भारतकाराष्ट्रपति Show भारतीय संघ की कार्यपालिका के प्रधान को 'राष्ट्रपति’ कहा जाता है। संघ की कार्यपालिका शक्ति 'राष्ट्रपति’ में निहित है। भारत में संसदीय प्रणाली होने के कारण ब्रिटेन की साम्राज्ञी की तरह भारत का 'राष्ट्रपति’ कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान होता है और मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यकारी। 'राष्ट्रपति’ की स्थित वैधानिक अध्यक्ष की है तथा उनका पद धुरी के समान है जो राजनीतिक व्यवस्था को संतुलित करता है। ब्रिटेन की साम्राज्ञी और भारत के’राष्ट्रपति’ के पद में मूलभूत अंतर यह है कि ब्रिटेन की साम्राज्ञी का पद वंशानुगत है, जबकि भारत का राष्ट्रपति एक निर्वाचक मण्डल द्वारा निर्वाचित किया जाता है। ’राष्ट्रपति’ अपने अधिकारों का प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ सरकारी अधिकारियों द्वारा करता है । राष्ट्रपति की निर्वाचनप्रक्रिया
राज्य की कुल जनसंख्या राज्य के विधानसभा के एक सदस्य का मत मूल्य = -------------------------------------------------------------------- राज्य विधानसभा में निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या /1000
कुल राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्यों का योग संसद सदस्य का मत मूल्य = --------------------------------------------------------------------------------- संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों का योग इस तरह राष्ट्रपति के चुनाव में यह ध्यान रखा जाता है कि सभी राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य का योग संसद के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य के योग के बराबर रहे और सभी राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्य का निर्धारण करने के निए एक समान प्रक्रिया अपनायी जाए। इसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिद्वांत कहते है।
राष्ट्रपतिपदकेलिएयोग्यता
राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य विधान मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की की तारीख से रिक्त कर दिया है। राष्ट्रपति लाभ का कोई अन्य पद ग्रहण नहीं करेगा। राष्ट्रपतिपदावधिएवंहटायेजानेकीस्थिति राष्ट्रपति की पदावधि पद ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष की होती है । 5 वर्ष से पहले राष्ट्रपति की पदावधि दो प्रकार से समाप्त हो सकती है- 1.उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना त्यागपत्र देकर, 2.महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा संविधान के उल्लंघन के आरोप में हटाये जाने पर। महाभियोगकीप्रक्रिया महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है जो संसद में चलायी जाती है। संसद का कोई भी सदन राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाएगा। दूसरा सदन उन आरोपों की जांच करेगा या करवाएगा। किंतु ऐसा आरोप तब तक नही चलाया जा सकता जब तक कि-
राष्ट्रपति की शपथ राष्ट्रपति अपने पद की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा लेता है। चुनावसंबंधी विवाद राष्ट्रपति के चुनाव को जिन आधारों पर चुनौती दी जा सकती है, वे इस प्रकार है-
उल्लेखनीय है कि 1976 में डॉ. जाकिर हुसैन तथा 1969 में श्री वी.वी. गिरि के चुनावों को उच्चतम न्यायालय ने वैध घोषित किया था श्री जैल सिंह के चुनाव के संबंध में जो चुनाव याचिकाएं दायर की गई थी, उच्चतम न्यायालय द्वारा वे भी रद्द कर दी गई। 13 दिसम्बर 1983 को उच्चतम न्यायालय ने श्री जैल सिंह के चुनाव को वैध घोषित किया । वेतनऔरभत्ते राष्ट्रपति को निःशुल्क शासकीय निवास (राष्ट्रपति भवन) उपलब्ध होता है। राष्ट्रपति उन सभी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा जो संसद द्वारा समय-समय पर निश्चित किये जाएंगे। संविधान के अनु. 