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अँधेर नगरी नाटक के रचयिता भारतेन्दु जी अँधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी।[1] कथानक[संपादित करें]यह नाटक ६ अंकों में विभक्त है। इसमें अंक के बजाय दृश्य शब्द का प्रयोग किया गया है। पहले दृश्य में महंत अपने दो चेलों के साथ दिखाई पड़ते हैं जो अपने शिष्यों गोवर्धन दास और नारायण दास को पास के शहर में भिक्षा माँगने भेजते हैं। वे गोवर्धन दास को लोभ के बुरे परिणाम के प्रति सचेत करते हैं और दिखाते है की लालच कैसा होता है | दूसरे दृश्य में शहर के बाजार का दृश्य है जहाँ सबकुछ टके सेर बिक रहा है। गोवर्धन दास बाजार की यह कफैयत देखकर आनन्दित होता है और सात पैसे में ढाई सेर मिठाई लेकर अपने गुरु के पास लौट जाता है। तीसरे दृश्य में महंत के पास दोनों शिष्य लौटते हैं। नारायण दास कुछ नहीं लाता है जबकि गोबर्धन दास ढाई सेर मिठाई लेकर आता है। महंत शहर में गुणी और अवगुणी को एक ही भाव मिलने की खबर सुनकर सचेत हो जाते हैं और अपने शिष्यों को तुरंत ही शहर छोड़ने को कहते हैं। वे कहते हैं- "सेत सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास। ऐसे देश कुदेस में, कबहूँ न कीजै बास।।" नारायण दास उनकी बात मान लेता है जबकि गोवर्धन दास सस्ते स्वादिष्ट भोजन के लालच में वहीं रह जाने का फैसला करता है। चौथे दृश्य में अँधेर नगरी के चौपट राजा के दरबार और न्याय का चित्रण है। शराब में डूबा राजा फरियादी के बकरी दबने की शिकायत पर बनिया से शुरु होकर कारीगर, चूनेवाले, भिश्ती, कसाई और गड़रिया से होते हुए कोतवाल तक जा पहुँचता है और उसे फाँसी की सजा सुना देता है। पाँचवें दृश्य में मिठाई खाते और प्रसन्न होते मोटे हो गए गोवर्धन दास को चार सिपाही पकड़कर फांसी देने के लिए ले जाते हैं। वे उसे बताते हैं कि बकरी मरी इसलिए न्याय की खातिर किसी को तो फाँसी पर जरूर चढ़ाया जाना चाहिए। जब दुबले कोतवाल के गले से फाँसी का फँदा बड़ा निकला तो राजा ने किसी मोटे को फाँसी देने का हुक्म दे दिया। छठे दृश्य में शमशान में गोवर्धन दास को फाँसी देने की तैयारी पूरी हो गई है। तभी उसके गुरु महंत जी आकर उसके कान में कुछ मंत्र देते हैं। इसके बाद गुरु शिष्य दोनों फाँसी पर चढ़ने की उतावली दिखाते हैं। राजा यह सुनकर कि इस शुभ सइयत में फाँसी चढ़ने वाला सीधा बैकुंठ जाएगा स्वयं को ही फाँसी पर चढ़ाने की आज्ञा देता है। इस तरह अन्यायी और मूर्ख राजा स्वतः ही नष्ट हो जाता है। पात्र[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
760 Views भारतेंदु हरिश्चंद्रजन्म : – 09 सितम्बर 1850, काशी, उ.प्र.मृत्यु :- 06 जनवरी 1885 (35 वर्ष की अल्पायु में )
1 भारतेंदु चन्द्रिका 2 बाला बोधिनी 3 कविवचन सुधा
वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, प्रेम जोगिनी, श्री चन्द्रावली नाटिका, विषस्य विषमौषधम, भारत दुर्दशा, नीलदेवी,अंधेर नगरी,सती प्रताप,विद्यासुन्दर,कर्पुर मंजरी, सत्य हरिश्चंद्र, भारत जननी, मुद्राराक्षस आदि I अंधेर नगरीनाटककार : – भारतेंदु हरिश्चंद्ररचना लेखन वर्ष : 1881 ई. में Iमहत्वपूर्ण बिंदु
