बाज को मूर्ख क्यों कहा गया है? - baaj ko moorkh kyon kaha gaya hai?

घायल बाज़ फिर उड़ना चाहता था। उसने किसी तरह साहस बटोरकर उड़ान भरी और थोड़ी देर पंख फड़फड़ाकर उड़ने के बाद नीचे गिर गया। साँप ने भी उँचाई पर बने अपने खोखल से निकलकर अपने को आसमान में छोड़ दिया और नीचे जा गिरा। साँप कहने लगा

"सो उड़ने का यही आनंद है - भर पाया मैं तो। पक्षी भी कितने मूर्ख हैं। धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा। केवल ढेर - सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को संभालने के लिए कोई स्थान नहीं, कोई सहारा नहीं। फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं, किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं। अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और खूब देख लिया। बाज़ तो बड़ी - बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गुण गाते थकता नहीं था। उसी की बातों में आकर मैं आकाश में कूदा था। ईश्वर भला करे, मरते मरते बच गया। अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो गई है कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं है। घरती पर रेंग लेता हूँ, मेरे लिए यह बहुत कुछ है। मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना - देना ? न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए जमीन है। मेरा तो सिर चकराने लगता है। दिल काँप - काँप जाता है। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है ?

साँप सोचने लगा कि बाज़ अभागा था जिसने आकाश की आज़ादी को प्राप्त करने में अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

किंतु कुछ देर बाद साँप के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसने सुना, चट्टानों के नीचे से एक मधुर, रहस्यमय गीत की आवाज़ उठ रही है। पहले उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। किंतु कुछ देर बाद गीत के स्वर अधिक साफ़ सुनाई देने लगे। वह अपनी गुफा से बाहर आया और चट्टान से नीचे झाँकने लगा। सूरज की सुनहरी किरणों में समुद्र का नीला जल झिलमिला रहा था। लोग मिलकर गा रहे थे -

''ओ निडर बाज़ ! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना कीमती रक्त बहाया है। पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक - एक बूंद जिंदगी के अँधेरे में प्रकाश फैलाएगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी।

तुमने अपना जीवन बलिदान कर दिया किंतु फिर भी तुम अमर हो। जब कभी साहस और वीरता के गीत गाए जाएंगे, तुम्हारा नाम बड़े गर्व और श्रद्धा से लिया जाएगा''

उत्तर: घायल बाज को देखकर सांँप इसलिए खुश था क्योंकि वह बाज खून से लथपथ घायल अवस्था में जोर-जोर से हाफ रहा था। जिससे उसको कोई खतरा नहीं था।

(ख) घायल बाज जब अंतिम इच्छा पूर्ण करने हेतु पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा तब इसका परिणाम क्या हुआ?

उत्तर: घायल बाज जब अंतिम इच्छा पूर्ण करने हेतु पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा तब वह लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। फिर एक लहर ने उसके पंख पर जमे खून को धो दिया, उसके थके मांँदे शरीर को सफेद फेन से ढक दिया, फिर लहरें अपनी गोद में समेट कर उसे अपने साथ सागर की ओर ले चली।

(ग) किस बात पर सांँप के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा?

उत्तर: जब साँप ने चट्टानों के नीचे से एक मधुर, रहस्यमई गीत की आवाज सुनी तब साँप के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

(घ) बाज के लिए लहरों ने गीत क्यों गाया था?

उत्तर: बाज के लिए लहरों ने इसलिए गीत गाया था क्योंकि बाज अधमरा होते हुए भी उसने अपनी प्राणों की चिंता नहीं की और बड़े साहस के साथ आकाश की आजादी को प्राप्त करने के लिए चट्टान से कूद पड़ा था।

(ङ) सांँप ने उड़ने को मूर्खतापूर्ण मानते हुए भी क्यों उड़ने की कोशिश की ?