59 के अनुसार राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते उसके कार्यकाल में घटाये नहीं जा सकते। भारत के राष्ट्रपति का वेतन वर्तमान में (2019) ₹5 लाख प्रतिमाह है। राष्ट्रपतिकीशक्तियां संविधान द्वारा राष्ट्रपति को जो शक्तियां प्रदान की गई है, वे अत्यन्त विस्तृत और व्यापक है। अनुच्छेद-53 के अनुसार संघीय कार्यपालिका की सभी शक्तियां राष्ट्रपति में निहित है, जिनका प्रयोग संविधान के अनुसार या तो राष्ट्रपति स्वयं करता है, या उसके नाम से उसके अधीनस्थ पदाधिकारी करते हैं। राष्ट्रपति की शक्तियों को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जा सकता है - कार्यकारी शक्तियां ‘कार्यकारी शक्ति का प्राथमिक अर्थ है विधान मंडल द्वारा अधिनियमित विधियों का कार्यपालन। किंतु आधुनिक राज्य में कार्यपालिका का कार्य उतना सादा नहीं है जितना अरस्तू के युग में था। कार्यपालिका शक्ति की परिधि के परिप्रक्ष्य में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकार व्याख्या की गई है-’’ कार्यपालिका कृत्य का का अर्थ है और उसकी क्या विवक्षा है, इसकी सर्वग्राही परिभाषा कर पाना संभव नहीं है। विधायी और न्यायिक शक्ति को निकाल देने पर शासकीय कृत्यों में जो भी अवशिष्ट रहता है, सामान्यतया वही कार्यपालिका का कृत्य है। किंतु यह संविधान या किसी अन्य विधि के उपबंधों के आधीन रहते हुए हैं। कार्यपालिका कृत्य में आते हैं- नीति निर्धारण और उसकी कार्य में परिणिति, व्यवस्था बनाए रखना, सामाजिक और आर्थिक कल्याण का प्रान्नयन, विदेश नीति का मार्गदर्शन, राज्य के साधारण प्रशासन को चलाना या उसका अधीक्षण। 1976 से पूर्व संविधान में यह अभिव्यक्त उपबंध नहीं था कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए आबद्ध है। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 से अनु.74 (1) का संशोधन करके स्थिति स्पष्ट कर दी गई है- ''राष्ट्रपति को अपनी सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में इनकी सलाह के अनुसार कार्य करेगा।'' अर्थात उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट कुछ मामलों को छोड़कर राष्ट्रपति को किसी मामले में अपने विवेकानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं प्रदान की गई है। राष्ट्रपति की कार्यपालिका संबंधी शक्तियों को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है- मंत्रिपरिषदकागठन अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिका शक्ति के संचालन में सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद का गठन करता है। सामान्यतः राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है, जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता हो। प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। प्रायः परंपरा रही है कि प्रधानमंत्री लोकसभा का सदस्य होता है, क्योंकि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है, लेकिन राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल किसी ऐसे व्यक्ति को अपना नेता चुनता है जो संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है लेकिन इस प्रकारनियुक्त किये गये व्यक्ति को 6 माह के अंदर संसद का सदस्य होना पड़ता है। इसी तरह प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपरिषद में शामिल कर सकता है, जो संसद सदस्य नहीं है। यदि ऐसा व्यक्ति मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाता है, तो उसे 6 माह के अन्दर संसद के किसी सदन का सदस्य बनना पड़ता है। नियुक्तिसंबंधी शक्ति संविधान द्वारा राष्ट्रपति को उच्च पदाधिकारियों को नियुक्त करने तथा उन्हे हटाने की शक्ति प्रदान की गई है। कार्यपालिका का अध्यक्ष होने के नाते राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री के परामर्श से अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है इनके अतिक्त राष्ट्रपति निम्नलिखित उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है-
आयोगों का गठन कार्यपालिका संबंधी शक्तियों के अंतर्गत राष्ट्रपति को आयोगों को गठित करने की शक्तियां भी प्रदान की गयी है। ये आयोग निम्न लिखित है, जिन्हें राष्ट्रपति गठित करता है-
संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का दायित्व कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करे, फिर भी कुछ ऐसे अप्रत्यक्ष क्षेत्र हैं जहां राष्ट्रपति को अपने विवेक तथा बुद्धि का उपयोग करना पड़ता है। वे इस प्रकार है- प्रधानमंत्रीकीनियुक्ति
