक्षत हो जाती है परंतु छोटे-छोटे पौधे वर्षा का पानी पाकर प्रसन्नता से खिल उठते हैं।


प्रश्न 5.1 व्याख्या कीजिएतिरती है समीर-सागर परअस्थिर सुख पर दुख की छाया-जग के दग्ध हृदय परनिर्दय विप्लव की प्लावित माया-

उत्तर:- कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे क्रांति दूत रूपी बादल। तुम आकाश में ऐसे मंडराते रहते हो जैसे पवन रूपी सागर पर नौका तैर रही हो। छाया ‘उसी प्रकार पूंजीपतियों के वैभव पर क्रांति की छाया मंडरा रही है इसीलिए कहा गया है ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’।

कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा, उसके विशाल रूप को रण-नौका तथा गर्जन-तर्जन को रणभेरी के रूप में दिखाया है। कवि कहते है कि हे बादल! तेरी भारी-भरकम गर्जना से धरती के गर्भ में सोए हुए अंकुर सजग हो जाते हैं अर्थात् कमजोर व् निष्क्रिय व्यक्ति भी संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं।


प्रश्न 5.2 व्याख्या कीजिएअट्टालिका नहीं है रेआतंक-भवनसदा पंक पर ही होताजल-विप्लव-प्लावन

उत्तर:- कवि कहते है कि पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे भवन मात्र भवन नहीं हैं अपितु ये गरीबों को आतंकित करने वाले भवन हैं। इसमें रहनेवाले लोग महान नहीं हैं। ये तो भयग्रस्त हैं। जल की विनाशलीला तो सदा पंक को ही डुबोती है, कीचड़ को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसी प्रकार क्रांति की ज्वाला में धनी लोग ही जलते है, गरीबों को कुछ खोने का डर ही नहीं।

बादल राग कविता का मूल भाव क्या है?

बादल राग' निराला जी की प्रसिद्ध कविता है। वे बादलों को क्रांतिदूत मानते हैं। बादल शोषित वर्ग के हितैषी हैं, जिन्हें देखकर पूँजीपति वर्ग भयभीत होता है। बादलों की क्रांति का लाभ दबे-कुचले लोगों को मिलता है, इसलिए किसान और उसके खेतों में बड़े-छोटे पौधे बादलों को हाथ हिला-हिलाकर बुलाते हैं।

बादल राग कविता की भाषा क्या है?

प्रस्तुत कविता निराला जी की ओजपूर्ण एवं चित्रमय भाषा-शैली का एक अद्भुत नमूना है। अशनि-पाठ मे शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है? अशनि-पात अर्थात् बिजली के गिरने से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ तक घायल होकर गिर पड़ते हैं। इस पंक्ति में पूँजीपतियों के पतन की ओर संकेत किया गया है।

बादल राग कविता में बदल किसका प्रतीक है?

'बादल राग' शीर्षक कविता निराला जी की एक प्रसिद्ध ओजस्वी रचना है। कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक माना है। वह शोषित वर्ग के हित में उसका आह्वान करता है। क्रांति के प्रतीक बादलों को देखकर पूँजीपति वर्ग भयभीत हो जाता है और किसान मजदूर उसे आशा भरी दृष्टि से देखते हैं।

बादल राग कविता के कितने भाग हैं?

बादल किसान के लिए उल्लास एवं निर्माण का तो मज़दूर के संदर्भ में क्रांति एवं बदलाव का अग्रदूत है। बादल राग कविता अनामिका में छह खंडों में प्रकाशित है। यहाँ उसका छठा खंड लिया गया है। लघुमानव ( आम आदमी ) के दुख से त्रस्त कवि यहाँ बादल का आह्वान क्रांति के रूप में कर रहा है क्योंकि विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।