भारतीय पुनर्जागरण में ब्रह्म समाज का क्या योगदान है स्पष्ट कीजिए? - bhaarateey punarjaagaran mein brahm samaaj ka kya yogadaan hai spasht keejie?

भारतीय पुनर्जागरण में ब्रह्म समाज का क्या योगदान है स्पष्ट कीजिए? - bhaarateey punarjaagaran mein brahm samaaj ka kya yogadaan hai spasht keejie?
"Share your Knowledge, It’s a way to achieve Immortality"

  • भारतीय नवजागरण में राजा राममोहन राय का योगदान
  • ब्रह्म समाज की स्थापना
    • धार्मिक
    • सामाजिक
    • शिक्षा सम्बन्धी सुधार
    • राजनैतिक सुधार

भारतीय पुनर्जागरण में राजा राममोहन राय का योगदान

एक भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाई के भारतवर्ष में उन्नीसवीं सदी में राजनीतिक एकता प्राप्त कर ली जिसका कि सदियों से अभाव था। अब भारतवर्ष पुर्णतया पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के प्रभाव में आ गया। ईसाई धर्म-प्रचारक और नये अंग्रेजी पढ़े-लिखे हिन्दू दोनों ही हिन्दू धर्म के आलोचक हो गये। परन्तु ईसाई धर्म-प्रचारकों की धर्मनिरपेक्षता शिक्षा ने भारतीय मस्तिष्क को उद्वेलित कर दिया। परिणामस्वरूप हिन्दू संस्कृति के समन्वयकारी गुणों के अनुरूप भारतीयों ने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को ग्रहण किया परन्तु वाकी प्रत्येक दिशा में अतीत की पूँजी को टटोला और प्राचीन को नवीन करके वह नए मार्ग पर अग्रसर होने लगा। इसे भी भारतीय इतिहास में पुनर्जागरण के नाम से जाना जाता है। पुनर्जागरण में राजाराम मोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, केशवचन्द्र सेन और रानाडे आदि का नाम उल्लेखनीय हैं।

भारतीय नवजागरण में राजा राममोहन राय का योगदान

भारतीय पुनर्जागरण में राजाराम मोहन राय का नाम उल्लेखनीय है। वह भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर के राम से और आधुनिक भारत के पिता के नाम से जाने जाते हैं।

राजाराम मोहन राय का जन्म एक ब्राह्मण जमींदार रमाकान्त राय के घर 1772 ई० में हुआ था। वे संस्कृत, अरवी, फारसी एवं अंग्रेजी तथा बंगला आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करने के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कलेक्टर के दीवान के पद पर कार्य करने लगे। उन्होंने अनेक धर्मों का अध्ययन किया। जनता की सेवा के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। 1815 में कलकत्ता में आत्मीय सभा, 1819 में ‘कलकत्ता यूनिटेरियन कमेंटी’ और 20 अगस्त 1828 को ब्रह्म समाज की स्थापना की। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में राजाराम मोहन राय के योगदान निम्नलिखित हैं-

ब्रह्म समाज की स्थापना

ब्रह्म समाज की स्थापना का उद्देश्य हिन्दू धर्म की शिक्षाओं तथा आदर्शों का उन्मूलन करना नहीं था बल्कि धर्म में आयी बुराइयों, कुरीतियों एवं अन्धविश्वासों का निराकरण करना था। सभी धर्मों में समन्वय एवं सामंजस्य संस्थापित करने के लिए राजराराम मोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना की गयी। इस संस्था द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करना था जिससे सभी धर्मावलम्बी एक स्थान पर एकत्र होकर ‘एक ईश्वर’ में विश्वास कर सकें।

ब्रह्म समाज की स्थापना के पीछे निम्नलिखित उद्देश्य थे-

धार्मिक

हिन्दू धर्म में ऐसी रूढ़िवादि विचारधाराओं ने घर कर लिया था कि हिन्दू धर्मावलम्बी निराश होकर अपना प्राचीन धर्म छोड़ना प्रारंभ कर दिए थे। हिन्दू जनता में बहुदेववाद, मुर्तिपूजा आदि का प्रचलन बढ़ गया था। अतः ब्रह्म समाज ने धार्मिक सुधार के लिए निम्न कार्य किया-

  1. ब्रह्म समाज ने एकेश्वरवाद की आवाज उठायी।
  2. मूर्तिपूजा का विरोध किया।
  3. धार्मिक दोषों तथा अन्ध-विश्वासों को त्याग कर भ्रातृत्व का संदेश दिया।
  4. सभी धर्मावलम्बियों को परस्पर मिल-जुल कर रहने की शिक्षा दी।

सामाजिक

उस समय भारतीय समाज में जाति-प्रथा तथा कुलीनता का बोलबाला था। सती-प्रथा, बाल-विवाह, बाल-हत्या, बहुपत्नी विवाह, विधवा-विवाह न करने का नियम आदि सामाजिक कुप्रथाएँ प्रचलित थीं। ब्रह्म समाज ने इन सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध आवाज उठायी और सरकार से मिलकर निम्नलिखित सामाजिक सुधार किए-

