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भारतीय पुनर्जागरण में राजा राममोहन राय का योगदान एक भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाई के भारतवर्ष में उन्नीसवीं सदी में राजनीतिक एकता प्राप्त कर ली जिसका कि सदियों से अभाव था। अब भारतवर्ष पुर्णतया पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के प्रभाव में आ गया। ईसाई धर्म-प्रचारक और नये अंग्रेजी पढ़े-लिखे हिन्दू दोनों ही हिन्दू धर्म के आलोचक हो गये। परन्तु ईसाई धर्म-प्रचारकों की धर्मनिरपेक्षता शिक्षा ने भारतीय मस्तिष्क को उद्वेलित कर दिया। परिणामस्वरूप हिन्दू संस्कृति के समन्वयकारी गुणों के अनुरूप भारतीयों ने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को ग्रहण किया परन्तु वाकी प्रत्येक दिशा में अतीत की पूँजी को टटोला और प्राचीन को नवीन करके वह नए मार्ग पर अग्रसर होने लगा। इसे भी भारतीय इतिहास में पुनर्जागरण के नाम से जाना जाता है। पुनर्जागरण में राजाराम मोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, केशवचन्द्र सेन और रानाडे आदि का नाम उल्लेखनीय हैं। भारतीय नवजागरण में राजा राममोहन राय का योगदानभारतीय पुनर्जागरण में राजाराम मोहन राय का नाम उल्लेखनीय है। वह भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर के राम से और आधुनिक भारत के पिता के नाम से जाने जाते हैं। राजाराम मोहन राय का जन्म एक ब्राह्मण जमींदार रमाकान्त राय के घर 1772 ई० में हुआ था। वे संस्कृत, अरवी, फारसी एवं अंग्रेजी तथा बंगला आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करने के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कलेक्टर के दीवान के पद पर कार्य करने लगे। उन्होंने अनेक धर्मों का अध्ययन किया। जनता की सेवा के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। 1815 में कलकत्ता में आत्मीय सभा, 1819 में ‘कलकत्ता यूनिटेरियन कमेंटी’ और 20 अगस्त 1828 को ब्रह्म समाज की स्थापना की। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में राजाराम मोहन राय के योगदान निम्नलिखित हैं- ब्रह्म समाज की स्थापनाब्रह्म समाज की स्थापना का उद्देश्य हिन्दू धर्म की शिक्षाओं तथा आदर्शों का उन्मूलन करना नहीं था बल्कि धर्म में आयी बुराइयों, कुरीतियों एवं अन्धविश्वासों का निराकरण करना था। सभी धर्मों में समन्वय एवं सामंजस्य संस्थापित करने के लिए राजराराम मोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना की गयी। इस संस्था द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करना था जिससे सभी धर्मावलम्बी एक स्थान पर एकत्र होकर ‘एक ईश्वर’ में विश्वास कर सकें। ब्रह्म समाज की स्थापना के पीछे निम्नलिखित उद्देश्य थे- धार्मिकहिन्दू धर्म में ऐसी रूढ़िवादि विचारधाराओं ने घर कर लिया था कि हिन्दू धर्मावलम्बी निराश होकर अपना प्राचीन धर्म छोड़ना प्रारंभ कर दिए थे। हिन्दू जनता में बहुदेववाद, मुर्तिपूजा आदि का प्रचलन बढ़ गया था। अतः ब्रह्म समाज ने धार्मिक सुधार के लिए निम्न कार्य किया-
सामाजिकउस समय भारतीय समाज में जाति-प्रथा तथा कुलीनता का बोलबाला था। सती-प्रथा, बाल-विवाह, बाल-हत्या, बहुपत्नी विवाह, विधवा-विवाह न करने का नियम आदि सामाजिक कुप्रथाएँ प्रचलित थीं। ब्रह्म समाज ने इन सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध आवाज उठायी और सरकार से मिलकर निम्नलिखित सामाजिक सुधार किए-