उत्तर: घायल एवं अधमरा अवस्था में भी बाज द्वारा आकाश में उड़ना सांँप को यह कार्य मूर्खतापूर्ण लगा। फिर भी आकाश की असीम सुन्नता में ऐसा क्या आकर्षण छिपा है जिसके लिए बाज ने अपने प्राण गवा दिए, इस बात की बेचैनी सबको होने लगी थी और आकाश के बारे में जानने की जिज्ञासा  में उसने भी आकाश की सुन्नता में अपने को छोड़ दिया। अतः इस प्रकार सांँप ने उड़ने को मूर्खता मानते हुए भी उड़ने की कोशिश की।


4. पचास-साठ शब्दों में उत्तर दो:

(क) अपनी गुफा में बैठकर सांँप ने  क्यों खुद को सुखी और सुरक्षित समझा था?

उत्तर: साँप अपनी गुफा में बैठकर हर रोज बाहर का नजारा देखता रहता था। वह बैठे-बैठे समुद्र की लहरों, नदी के बहाव से उत्पन्न आवाजों को सुनता और अपने को सुखी और सुरक्षित समझता था। वह सोचता कि कोई उसे दुख नहीं दे सकता, सबसे अलग सबसे दूर वह अपनी गुफा का स्वामी है। उसे किसी से लेना देना नहीं था। दुनिया की भागदौड़ चीनाछत्ती से वह कोसों दूर था। इन सब कारणों की वजह से साफ खुद को सुखी और सुरक्षित समझता था।

(ख) "क्यों भाई इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली?" सांँप की इस बात पर बाज ने क्या जवाब दिया?

उत्तर: सांँप की इस बात पर बाज ने उत्तर दिया कि उसकी आखिरी घड़ी आ पहुंँची है लेकिन उसे इस बात पर कोई शिकायत नहीं है। उसने अपनी जिंदगी जी भरकर जी ली है। जब तक शरीर में ताकत थी कोई सुख ऐसा नहीं बचा जिसे उसने न भोगा हो। दूर-दूर तक उड़ानें भरी है, आकाश की असीम ऊंँचाइयों को अपने पंखों से नाम आया है। बाज अपना बखान करते हुए साँप को भी खरी खोटी सुना देता है कि "तुम्हारा बड़ा दुर्भाग्य है कि तुम जिंदगी भर आकाश में उड़ने का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे।"

(ग) साँप हंँसते हुए क्या कहने लगा?

उत्तर: सांँप हंँसते हुए बाज को कहने लगा कि आकाश में आखिर रखा क्या है? वह तो आकाश में रिंग नहीं सकता। उसके लिए तो वह गुफा ही सब कुछ है। इतनी आरामदेह और सुरक्षित जगह उसके लिए और कहीं नहीं हो सकती। अतः साँप मन ही मन बाज की मूर्खता पर हंँस रहा था। वह सोचने लगा की आखिर उड़ने और रेंगने के बीच कौन-सा भारी अंतर है। आखिर में तो सबके भाग्य में मरना ही तो लिखा है। यह जो शरीर है मिट्टी का है, एक न एक दिन हम सभी को मिट्टी में ही मिल जाना है।

(घ) समुद्र की लहरें क्या गा रही थी?

उत्तर: समुद्र की लहरें बाज के लिए एक मधुर रहस्यमय गीत गा रही थी। समुद्र गाती है कि ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना कीमती रक्त बहाया है। पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक-एक बूंँद जिंदगी के अंँधेरे में प्रकाश फैलाएगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी।


5. सप्रसंग व्याख्या करो:

(क) ' अंत में तो सब के भाग्य में मरना ही लिखा है-शरीर मिट्टी का है, मिट्टी में ही मिल जाएगा।'

उत्तर: 

संदर्भ: प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'आओ हिंदी सीखें' चौथा भाग के अंतर्गत निर्मल वर्मा जी द्वारा रचित कहानी बाज और सांँप से लिया गया है।

