Show भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है जिसका आधार द्विचरणीय राजव्यवस्था है। मुख्य आधार केंद्र सरकार और द्वितीय चरण में राज्य सरकार का शासन होता है। धर्म निरपेक्ष और लोकतान्त्रिक व्यवस्था होने के कारण जनता का शासन जनता के द्वारा ही चलाया जाता है। जनता विभिन्न दलों या राजनीतिक पार्टियों के माध्यम से प्रतिनिधियों का चयन करके लोकसभा और राज्यसभा के माध्यम से शासन चलाया जाता है। लेकिन भारत की आजादी के समय 1947 में राजनीति का यह स्वरूप नहीं था जो आज है। भारत की राजनीति का इतिहास: 1947 से पहले सम्पूर्ण भारत छोटी-छोटी 565 रियासतों में बंटा हुआ था जो आजादी के समय लौह पुरुष सरदार पटेल के प्रयासों से एक सत्ता के अधीन आ सकीं थीं। उस समय कांग्रेस मुख्य राजनीतिक पार्टी के रूप में सामने थी जिसमें अधिकतर नेता शिक्षित और ज्ञानी वर्ग से संबन्धित थे। इस समय राजनीति में आने वाले व्यक्ति मुख्य रूप से अत्यधिक शिक्षा प्राप्त, विदेशी शिक्षा से वकील बने, उधयोगपति और लंबे समय से स्वतन्त्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़े विनम्र स्वतन्त्रता सेनानी थे। जो लोग किसी कारण से शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके थे या आंदोलन में लगे होने के कारण कोई व्यवसाय नहीं कर पाये थे, उन्होने अपना पेशा कृषक का दिखाकर राजनीति में सक्रिय प्रवेश कर लिया था। शुरुआती राजनीति धर्म निरपेक्ष, नीति निर्देशक और मौलिक अधिकारों का निर्माण और रक्षक थी। इससे एक स्वच्छ और सुदृढ़ समाज का निर्माण संभव हो रहा था। राजनीति में आधुनिकता का प्रवेश : संविधान के निर्माण के साथ समाज और राजनीति में आधुनिकता का प्रवेश शुरू हो गया। प्राचीन नीति निर्धारक तत्व और नियम सड़े-गले कहकर छोड़े जाने लगे। नए निर्देशक तत्वों और नियमों का निर्माण होने लगा। एकछत्र राजनीति अब दलगत नीति में बदलने लगी। सत्तर के दशक तक आते-आते, आजादी के समय जो एक राजनीतिक पार्टी थी, उसके अनेक विभाजन हो गए। राजनीति में बाहुबली व्यक्तित्वों के प्रवेश से शिक्षित समाज का अभाव होने लगा। भारतीय समाज के दोष जैसे रूढ़िवाद, अंधविश्वास, धार्मिक असहिष्णुता, अशिक्षा और आर्थिक असमानता का लाभ उठा कर राजनीतिक दल अपनी दलगत राजनीति की रोटियाँ सेकने लगे। वर्तमान भारतीय राजनीति: बीसवीं सदी के भारत की राजनीति का दृश्य निम्न स्थितियों से दिखाई देता है :
भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा अवमूल्यन सभी उच्च पद जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपाल के पदों का सामरिक अवमूल्यन के रूप में हुआ है। संसद में क्षेत्रीय राजनीति का बोलबाला होने के कारण सांसद प्रधानमंत्री के स्थान पर अपने क्षेत्रीय नेता को मुखिया मानते हैं जो संसद की गरिमा को गिरने के लिए काफी है। इसी प्रकार राष्ट्रपति भी सरकार के निर्णायक बन गए हैं। राज्यपाल केंद्र और राज्य के प्रधान के रूप में कार्य कर रहे हैं।
संसदीय प्रणाली के कमजोर होने के कारण न्यायिक व्यवस्था का काम न केवल न्याय के लिए काम करना है बल्कि संसद में चल रही अव्यवस्था पर नज़र रख कर उसको नियमित भी करना हो गया है।
कुछ समय पहले संसद के गलियारो में स्वस्थ बहस होती थी और कानून पास होते थे। अब संसद में प्रतिदिन होने वाले गतिरोधों के कारण कानून पास होना तो दूर सामान्य काम भी होना मुश्किल होता है।
1980 के बाद से भारत में राज्यों के अंदर पनपते क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का महत्व बढ़ गया है जिनकी रुचि केवल अपने स्थानीय क्षेत्र के गिने चुने मुद्दों पर विचार करना भर होता है। पूरे देश की समस्या किसी भी राजनीतिक दल के हिस्से नहीं आती है।