इसके अतिरिक्त राजाराम मोहन राय ने स्त्रियों की सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकारों का समर्थन किया, हिन्दू कानूनों में सुधार की आवाज उठायी और यज्ञों में होने वाली नर-हत्या तथा बालिकाओं की हत्या को दण्डनीय घोषित करवाया। शिक्षा सम्बन्धी सुधारभारतीय शिक्षा-नीति को बनाने में राजाराम मोहन राय का महत्वपूर्ण योगदान था। वह स्वयं अंगेजी, संस्कृत, अरबी, फारसी भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने निम्नलिखित शिक्षा सम्बन्धी सुधार करवाया-
राजनैतिक सुधारराजाराम मोहन राय को आधुनिक युग का प्रवर्तक कहा जाता है उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध वैधानिक उपायों द्वारा ही आन्दोलन करना श्रेयस्कर बतलाया। उनकी राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय थी। उनकी राजनीति देश-विदेश से उठकर मानव मात्र के कल्याण में थी। वे भ्रातृत्व एवं समानता में विश्वास रखते थे। उनके द्वारा राजनीतिक क्षेत्र में किये गये या कराये गये सुधार निम्नलिखित हैं-
इस प्रकार विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना राजाराम मोहन राय द्वारा की गयी। ब्रह्म समाज का प्रभाव समाज के विभिन्न पक्षों पर पड़ा। समाज के कुप्रथाओं और कुरीतियों का उन्मूलन होने लगा। परन्तु कुछ कुप्रथाएँ जैसे बाल- विवाह आदि पूर्णतया समाप्त न की जा सकीं। समाज में नयी चेतना जागृत होने लगी। ब्रह्म समाज ने मानव मात्र को एकेश्वरवाद का पाठ पढ़ाया। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली तथा वैज्ञानिक आदर्शों पर बल देकर भारतीय समाज को उन्नतिशील बनाने का प्रयत्न किया। ब्रह्म समाज के संस्थापक राजाराम मोहन राय को विद्वानों ने ‘नवीन युग का दूत’ कहा है। मि0 मोनियर विलियम्स ने कहा है कि “वह शायद प्रथम सत्य, विचारवान, धर्मों के तुलनात्मक विज्ञान का अन्वेषक था जिसे विश्व ने उत्पन्न किया।” ए0एल0 वासम ने कहा कि “राजाराम मोहन राय ने तर्कपूर्ण धार्मिक सुधारों का समाज में शंखनाद किया। इसी को दयानन्द ने दुहराया कि सर्वोत्तम सुधार मातृभूमि की सेवा करना है।” रवीन्द्र नाथ टैगोर के शब्दों में “राजाराम मोहन राय को ही भारतवर्ष के आधुनिक युग का उद्घाटन करने का सम्मान प्राप्त हैं” महत्वपूर्ण लिंक
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उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की। उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।
भारतीय पुनर्जागरण से क्या समझते हैं भारतीय पुनर्जागरण के कारणों की विवेचना कीजिए?साहित्य, कला, दर्शन, विज्ञान, वाणिज्य-व्यवसाय, समाज और राजनीति पर से धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया. इस प्रकार पुनर्जागरण उस बौद्धिक आन्दोलन का नाम है जिसने रोम और यूनान की प्राचीन सभ्यता-संस्कृति का पुनरुद्धार कर नयी चेतना को जन्म दिया। कुस्तुनतुनिया का पतन :- 1453 ई.
भारतीय पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं?भारतीय पुनर्जागरण के प्रणेता राजा राममोहन राय थे। उन्होंने सामाजिक तथा धार्मिक कुरीतियों को दूर करने का जो कार्य प्रारंभ किया उसे ईश्वरचंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती, एम. जी. रानाडे, डेरोजियो, कार्वे इत्यादि ने आगे बढ़ाया।
ब्रह्म समाज आंदोलन ने भारतीय समाज को कैसे प्रभावित किया?इसका एक उद्देश्य भिन्न भिन्न धार्मिक आस्थाओं में बँटी हुई जनता को एक जुट करना तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था। उन्होंने ब्रह्म समाज के अन्तर्गत कई धार्मिक रूढियों को बंद करा दिया जैसे- सती प्रथा, बाल विवाह, जाति तंत्र और अन्य सामाजिक। सन 1815 में राजाराम मोहन राय ने "आत्मीय सभा" की स्थापना की।
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