प्रसंग: यहांँ शरीर और मिट्टी के बीच के संबंध को दर्शाया गया है।

व्याख्या: जब घायल बाज ने सांँप को यह प्रश्न किया कि तुम्हारा बड़ा दुर्भाग्य है कि तुम जिंदगी भर आकाश में उड़ने का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे, तो इस बात पर सांँप मन ही मन हंँस पड़ा और बाज को मूर्ख समझने लगा। सांँप सोचने लगा कि बाज जो अपने आकाश को लेकर इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है वह यह नहीं जानता कि अंत में तो उसे मिट्टी में ही मिल जाना है। अतः साँप कहता है कि आखिर उड़ने और रेंगने के बीच कौन सा भारी अंतर है। हम सभी के भाग्य में मरना ही तो लिखा है। यह जो हमारा शरीर है मिट्टी का बना है और एक न एक दिन यह शरीर मिट्टी में ही मिल जाएगा।


(ख) 'हमारा गीत जिंदगी के उन दीवानों के लिए है जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते।'

उत्तर: 

संदर्भ: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'आओ हिंदी सीखें' चौथे भाग के अंतर्गत निर्मल वर्मा जी द्वारा रचित कहानी 'बाज और सांँप' से लिया गया है।

प्रसंग: यहांँ समुद्र द्वारा निड़र, बहादुर और साहसी लोगों का बखान किया गया है। 

व्याख्या: समुद्र का कहना है कि जो लोग अपने प्राणों को हथेली पर रखकर घूमते हैं समुद्र उसका सम्मान करता है। समुद्र के अनुसार चतुर वही है जो प्राणों की बाजी लगाकर जिंदगी के हर खतरे का सामना बहादुरी से  करता हो। ऐसे लोग अपना जीवन बलिदान कर अमर हो जाते हैं। ऐसे लोग मृत्यु से नहीं डरते वह हंँसते-हंँसते अपने प्राणों की आहुति दे देते हैं। इसलिए समुद्र ने ऐसे निड़र, साहसी और बहादुर लोगों का सम्मान करते हुए कहा है कि वह केवल उन्हीं दीवानों के लिए गीत गाएगा जो मरकर भी मृत्यु से नहीं डरते हैं।

बाज को निडर क्यों कहा गया है?

बाज में एक नयी आशा जग उठी। वह दूने उत्साह से अपने घायल शरीर को घसीटता हुआ चट्टान के किनारे तक खींच लाया। खुले आकाश को देखकर उसकी आँखें चमक उठीं

बाज की चीख में क्या छिपी थी?

एक दिन एकाएक आकाश में उड़ता हुआ खून से लथपथ एक बाज साँप की उस गुफा में आ गिरा। उसकी छाती पर कितने ही ज़ख्मों के निशान थे, पंख खून से सने थे और वह अधमरा-सा ज़ोर-शोर से हाँफ रहा था। ज़मीन पर गिरते ही उसने एक दर्द भरी चीख मारी और पंखों को फड़फड़ाता हुआ धरती पर लोटने लगा। डर से साँप अपने कोने में सिकुड़ गया।

बाज और सांप की कहानी से हमें क्या संदेश मिलता है?

'बाज और साँप' पाठ मनुष्य को प्रेरणा देता है कि उसको जीवन में स्वतंत्रता और संघर्ष के मूल्य को समझना चाहिए। जो मनुष्य जीवन में अपनी स्वतंत्रता के प्रति जागरूक रहता है और संघर्ष करने से डरता नहीं है, वह आगे चलकर समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।

सांप ने पक्षियों को मूर्ख क्यों कहा है?

प्रश्न-6 साँप ने पक्षियों को मूर्ख क्यों कहा है? उत्तर – साँप के अनुसार पक्षी धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाईयों को नापना चाहते हैं जब कि आकाश में कुछ रखा ही नहीं है। इसलिए उसने पक्षियों को मूर्ख कहा है।