ऐसी कुछ स्थितियों में राष्ट्रपति की भूमिका अत्यन्त नाजुक तथा निर्णायक हो जाती है । विधायीशक्तियां विधायी क्षेत्र में राष्ट्रपति की शक्तियां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इंग्लैंड के सम्राट के समान, भारत का राष्ट्रपति भी संघ की संसद का अभिन्न अंग है। अनु.-74 (1) के अनुसार, राष्ट्रपति विधायी शक्तियों का प्रयोग मंत्रियों की सलाह पर ही कर सकता है। संविधान द्वारा राष्ट्रपति को निम्नलिखित विधायी शक्तियां प्रदान की गई हैं- 1.संसद से संबंधित शक्तियाँ राष्ट्रपति संसद के सदनों के अधिवेशन बुलाता है, सत्रावसान करता है, तथा लोकसभा को भंग कर सकता है। गतिरोध उत्पन्न होने की स्थिति में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करने की भी शक्ति उसे प्राप्त है। राष्ट्रपति को लोकसभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करने की शक्ति प्रदान की गई है। आरंभिक भाषण का वही उपयोग होता है जो इंग्लैंड में "सिंहासन से भाषण’’ का होता है। राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन में या संसद के संयुक्त अधिवेशन में अभिभाषण कर सकता है। अभिभाषण करने के अधिकार के अतिरिक्त भारत के राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह संसद में उस समय जब विधेयक लम्बित है किसी विधेयक के संबंध में या किसी अन्य विषय के संबंध में किसी भी सदन को संदेश भेज सकता है और उसके संदेश पर यथाशीघ्र विचार करना आवश्यक होता है। संसद के दोनों सदनों का गठन मुख्यतः निर्वाचन के द्वारा होता है चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष। किंतु राष्ट्रपति को दोनों सदनों में कुछ सदस्यों के नाम निर्दिष्ट करने की शक्ति दी गई है। राष्ट्रपति राज्यसभा में ऐसे 12 व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, और सामाजिक विषयों का विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव हो। अनुच्छेद 80 (1), अनुच्छेद 331 के अनुसार राष्ट्रपति को यह शक्ति भी प्रदान की गई है कि यदि उसको यह लगता है कि लोकसभा में ऐंग्लो-इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह लोकसभा में उस समुदाय के दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है। राष्ट्रपति की कुछ प्रतिवेदनों और कथनों को संसद के समक्ष रखने की शक्ति और कुछ कर्तव्यों के माध्यम से वह संसद के सम्पर्क में आता है। राष्ट्रपति का यह कर्तव्य है कि संसद के समक्ष यह दस्तावेज रखवाएं-
2.विधेयक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी या सिफारिशः निम्नलिखित विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी या सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किये जा सकतेः
3.राज्य विधानमंडल द्वारा बनायी जाने वाली विधि के संबंध में राष्ट्रपति की शक्तिः राज्य विधानमंडल द्वारा बनायी जाने वाली विधि के संबंध में राष्ट्रपति को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैः
4.अध्यादेशजारीकरनेकीशक्तिःराष्ट्रपति की सबसे महत्वपूर्ण विधायी शक्ति आध्यादेश जारी करने की है। यह शक्ति उसे अनुच्छेद 123 के अंतर्गत प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 123 (1) के अनुसार जब संसद का सत्र न चल रहा हो, तब राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है। इस प्रकार का जारी किया गया अध्यादेश उतना ही प्रभावपूर्ण एवं शक्तिशाली होगा जितना कि संसद द्वारा पारित किया गया कानून, परंतु यहअध्यादेश संसद का अगला सत्र प्रारंभ होने के छः सप्ताह पश्चात समाप्त समझे जाएंगे। यदि संसद चाहे तो उसके द्वारा इस अवधि के पूर्व भी इन अध्यादेशों को समाप्त किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति तभी होती है जब दोनों में से किसी एक सदन का सत्रावसान करना संभव नहीं है। जब दोनों सदन सत्र में होते हैं तब उसे यह शक्ति उपलब्ध नहीं होती । राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकता है। 5.विशेषाधिकारयावीटोकीशक्तिः संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक अधिनियम तब तक नहीं बन सकता जब तक कि उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति नहीं मिल जाती। जब दोनों सदनों से पारित किये जाने के पश्चात कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो वह निम्नलिखित तीन बातों में से कोई एक कर सकता है-
भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति विश्व के कुछ देशों के राष्ट्राध्यक्षों की वीटो शक्तियां और भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों का तुलनात्मक विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति आत्यंतिक, निलंबनकारी और जेबी वीटो का संयोजन है। संविधान के अनुसार किये गये कार्यो तथा परम्पराओं के आधार पर यह माना जाता है कि राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन प्रकार की वीटो शक्तियां प्राप्त हैं- 1.आत्यांतिकवीटोःजब राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनुमति प्रदान नहीं करता तो वह विधेयक समाप्त हो जाता है। भारत के संविधान में पूर्ण मंत्रिमंडलीय दायित्व होते हुए भी इस उपबंध को समाविष्ट किया गया है। राष्ट्रपति सामान्यतया इस शक्ति का प्रयोग गैर-सरकारी विधेयकों के संदर्भ में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिसमें विधेयक के पारित हो जाने के पश्चात और दूसरा मंत्रिमंडल जिसका संसद में बहुमत है राष्ट्रपति को उस विधेयक के विरूद्ध वीटो के प्रयोग की सलाह देता है। ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति के लिए वीटो का प्रयोग सवैधानिक होगा। 2.निलंबनकारीवीटोः जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनुमति देने से स्पष्ट रूप से इंकार करने के स्थान पर विधेयक या इसके किसी भाग को पुनर्विचार के लिए वापस कर देता है तो यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ने निलम्बनकारी वीटो का प्रयोग किया है पुनर्विचार के लिए वापस किया गया विधेयक यदि पुनः सामान्य बहुमत से पारित कर दिया जाता है, जो उस स्थिति में राष्ट्रपति की अपनी अनुमति देने के लिए विवश होना पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति द्वारा लौटाए जाने का प्रभाव निलंबन मात्र होता है। 3.जेबी वीटोः अनुच्छेद 111 के अनुसार यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक को वापस करना चाहता है तो वह विधेयक को प्रस्तुत किए जाने के पश्चात यथाशीघ्र लौटा देगा। संविधान में इसके लिए कोई समय सीमा निश्चित नहीं की गयी है। समय-सीमा के अभाव में, भारत का राष्ट्रपति जेबी वीटो की शक्ति का प्रयोग करता है। इसे पॉकेट वीटो भी कहा जाता है । जब राष्ट्रपति अनुमति के लिए प्रस्तुत विधेयक पर न तो अनुमति देता है, न ही इंकार करता है अथवा न ही उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है विशेषकर तब जब वह पाता है कि मंत्रिमंडल का पतन शीघ्र होने वाला है, तो यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ने जेबी वीटो का प्रयोग किया है । उदाहरणस्वरूप इस वीटो का प्रयोग राष्ट्रपति (ज्ञानी जैल सिंह) ने 1986 में संसद द्वारा पारित भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के संदर्भ में किया था। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इसे न तो अनुमति दी, न ही इंकार किया और न ही संसद में पुनर्विचार के लिए वापस भेजा। अभी तक यह राष्ट्रपति की जेब में ही है। सैन्य शक्तियाँ
न्यायिक शक्तियाँ कार्यपालिका को न्यायिक शक्ति प्रदान करने का उद्देश्य यह है कि यदि कोई न्यायिक भूल हुई हो तो उसे सुधार किया जा सके। इस प्रकार राष्ट्रपति को मुख्यता दो प्रकार की न्यायिक शक्तियां प्राप्त हैं- 1.क्षमादान कीशक्तिः संविधान के अनुच्छेद-72 के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान किए गए हैं कि वह किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा कर दे अथवा दंड कम कर दे या निलंबित कर दे अथवा दंड को किसी अन्य दंड में बदल दे। क्षमा से अभिप्राय यह है कि जिसमें अपराधी को सभी दंडों और निरहर्ताओं से मुक्ति मिल जाती है। किंतु क्षमा प्रदान करने अथवा दंड को कम करने की शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति निम्नलिखित परिस्थितियों में ही कर सकता है- 1.उन मामलों में जिनमें किसी व्यक्ति को केंद्रीय कानूनों के तहत दंडित किया गया हो । 2.उन सभी मामलों में जिनमें मृत्युदंड न्यायालय द्वारा दिया गया हो। 3.उन मामलों में जिनमें दंड सैनिक न्यायालय द्वारा दिया गया हो। केहर सिंह बनाम भारत संघ, 1989 विवाद के पश्चात उच्चतम न्यायालय ने क्षमादान की शक्ति के संबंध में निम्नलिखित सिद्वांत प्रतिपादित किए- 1.