नाटक के प्रमुख पात्रमहंत :- एक विवेकशील, चतुर,दयालु और साहसी साधू है I गोवर्धनदास : – महंत का लोभी शिष्य, अवज्ञाकारी और जिव्हा-लोलुप है I नारायणदास : – महंत का दूसरा शिष्य कबाबवाला, घासीराम (चने बेचने वाला), नारंगीवाली, हलवाई, कुजाइन (सब्जी बेचने वाली), मुग़ल (मेवे बेचनेवाला ), पाचकवाला (चूरन बेचनेवाला), जातवाला (जाति बेचनेवाला) मछलीवाली, बनिया राजा (चौपट राजा, जो शराब में डूबा रहता है तथा न्याय और अन्याय में फर्क नहीं समझता ) मंत्री, माली फरियादी (राजा से न्याय मांगने वाला), कल्लू बनिया (जिसकी दीवार से फरियादी की बकरी मरती है), कारीगर, चूनेवाला, भिश्ती, कस्साई, गडरिया, कोतवाल, राजा के चार सिपाही I नाटक की प्रमुख पंक्तियाँ
लोभ कभी नहीं कीजिए,यामै नरक निदान II
इसका धन बल सभी बढाया II चूरन ऐसा हट्टा कट्टा I कीना दांत सभी का खट्टा II चूरन अमले सब जो खावें I दूनी रिश्वत तुरत पाचवें II
टके सेर भाजी टका सेर खाजा II
ते ऐसहि आपुहि नसे, जैसे चौपट राजा II
मान्य योग्य नर ते, जे केवल परहित जाए II नाटक का उद्देश्य
डॉ. रामविलास के शब्दों में :- “अंधेर नगरी राज्य की अंधेरगर्दी की आलोचना ही नही, वह इस अंधेरगर्दी को ख़त्म करने के लिए भारतीय जनता की प्रबल इच्छा भी प्रकट करता है I इस तरह भारतेंदु ने नाटकों को जनता का मनोरंजन करने के साथ उसका राजनीतिक शिक्षण करने का साधन भी बनाया I इसके गति और हास्य भरे वाक्य लोगों की जुबान पर चढ़ गए हैं और भारतेंदु की प्रहसन कला यहाँ अपने चरमोत्कर्ष पर दिखाई देती है I” अंधेर नगरी के नाटककार का क्या संदेश है?अँधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी।
अंधेर नगरी नाटक से हमें क्या शिक्षा मिलती है?अंधेर नगरी नाटक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी लोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि लोभ का परिणाम संकट में फँसना है। जिस प्रकार अंधेर नगरी नाटक में प्रत्येक वस्तु टके सेर मिलती है।
अंधेर नगरी नाटक के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है स्पष्ट कीजिए?सिपाही,कोतवाल,मंत्री,राजा सभी लोभ के वशीभूत स्वर्ग जाने को लालायित हो उठते है,सभी फाँसी पर चढ़ने को उतावले हैं। भोगी राजा प्रबल लोभ और मूढ़ता के अधीन फाँसी चढ़ जाता है। भारतेंदु का अभिप्राय यह है कि आज नहीं तो कल अंग्रेजी राज और उसके पोषक सामन्तों का अन्त सुनिश्चित है क्योंकि भारतीय जनता इनसे मुक्ति चाह रही है।
अंधेर नगरी की मूल संवेदना क्या प्रतिपाद्य लिखिए?इसकी कथावस्तु में लोकानुकृति है। भारतेन्दु ने इससे अंधेर नगरी चौपट राजा की लोक कथा लेकर समकालीन राजनीतिक चेतना का अर्थ भर दिया है। व्यंग्य के तीखेपन से लेखक केवल राज्य सत्ता पर ही नहीं, ब्राहमण के बिकाऊ मनोवृत्ति, मुनाफाखोरी, नौकरीशाही एवं मुफ्तखोरों की लोभवृत्ति पर भी प्रहार करता है।
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