  1. सतीप्रथा अवैध घोषित

    राजाराम. मोहन राय के द्वारा लार्ड विलियम बैंटिक को कहकर XVII रेग्यूलेशन द्वारा सती-प्रथा को अवैध घोषित करवा दिया।

  2. विधवाविवाह को कानूनी मान्यता

    विधवा-विवाह पहले निषिद्ध था। राजाराम मोहन राय ने यह व्यवस्था की कि विशेष परिस्थितियों में विधवा-विवाह हो सकता था। उनके समर्थकों तथा साथियों ने स्वयं विधवाओं के साथ विवाह करके विधवा-विवाह प्रथा को प्रोत्साहित किया।

  3. बहुविवाह की आलोचना

    मध्ययुग की सामन्ती प्रथा और 18वीं सदी की अराजकता ने कुलीनों में बहु-विवाह प्रथा को प्रचलित कर दिया था। धीरे-धीरे यह प्रथा अन्य वर्गों में फैल गया 1822 में राजाराम मोहन राय द्वारा ‘The modern Eneroachment on the ancient rights of females according to Hindu law of inheritance’ में बहु-विवाह की आलोचना की गयी।

  4. बालविवाह निषेध

    बाल-विवाह एक सामाजिक कुरीति थी जो अन्य अनेक सामाजिक समस्याओं को जन्म देती थी, जैसे विधवाओं की संख्या में वृद्धि आदि। अतः राजाराम मोहन राय द्वारा सरकार से मिलकर बाल-विवाह को प्रतिबन्धित करा दिया गया।

  5. अंतर्जातीय विवाहों का प्रचलन-

    राजाराम मोहन राय में अन्तर्जातीय विवाहों के प्रचलन पर बल दिया।

इसके अतिरिक्त राजाराम मोहन राय ने स्त्रियों की सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकारों का समर्थन किया, हिन्दू कानूनों में सुधार की आवाज उठायी और यज्ञों में होने वाली नर-हत्या तथा बालिकाओं की हत्या को दण्डनीय घोषित करवाया।

शिक्षा सम्बन्धी सुधार

भारतीय शिक्षा-नीति को बनाने में राजाराम मोहन राय का महत्वपूर्ण योगदान था। वह स्वयं अंगेजी, संस्कृत, अरबी, फारसी भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने निम्नलिखित शिक्षा सम्बन्धी सुधार करवाया-

  1. वह पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को भारत में निश्चित रूप से लागू कराना चाहते थे। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने डेविड हेयर तथा मुख्य न्यायाधीश ह्वाइट ईस्ट के सौजन्य से 1817 से हिन्दू कॉलेज स्थापित किया जिसका उद्देश्य कुलीन हिन्दुओं को अंग्रेजी, भारतीय भाषाओं साहित्य, ज्ञान और विज्ञान की शिक्षा देना था।
  2. उन्होंने अंग्रेजी भाषा के अध्ययन का समर्थन किया। उनहोंने सरकार से कहा कि जब सरकार भारतीय जनता की प्रगति चाहती है तब आधुनिक उदार शिक्षा प्रणाली द्वारा गणित, प्राकृतिक दर्शन, रसायन शास्त्र, शरीर विज्ञान एवं अन्य उपयोगी वैज्ञानिक विषयों की शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। वे संस्कृति को रूढ़िवादी एवं अंधकार में रखने वाली भाषा मानते थे।
  3. उन्होंने कुछ पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों की रचना की जिनमें अरबी भाषा का ‘तुहफुल-उल-मुजाहीदीन’, हिन्दी में ‘वेदान्त सार’ तथा अंग्रेजी में ‘The prospect of Jesus, the guide and peace and happiness’ आदि मुख्य पुस्तकें हैं और ‘संवाद कौमुदी’ और ‘मिरात-उल-उरवर’ उनके द्वारा सम्पादित समाचार-पत्र थे।

राजनैतिक सुधार

राजाराम मोहन राय को आधुनिक युग का प्रवर्तक कहा जाता है उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध वैधानिक उपायों द्वारा ही आन्दोलन करना श्रेयस्कर बतलाया। उनकी राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय थी। उनकी राजनीति देश-विदेश से उठकर मानव मात्र के कल्याण में थी। वे भ्रातृत्व एवं समानता में विश्वास रखते थे। उनके द्वारा राजनीतिक क्षेत्र में किये गये या कराये गये सुधार निम्नलिखित हैं-

  1. प्रेस की स्वतंत्रता राजाराम मोहन राय को आधुनिक जर्नलिज्म का जनक कहा जाता है। उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता पर बल दिया तथा भाषा तथा विचार-स्वातन्त्र्य के पक्षपाती होने के कारण प्रेस पर लगे प्रतिबंधों का विरोध किया।
  2. जमींदारी एवं साम्राज्यवाद का विरोध वे मानते थे कि यदि भारत को प्रगति करना है तो उसे पाश्चात्य प्रगतिशील विचारधारा को अपनाना होगा। अतः उन्होंने जमींदारी और सामंतवाद का विरोध किया तथा सरकार से लगान कम करने की अपील की।
  3. राजाराम मोहन राय ने जूरी द्वारा मुकदमा सुनने की प्रथा पर बल दिया।
  4. उन्होंने शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाने पर बल दिया।