जो व्यक्ति राष्ट्रपति को क्षमादान के लिए आवेदन करता है उसे राष्ट्रपति के समक्ष मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है। 2.इस शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति के विवेकाधीन है। न्यायालय मार्ग दर्शन के सिद्वांत अधिकथित करने की आवश्यकता नहीं समझता । 3.इस शक्ति का प्रयोग केंद्रीय सरकार की सलाह पर किया जायेगा। 4.राष्ट्रपति न्यायालय के निर्णय पर विचार करके उससे भिन्न मत अपना सकता है। 5.राष्ट्रपति के निर्णय का न्यायालय पुनर्विलोकन मारूराम के मामले में बताई गई सीमा में ही कर सकते है। मारूराम के मामले में बताये गये निर्देश के अनुसार न्यायालय वहां हस्तक्षेप कर सकेगा, जहां राष्ट्रपति का निर्णय अनुच्छेद 72 के उद्देश्यों से पूर्णतया असंगत है या तर्कहीन, मनमाना, विभेदकारी है। भारत के संविधान में क्रमशः अनुच्छेद-72 और 161 के अधीन राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल दोनों को ही क्षमादान की शक्ति प्राप्त है। 2.उच्चतमन्यायालयसेपरामर्शलेनेका अधिकारः अनुच्छेद-143 के अनुसार जब राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की सम्भावना है, जो ऐसी प्रकृति और व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तब वह उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय की राय मांग सकता है । वित्तीयशक्तियाँ राष्ट्रपति को संविधान द्वारा कई वित्तीय शक्तियां प्रदान की गयी है। धन विधेयक तथा वित्त विधेयक को तभी लोकसभा में पेश किया जाता है, जब राष्ट्रपति उसकी सिफारिश करे। जिस विधेयक को प्रवर्तित किये जाने पर भारत की संचित निधि में व्यय करना पड़े, उस विधेयक को संसद में तभी पारित किया जायेगा, जब राष्ट्रपति उस विधेयक पर विचार विमर्श करने की सिफारिश संसद से करे। जिस कराधान में राज्य का हित सम्बद्ध है, उस कराधान से सम्बन्धित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति से ही लोकसभा में पेश किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति प्रत्येक वर्ष वित्तमंत्री के माध्यम से वर्ष का बजट लोकसभा में पेश करवाता है तथा प्रत्येक पांच वर्ष की समाप्ति पर वित्त आयोग का गठन करता है। राष्ट्रपति वित्त आयोग द्वारा की गयी प्रत्येक सिफारिश को, उस पर किये गये स्पष्टीकारक ज्ञापन संहित संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाता है। आपातशक्तियाँ राष्ट्रपति को निम्नलिखित आपातकालीन शक्तियां प्रदान की गयी हैं-
राष्ट्रपतिकाविशेषाधिकार संविधान द्वारा राष्ट्रपति को यह विशेषाधिकार प्रदान किया गया है कि वह अपने पद के किसी कर्तव्य के निर्वहन तथा शक्तियों के प्रयोग में किये जाने वाले किसी कार्य के लिए न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा । राष्ट्रपतिकीसंवैधानिकस्थिति
स्वतंत्रता पश्चात से अबतक के भारत के राष्ट्रपतियों की सूची
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राष्ट्रपति को संसद सत्र आहूत, सत्रावसान करना एवं लोकसभा को भंग करने की शक्ति भी रखता है। नए राज्यों के निर्माण राज्य की सीमा में परिवर्तन संबंधित विधेयक, धन विधेयक या संचित निधि से व्यय करने वाला विधेयक एवं राज्य हित से जुड़े विधेयक बिना राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति के संसद में प्रस्तुत नहीं होते हैं।
राष्ट्रपति की शक्तियां कितने प्रकार की होती हैं?राष्ट्रपति के पास मुख्य रूप से सात शक्तियाँ होती है और इसके अतिरिक्त वीटो शक्ति भी संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के पास होती है .
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां कौन कौन सी हैं?अनुच्छेद 352 –
युद्ध, बाहरी आक्रमण और सशस्त्र विद्रोह जैसी स्थिति में राष्ट्रपति अपनी शक्ति का उपयोग कर खतरे वाले स्थान या पुरे देश में आपातकाल की घोषणा कर सकता है। यह आपातकल संसद की मजूरी के बिना केवल १ माह तक रह सका है वरना इसे संसद के दो तिहाई बहुमत से पास कराना होता है।
राष्ट्रपति के कौन कौन से अधिकार हैं?भारत के राष्ट्रपति के अधिकार और कर्तव्य. नियुक्ति सम्बंधी अधिकार. संसद में मोनोनीत सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार. अध्यादेश जारी करनें का अधिकार. राजनैतिक शक्ति. क्षमादान की शक्ति. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ. राष्ट्रपति की वीटो शक्ति. |