भारत की राजनीति (Indian Politics) संविधान के ढाँचे में काम करती हैं। जहाँ पर राष्ट्रपति सरकार का प्रमुख होता हैं और प्रधानमंत्री कार्यपालिका का प्रमुख होता हैं। भारत एक संघीय संसदीय, लोकतांत्रिक गणतंत्र हैं, भारत एक द्वि-राजतन्त्र का अनुसरण करता हैं, अर्थात, केन्द्र में एक केन्द्रीय सत्ता वाली सरकार और परिधि में राज्य सरकारें। संविधान में संसद के द्विसदनीयता का प्रावधान हैं, जिस में एक ऊपरी सदन (राज्य सभा) जो भारतीय संघ के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश का प्रतिनिधित्व करता हैं, और निचला सदन (लोक सभा) जो भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करता हैं, सम्मिलित हैं। शासन एवं सत्ता सरकार के हाथ में होती है। संयुक्त वैधानिक बागडोर कार्यपालिका एवं संसद के दोनो सदनों, लोक सभा एवं राज्य सभा के हाथ में होती है। न्याय मण्डल शासकीय एवं वैधानिक, दोनो से स्वतंत्र होता है। संविधान के अनुसार, भारत एक प्रधान, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक राज्य है, जहां पर विधायिका जनता के द्वारा चुनी जाती है। अमेरिका की तरह, भारत में भी संयुक्त सरकार होती है, लेकिन भारत में केन्द्र सरकार राज्य सरकारों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, जो कि ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है। बहुमत की स्थिति में न होने पर मुख्यमंत्री न बना पाने की दशा में अथवा विशेष संवैधानिक परिस्थिति के अंतर्गत, केन्द्र सरकार राज्य सरकार को निष्कासित कर सकती है और सीधे संयुक्त शासन लागू कर सकती है, जिसे राष्ट्रपति शासन कहा जाता है। भारत का पूरी राजनीती मंत्रियों के द्वारा निर्धारित होती है। भारत एक लोकतांत्रिक और धार्मिक और सामुदायिक देश है। जहां युवाओं में चुनाव का बढ़ा वोट केंद्र भारतीय राजनीति में बना रहता है यहां चुनाव को लोकतांत्रिक पर्व की तरह बनाया जाता है। भारत में राजनीतिक राज्य में नीति करने की तरह है।
सन्दर्भबाहरी कड़ियाँ
भारत में राज्यों की राजनीति के आर्थिक आधार क्या है?संविधान के अनुसार, भारत एक प्रधान, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक राज्य है, जहां पर विधायिका जनता के द्वारा चुनी जाती है। अमेरिका की तरह, भारत में भी संयुक्त सरकार होती है, लेकिन भारत में केन्द्र सरकार राज्य सरकारों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, जो कि ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है।
राजनीतिक पॉलिटिकल क्या है?राजनीति दो शब्दों का एक समूह है राज+नीति (राज मतलब शासन और नीति मतलब उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला) अर्थात् नीति विशेष के द्वारा शासन करना या विशेष उद्देश्य को प्राप्त करना राजनीति कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जनता के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर (सार्वजनिक जीवन स्तर)को ऊँचा करना राजनीति है ।
राजनीति सिद्धान्त से क्या बताते है?(२) राजनीतिक सिद्धान्त सामान्यतः मानव जाति, उसके द्वारा संगठित समाजों और इतिहास तथा ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न करता है। वह विभेदों को मिटाने के तरीके भी सुझाता है और कभी-कभी क्रांतियों की हिमायत करता है। बहुधा भविष्य के बारे में पूर्वानुमान भी दिए जाते हैं।
भारत में राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियां हैं?राजनैतिक दलों के सिद्धान्त या लक्ष्य (विज़न) प्राय: लिखित दस्तावेज़ के रूप में होता है। विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों की अलग-अलग स्थिति व व्यवस्था है। कुछ देशों में कोई भी राजनीतिक दल नहीं होता। कहीं एक ही दल सर्वेसर्वा (डॉमिनैन्ट) होता है।
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