इस प्रकार विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना राजाराम मोहन राय द्वारा की गयी। ब्रह्म समाज का प्रभाव समाज के विभिन्न पक्षों पर पड़ा। समाज के कुप्रथाओं और कुरीतियों का उन्मूलन होने लगा। परन्तु कुछ कुप्रथाएँ जैसे बाल- विवाह आदि पूर्णतया समाप्त न की जा सकीं। समाज में नयी चेतना जागृत होने लगी। ब्रह्म समाज ने मानव मात्र को एकेश्वरवाद का पाठ पढ़ाया। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली तथा वैज्ञानिक आदर्शों पर बल देकर भारतीय समाज को उन्नतिशील बनाने का प्रयत्न किया।

ब्रह्म समाज के संस्थापक राजाराम मोहन राय को विद्वानों ने ‘नवीन युग का दूत’ कहा है। मि0 मोनियर विलियम्स ने कहा है कि “वह शायद प्रथम सत्य, विचारवान, धर्मों के तुलनात्मक विज्ञान का अन्वेषक था जिसे विश्व ने उत्पन्न किया।” ए0एल0 वासम ने कहा कि “राजाराम मोहन राय ने तर्कपूर्ण धार्मिक सुधारों का समाज में शंखनाद किया। इसी को दयानन्द ने दुहराया कि सर्वोत्तम सुधार मातृभूमि की सेवा करना है।” रवीन्द्र नाथ टैगोर के शब्दों में “राजाराम मोहन राय को ही भारतवर्ष के आधुनिक युग का उद्घाटन करने का सम्मान प्राप्त हैं”

महत्वपूर्ण लिंक
  • मुगलकालीन सामाजिक संरचना तथा विभिन्न वर्ग
  • मुगलकालीन सामाजिक स्थिति
  • फारसी साहित्य के विकास में मुगल शासकों का योगदान
  • मुगल काल में हिन्दी, संस्कृत, उर्दू साहित्य का विकासहड़प्पा सभ्यता से सम्बन्धित प्रमुख स्थल
  • सिंधु घाटी निवासियों का आर्थिक जीवन
  • सिंधु घाटी का सामाजिक जीवन
  • सिन्धु सभ्यता की नगर-निर्माण योजना (प्रमुख विशेषताएं)
  • बौद्ध धर्म- दार्शनिक और व्यावहारिक सिद्धान्त | ‘हीनयान’ एवं ‘महायान’ सम्प्रदाय में अन्तर
  • जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत एवं स्थापना
  • बौद्ध धर्म का विकास एवं उसके पतन का कारण
  • जैन धर्म के संप्रदाय ‘श्वेताम्बर’ और ‘दिगम्बर’ |  दोनों में अंतर
  • जैनधर्म के विकास (उदय) एवं उसके पतन का कारण
  • गुप्तोत्तर कालीन सांस्कृतिक विकास
  • पल्लव कौन थे? उनकी कला, स्थापत्यतथा विभिन्न शैलियां
  • शंकराचार्य का अद्वैतवाद सिद्धांत (अद्वैत वेदांत सिद्धांत की विशेषताएं)
  • चोलकालीन कला और स्थापत्य कला

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें पर मेल करें।

About the author

भारतीय पुनर्जागरण में ब्रह्म समाज का क्या योगदान है?

समाज सुधार: उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की। उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।

भारतीय पुनर्जागरण से क्या समझते हैं भारतीय पुनर्जागरण के कारणों की विवेचना कीजिए?

साहित्य, कला, दर्शन, विज्ञान, वाणिज्य-व्यवसाय, समाज और राजनीति पर से धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया. इस प्रकार पुनर्जागरण उस बौद्धिक आन्दोलन का नाम है जिसने रोम और यूनान की प्राचीन सभ्यता-संस्कृति का पुनरुद्धार कर नयी चेतना को जन्म दिया। कुस्तुनतुनिया का पतन :- 1453 ई.

भारतीय पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं?

भारतीय पुनर्जागरण के प्रणेता राजा राममोहन राय थे। उन्होंने सामाजिक तथा धार्मिक कुरीतियों को दूर करने का जो कार्य प्रारंभ किया उसे ईश्वरचंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती, एम. जी. रानाडे, डेरोजियो, कार्वे इत्यादि ने आगे बढ़ाया।

ब्रह्म समाज आंदोलन ने भारतीय समाज को कैसे प्रभावित किया?

इसका एक उद्देश्य भिन्न भिन्न धार्मिक आस्थाओं में बँटी हुई जनता को एक जुट करना तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था। उन्होंने ब्रह्म समाज के अन्तर्गत कई धार्मिक रूढियों को बंद करा दिया जैसे- सती प्रथा, बाल विवाह, जाति तंत्र और अन्य सामाजिक। सन 1815 में राजाराम मोहन राय ने "आत्मीय सभा" की स्थापना की।